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झाकें अन्दर के रावण को…

दि काल से ही हमलोग दशहरा से 15 दिन पहले न सिर्फ शहर शहर बल्कि गांव गांव में रामलीला का मंचन शायद यह सोचकर करते हैं की अब बुराई पर अच्छाई की जीत होगी. लेकिन महाभारत की तरह अश्वत्थामा मारा गया लेकिन हाथी, वाली कहावत प्रत्येक साल दोहराई जाती है हम इसी गलतफहमी में रहते हैं कि हमने रावण का वध करके बुराई पर अच्छाई की जीत हासिल . मैं दावे के साथ कह सकता हूं की ऐसा कभी नहीं होता और यह अवसर केवल मनोरंजन का साधन बनकर रह जाता है. हम तमाम खर्च करने के बावजूद झूठा रावण जलाकर अपने आप की तसल्ली कर लेते हैं  मजेदार बात तो यह है कि इस रावण बध और श्रीराम की विजय में अच्छे-अच्छे लोग तो शामिल होते ही हैं  रावण के रूप में अन्य लोग भी जमकर भागीदारी निभाते हैं. मैं अनुरोध करना चाहता हूं प्रत्येक वर्ष रावण वध पर खुशियां मनाने वालों से कि भाई जब तक हम लोग स्वयं के अंदर से रावण रूपी राक्षस को जलाने का काम नहीं करेंगे तब तक न तो बुराई पर अच्छाई की जीत हो पाएगी और न हीं वास्तविक रावण का वध करना  कारगर साबित हो पायेगा. मैं कहीं किसी भी रामलीला मंचन में भाग नहीं लेता इसका मतलब यह नहीं कि मैं रामलीला या भगवान राम का विरोधी हूं लेकिन यह जरूर कह सकता हूं की देश में प्रत्येक वर्ष हम लोग अपने अंदर छिपे रावण को तो भूल जाते हैं और गत्ते का नकली रावण का वध करके बुराई पर अच्छाई की जीत का ढिंढोरा पीटने में कोई कसर नहीं करते.  देश का प्रत्येक व्यक्ति समाज में पनपने वाले रावण रूपी राक्षस का वध करने की ठान ले तभी रावण का वध करने का यह प्रयास सफल हो सकता है. इधर रावण का वध होता है उधर न जाने कितने रावण अपने अपने तरीके से जनता का शोषण करने निकल पड़ते हैं. मैं मानता हूं कि विद्वान होने के बावजूद रावण को राक्षस की उपाधि से नवाजा गया था लेकिन कौन नहीं जानता कि रावण ने सीता माता का अपहरण कर सुरक्षित वाटिका में रखा और अपनी विद्वता का परिचय दिया. यदि आज के रावण होते तो मुझे यह लिखने की आवश्यकता नहीं है कि वह किस हद तक घटिया पन की पराकाष्ठा कर सकते थे आज मैं सभी को तो नहीं कह सकता लेकिन रावण रूपी लोगों से  यह जरूर कहना चाहता हूं की आखिर हम कब तक देखा देखी का खेल करते रहेंगे. क्या हम शपथ लेने के बाद वास्तव में शपथ का पालन कर पाते हैं, रावण जलाने के बाद क्या हम खुद अच्छे बन पाते हैं, दूसरों को भ्रष्टाचारी बताने से पहले हम अपने गिरेबान में झांक पाते हैं, कौन नहीं जानता कि भगवान श्री राम दलित प्रेम में आकर भिलनी के झूठे बेर खा लिए क्या हमें पता नहीं कि यहां किस तरह घड़  से पानी लेने वाले बच्चे को मार दिया जाता है कौन नहीं जानता कि छूआ छूत के चलते किस हद तक जातिगत भेदभाव हावी है,  कुछ को छोड़ दें तो शायद कोई ऐसा नहीं मिलेगा जो किसी न किसी रूप में राक्षस न हो. यदि वह जनता के पैसे का दुरुपयोग करता है तो वह भी किसी रावण से कम नहीं है, यदि वह किसी का शोषण करता है तो वह भी किसी रावण से कम नहीं है, यदि वह किसी पर बुरी नजर रखता है तो वह भी किसी रावण से कम नहीं है, यदि वह दूसरों की संपत्ति हड़पने के बारे में सोचता है तो वह भी किसी रावण से कम नहीं है, यदि वह रिश्ते नाते त्याग कर केवल अपना उल्लू सीधा करने में लग जाता है तब भी वह किसी रावण से कम नहीं है, इसलिए मैं प्रत्येक वर्ष दशहरा के अवसर पर या रावण वध के अवसर पर खुले शब्दों में देश प्रदेश के लोगों से यह अनुरोध करता रहा हूं कि यदि हमें वास्तव में बुराई पर अच्छाई की जीत वाला फार्मूला लागू करना है तो यह अश्वत्थामा मारा गया लेकिन हाथी वाला फार्मूला छोड़कर, कहना होगा कि आज रावण रूपी राक्षस मारा गया आप कोई रावण दिखाई नहीं देगा. जिस पर बुराई पर अच्छाई की जीत का दावा करने की आवश्यकता महसूस हो. प्रत्येक दिन होने वाले राक्षस रूपी कांड यह बताने को काफी है कि जब जब जिसने जन्म लिया तब तब उसने अपने जीवन में कागज के रावण को तो जला डाला लेकिन समाज के रावण को किसी ने छूने की कोशिश नहीं की , तो आइए अब तक जो नहीं हुआ उसे साकार करके दिखाएं और इस दशहरा पर शपथ लें कि हम समाज में तेजी से पनप रहे रावण रूपी राक्षसों को सबक सिखाने का काम करेंगे, मुझे आशा ही नहीं विश्वास है कि जिस दिन प्रत्येक व्यक्ति ने यह शपथ लेकर रावण का पुतला जलाया उस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत नजर आएगी. वरना हम प्रत्येक वर्ष कागज के रावण को जलाकर राक्षसों का वध करने का झूठा सपना साकार करके अपने मियां मुंह मिठ्ठू बनते रहेंगे.

 प्रभाकर कुमार

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