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माँ कात्यायनी…

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी।।

कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरी। नन्दगोपसुतं देवी पतिं मे कुरु ते नमः।।

 

माँ कात्यायनी, दुर्गा माँ के नौ स्वरूपों में से छठी शक्ति हैं. नवरात्रि के छठे दिन इनकी पूजा का विधान है. इनका स्वरूप अत्यंत तेजस्वी और करुणामयी है. माँ कात्यायनी को शक्ति और साहस की देवी माना जाता है, जो अपने भक्तों को सभी प्रकार के भय और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति दिलाती हैं. वे सौंदर्य और मातृत्व का भी प्रतिनिधित्व करती हैं.

माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत भव्य और आकर्षक है. उनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला है. वे चार भुजाओं वाली हैं. उनके दाहिने हाथ अभय मुद्रा और वरद मुद्रा में हैं, जो भक्तों को सुरक्षा और आशीर्वाद प्रदान करते हैं. उनके बाएं हाथों में तलवार और कमल का फूल सुशोभित है. वे सिंह पर सवार होती हैं, जो शक्ति, साहस और विजय का प्रतीक है. उनके गले में सुंदर आभूषण और माथे पर दिव्य तेज विराजमान है.

माँ कात्यायनी के जन्म से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं. जब महिषासुर नामक राक्षस के अत्याचार से तीनों लोक त्रस्त हो गए थे, तब देवताओं ने अपनी-अपनी शक्तियों का अंश देकर एक दिव्य तेज उत्पन्न किया. यह तेज ऋषि कात्यायन के आश्रम में एकत्रित हुआ और माँ कात्यायनी के रूप में प्रकट हुआ. महर्षि कात्यायन ने ही सर्वप्रथम इनकी पूजा की थी.

देवी कात्यायनी ने महिषासुर का वध करके देवताओं और पृथ्वी को उसके आतंक से मुक्त कराया, इसलिए उन्हें महिषासुरमर्दिनी भी कहा जाता है. ब्रजमंडल में भी माँ कात्यायनी की विशेष महिमा है. मान्यता है कि गोपियों ने भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए यमुना नदी के तट पर माँ कात्यायनी की ही आराधना की थी. इसलिए उन्हें ब्रज की अधिष्ठात्री देवी के रूप में भी पूजा जाता है.

माता कात्यायनी की पूजा भक्तों के लिए अत्यंत फलदायी मानी जाती है. मान्यता है कि इनकी आराधना से जिन कन्याओं के विवाह में बाधा आ रही हो, उनकी पूजा करने से मनोवांछित वर की प्राप्ति होती है. प्रेम संबंधों में मधुरता आती है और वैवाहिक जीवन सुखमय होता है. माँ कात्यायनी अपने भक्तों को शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की शक्ति प्रदान करती हैं. वे रोगों और कष्टों से मुक्ति दिलाती हैं और स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद देती हैं.

इस दिन साधक का मन ‘आज्ञा’ चक्र में स्थित होता है, चुकिं योग-साधना में आज्ञा चक्र का विशेष महत्व होता है. अगर  किसी साधक का आज्ञा चक्र सक्रिय हो जाय तो, उसकी आज्ञा को कोई भी जीव नकार नहीं सकता है. माता कात्यायनी की आराधना करने से साधकों को अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है. मनुष्य के रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं. माता कात्यायनी की आराधना करने से परम पद की भी प्राप्ति होती हैं.

पूजा विधि: –

नवरात्रि के छठे दिन माँ कात्यायनी की विशेष पूजा की जाती है. इस दिन सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। माँ की प्रतिमा या चित्र को एक साफ स्थान पर स्थापित करें। उन्हें पीले या लाल रंग के वस्त्र और फूल अर्पित करें, क्योंकि ये रंग उन्हें प्रिय हैं.

पूजा में रोली, कुमकुम, अक्षत, धूप, दीप और नैवेद्य (भोग) अर्पित करें. माँ कात्यायनी को शहद विशेष रूप से प्रिय है, इसलिए उन्हें शहद का भोग लगाना चाहिए.

मन्त्र: –

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

माँ कात्यायनी शक्ति, सौंदर्य और मातृत्व की प्रतीक हैं. उनकी आराधना भक्तों को भयमुक्त, स्वस्थ और समृद्ध जीवन का आशीर्वाद देती है. माँ कात्यायनी की उपासना से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-शांति बनी रहती है.

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