स्वतंत्रता सेनानी जयरामदास दौलतराम
जयरामदास दौलतराम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक सेनानी थे. उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अत्यंत महत्वपूर्ण था. वे न केवल स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि एक सामाजिक कार्यकर्ता और राजनेता भी थे. जयरामदास दौलतराम का जन्म 21 जुलाई 1891 को सिंध (अब पाकिस्तान) में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सिंध में प्राप्त की और बाद में उच्च शिक्षा के लिए मुंबई गए. उन्होंने कानून की पढ़ाई की और वकालत शुरू की.
दौलतराम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े और महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई. वे गांधीजी के सत्याग्रह और असहयोग आंदोलन में भागीदार रहे. उन्होंने सिंध क्षेत्र में स्वतंत्रता आंदोलन को सक्रिय रूप से समर्थन दिया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ जनता को संगठित किया. उनके नेतृत्व में सिंध में कई विरोध प्रदर्शन और आंदोलन हुए.
दौलतराम अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य भी रहे. उन्होंने पार्टी की नीतियों और कार्यक्रमों को सिंध और अन्य क्षेत्रों में फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, जयरामदास दौलतराम ने भारत के राजनीतिक जीवन में सक्रिय भूमिका निभाई. वे संविधान सभा के सदस्य बने और भारत के संविधान के निर्माण में सहयोग दिया.
स्वतंत्रता के बाद, वे केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हुए और विभिन्न महत्वपूर्ण मंत्रालयों का कार्यभार संभाला. उन्होंने खाद्य और कृषि मंत्रालय, संचार मंत्रालय आदि में अपनी सेवाएं दीं. जयरामदास दौलतराम को बिहार और पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया. उन्होंने राज्यपाल के रूप में अपने कार्यकाल में जनता की सेवा के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए.
दौलतराम ने स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ सामाजिक सुधारों के लिए भी कार्य किया. उन्होंने शिक्षा, स्वच्छता और महिलाओं के अधिकारों के लिए अभियान चलाए. उनके प्रयासों ने समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
जयरामदास दौलतराम का जीवन और कार्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान के प्रतीक हैं. उनके योगदान और समर्पण ने न केवल भारत को स्वतंत्रता दिलाने में सहायता की, बल्कि स्वतंत्रता के बाद के भारत के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनके प्रयास और आदर्श आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं.
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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष व्योमेश चन्द्र बनर्जी
व्योमेश चन्द्र बनर्जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष थे. वे एक प्रमुख वकील और राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की नींव रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
व्योमेश चन्द्र बनर्जी का जन्म 29 दिसंबर 1844 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता में प्राप्त की और बाद में इंग्लैंड जाकर कानून की पढ़ाई की. वे बैरिस्टर बने और वापस भारत लौटे. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 1885 में हुई थी. इसका उद्देश्य भारतीय जनता के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक हितों की रक्षा करना और उन्हें ब्रिटिश शासन से मुक्ति दिलाना था.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पहला अधिवेशन 28-31 दिसंबर 1885 को मुंबई में आयोजित किया गया था. इस अधिवेशन में व्योमेश चन्द्र बनर्जी को कांग्रेस का प्रथम अध्यक्ष चुना गया. उन्होंने अपने अध्यक्षीय भाषण में भारतीय जनता की समस्याओं और ब्रिटिश शासन की नीतियों के खिलाफ आवाज उठाई.
व्योमेश चन्द्र बनर्जी एक सफल वकील थे और उन्होंने कई महत्वपूर्ण मामलों में वकालत की. उनकी कानूनी क्षमता और तार्किकता ने उन्हें भारतीय न्याय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया. उनके नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारतीय जनता की आवाज को ब्रिटिश सरकार तक पहुंचाने का कार्य किया. उनके अध्यक्षीय भाषणों और सुझावों ने भारतीय राजनीति को नई दिशा दी.
व्योमेश चन्द्र बनर्जी ने सामाजिक सुधारों के लिए भी कार्य किया. वे शिक्षा, स्वच्छता, और सामाजिक न्याय के पक्षधर थे. उन्होंने भारतीय समाज में सुधार लाने के लिए कई कदम उठाए. व्योमेश चन्द्र बनर्जी का निधन 21 जुलाई 1906 को हुआ. उनके योगदान और सेवाओं को भारतीय इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा.
व्योमेश चन्द्र बनर्जी का जीवन और कार्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रारंभिक चरण में महत्वपूर्ण थे. उनके नेतृत्व और समर्पण ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को एक मजबूत आधार प्रदान किया और भारतीय जनता के अधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा दी. उनके योगदान को भारतीय इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा और वे एक महान नेता के रूप में सम्मानित किए जाएंगे.
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गीतकार आनंद बख्शी
आनंद बख्शी भारतीय सिनेमा के एक प्रमुख गीतकार थे, जिनका नाम हिंदी फिल्म संगीत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है. उन्होंने हजारों गीत लिखे, जो आज भी श्रोताओं के दिलों में बसे हुए हैं. उनके गीतों में विविधता, भावनात्मक गहराई और सरलता का अनूठा संगम देखने को मिलता है.
आनंद बख्शी का जन्म 21 जुलाई 1930 को रावलपिंडी (अब पाकिस्तान में) में हुआ था. उनके पिता एक बैंक मैनेजर थे, और परिवार विभाजन के समय भारत आ गया. आनंद बख्शी का बचपन कठिनाइयों में बीता, और उन्होंने सेना में भी काम किया।
आनंद बख्शी ने 1958 में मुंबई आने के बाद अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत फ़िल्म ‘बड़ा आदमी’ से की. शुरुआती दौर में उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा, लेकिन उनकी मेहनत और प्रतिभा ने उन्हें जल्द ही सफलता दिलाई.
उनकी पहली सफल फिल्म ‘मेहंदी लगी मेरे हाथ’ (1962) थी, लेकिन उन्हें असली पहचान फिल्म ‘जब जब फूल खिले’ (1965) के गीतों से मिली. इस फिल्म के गीत “परदेसियों से ना अखियां मिलाना” और “एक था गुल और एक थी बुलबुल” बहुत लोकप्रिय हुए. वर्ष 1960 – 70 के दशक में आनंद बख्शी ने कई हिट फिल्मों के लिए गीत लिखे. उनकी प्रमुख फिल्मों में ‘अराधना’, ‘अमर प्रेम’, ‘शोले’, ‘कभी कभी’, ‘धर्मात्मा’, ‘बॉबी’, ‘एक दूजे के लिए’, ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’, और ‘ताल’ शामिल हैं.
लोकप्रिय गीत: – “मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू”, “चिंगारी कोई भड़के”, “दम मारो दम”, “तुम आ गए हो”, “मेरा जीना यहाँ”, “ये शाम मस्तानी”, “तुझसे नाराज़ नहीं ज़िंदगी”, “तुझे देखा तो ये जाना सनम”, और “कहो ना प्यार है” शामिल हैं.
आनंद बख्शी के गीतों की सबसे बड़ी विशेषता उनकी साधारण और सहज भाषा थी. वे आम बोलचाल की भाषा में गीत लिखते थे, जो सीधे श्रोताओं के दिल तक पहुँचते थे. उनके गीतों में भावनात्मक गहराई होती थी. उन्होंने प्रेम, दुख, खुशी, बिछड़न, और जीवन के अन्य पहलुओं को बड़ी खूबसूरती से प्रस्तुत किया.
आनंद बख्शी के गीतों में विषयों की विविधता देखने को मिलती है. उन्होंने हर तरह के गीत लिखे – रोमांटिक, देशभक्ति, मस्ती भरे, दर्द भरे, और उत्साहजनक. आनंद बख्शी को अपने कैरियर में कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए. उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए कई बार नामांकित किया गया और चार बार यह पुरस्कार जीता.
आनंद बख्शी का निधन 30 मार्च 2002 को हुआ. उनके योगदान को आज भी भारतीय सिनेमा और संगीत जगत में बेहद सम्मान के साथ याद किया जाता है. उनके गीत आज भी उतने ही ताजगी से भरे हुए लगते हैं और नए पीढ़ी के लोग भी उन्हें गुनगुनाते हैं.
आनंद बख्शी का जीवन और कार्य भारतीय फिल्म संगीत के लिए एक अमूल्य धरोहर हैं. उनके गीतों ने न केवल फिल्मों को सजाया, बल्कि लोगों की भावनाओं को भी अभिव्यक्त किया. उनका नाम हमेशा भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक महान गीतकार के रूप में जीवित रहेगा.
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राजनीतिज्ञ शंकरसिंह वाघेला
शंकरसिंह वाघेला भारतीय राजनीति के नेता और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री हैं. वे अपनी राजनीति में विविध भूमिका और विचारधारा परिवर्तन के लिए जाने जाते हैं. उनका राजनीतिक कैरियर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी से जुड़ा रहा है.
शंकरसिंह वाघेला का जन्म 21 जुलाई 1940 को गुजरात के गांधीनगर जिले के वस्ना ग्राम में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय स्कूलों में प्राप्त की और बाद में गुजरात विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की. वे युवा अवस्था में ही राजनीति में सक्रिय हो गए थे. शंकरसिंह वाघेला ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से की थी और बाद में भारतीय जनसंघ से जुड़े। वे भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के संस्थापक सदस्यों में से एक थे. उन्होंने 1990 के दशक में बीजेपी को गुजरात में मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे गुजरात विधानसभा के सदस्य बने और पार्टी के विभिन्न पदों पर कार्य किया.
वर्ष 1996 में, उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. उनका कार्यकाल हालांकि केवल एक वर्ष तक चला. वर्ष 1997 में, बीजेपी से मतभेदों के चलते उन्होंने पार्टी छोड़ दी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस) में शामिल हो गए. कांग्रेस में शामिल होने के बाद, वे केंद्र सरकार में मंत्री बने. उन्होंने विभिन्न महत्वपूर्ण मंत्रालयों का कार्यभार संभाला. शंकरसिंह वाघेला ने कांग्रेस पार्टी में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं और गुजरात में पार्टी को मजबूत करने में योगदान दिया.
वाघेला का गुजरात की राजनीति में हमेशा प्रभाव रहा है. उन्होंने विभिन्न चुनावों में कांग्रेस के लिए प्रचार किया और पार्टी को मजबूत किया. वे जनता के बीच लोकप्रिय नेता रहे हैं और उनके समर्थक उन्हें उनकी ईमानदारी और सरलता के लिए सम्मानित करते हैं.
शंकरसिंह वाघेला का जीवन राजनीतिक गतिविधियों से भरा रहा है. वे अपने परिवार के साथ समय बिताने के लिए भी जाने जाते हैं. उनकी राजनीतिक दृष्टि और जनता के प्रति सेवा भावना ने उन्हें एक लोकप्रिय नेता बनाया.
शंकरसिंह वाघेला का राजनीतिक कैरियर विभिन्न उतार-चढ़ावों से भरा रहा है. उन्होंने बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और गुजरात की राजनीति में अपनी एक अलग पहचान बनाई, उनके नेतृत्व और कार्यों ने भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है.
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क्रिकेट खिलाड़ी चेतन चौहान
चेतन चौहान भारतीय क्रिकेटर और राजनीतिज्ञ थे. उनका क्रिकेट कैरियर और बाद में राजनीति में उनका योगदान उल्लेखनीय है. चेतन चौहान का जन्म 21 जुलाई 1947 को उत्तर प्रदेश के बरेली में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा के दौरान क्रिकेट खेलना शुरू किया और जल्द ही अपनी प्रतिभा के बल पर भारतीय क्रिकेट टीम में जगह बनाई.
चेतन चौहान ने 1969 में न्यूजीलैंड के खिलाफ अपने टेस्ट कैरियर की शुरुआत की. उन्होंने 40 टेस्ट मैचों में 2,084 रन बनाए, जिसमें 16 अर्धशतक शामिल थे. उनकी औसत 31.57 थी. वे सुनील गावस्कर के साथ ओपनिंग साझेदार के रूप में मशहूर थे, और दोनों ने कई महत्वपूर्ण साझेदारियाँ कीं.
घरेलू क्रिकेट में, चौहान ने महाराष्ट्र, दिल्ली, और उत्तर प्रदेश के लिए खेला. वे रणजी ट्रॉफी में एक सफल बल्लेबाज थे और अपने टीमों के लिए कई महत्वपूर्ण पारियां खेलीं. चेतन चौहान अपनी स्थिरता और धैर्यपूर्ण बल्लेबाजी के लिए जाने जाते थे. वे अक्सर नई गेंद का सामना करते थे और अपनी टीम को मजबूत शुरुआत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे.
क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद, चेतन चौहान ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ राजनीति में प्रवेश किया. वे पार्टी के सक्रिय सदस्य बने और विभिन्न राजनीतिक पदों पर कार्य किया. वे अमरोहा निर्वाचन क्षेत्र से दो बार लोकसभा सांसद चुने गए. उनकी सेवा और जनता के प्रति समर्पण ने उन्हें एक लोकप्रिय नेता बनाया. वर्ष 2016 में, उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री नियुक्त किया गया. उन्होंने खेल और युवा कल्याण मंत्री के रूप में कार्य किया और राज्य में खेलों के विकास के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया.
चेतन चौहान अपने सरल और सादगीपूर्ण जीवन के लिए जाने जाते थे. उनका विवाह सिम्मी चौहान से हुआ था, और उनके दो बच्चे हैं. चेतन चौहान का निधन 16 अगस्त 2020 को कोविड-19 के संक्रमण के कारण हुआ. उनके निधन से खेल और राजनीतिक जगत में शोक की लहर दौड़ गई.
चेतन चौहान का जीवन और कैरियर कई क्षेत्रों में उल्लेखनीय था. एक क्रिकेटर के रूप में उन्होंने भारतीय क्रिकेट को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और एक राजनीतिज्ञ के रूप में उन्होंने जनता की सेवा की. उनका योगदान और यादें हमेशा भारतीय खेल और राजनीति में जीवित रहेंगी.
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क्रिकेट खिलाड़ी चंदू बोर्डे
चंदू बोर्डे भारतीय क्रिकेट के एक प्रमुख खिलाड़ी और प्रशासक रहे हैं. वे अपने समय के बेहतरीन बल्लेबाजों और ऑलराउंडरों में से एक थे और बाद में उन्होंने भारतीय क्रिकेट के प्रशासनिक कार्यों में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया.
चंदू बोर्डे का जन्म 21 जुलाई 1934 को पुणे, महाराष्ट्र में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पुणे में प्राप्त की और वहीं से क्रिकेट में अपनी प्रतिभा को निखारा. चंदू बोर्डे ने 1958 में वेस्ट इंडीज के खिलाफ टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू किया. उन्होंने अपने कैरियर में 55 टेस्ट मैच खेले और 3,061 रन बनाए, जिसमें 5 शतक और 18 अर्धशतक शामिल थे. उनकी बल्लेबाजी औसत 35.59 थी.
बोर्डे न केवल एक उत्कृष्ट बल्लेबाज थे, बल्कि एक उपयोगी लेग स्पिन गेंदबाज भी थे. उन्होंने अपने टेस्ट करियर में 52 विकेट भी लिए. उनकी कई प्रमुख पारियां भारतीय क्रिकेट के इतिहास में यादगार हैं, जैसे 1961-62 में इंग्लैंड के खिलाफ 160 रन की पारी. वे टीम के महत्वपूर्ण सदस्य थे और उन्होंने कई मैचों में भारत की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
घरेलू क्रिकेट में भी बोर्डे का प्रदर्शन उल्लेखनीय था. उन्होंने महाराष्ट्र और बड़ौदा के लिए रणजी ट्रॉफी में खेला और कई महत्वपूर्ण पारियां खेलीं. क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद, चंदू बोर्डे भारतीय क्रिकेट के प्रशासन में सक्रिय हो गए. वे भारतीय क्रिकेट टीम के चयनकर्ता समिति के अध्यक्ष बने और इस भूमिका में उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसले लिए. उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम के मैनेजर के रूप में भी कार्य किया और 2007 में भारतीय टीम के साथ इंग्लैंड दौरे पर गए. उनके अनुभव और ज्ञान ने टीम को महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान किया.
बोर्डे को 1969 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया. उन्हें भारतीय क्रिकेट में उनके योगदान के लिए कई अन्य पुरस्कार और सम्मान भी प्राप्त हुए. चंदू बोर्डे अपने सादगीपूर्ण और अनुशासित जीवन के लिए जाने जाते हैं. उनका परिवार भी खेलों में सक्रिय रहा है, और वे हमेशा अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताना पसंद करते हैं.
चंदू बोर्डे का जीवन और कैरियर भारतीय क्रिकेट के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. उनके योगदान और नेतृत्व ने भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया. वे एक प्रेरणास्रोत हैं और उनका नाम भारतीय क्रिकेट के महान खिलाड़ियों में शामिल रहेगा.
चंदू बोर्डे का जीवन और कार्य भारतीय क्रिकेट के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है. एक खिलाड़ी के रूप में उन्होंने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और एक प्रशासक के रूप में उन्होंने खेल को नया दिशा प्रदान किया. उनका योगदान भारतीय क्रिकेट में हमेशा याद रखा जाएगा.
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कैप्टन संगमा
पी. ए. संगमा, जिन्हें कैप्टन संगमा के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय राजनीति के एक प्रमुख नेता थे. वे पूर्वोत्तर भारत के मेघालय राज्य से ताल्लुक रखते थे और उन्होंने भारतीय राजनीति में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं. उनका कैरियर राजनीतिक समर्पण और विविध जिम्मेदारियों से भरा हुआ था.
पी. ए. संगमा का पूरा नाम पूर्णो अग्रसंग्मा संगमा था. उनका जन्म 1 सितंबर 1947 को पश्चिम गारो हिल्स, मेघालय में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पश्चिम गारो हिल्स में प्राप्त की और बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट एंथनी कॉलेज और दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक और स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की. पी. ए. संगमा ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत 1973 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) से की थी. वे पहली बार 1977 में लोकसभा के सदस्य चुने गए. संगमा ने केंद्र सरकार में विभिन्न मंत्रालयों में मंत्री के रूप में कार्य किया. उन्होंने श्रम मंत्रालय, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, और अन्य प्रमुख मंत्रालयों का नेतृत्व किया.
वर्ष 1996 में, पी. ए. संगमा को लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया. इस भूमिका में, उन्होंने संसदीय कार्यवाहियों को निष्पक्षता और कुशलता से संचालित किया. उनके नेतृत्व में, संसद ने कई महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित किया और संसदीय प्रक्रियाओं को अधिक पारदर्शी बनाने के लिए कदम उठाए. वर्ष 1999 में, सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर असहमति के कारण, पी. ए. संगमा ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और शरद पवार और तारिक अनवर के साथ मिलकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का गठन किया. संगमा ने एनसीपी के साथ मिलकर विभिन्न चुनावों में भाग लिया और पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने में मदद की.
संगमा ने 1988 – 90 तक मेघालय के मुख्यमंत्री के रूप में भी सेवा की. उनके कार्यकाल के दौरान, उन्होंने राज्य के विकास और सामाजिक कल्याण के लिए कई महत्वपूर्ण पहल कीं. वर्ष 2012 में, पी. ए. संगमा ने राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ा, हालांकि वे चुनाव नहीं जीत पाए. पी. ए. संगमा अपने विनम्र और समर्पित व्यक्तित्व के लिए जाने जाते थे. उनके परिवार में उनकी पत्नी और बच्चे हैं. उनके बेटे, कॉनराड संगमा, मेघालय के मुख्यमंत्री हैं, और उनकी बेटी, अगाथा संगमा, भी एक सक्रिय राजनीतिज्ञ हैं. पी. ए. संगमा का निधन 4 मार्च 2016 को नई दिल्ली में हुआ. उनके निधन से भारतीय राजनीति में एक बड़ा शून्य उत्पन्न हो गया.
पी. ए. संगमा का जीवन और कैरियर भारतीय राजनीति के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. उनकी नेतृत्व क्षमता, समर्पण, और जनता के प्रति सेवा भावना ने उन्हें एक सम्मानित नेता बनाया. उनका योगदान और यादें हमेशा भारतीय राजनीति में जीवित रहेंगी.
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गायिका गंगूबाई हंगल
गंगूबाई हंगल भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक गायिका थीं, जिन्होंने खयाल गायिकी में उल्लेखनीय योगदान दिया. उनकी गायिकी की शैली किराना घराना से संबंधित थी और उनकी आवाज की गहराई और परिपक्वता के लिए वे जानी जाती थीं.
गंगूबाई हंगल का जन्म 5 मार्च 1913 को कर्नाटक के धारवाड़ जिले के हंगल गाँव में हुआ था. उनका पूरा नाम गंगूबाई हंगल था. उनके पिता चिक्कुरंगप्पा हंगल एक किसान थे, जबकि उनकी माँ अंबाबाई एक संगीतज्ञ थीं. गंगूबाई ने अपनी प्रारंभिक संगीत शिक्षा अपनी माँ से प्राप्त की. गंगूबाई ने प्रारंभिक संगीत प्रशिक्षण अपनी माँ अंबाबाई से प्राप्त किया, जो एक प्रसिद्ध कार्नाटक संगीत गायिका थीं. बाद में, उन्होंने पंडित कृष्णाचार्य हुलगुर से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली.
गंगूबाई ने किराना घराना के प्रमुख गायक उस्ताद सवाई गंधर्व से प्रशिक्षण प्राप्त किया. उस्ताद सवाई गंधर्व के संरक्षण में, उन्होंने खयाल गायिकी में महारत हासिल की. गंगूबाई हंगल ने खयाल गायिकी के साथ ठुमरी, दादरा, और भजन जैसी अन्य शैलियों में भी अपने कौशल का प्रदर्शन किया. उनकी गायिकी में गहरी भावनाएँ और शुद्धता की झलक मिलती थी. उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में “अभी तो बालक हूँ”, “ऐ री सखी”, और “जा जा रे अपना” शामिल हैं.
गंगूबाई हंगल ने अपने कैरियर के शुरुआती दिनों में कई सामाजिक बाधाओं का सामना किया. एक महिला और निम्न जाति से होने के कारण, उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत और समर्पण से इन बाधाओं को पार किया और भारतीय शास्त्रीय संगीत में अपनी पहचान बनाई. गंगूबाई हंगल को उनकी उत्कृष्ट संगीत प्रतिभा के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए. उन्हें 1971 में पद्म भूषण और 2002 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया. उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और तानसेन सम्मान भी प्राप्त हुए.
गंगूबाई हंगल का व्यक्तिगत जीवन सादगी और समर्पण से भरा हुआ था. उन्होंने संगीत को अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया और अपनी संतान को भी संगीत की शिक्षा दी. उनकी बेटी कृष्णा हंगल भी एक प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका बनीं. गंगूबाई हंगल का निधन 21 जुलाई 2009 को कर्नाटक के हुबली में हुआ. उनके निधन से भारतीय शास्त्रीय संगीत जगत ने एक महान गायिका को खो दिया.
गंगूबाई हंगल की संगीत विरासत आज भी जीवित है. उनके शिष्यों और अनुयायियों ने उनकी संगीत परंपरा को आगे बढ़ाया है. उनके योगदान को भारतीय शास्त्रीय संगीत में हमेशा याद किया जाएगा, और वे नई पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी रहेंगी.
गंगूबाई हंगल का जीवन और कैरियर भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है. उनके समर्पण, संघर्ष और संगीत प्रतिभा ने उन्हें एक महान गायिका के रूप में स्थापित किया. उनका संगीत और योगदान हमेशा भारतीय संगीत प्रेमियों के दिलों में बसा रहेगा.
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राजनीतिज्ञ लालजी टंडन
लालजी टंडन भारतीय राजनीति के एक सम्मानित नेता थे, जिन्होंने उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं. वे भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के प्रमुख नेताओं में से एक थे और उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण नाम थे.
लालजी टंडन का जन्म 12 अप्रैल 1935 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की और बाद में भारतीय विश्वविद्यालयों से उच्च शिक्षा प्राप्त की. लालजी टंडन ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और भारतीय जनसंघ (जो बाद में भारतीय जनता पार्टी बनी) के साथ की. उन्होंने पार्टी के विचारधारा और उद्देश्यों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के गठन के बाद, टंडन पार्टी के सक्रिय सदस्य बने और कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया.
लालजी टंडन ने उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य के रूप में कई बार कार्य किया. उन्होंने 1991 और 1998 में लखनऊ लोकसभा सीट से भी सांसद चुने गए. वे बीजेपी के प्रमुख नेताओं में से एक थे और पार्टी के लिए महत्वपूर्ण चुनावी रणनीतियाँ तैयार कीं. उन्होंने कई केंद्रीय मंत्रालयों में मंत्री के रूप में कार्य किया, जिसमें शहरी विकास मंत्रालय और अन्य प्रमुख मंत्रालय शामिल हैं. उनके कार्यकाल के दौरान, उन्होंने राज्य और देश के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण नीतियाँ और परियोजनाएं शुरू कीं.
वर्ष 2018 में, लालजी टंडन को बिहार के राज्यपाल नियुक्त किया गया. उनके कार्यकाल के दौरान, उन्होंने राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था और विकास के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए. लालजी टंडन का व्यक्तिगत जीवन भी उनके राजनीतिक जीवन की तरह सादगी और अनुशासन से भरा हुआ था. उनके परिवार में उनकी पत्नी, संगीता टंडन और उनके बच्चे हैं. उनके बेटे, आशुतोष टंडन, भी एक प्रमुख राजनीतिज्ञ हैं और उत्तर प्रदेश में मंत्री रह चुके हैं.
लालजी टंडन का निधन 21 जुलाई 2020 को लखनऊ में हुआ. उनके निधन से भारतीय राजनीति में एक बड़ा शून्य उत्पन्न हुआ, और उनके योगदान को सम्मानपूर्वक याद किया गया. लालजी टंडन का जीवन और कार्य भारतीय राजनीति के लिए महत्वपूर्ण रहे हैं. उनके नेतृत्व, अनुभव और समर्पण ने उन्हें एक सम्मानित नेता बना दिया. उनके योगदान और सेवाएँ आज भी राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में याद की जाती हैं.
लालजी टंडन का जीवन भारतीय राजनीति के विभिन्न पहलुओं से भरा हुआ था. उनके समर्पण, नेतृत्व और सेवा की भावना ने उन्हें एक महत्वपूर्ण नेता बनाया. उनका योगदान और कार्य भारतीय राजनीति में हमेशा सम्मानपूर्वक याद किया जाएगा.