
गाँव के पुराने कुएँ की दीवारों पर काई जम गई थी, और उसकी गहराई में अंधकार पसरा था. सालों से सूखा पड़ा था, लेकिन पहली बारिश की दस्तक ने इस ठहरे पानी को फिर से हरकत में ला दिया. बूंदों के गिरते ही कुएँ में हलचल होने लगी, और उसका जल धीरे-धीरे भरने लगा.
रामू काका कुएँ के पास आकर खड़े हो गए. उन्होंने गहरी सांस ली और कहा, “यही तो असली जीवन है—जो बारिश की पहली बूंद से फिर से चल पड़ता है!” गाँव के बाकी लोग भी वहाँ जमा हो गए. बच्चे कुएँ में झाँककर देख रहे थे, और औरतें बारिश के साथ अपने पुराने गीत गाने लगीं.
एक समय था जब यह कुआँ गाँव की तिजोरी था—यहीं से खेतों में पानी जाता था, और यहीं से हर घर की प्यास बुझती थी. लेकिन बीते कुछ सालों में यह लगभग सूख चुका था. अब पहली बारिश ने इसे फिर से जगा दिया था.
गाँव के युवा इस अवसर को यादगार बनाने के लिए कुएँ के किनारे दीप जलाने लगे. बरसों बाद, कुएँ के जल में उनकी परछाई हिलने लगी—जो इस बात का संकेत था कि जीवन फिर से लौट रहा है.
गाँव के बुजुर्गों ने कहा, “जब कुआँ भरता है, तब गाँव भी खिल उठता है.”
इस पहली बारिश ने सिर्फ़ गाँव की मिट्टी को नहीं, बल्कि उसके दिलों को भी सींच दिया था. कुएँ की भरावट ने सभी को आशा और नई शुरुआत की उम्मीद दी थी.
शेष भाग अगले अंक में…,