
समय बीतता गया। कालू अब बड़ा हो गया था और एक मजबूत बैल बन गया था. ठाकुर सूरज सिंह ने उसे खेती के काम के लिए रख लिया. अब कालू अक्सर खेतों में काम करता और गौरी से उसका मिलना कम हो गया.
गौरी कालू को बहुत याद करती थी. वह अक्सर गौशाला के दरवाजे पर खड़ी होकर खेतों की ओर देखती रहती, मानो कालू का इंतजार कर रही हो. उसकी आँखों में उदासी साफ़ झलकती थी.
जब कभी कालू गाँव लौटता, तो गौरी उसे देखकर खुशी से रंभाती और उसके चारों ओर चक्कर लगाती. कालू भी गौरी के पास आकर अपना सिर उसकी पीठ पर टिका देता, मानो अपनी पुरानी दोस्त को पाकर उसे सुकून मिल रहा हो.
लेकिन उनका मिलना हमेशा क्षणिक होता था. कालू को फिर से खेतों में जाना पड़ता था, और गौरी फिर से अकेली रह जाती थी. बिछड़ने का यह दर्द दोनों महसूस करते थे, भले ही वे इसे शब्दों में बयां नहीं कर सकते थे.
राम खेलावन गौरी की उदासी समझता था. वह उसे ज्यादा प्यार करता और उसकी देखभाल करता, लेकिन वह जानता था कि कालू की कमी गौरी के जीवन में हमेशा रहेगी.
शेष भाग अगले अंक में…,