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रिश्तों की बानगी

रिश्तों का पुनर्गठन

सीमा के जाने के बाद, अनन्या ने अपनी माँ के साथ मिलकर एक पारिवारिक मिलन समारोह आयोजित करने का फैसला किया. उन्होंने सभी रिश्तेदारों को अनुपमा निवास आने का न्योता भेजा.

शुरुआत में, कई लोगों को हिचकिचाहट हुई. सालों की दूरी और कड़वाहट के बाद एक साथ आना आसान नहीं था. लेकिन अनन्या और रागिनी ने हार नहीं मानी. उन्होंने हर एक रिश्तेदार को व्यक्तिगत रूप से फोन किया और उन्हें आने के लिए मनाया.

आखिरकार, वह दिन आ ही गया जब अनुपमा निवास फिर से मेहमानों से भर गया. ताऊ जी, ताई जी, चाचा जी, चाची जी, और उनके बच्चे – सभी बरसों बाद एक साथ आए थे. माहौल में थोड़ी घबराहट और अनिश्चितता थी, लेकिन धीरे-धीरे पुरानी यादों और बच्चों के शोर ने उस चुप्पी को तोड़ दिया.

आलोक और रवि अभी भी एक-दूसरे से दूरी बनाए हुए थे. अनन्या ने अपनी माँ के साथ मिलकर उन्हें एक साथ बैठाने की कोशिश की. पहले तो दोनों ने इनकार कर दिया, लेकिन परिवार के अन्य सदस्यों के आग्रह और अपनी माँ की नम आँखों को देखकर वे मान गए.

शुरुआत में बातचीत औपचारिक रही, लेकिन धीरे-धीरे पुरानी बातें निकलने लगीं. कुछ हंसी-मजाक हुआ और फिर अचानक, आलोक ने रवि से व्यवसाय में हुए नुकसान के लिए माफी मांगी. रवि भी भावुक हो गए और उन्होंने भी अपनी गलतियों को स्वीकार किया.

उस शाम, अनुपमा निवास में एक अलग ही माहौल था. बरसों की कड़वाहट पिघल रही थी और रिश्तों पर जमी धूल साफ हो रही थी. बच्चों ने साथ में खेला, बड़ों ने पुरानी यादें ताजा कीं और अनन्या ने महसूस किया कि उसके परिवार के बिखरे हुए धागे धीरे-धीरे फिर से जुड़ रहे हैं.

यह एक लंबी और मुश्किल प्रक्रिया थी, लेकिन उस दिन अनुपमा निवास में उम्मीद की एक नई किरण फूटी थी. अनन्या जानती थी कि रिश्तों को पूरी तरह से ठीक होने में समय लगेगा, लेकिन कम से कम शुरुआत तो हो चुकी थी.

गंगा किनारे की वह पुरानी हवेली, अनुपमा निवास, एक बार फिर रिश्तों की नई बानगी लिखने के लिए तैयार थी – एक ऐसी बानगी जिसमें प्यार, समझदारी और क्षमा के रंग भरे हुए थे. अनन्या ने आकाश की ओर देखा. साँझ का रंग अब गहरा हो चला था और तारों की टिमटिमाहट में उसे अपने परिवार के भविष्य की एक धुंधली सी लेकिन सुंदर तस्वीर दिखाई दे रही थी.

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