
गायिका गंगूबाई हंगल
गंगूबाई हंगल भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक गायिका थीं, जिन्होंने खयाल गायिकी में उल्लेखनीय योगदान दिया. उनकी गायिकी की शैली किराना घराना से संबंधित थी और उनकी आवाज की गहराई और परिपक्वता के लिए वे जानी जाती थीं.
गंगूबाई हंगल का जन्म 5 मार्च 1913 को कर्नाटक के धारवाड़ जिले के हंगल गाँव में हुआ था. उनका पूरा नाम गंगूबाई हंगल था. उनके पिता चिक्कुरंगप्पा हंगल एक किसान थे, जबकि उनकी माँ अंबाबाई एक संगीतज्ञ थीं. गंगूबाई ने अपनी प्रारंभिक संगीत शिक्षा अपनी माँ से प्राप्त की. गंगूबाई ने प्रारंभिक संगीत प्रशिक्षण अपनी माँ अंबाबाई से प्राप्त किया, जो एक प्रसिद्ध कार्नाटक संगीत गायिका थीं. बाद में, उन्होंने पंडित कृष्णाचार्य हुलगुर से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली.
गंगूबाई ने किराना घराना के प्रमुख गायक उस्ताद सवाई गंधर्व से प्रशिक्षण प्राप्त किया. उस्ताद सवाई गंधर्व के संरक्षण में, उन्होंने खयाल गायिकी में महारत हासिल की. गंगूबाई हंगल ने खयाल गायिकी के साथ ठुमरी, दादरा, और भजन जैसी अन्य शैलियों में भी अपने कौशल का प्रदर्शन किया. उनकी गायिकी में गहरी भावनाएँ और शुद्धता की झलक मिलती थी. उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में “अभी तो बालक हूँ”, “ऐ री सखी”, और “जा जा रे अपना” शामिल हैं.
गंगूबाई हंगल ने अपने कैरियर के शुरुआती दिनों में कई सामाजिक बाधाओं का सामना किया. एक महिला और निम्न जाति से होने के कारण, उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत और समर्पण से इन बाधाओं को पार किया और भारतीय शास्त्रीय संगीत में अपनी पहचान बनाई. गंगूबाई हंगल को उनकी उत्कृष्ट संगीत प्रतिभा के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए. उन्हें वर्ष 1971 में पद्म भूषण और वर्ष 2002 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया. उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और तानसेन सम्मान भी प्राप्त हुए.
गंगूबाई हंगल का व्यक्तिगत जीवन सादगी और समर्पण से भरा हुआ था. उन्होंने संगीत को अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया और अपनी संतान को भी संगीत की शिक्षा दी. उनकी बेटी कृष्णा हंगल भी एक प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका बनीं. गंगूबाई हंगल का निधन 21 जुलाई 2009 को कर्नाटक के हुबली में हुआ. उनके निधन से भारतीय शास्त्रीय संगीत जगत ने एक महान गायिका को खो दिया.
गंगूबाई हंगल की संगीत विरासत आज भी जीवित है. उनके शिष्यों और अनुयायियों ने उनकी संगीत परंपरा को आगे बढ़ाया है. उनके योगदान को भारतीय शास्त्रीय संगीत में हमेशा याद किया जाएगा, और वे नई पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी रहेंगी.
गंगूबाई हंगल का जीवन और कैरियर भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है. उनके समर्पण, संघर्ष और संगीत प्रतिभा ने उन्हें एक महान गायिका के रूप में स्थापित किया. उनका संगीत और योगदान हमेशा भारतीय संगीत प्रेमियों के दिलों में बसा रहेगा.
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राजनीतिज्ञ बीजू पटनायक
बीजू पटनायक जिनका पूरा नाम बिजयनंद पटनायक था. वो भारतीय राजनीति में एक प्रभावशाली व्यक्तित्व थे और ओडिशा राज्य के प्रमुख नेता रहे हैं. उनका जन्म 5 मार्च 1916 को कटक, ओडिशा में हुआ था. बीजू पटनायक ने ओडिशा के मुख्यमंत्री के रूप में दो बार कार्य किया—पहली बार वर्ष 1961-63 तक और फिर वर्ष 1990 -95 तक.
बीजू पटनायक का जीवन विविधतापूर्ण था और उन्होंने न केवल राजनीति में बल्कि व्यावसायिक और उड्डयन क्षेत्र में भी अपनी छाप छोड़ी. वह एक कुशल पायलट भी थे और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने ब्रिटिश वायु सेना के लिए कार्य किया. इसके अलावा उन्होंने वर्ष 1947 में इंडोनेशिया के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसके लिए इंडोनेशिया ने उन्हें ‘भूमि पुत्र’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था.
उनकी राजनीतिक यात्रा में उन्होंने ओडिशा के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण पहल की, जिसमें औद्योगिकीकरण और शिक्षा के प्रसार पर विशेष जोर था. बीजू पटनायक के नाम पर बीजू पटनायक इंटरनेशनल एयरपोर्ट, भुवनेश्वर और बीजू पटनायक यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी जैसे संस्थान उनकी विरासत को दर्शाते हैं. उनकी मृत्यु 17 अप्रैल 1997 को हुई, लेकिन उनके योगदान और विचार आज भी ओडिशा और भारतीय राजनीति में प्रेरणादायक बने हुए हैं.
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राजनीतिज्ञ शिवराज सिंह चौहान
शिवराज सिंह चौहान एक भारतीय राजनीतिज्ञ हैं, जो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में कई बार सेवा कर चुके हैं. वे भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्ठ सदस्य हैं. चौहान का जन्म 5 मार्च 1959 को हुआ था, और वे पहली बार वर्ष 2005 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में चुने गए थे.
शिवराज सिंह चौहान अपनी जन-केंद्रित नीतियों और प्रशासनिक कुशलता के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्रों में कई महत्वपूर्ण पहल की हैं. उनके नेतृत्व में, मध्य प्रदेश ने कई क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति देखी है.
चौहान को उनके सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों, विशेष रूप से लड़कियों और महिलाओं के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए किए गए काम के लिए भी सराहा जाता है. वे अपनी संवेदनशीलता और जनता से जुड़ने की क्षमता के लिए भी प्रसिद्ध हैं. चौहान की राजनीतिक यात्रा उन्हें एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली नेता के रूप में स्थापित करती है, जिन्होंने मध्य प्रदेश के विकास और प्रगति में योगदान दिया है.
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हॉकी खिलाड़ी परगट सिंह
परगट सिंह एक भारतीय पूर्व हॉकी खिलाड़ी और राजनीतिज्ञ हैं. हॉकी में उनके योगदान के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं. परगट सिंह भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान भी रह चुके हैं और उन्होंने वर्ष 1980 – 90 के दशक में भारत के लिए कई अंतर्राष्ट्रीय हॉकी मैचों में भाग लिया. वे एक प्रतिभाशाली डिफेंडर के रूप में जाने जाते थे और उन्होंने ओलंपिक्स में भारत का प्रतिनिधित्व किया.
परगट सिंह का जन्म 5 मार्च 1965 को मीठापुर, जालंधर, पंजाब में हुआ था. राजनीति में, परगट सिंह ने पंजाब के जालंधर से अपना कैरियर शुरू किया और वे पंजाब विधानसभा के सदस्य भी रह चुके हैं. वे पंजाबी कांग्रेस पार्टी के सदस्य हैं और उन्होंने खेल के क्षेत्र में अपनी प्रतिष्ठा का उपयोग करते हुए राजनीति में भी अपनी एक पहचान बनाई है. उनके राजनीतिक और खेल संबंधित योगदान के कारण, वे पंजाब के प्रमुख चेहरों में से एक हैं.
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अभिनेत्री आरती अग्रवाल
आरती अग्रवाल एक पूर्व भारतीय अभिनेत्री थीं, जिन्होंने मुख्य रूप से तेलुगु सिनेमा में अभिनय किया था. उनका जन्म 5 मार्च 1984 को हुआ था और उनका निधन 6 जून 2015 को हुआ था. आरती ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत हिंदी फिल्मों में की थी, लेकिन उन्हें असली पहचान और सफलता तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री में मिली.
आरती अग्रवाल ने वर्ष 2000 के दशक के दौरान कई हिट फिल्मों में अभिनय किया. उन्होंने तेलुगु फिल्मों के कई प्रमुख अभिनेताओं के साथ काम किया और उनकी अभिनय प्रतिभा की सराहना की गई. उन्होंने विभिन्न भूमिकाओं में अपनी विविधता और गहराई को दिखाया, चाहे वो रोमांटिक फिल्में हों या ड्रामा.
उनके निधन से तेलुगु फिल्म उद्योग और उनके प्रशंसकों को बड़ी क्षति पहुंची. आरती की मृत्यु उनकी युवा आयु में हुई, जिससे फिल्म जगत में गहरी शोक की लहर दौड़ गई. उनका काम और उनकी फिल्में आज भी उन्हें याद करने का एक साधन हैं.
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बाबा पृथ्वी सिंह आज़ाद
बाबा पृथ्वी सिंह आजाद एक प्रमुख भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ भारत की स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उनका जीवन और कार्य भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के उन अनेक नायकों में से एक का प्रतिनिधित्व करता है, जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था.
पृथ्वी सिंह आज़ाद का जन्म 15 सितम्बर 1892 को रायपुररानी, पटियाला जिला, पंजाब में हुआ था और उनका निधन 5 मार्च 1989 को हुआ. बाबा पृथ्वी सिंह आजाद विशेष रूप से उनके नेतृत्व और भागीदारी के लिए जाने जाते थे, जिसमें वे कई क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल थे. हालांकि, उनके जीवन और काम के बारे में विशेष विवरण सीमित हैं, क्योंकि अनेक स्वतंत्रता सेनानियों की तरह, उनकी भी अनेक गतिविधियां गुप्त रूप से संचालित की जाती थीं.
उनके योगदान को भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण माना जाता है, और वे अपने साहस और देशभक्ति के लिए याद किए जाते हैं. उनकी वीरता और बलिदान आज भी भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में याद किए जाते हैं.
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अभिनेता जलाल आगा
जलाल आगा एक भारतीय अभिनेता थे जिन्होंने वर्ष 1960 के दशक से लेकर वर्ष 1990 के दशक तक हिंदी सिनेमा में काम किया. उनका जन्म 11 जुलाई 1945 को हुआ था और उनका निधन 5 मार्च 1995 को हुआ. वे मशहूर अभिनेता और थिएटर निर्देशक अख्तर उल इमान के बेटे थे. जलाल आगा मुख्य रूप से सहायक भूमिकाओं में नजर आए और उन्हें अपनी विशिष्ट अभिनय शैली के लिए जाना जाता था.
उन्होंने अपने कैरियर में कई यादगार फिल्मों में काम किया, जिसमें ‘शोले’, ‘गांधी’, ‘त्रिशूल’, और ‘चश्मे बद्दूर’ जैसी फिल्में शामिल हैं. विशेष रूप से, ‘शोले’ में उनके द्वारा निभाई गई छोटी लेकिन महत्वपूर्ण भूमिका आज भी लोगों के द्वारा याद की जाती है.
जलाल आगा की अभिनय प्रतिभा ने उन्हें हिंदी सिनेमा में एक विशेष स्थान दिलाया और उनके निधन के बाद भी उनके काम को सराहा जाता रहा है.
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उद्योगपति जी.पी. बिड़ला
जी.पी. बिड़ला, यानी घनश्यामदास बिड़ला, एक प्रमुख भारतीय उद्यमी और बिड़ला परिवार के सदस्य थे. वह 20वीं सदी के प्रारंभिक दौर में भारतीय औद्योगिक और व्यापार जगत के एक प्रमुख आंकड़े थे. घनश्यामदास बिड़ला का जन्म 10 अप्रैल 1894 को हुआ था, और उन्होंने अपने जीवन में भारतीय उद्योग जगत में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
घनश्यामदास बिड़ला ने विभिन्न क्षेत्रों में व्यापार और उद्योगों की स्थापना की, जिसमें वस्त्र, सीमेंट, चीनी, और कागज उद्योग शामिल हैं. उनकी उद्यमशीलता और व्यापारिक दृष्टिकोण ने उन्हें भारतीय व्यापार जगत में एक विशिष्ट स्थान दिलाया.
वह न केवल एक सफल उद्यमी थे, बल्कि एक प्रमुख समाजसेवी और शिक्षाविद भी थे. उन्होंने शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा दान किया. घनश्यामदास बिड़ला ने कई शैक्षिक संस्थानों की स्थापना की, जिनमें बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और साइंस (BITS, पिलानी) शामिल है, जो आज भी भारत के प्रमुख तकनीकी संस्थानों में से एक है.
उनके नेतृत्व में, बिड़ला परिवार भारतीय उद्योग जगत के एक अग्रणी नाम के रूप में उभरा. उनका निधन 5 मार्च, 2010 को हुआ, लेकिन उनकी विरासत और उनके द्वारा स्थापित संस्थान आज भी उनके योगदान को याद करते हैं.