Dharm

उत्पन्ना एकादशी

सत्संग के दौरान एक भक्त ने महाराज जी से पूछा कि, महाराज जी पुण्यमयी एकादशी तिथि की उत्पत्ति कैसे हुई, इसके बारे में कुछ जानकारी देने की कृपा करें. वाल व्यास सुमनजी महाराज कहते है कि, धर्मराज युधिष्ठिर ने यही सवाल श्यामसुंदर कमलनयन भगवान श्रीकृष्ण से पूछा! तब कमलनयन श्यामसुन्दर ने कहा कि, हे युधिष्ठिर! अगहन महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जानते हैं और इस दिन भगवान नारायण की पूजा की जाती है. इस एकादशी को करने से साधक को जीवन में उत्तम फल की प्राप्ति होती है.

पूजन सामाग्री :-

वेदी, कलश, सप्तधान, पंच पल्लव, रोली, गोपी चन्दन, गंगा जल, दूध, दही, गाय के घी का दीपक, सुपाड़ी, शहद, पंचामृत, मोगरे की अगरबत्ती, ऋतू फल, फुल, आंवला, अनार, लौंग, नारियल, नीबूं, नवैध, केला और तुलसी पत्र व मंजरी.

व्रत विधि:-

सबसे पहले आपको एकादशी के दिन सुबह उठ कर स्नान करना चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए. उसके बाद भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र की स्थापना की जाती है. उसके बाद भगवान विष्णु की पूजा के लिए धूप, दीप, नारियल और पुष्प का प्रयोग करना चाहिए. अंत में भगवान विष्णु के स्वरूप का स्मरण करते हुए ध्यान लगायें, उसके बाद विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करके, कथा पढ़ते हुए  विधिपूर्वक पूजन करें. ध्यान दें…. एकादशी की रात्री को जागरण अवश्य ही करना चाहिए, दुसरे दिन द्वादशी के दिन सुबह ब्राह्मणो को अन्न दान व दक्षिणा देकर इस व्रत को संपन्न करना चाहिए.

कथा:-

सत्ययुग में मुर नामक भयंकर दानव ने देवराज इन्द्र को पराजित करके स्वर्ग पर अपना आधिपत्य जमा लिया, तब सभी देवता महादेव जी के पास पहुंचे और अपनी सारी कहानी सुनाई तब, महादेवजी गणों व देवताओं को साथ लेकर क्षीरसागर गये जहां, शेषनाग की शय्यापर योग-निद्रा में लीन भगवान विष्णु को देखकर महादेवजी और सभी देवता मिलकर उनकी स्तुति की. देवताओं के अनुरोध पर कमलनयन भगवान विष्णु ने अत्याचारी दैत्यों पर आक्रमण कर दिया. सैकड़ों वर्षों तक लगातार युद्ध करते हुए सैकड़ो दैत्यों का संहार करके भगवान नारायण बदरिकाश्रम चले गए और वहां वे बारह योजन लम्बी सिंहावती गुफा में निद्रा लीन हो गए. दानव मुर भी मारने के इच्छा से उस गुफा के अंदर गया, दूसरी तरफ श्रीहरि के शरीर से दिव्य अस्त्र-शस्त्रों से युक्त एक अति रूपवती कन्या उत्पन्न हुई, जो अपनी हुंकार से मुर दानव को भस्म कर दिया. भगवान नारायण के जगने के बाद उस कन्या ने सारी घटना का जिक्र करते हुए कहा कि, मुर दानव को मैंने मारा है, इस पर कमलनयन भगवान नारायण ने खुश होकर मनोवांछित वरदान देकर उसे अपनी प्रिय तिथि घोषित कर दिया.

एकादशी का फल :-

एकादशी प्राणियों के परम लक्ष्य, भगवद भक्ति, को प्राप्त करने में सहायक होती है. यह दिन प्रभु की पूर्ण श्रद्धा से सेवा करने के लिए अति शुभकारी एवं फलदायक माना गया है. इस दिन व्यक्ति इच्छाओं से मुक्त हो कर यदि शुद्ध मन से भगवान की भक्तिमयी सेवा करता है तो वह अवश्य ही प्रभु की कृपापात्र बनता है.

ध्यान दें…. 

एकादशी की रात्री को जागरण अवश्य ही करना चाहिए, दुसरे दिन द्वादशी के दिन सुबह ब्राह्मणो को अन्न दान व दक्षिणा देकर इस व्रत को संपन्न करना चाहिए.

 वाल व्यास सुमनजी महाराज

महात्मा भवन,श्रीरामजानकी मंदिर, 

राम कोट, अयोध्या. 8709142129.

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