
नीतीश कुमार के लिए वर्तमान सीट-शेयरिंग चुनौती भरा क्यों है?

बिहार की राजनीति में ‘पलटू राम’ के नाम से मशहूर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो कई बार पाला बदल चुके हैं, एक बार फिर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के साथ हैं. आगामी विधानसभा चुनावों (जो अक्टूबर-नवंबर 2025 में होने की संभावना है) के लिए सीट-शेयरिंग का मुद्दा उनके लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो रहा है, जिसके कई कारण हैं:- वर्ष 2020 के विधानसभा चुनावों में, जेडीयू की सीटें काफी कम हो गईं और वह एनडीए में जूनियर पार्टनर बन गई, जबकि बीजेपी ने 74 सीटों के साथ अपनी स्थिति मजबूत की. यह नीतीश कुमार के लिए एक बड़ा झटका था, क्योंकि वह हमेशा बड़े भाई की भूमिका में रहे थे.
वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों में, एनडीए ने बिहार में अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन इसमें बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की भूमिका महत्वपूर्ण रही. बीजेपी ने 17 सीटों पर चुनाव लड़ा और जेडीयू ने 16 पर. हालांकि, दोनों ने 12-12 सीटें जीतीं, जिससे जेडीयू के लिए कुछ राहत मिली। लेकिन, कुल मिलाकर, बीजेपी का प्रभाव बढ़ता दिख रहा है.
सूत्रों के अनुसार, आगामी विधानसभा चुनावों के लिए एनडीए में सीट-शेयरिंग फार्मूला 2024 के लोकसभा चुनाव के आधार पर तय किया जा सकता है. इसमें जेडीयू को 243 विधानसभा सीटों में से 102-103 सीटें मिल सकती हैं, जबकि बीजेपी को 101-102 सीटें। यह दर्शाता है कि जेडीयू को बीजेपी के मुकाबले बहुत कम सीटों पर लड़ने का मौका मिलेगा, जिससे नीतीश कुमार की राजनीतिक सौदेबाजी की शक्ति कमजोर होती है.
वर्ष 2020 के विधानसभा चुनावों में, चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ा था और जेडीयू को कई सीटों पर नुकसान पहुंचाया था. लोजपा (रामविलास) ने 32 सीटों पर जेडीयू से ज्यादा वोट हासिल किए थे, और इनमें से 26 सीटों पर लोजपा के वोट जेडीयू के हारने के अंतर से भी ज्यादा थे.
चिराग पासवान की पार्टी ने वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में 5 सीटों पर चुनाव लड़ा और सभी पर जीत हासिल की. इस प्रदर्शन ने एनडीए में उनकी स्थिति को मजबूत किया है. चिराग पासवान अब विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी के लिए 25-28 सीटों की मांग कर रहे हैं, जो जेडीयू के लिए एक चिंता का विषय है. लोजपा (रामविलास) उन सीटों पर भी दावा ठोक रही है जहां उसने वर्ष 2020 में अच्छा प्रदर्शन किया था और जेडीयू को नुकसान पहुंचाया था. इससे जेडीयू के हिस्से में आने वाली सीटों पर दबाव बढ़ेगा.
जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) भी एनडीए के सहयोगी दल हैं. लोकसभा चुनावों में, HAM और RLM ने एक-एक सीट पर चुनाव लड़ा था. आगामी विधानसभा चुनावों में, HAM को 6-7 सीटें और RLM को 4-5 सीटें मिल सकती हैं. इन छोटे दलों को समायोजित करना भी नीतीश कुमार के लिए एक चुनौती है, क्योंकि इससे जेडीयू के हिस्से में आने वाली सीटों पर और कटौती हो सकती है.
नीतीश कुमार के बार-बार पाला बदलने की प्रवृत्ति ने उनकी राजनीतिक विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए हैं. हालांकि, उनकी ‘अपरिहार्यता’ बिहार की राजनीति में बनी हुई है, क्योंकि दोनों प्रमुख दल – बीजेपी और आरजेडी – उनके बिना पूर्ण बहुमत हासिल करने में संघर्ष करते हैं.
नीतीश कुमार की बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को लेकर भी राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं होती रहती हैं, जिससे उनके दीर्घकालिक राजनीतिक भविष्य को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है. नीतीश कुमार हमेशा वंश वाद की राजनीति के खिलाफ रहे हैं, लेकिन जेडीयू की घटती ताकत को देखते हुए, उनके बेटे निशांत के राजनीति में आने की अटकलें लगाई जा रही हैं. यदि ऐसा होता है, तो यह उनके राजनीतिक सिद्धांतों से एक बड़ा विचलन होगा.
वर्तमान सीट-शेयरिंग नीतीश कुमार के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है. उन्हें न केवल बीजेपी के बढ़ते कद और चिराग पासवान की मजबूत होती स्थिति से निपटना है, बल्कि अपने छोटे सहयोगियों को भी संतुष्ट रखना है. इन चुनौतियों का सामना करते हुए, नीतीश कुमार के सामने अपनी पार्टी के अस्तित्व और अपने राजनीतिक कद को बनाए रखने की दोहरी चुनौती है.
संजय कुमार सिंह,
संस्थापक, ब्रह्म बाबा सेवा एवं शोध संस्थान निरोग धाम
अलावलपुर पटना.