Dharm

श्रीकृष्ण जन्मोत्सव…

।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥

पौराणिक ग्रंथों में युगों का वर्णन किया गया है. इन युगों में सत्ययुग, त्रेता युग, द्वापर युग, कलयुग और भट्ट युग की चर्चा की गई है. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार त्रेता युग में भगवान राम की चर्चा की गई है वहीं, द्वापर युग में श्रीकृष्ण का. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, इस जगत की रचना भगवान विष्णु ने की वहीं, भगवान ब्रह्मा ने सृष्टी की रचना की जबकि भगवान शंकर या यूँ कहें कि, भगवान भोलेनाथ को संहार का देवता कहा गया. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, सृष्टी में जब भी अधर्म बढ़ता है तो भगवान विष्णु विभिन्न रूपों में अवतरित होकर अधर्म का नाश कर धर्म की रक्षा करते हैं. त्रेता युग में भगवान विष्णु ने राम के रूप में अवतरित होकर रावण का नाश कर धर्म की रक्षा की थी जबकि द्वापर युग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतरित लिया था. आखिर ‘कृष्ण’ का मतलब क्या होता है?

वाल व्यास सुमन जी महाराज,

वाल व्यास सुमनजी  महाराज कहते हैं कि, “कृष्ण” मूलतः एक संस्कृत शब्द है जो “काला”, “अंधेरा” या “गहरा नीला” का समानार्थी है. महाराज जी कहते हैं कि, कृष्ण को अंधकार या ढलते चंद्रमा के समय को कृष्ण पक्ष कहा जाता है. वाल व्यास सुमनजी महाराज कहते हैं श्रीकृष्ण ने अपना अवतार भाद्र माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में लिया. चूंकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे अत: इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी जबकि, दुसरे दिन को श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के रूप में मनाते हैं. महाराज जी कहते हैं कि, पौराणिक ग्रंथ श्रीमद भागवत पुराण में वर्णन है कि जब कृष्ण बाल्यावस्था में थे तब नन्दबाबा के घर आचार्य गर्गाचार्य ने उनका नामकरण संस्कार किया था. नाम रखते समय गर्गाचार्य ने बताया कि, ‘यह पुत्र प्रत्येक युग में अवतार धारण करता है. कभी इसका वर्ण श्वेत, कभी लाल, कभी पीला होता है. पूर्व के प्रत्येक युगों में शरीर धारण करते हुए इसके तीन वर्ण हो चुके हैं. इस बार कृष्णवर्ण का हुआ है, अतः इसका नाम कृष्ण होगा. वासुदेव का पुत्र होने के कारण उसका अन्य नाम वासुदेव, मोहन, गोविन्द, माधव, कन्हैया, श्याम, केशव, द्वारकाधीश और गोपाल भी होगा.

महाराज जी कहते हैं कि, भगवान विष्णु को आमतौर पर, काले या नीले रंग की त्वचा के साथ किया जाता है. कुछ ग्रंथों में, उनकी त्वचा को काव्य रूप से जंबुल ( जामून , बैंगनी रंग का फल) के रंग के रूप में वर्णित किया गया है. महाराज जी कहते हैं कि, श्रीकृष्ण को अक्सर मोर-पंख वाले पुष्प या मुकुट पहनकर चित्रित किया जाता है और उन्हें बांसुरी बजाते हुए उनका चित्रण हुआ है. आम तौर पर त्रिभंग मुद्रा में दूसरे के सामने एक पैर को दुसरे पैर पर डाले भी चित्रित किया गया है. महाराज जी कहते हैं कि, जब श्रीकृष्ण गाय और बछड़ा के साथ होते हैं तो उन्हें ‘गोविंद’ कहा जाता है. महाराज जी कहते हैं कि, श्रीकृष्ण निष्काम कर्मयोगी, एक आदर्श दार्शनिक, स्थित प्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्ज महान पुरुष थे. उनको इस युग में  सर्वश्रेष्ठ पुरुष युग-पुरुष या युगावतार का स्थान दिया जाता है. कृष्ण के समकालीन महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत और महाभारत में कृष्ण का चरित्र विस्तृत रूप से लिखा गया है. भगवद् गीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद है जो ग्रंथ आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है.

महाराज जी कहते हैं कि, कृष्ण वसुदेव और देवकी की आठवीं संतान थे. मथुरा के कारावास में उनका जन्म हुआ था और गोकुल में उनका लालन पालन हुआ. यशोदा और नन्द उनके पालक माता पिता थे. उनका बचपन गोकुल में बीता. बाल्य अवस्था में ही उन्होंने बड़े बड़े कार्य किये जो किसी सामान्य मनुष्य के लिए सम्भव नहीं था. सौराष्ट्र में द्वारका नगरी की स्थापना की और वहाँ अपना राज्य बसाया. पांडवों की मदद की और विभिन्न आपत्तियों में उनकी रक्षा की. महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई और भगवद् गीता का ज्ञान दिया जो उनके जीवन की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है. महाराज जी कहते हैं कि, श्री कृष्ण का बाल्य रूप काफी मोहक है जिनमें एक बच्चा अपने हाथों और घुटनों पर रेंगते हुए ,नृत्य करते हुए ,साथी मित्र ग्वाल बाल को चुराकर मक्खन देते हैं. ‘ऋषि मार्कंडेय द्वारा विवरणित ब्रह्मांड विघटन’ के अनुसार, प्रलय के समय बरगद के पत्ते पर तैरते हुए एक अलौकिक शिशु जो अपने पैर की अंगुली को चूसता प्रतीत होता है.

महाराज जी कहते हैं कि, वर्तमान समय में प्रेम और दोस्ती की परिभाषा ही बदल गई है आज ‘प्रेम’ का मतलब होता है ‘स्वार्थ’ जबकि, श्रीमद भागवत  पुराण में राधा और कृष्ण के अद्वितीय प्रेम का प्रतीक माना गया है वहीं ‘सुदामा’ के साथ उनकी दोस्ती को मित्रता का प्रतीक माना जाता है. महाराज जी कहते हैं कि, श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी की रात्रि को मोह-रात्रि भी कहा जाता है. इस रात्रि में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मंत्र जपते हुए रात्रि जागरण  से संसार की मोह-माया से आसक्ति हटती है जबकि, श्रीकृष्णाष्टमीके दूसरे दिन भाद्रपद कृष्ण-नवमी में नंद-महोत्सव अर्थात् दधिकांदौ श्रीकृष्ण के जन्म लेने के उपलक्ष में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. भाद्रपद कृष्ण-नवमी को भगवान के श्रीविग्रह पर हल्दी, दही, घी, तेल, गुलाब-जल, मक्खन, केसर, कपूर आदि चढाकर ब्रजवासी उसका परस्पर लेपन और छिडकाव करते हैं और वाद्ययंत्रों से मंगल ध्वनि बजाई जाती है. उसके बाद एक-दुसरे को मिठाई बाँटते है.

वाल व्यास सुमन जी महाराज,

महात्मा भवन,

श्रीराम-जानकी मंदिर,

राम कोट, अयोध्या.

सम्पर्क: – 8709142129.

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Sri Krishna Janmotsav…

Om Namo Bhagwate Vaasudevay

Yugas have been described in mythological texts. Satyayuga, Tretayuga, Dwaparyuga, Kaliyuga and Bhattyuga have been discussed in these yugas. According to mythological texts, Lord Rama has been mentioned in Tretayuga, whereas Lord Krishna is in Dwaparyuga. According to mythological texts, this world was created by Lord Vishnu, whereas Lord Brahma created the universe. In contrast, Lord Shankar or in other words, Lord Bholenath was called the god of destruction. According to mythological texts, whenever unrighteousness increases in the universe, Lord Vishnu incarnates in various forms, destroys unrighteousness, and protects religion. In Tretayuga, Lord Vishnu incarnated as Ram and protected religion by destroying Ravana, whereas in Dwaparyuga, Lord Vishnu incarnated as Lord Krishna. After all, what does ‘Krishna’ mean? Valvyas Suman Ji Maharaj says that “Krishna” is a Sanskrit word that is synonymous with “black”, “darkness” or “dark blue”. Maharaj Ji says that the time of darkness or waning moon is called Krishna Paksha. Valvyas Suman Ji Maharaj says that Shri Krishna took his incarnation on the Ashtami of Krishna Paksha of Bhadra month at midnight in Mathura to destroy the tyrant Kansa. Since God himself had incarnated on earth on this day, this day is celebrated as Krishna Janmashtami while the next day is celebrated as Shri Krishna Janmotsav. Maharaj Ji says that it is mentioned in the ancient text Shrimad Bhagwat Purana that when Krishna was in childhood, Acharya Gargacharya performed his naming ceremony at Nandbaba’s house. While naming, Gargacharya said, ‘This son takes incarnation in every era. Sometimes his colour is white, sometimes red, and sometimes yellow. While taking a body in each of the previous eras, he has had three colours. This time it is black, hence his name will be Krishna. Being the son of Vasudev, his other names will also be Vasudev, Mohan, Govind, Madhav, Kanhaiya, Shyam, Keshav, Dwarkadhish and Gopal.

वाल व्यास सुमन जी महाराज,

Maharaj Ji says that Lord Vishnu is usually depicted with black or blue skin. In some texts, his skin is poetically described as the colour of jambul (jamun, a purple fruit). Maharaj Ji says that Shri Krishna is often depicted wearing a peacock-feather flower or crown and he is depicted playing the flute. He is also usually depicted in a tribhanga posture with one leg placed in front of the other. Maharaj Ji says that when Shri Krishna is with a cow and calf, he is called ‘Govind’. Maharaj Ji says that Shri Krishna was a Mishkan karma yogi, an ideal philosopher, a man of steady wisdom and a great man equipped with divine qualities. He is given the status of the best man of this era, Yugpurusha or Yugavatar. Krishna’s character is written in detail in Shrimad Bhagwat and Mahabharata, composed by Krishna’s contemporary Maharishi Ved Vyas. Bhagwad Gita is a dialogue between Krishna and Arjun, which is still popular all over the world.

Maharaj ji says that Krishna was the eighth child of Vasudev and Devaki. He was born in the prison of Mathura and was brought up in Gokul. Yashoda and Nanda were his foster parents. His childhood was spent in Gokul. In childhood itself, he did great deeds which were not possible for any ordinary man. He established the city of Dwarka in Saurashtra and established his kingdom there. He helped the Pandavas and protected them in various calamities. In the war of Mahabharata, he played the role of Arjun’s charioteer and imparted the knowledge of Bhagwad Gita which is considered to be the best creation of his life. Maharaj Ji says that the childhood form of Shri Krishna is very charming in which a child crawls on his hands and knees, dances, and steals butter from his fellow cowherds. According to the ‘universe disintegration described by sage Markandeya’, at the time of the deluge, a supernatural child appears to be floating on a banyan leaf sucking its toe.

Maharaj Ji says that in the present times, the definition of love and friendship has changed. Today ‘love’ means ‘selfishness’, whereas in the Shrimad Bhagwat Purana, the unique love of Radha and Krishna is considered a symbol, while their friendship with ‘Sudama’ is considered a symbol of friendship. Maharaj Ji says that the night of Shri Krishna Janmashtami is also called Mohratri. On this night, by meditating on Yogeshwar Shri Krishna, chanting his name or mantra, staying awake all night removes the attachment to worldly illusions. Whereas, on the second day of Shrikrishnashtami, on Bhadrapada Krishna-Navami, Nand-Mahotsav i.e. Dadhikandao is celebrated with great joy to commemorate the birth of Shri Krishna. On Bhadrapada Krishna-Navami, the people of Braj apply and sprinkle turmeric, curd, ghee, oil, rose water, butter, saffron, camphor etc. on the idol of the Lord and then auspicious sounds are played on musical instruments. After that, they distribute sweets to each other.

Wal vyas suman ji Maharaj,

Mahatma Bhawan,

Shri Ramjanaki Temple,

Ram Kot, Ayodhya.

Contact: – 8709142129.

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