मौनी आमावस्या…

हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष का ग्यारहवाँ महीना चल रहा है. यह महीना भी कार्तिक मास के ऐसा ही विशेष फलदायी है. इस महीने को माघ के नाम से जानते हैं. पौराणिक ग्रंथ ‘पद्म पुराण’ के अनुसार माघ मास में ‘कल्पवास’ का विशेष महत्व होता है. हर मास में एक-एक पूर्णिमा और आमवस्या होती है जिसका महत्व अलग-अलग होता है. यह मास माघ मास है इस मास की आमवस्या का विशेष महत्व है. माघ मास की आमवस्या को ही मौनी आमवस्या कहा जाता है. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार माघ महीने के कृष्ण पक्ष की आमवस्या के दिन ही “मनु ऋषि” का जन्म हुआ था. वैसे तो देखा जाय तो मौनी शब्द की उत्पत्ति भी मनु से ही हुई है.
वहीँ, सप्ताह में सात दिन होते है इस सात दिनों का अपना अलग कि महत्व है लेकिन सात दिनों में सोमवार, मंगलवार और शनिवार का दिन हो और विशेष में आमवस्या हो तो इन दिनों का महत्व और भी विशेष हो जाता है.वर्ष 2022 में एक फरवरी (दिन मंगलवार) को मौनी आमवस्या का पर्व मनाया जा रह है.
अमावस्या तिथि सोमवार को पड़ने के कारण इसे सोमवती अमावस्या जबकि मंगलवार को पड़ने के कारण इसे भौमी अमावस्या कहा जाता है. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन पवित्र संगम में देवताओं का निवास होता है इसलिए इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है.मौनी आमवस्या के ही दिन गंगा नदी का जल अमृत के समान हो जाता है. मौनी अमावस्या के दिन व्यक्ति को मौन धारण करते हुए किसी पवित्र, सरोवर, नदी या जलाशय में स्नान दान करना चाहिए. ऐसा करने वाले व्यक्ति को मुनि पद की प्राप्ति होती है.
कथा :-
देवताओं और दानवों ने मिलकर सागर मंथन किया था उस मंथन के दौरान सागर से कई वस्तुएं मिली थी, उनमे से अमृत कलश भी मिला था जो भगवान धन्वन्तरी के हाथों में था. अमृत कलश को देखते ही देवताओं और दानवों के बीच खींचा-तानी शुरू हो गई. इसी खींचा-तानी में अमृत की कुछ बुँदे इलाहबाद, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में गिरी थी. इसी कारण से संगम स्नान करने से अमृत स्नान का पुण्य प्राप्त होता है. धर्म ग्रन्थों के अनुसार सतयुग में जो पुण्य तप से मिलता है, द्वापर में हरि भक्ति से, त्रेता में ज्ञान से वहीं कलयुग में सत्संग व दान से. लेकिन महीने में संगम स्नान हर युग में अन्नंत पुण्यदायी होता है. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान के पश्चात अपने सामर्थ्य के अनुसार दान दे लेकिन, इस दिन तिल का दान सर्वोत्तम दान माना जाता है.
ध्यान दें:-
मौनी अमावस्या के दिन जहां तक सम्भव हो सके मौन धारण करना चाहिए, कटु-कड़वे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए.साथ ही पीपल को अर्घ्य देकर परिक्रमा और दीप दान अवश्य करना चाहिए. इस दिन जहाँ तक संभव हो मौन धारण करते हुए मानसिक मंत्रों का जाप करते रहना चाहिए.