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जिवितपुत्रिका व्रत

जिवितपुत्रिका व्रत, जिसे जितिया के नाम से भी जाना जाता है, मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, और नेपाल के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है. यह व्रत हिंदू धर्म की माताओं द्वारा अपने पुत्रों की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए किया जाता है. यह व्रत विशेष रूप से आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है.

व्रत की विधि: –

व्रत के पहले दिन माताएं नदी या तालाब में स्नान करके शुद्ध होती हैं और उसके बाद सात्विक भोजन करती हैं. दूसरे दिन, माताएं निर्जला उपवास करती हैं, यानी बिना पानी पिए दिनभर उपवास रखती हैं. कुछ स्थानों पर यह व्रत लगातार 24 से 36 घंटे तक चलता है. उपवास के दौरान माताएं जीमूतवाहन (जिसे जितिया कहा जाता है) की पूजा करती हैं, जो कि एक पौराणिक राजा और संतान की सुरक्षा का प्रतीक होते हैं. तीसरे दिन सुबह माताएं पारण करती हैं, यानी व्रत तोड़ती हैं. पहले भगवान की पूजा की जाती है और फिर सात्विक भोजन ग्रहण किया जाता है.

कथा: –

जीमूतवाहन अपने पिता के आदेश पर राजपाठ छोड़कर वन में रहने चले गए थे. एक दिन वे वन में घूमते समय एक वृद्ध महिला से मिले, जो बहुत दुखी थी. उन्होंने उससे उसके दुख का कारण पूछा, तो महिला ने बताया कि वह नागवंश की है और उसके पुत्र का आज गरुड़ द्वारा बलि दी जाएगी. गरुड़ प्रतिवर्ष एक नाग को भोजन के रूप में बलि स्वरूप मांगता था.

जीमूतवाहन को यह सुनकर बहुत दुःख हुआ और उन्होंने वृद्ध महिला के पुत्र की जगह स्वयं को बलि देने का निश्चय किया. जीमूतवाहन गरुड़ के पास गए और खुद को नाग के रूप में प्रस्तुत कर दिया. जब गरुड़ ने उन्हें पकड़ लिया और आकाश में उड़ गया, तो उसने देखा कि जीमूतवाहन बिना किसी डर के उसकी चोंच में है और बिना किसी प्रतिरोध के अपनी बलि स्वीकार कर रहा है. गरुड़ को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि उसने किसी साधारण नाग को नहीं, बल्कि एक महान राजा को पकड़ लिया है.

गरुड़ ने जीमूतवाहन की इस अद्वितीय त्याग की भावना को देखकर उनसे क्षमा मांगी और वचन दिया कि वह कभी भी नागवंश के किसी भी सदस्य को कष्ट नहीं देगा. इसके बाद जीमूतवाहन ने गरुड़ से नागों के जीवन की रक्षा का वचन लिया और इस तरह से उन्होंने नागवंश को गरुड़ से मुक्ति दिलाई.

इस कथा के माध्यम से यह संदेश दिया जाता है कि जितिया व्रत करने से संतान दीर्घायु, स्वस्थ और समृद्ध रहती है. माताएं जीमूतवाहन की पूजा करती हैं और उनसे अपने बच्चों की सुरक्षा और दीर्घायु की प्रार्थना करती हैं.

यह कथा माताओं को अपने बच्चों के प्रति असीम प्रेम, त्याग और समर्पण का प्रतीक मानी जाती है, और जितिया व्रत मातृ प्रेम और संतान की लंबी उम्र के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है.

नोट: – वर्ष 24 सितंबर- मंगलवार को दोपहर 12 बजकर 38 मिनट से अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी ति​​​थि प्रारंभ हो रही है. यह तिथि अगले दिन 25 सितंबर बुधवार को दोपहर 12 बजकर 10 मिनट पर खत्म हो जाएगी. ऐसे में उदयातिथि की मान्यता के अनुसार, इस बार जितिया व्रत 25 सितंबर दिन बुधवार को होगा.

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Jivitputrika Vrat

Jivitputrika Vrat, also known as Jitiya, is mainly observed in Bihar, Uttar Pradesh, and parts of Nepal. This fast is observed by mothers of the Hindu religion for the long life, good health and prosperity of their sons. This fast is especially observed on the Ashtami Tithi of Krishna Paksha of Ashwin month.

Vidhi of Vrat: –

On the first day of the fast, mothers purify themselves by taking a bath in a river or pond and then eating satvik food. On the second day, mothers observe the Nirjala fast, i.e. fasting throughout the day without drinking water. In some places, this fast continues for 24 to 36 hours continuously. During the fast, mothers worship Jimutvahana (called Jitiya), a mythological king and a symbol of the protection of children. On the third day morning, mothers observe Parana, i.e. break the fast. First God is worshipped and then satvik food is consumed.

Story: –

Jimutavahana left the throne on the orders of his father and went to live in the forest. One day while roaming in the forest, he met an old woman who was very sad. When he asked her the reason for her sadness, the woman said that she belonged to the Naga clan and her son would be sacrificed by Garuda today. Garuda used to ask for a snake as a sacrifice every year for food.

Jimutavahana was very sad to hear this and he decided to sacrifice himself instead of the old woman’s son. Jimutavahana went to Garuda and presented himself as a snake. When Garuda caught him and flew into the sky, he saw that Jimutavahana was in his beak without any fear and was accepting his sacrifice without any resistance. Garuda was surprised to know that he had not caught an ordinary snake but a great king.

Seeing this unique spirit of sacrifice of Jimutvahana, Garuda apologized to him and promised that he would never harm any member of the Naga dynasty. After this, Jimutvahana took a vow from Garuda to protect the lives of the snakes and in this way, he freed the Naga dynasty from Garuda.

The message given through this story is that by observing Jitiya fast, children remain long-lived, healthy and prosperous. Mothers worship Jimutvahana and pray to him for the safety and longevity of their children.

This story is considered a symbol of the immense love, sacrifice and dedication of mothers towards their children, and Jitiya fast is considered extremely important for maternal love and the long life of children.

Note: – Ashtami Tithi of Krishna Paksha of Ashwin month is starting from 12:38 pm on Tuesday, 24 September. This Tithi will end on the next day i.e. Wednesday, 25 September at 12:10 pm. In such a situation, according to the belief of Udayatithi, this time Jitiya Vrat will be on Wednesday, 25 September.

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