गुरू पूर्णिमा-2024.
ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया । चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नम:।।
सनातन संस्कृति में “गुरु” का स्थान पूजनीय होता है. इस संस्कृति में किसी भी कार्य से पहले गुरु की आराधना करते हैं उसके बाद ही किसी कार्य का आरम्भ करते हैं. दो अक्षरों से मिलकर बने ‘गुरु’ शब्द का अर्थ – प्रथम अक्षर ‘गु का अर्थ- ‘अंधकार’ होता है जबकि दूसरे अक्षर ‘रु’ का अर्थ- ‘उसको हटाने वाला’ होता है या यूँ कहें कि, अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ‘गुरु’ कहा जाता है.
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. सनातन परंपरा में गुरू को ईश्वर से भी आगे का स्थान प्राप्त है तभी तो कहा गया है कि “हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर”.
पौराणीक ग्रंथों के अनुसार, महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है. वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी. इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है. उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है.
रामाश्रयी धारा के प्रतिनिधि गोस्वामीजी वाल्मीकि से राम के प्रति कहलवाते हैं कि- तुम तें अधिक गुरहिं जिय जानी. राम आप तो उस हृदय में वास करें- जहाँ आपसे भी गुरु के प्रति अधिक श्रद्धा हो. लीलारस के रसिक भी मानते हैं कि उसका दाता सद्गुरु ही है- श्रीकृष्ण तो दान में मिले हैं. सद्गुरु लोक कल्याण के लिए मही पर नित्यावतार है- अन्य अवतार नैमित्तिक हैं. संतजन कहते हैं-
राम कृष्ण सबसे बड़ा उनहूँ तो गुरु कीन्ह।
तीन लोक के वे धनी गुरु आज्ञा आधीन॥
गुरु तत्व की प्रशंसा तो सभी शास्त्रों ने की है. ईश्वर के अस्तित्व में मतभेद हो सकता है, किन्तु गुरु के लिए कोई मतभेद आज तक उत्पन्न नहीं हो सका। गुरु को सभी ने माना है. प्रत्येक गुरु ने दूसरे गुरुओं को आदर-प्रशंसा एवं पूजा सहित पूर्ण सम्मान दिया है. भारत के बहुत से संप्रदाय तो केवल गुरुवाणी के आधार पर ही कायम हैं.
गुरु ने जो नियम बताए हैं उन नियमों पर श्रद्धा से चलना उस संप्रदाय के शिष्य का परम कर्तव्य है. गुरु का कार्य नैतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक समस्याओं को हल करना भी है. राजा दशरथ के दरबार में गुरु- वशिष्ठ से भला कौन परिचित नहीं है, जिनकी सलाह के बगैर दरबार का कोई भी कार्य नहीं होता था. गुरु की भूमिका भारत में केवल आध्यात्म या धार्मिकता तक ही सीमित नहीं रही है, देश पर राजनीतिक विपदा आने पर गुरु ने देश को उचित सलाह देकर विपदा से उबारा भी है.
सद्गुरु की ऐसी महिमा के कारण उसका व्यक्तित्व माता-पिता से भी ऊपर है. गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक के अनुसार- ‘यस्य देवे परा भक्तिर्यथा देवे तथा गुरु‘ अर्थात जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी. बल्कि सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है. गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है.
देवी श्वेताम्बरा.
========== ========= ===========
Guru Purnima…
Om agyaan Timiraandhasy Gyaanaanjanashalaakaaya। Chakshurunmilitan Yen Tasmai Shree Gurave Nam:।।
In Sanatan culture, the place of “Guru” is revered. In this culture, before starting any work, we worship the Guru and only after that do we start any work. The meaning of the word ‘Guru’ is made up of two letters – the first letter ‘Gu’ means ‘darkness’ while the second letter ‘ru’ means ‘one who removes it’ or in other words, the one who removes darkness and leads towards light is called ‘Guru’.
The full moon day of the month of Ashadh is also known as Guru Purnima. In Sanatan tradition, Guru has a place ahead of God, that is why it is said that “Hari is angry, Guru is angry, there is no place for Guru”.
According to mythological texts, it is also the birthday of Krishna Dwaipayan Vyas, the author of Mahabharata. He was a great scholar of Sanskrit and he also composed the four Vedas. For this reason, one of his names is Veda Vyas. He is called Adiguru and in his honor Guru Purnima is also known as Vyas Purnima.
Goswamiji, the representative of the Ramashrya stream, makes Valmiki say to Ram that – Guru is more dear to me than you. Ram, you should live in that heart – where there is more respect for the Guru than you. The lovers of Leela Ras believe that only Sadguru is its giver – Shri Krishna was given as a gift. Sadguru is eternally incarnated on earth for the welfare of the people – other incarnations are temporary. Saints say –
Raam Krshn Sabase Bada Unahoon To Guru Keenh।
Teen Lok Ke Ve Dhanee Guru Aagya Aadheen।।
All the scriptures have praised the Guru element. There may be differences of opinion about the existence of God, but no difference of opinion has arisen to date about the Guru. Everyone has accepted the Guru. Every Guru has given full respect to other Gurus with respect, praise, and worship. Many sects of India are based only on the Guru’s words.
It is the ultimate duty of the disciple of that sect to follow the rules given by the Guru with devotion. The work of the Guru is also to solve moral, spiritual, social, and political problems. Who is not familiar with Guru Vashishtha in the court of King Dasharath, without whose advice no work of the court was done? The role of the Guru in India has not been limited to spirituality or religion only, when the country faced a political crisis, the Guru has also helped the country overcome the crisis by giving proper advice.
Due to such glory of Sadguru, his personality is even above that of his parents. According to a shloka for the similarity between Guru and God – ‘Yasya deve para bhaktiryatha deve tatha guru’ means that the devotion required for God is the same for Guru as well. In fact, with the grace of Sadguru, it is also possible to have a vision of God. Nothing is possible without the grace of the Guru.
Devi Shwetambara.