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व्यक्ति विशेष

भाग – 210.

दार्शनिक जिम कॉर्बेट

जिम कॉर्बेट का नाम प्रमुख रूप से वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में प्रसिद्ध है. वे एक ब्रिटिश शिकारी, पर्यावरणविद्, और लेखक थे. हालांकि उन्हें दार्शनिक के रूप में विशेष रूप से नहीं जाना जाता, लेकिन उनके लेखन और विचारों में कई महत्वपूर्ण दार्शनिक दृष्टिकोण दिखाई देते हैं.

जिम कॉर्बेट का जन्म 25 जुलाई 1875, नैनीताल, उत्तराखंड में हुआ था और उनकी मृत्यु 19 अप्रैल 1955, न्येरी, केन्या में हुआ. जिम की प्रारम्भिक शिक्षा नैनीताल के ओपनिंग स्कूल से की बाद में सेंट जोसेफ कॉलेज में दाखिला लिया, लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक नही होने के कारण पढाई बीच में छोड़कर नौकरी की.

जिम कॉर्बेट पहले शिकारी थे, लेकिन बाद में उन्होंने महसूस किया कि वन्यजीवों और पर्यावरण की रक्षा करना अत्यंत महत्वपूर्ण है. उन्होंने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में विशेष रूप से बाघों और तेंदुओं की रक्षा के लिए काम किया. कॉर्बेट ने अपनी पुस्तकें “Man-Eaters of Kumaon”, “The Man-Eating Leopard of Rudraprayag”, और “Jungle Lore” में अपने अनुभवों और विचारों को साझा किया. इन पुस्तकों में उन्होंने शिकार और वन्यजीवों के साथ अपने अनुभवों का विवरण दिया है.

जिम कॉर्बेट के विचार और कार्य हमें यह सिखाते हैं कि मानव और प्रकृति के बीच एक संतुलन बनाना आवश्यक है और हमें पर्यावरण की रक्षा के लिए सतत प्रयास करने चाहिए.

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संगीतकार सुधीर फड़के

सुधीर फड़के एक प्रमुख भारतीय संगीतकार, गायक, और गीतकार थे, जो मराठी संगीत उद्योग में अपने अद्वितीय योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं. उन्हें “भवगंधर्व” के रूप में जाना जाता था, जिसका अर्थ है “संगीत के देवता”. उनका संगीत और गीत मराठी संस्कृति का अभिन्न अंग बन गए हैं.

सुधीर फड़के का जन्म 25 जुलाई 1919, कोल्हापुर, महाराष्ट्र में हुआ था और उनकी मृत्यु 29 जुलाई 2002, मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ. सुधीर फड़के का संगीत कैरियर कई दशकों तक फैला हुआ था, जिसमें उन्होंने कई यादगार गाने और संगीत रचनाएं दीं.

सुधीर फड़के ने मराठी फिल्मों में संगीत दिया और उनके गीतों ने कई पीढ़ियों को प्रभावित किया. उनके संगीत में भारतीय शास्त्रीय संगीत और लोक संगीत का सुंदर समावेश देखने को मिलता है. उन्होंने अपने गीतों को खुद गाया और उनकी मधुर आवाज़ ने उन्हें मराठी संगीत जगत का एक प्रमुख गायक बना दिया. उनके गाए हुए गीत आज भी लोकप्रिय हैं. सुधीर फड़के ने भक्ति संगीत में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनके गाए हुए अभंग और भजन मराठी संस्कृति में अत्यंत लोकप्रिय हैं.

गीत और रचनाएँ: –  “बोल शंकरा”, “सूर नवा ध्यास नवा”.

“गीतरामायण”: – यह उनके द्वारा संगीतबद्ध और गाए गए गीतों का एक संग्रह है, जो वाल्मीकि रामायण पर आधारित है. यह मराठी संगीत का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है. सुधीर फड़के को उनके संगीत में उत्कृष्ट योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए. उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था.

सुधीर फड़के का संगीत और उनके गाए हुए गीत आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं. उनके योगदान ने मराठी संगीत को समृद्ध किया और उनकी विरासत को आगे बढ़ाया. उनके संगीत में सादगी और गहराई का मेल था, जो श्रोताओं को भावनाओं से जोड़ता था.

सुधीर फड़के के संगीत और उनकी कला ने मराठी संगीत को एक नई दिशा दी और वे आज भी संगीत प्रेमियों के बीच सम्मानित और प्रिय हैं.

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गोविन्द नारायण सिंह

गोविंद नारायण सिंह एक प्रमुख भारतीय राजनेता थे, जिन्होंने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे और अपने राजनीतिक करियर में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे.

गोविंद नारायण सिंह का जन्म 25 जुलाई 1920, मध्य प्रदेश में हुआ था और उनकी मृत्यु 10 मई 2005 को हुआ. गोविंद नारायण सिंह का राजनीतिक कैरियर विविध और प्रभावशाली था. उन्होंने विभिन्न राजनीतिक और प्रशासनिक पदों पर काम किया. गोविंद नारायण सिंह ने 1967 – 69 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा की. उनकी सरकार ने कई विकास कार्य किए और राज्य के इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार के प्रयास किए. उन्होंने कई बार मध्य प्रदेश विधानसभा के सदस्य के रूप में भी कार्य किया और विधानसभा में महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस की.

गोविंद नारायण सिंह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे और उन्होंने पार्टी की विचारधारा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनके कार्यकाल में मध्य प्रदेश में कई विकास परियोजनाएँ शुरू की गईं, जिनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढाँचे पर विशेष ध्यान दिया गया. गोविंद नारायण सिंह ने कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए कई योजनाएँ शुरू कीं, जिससे किसानों की स्थिति में सुधार हुआ. उन्होंने सामाजिक न्याय और समानता के लिए भी कार्य किया, विशेषकर पिछड़े वर्गों और अनुसूचित जातियों के लिए योजनाएँ बनाई. गोविंद नारायण सिंह का व्यक्तिगत जीवन भी अत्यंत प्रेरणादायक था. वे एक समर्पित राजनेता थे और उन्होंने अपना जीवन समाज सेवा और राज्य के विकास के लिए समर्पित किया.

गोविंद नारायण सिंह का राजनीतिक और सामाजिक योगदान आज भी याद किया जाता है. उनके कार्यों ने मध्य प्रदेश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और वे राज्य की राजनीति में एक प्रमुख व्यक्तित्व के रूप में सम्मानित हैं. उनके प्रयासों से प्रेरित होकर, कई युवा राजनेता आज भी समाज सेवा के क्षेत्र में कार्यरत हैं.

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साहित्यकार श्यामाचरण दुबे

श्यामाचरण दुबे एक प्रमुख भारतीय समाजशास्त्री, लेखक, और विचारक थे. उन्होंने भारतीय समाजशास्त्र और समाजिक विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उनके लेखन और शोध कार्यों ने भारतीय समाज की संरचना और उसकी समस्याओं को समझने में गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान की है.

श्यामाचरण दुबे का जन्म 25 जुलाई, 1922 को मध्य प्रदेश में हुआ था उनकी मृत्यु 1996 में हुई थी. श्यामाचरण दुबे ने अपनी उच्च शिक्षा नागपुर विश्वविद्यालय से प्राप्त की. इसके बाद उन्होंने समाजशास्त्र में अपनी पढ़ाई जारी रखी और प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में अध्यापन किया.

श्यामाचरण दुबे ने भारतीय समाज में हो रहे परिवर्तनों का अध्ययन किया और उनके प्रभावों पर गहन शोध किया. उनके शोध कार्यों ने समाज में हो रहे आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों को समझने में मदद की. उन्होंने कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं, जिनमें “भारतीय समाज”, “संस्कृति और समाज”, और “परंपरा और परिवर्तन” प्रमुख हैं. इन पुस्तकों में उन्होंने भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया है. दुबे ने भारतीय समाजशास्त्र के छात्रों को पढ़ाने के साथ ही समाजशास्त्र के पाठ्यक्रमों के विकास में भी योगदान दिया. वे विभिन्न विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर के रूप में कार्यरत रहे और समाजशास्त्र के शिक्षण में नवाचार लाए.

दुबे ने भारतीय समाज में परंपरा और आधुनिकता के बीच के संबंधों का विश्लेषण किया. उन्होंने बताया कि कैसे परंपराएँ और आधुनिकता आपस में संघर्ष और सामंजस्य दोनों कर सकती हैं. उन्होंने भारतीय समाज की सांस्कृतिक विविधता को समझने और उसकी सराहना करने पर बल दिया. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारतीय समाज में विभिन्न संस्कृतियों का सहअस्तित्व एक महत्वपूर्ण पहलू है.

दुबे ने समाज में सामाजिक न्याय और समानता की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने सामाजिक असमानताओं को दूर करने और समाज में हर वर्ग को समान अवसर प्रदान करने की दिशा में काम किया. श्यामाचरण दुबे को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए. वे भारतीय समाजशास्त्र के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित और सम्मानित व्यक्तित्व थे.

श्यामाचरण दुबे का कार्य और उनके विचार आज भी समाजशास्त्र के क्षेत्र में अध्ययन और शोध के लिए महत्वपूर्ण हैं. उनके लेखन और शोध कार्यों ने भारतीय समाजशास्त्र को समृद्ध किया और समाज की गहरी समझ विकसित करने में मदद की. वे एक प्रेरणादायक शिक्षाविद और विचारक थे, जिनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं.

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राजनीतिज्ञ सोमनाथ चटर्जी

सोमनाथ चटर्जी एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जो भारतीय संसद के लोकसभा अध्यक्ष के रूप में अपनी सेवा के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं. वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के वरिष्ठ नेता थे और भारतीय राजनीति में उनके योगदान को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है.

सोमनाथ चटर्जी का जन्म 25 जुलाई 1929, तेजपुर, असम में हुआ था और उनका निधन 13 अगस्त 2018, कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ. सोमनाथ चटर्जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता में की. इसके बाद उन्होंने कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की. वे एक प्रख्यात वकील भी थे और इंग्लैंड के मिडल टेम्पल से बैरिस्टर बने.

सोमनाथ चटर्जी का राजनीतिक कैरियर कई दशकों तक फैला हुआ था. वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सदस्य थे और कई महत्वपूर्ण राजनीतिक पदों पर कार्य किया. सोमनाथ चटर्जी 2004 से 2009 तक भारतीय लोकसभा के अध्यक्ष रहे. उनके कार्यकाल के दौरान उन्होंने संसद की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे अपने निष्पक्ष और सशक्त नेतृत्व के लिए जाने जाते थे.

चटर्जी ने दस बार लोकसभा के सदस्य के रूप में कार्य किया और विभिन्न संसदीय समितियों के सदस्य रहे. उन्होंने कई महत्वपूर्ण विधेयकों और नीतियों पर बहस में भाग लिया और अपने विचार व्यक्त किए. सोमनाथ चटर्जी एक समाजवादी और प्रगतिशील विचारधारा के समर्थक थे. वे समाज में समानता और न्याय के लिए संघर्षरत रहे और मजदूरों और गरीबों के अधिकारों की रक्षा के लिए काम किया.

चटर्जी का 2008 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) से निष्कासन एक महत्वपूर्ण घटना थी. पार्टी के नेतृत्व ने उनसे इस्तीफा देने के लिए कहा था जब पार्टी ने केंद्र सरकार से समर्थन वापस लिया था, लेकिन चटर्जी ने लोकसभा अध्यक्ष के पद पर रहते हुए निष्पक्षता बनाए रखने का निर्णय लिया और इस्तीफा नहीं दिया. सोमनाथ चटर्जी को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए. वे भारतीय राजनीति के एक प्रतिष्ठित और सम्मानित व्यक्तित्व थे.

सोमनाथ चटर्जी का राजनीतिक और सामाजिक योगदान आज भी याद किया जाता है. उनके नेतृत्व और कार्यों ने भारतीय संसद को सशक्त और प्रभावी बनाया. उनके विचार और सिद्धांत भारतीय राजनीति में आज भी प्रासंगिक हैं और उनके कार्यों से प्रेरणा ली जा सकती है. वे भारतीय लोकतंत्र के एक मजबूत स्तंभ थे और उनके योगदान को हमेशा सम्मान के साथ याद किया जाएगा.

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फ़िल्म निर्देशक बी. आर. इशारा

बी. आर. इशारा का पूरा नाम बद्र-उल-हसन इशारा था जो भारतीय फ़िल्म निर्देशक, पटकथा लेखक, और निर्माता थे, जिन्होंने हिंदी सिनेमा में अपने नवाचारी और साहसी दृष्टिकोण के लिए ख्याति प्राप्त की. वर्ष 1970 – 80 के दशकों में उनके फ़िल्में अक्सर सामाजिक मुद्दों और मानवीय संबंधों पर केंद्रित होती थीं, और उनके काम ने हिंदी सिनेमा में एक नई दिशा प्रदान की.

बी. आर. इशारा का जन्म 7 सितम्बर 1934, मंसेहरा, ब्रिटिश भारत (अब पाकिस्तान में) हुआ था और उनकी मृत्यु 25 जुलाई 2012, मुंबई में हुआ. उनका कैरियर कई दशकों तक फैला रहा और उन्होंने भारतीय सिनेमा में कई यादगार फ़िल्में बनाईं. उन्होंने कई फ़िल्मों का निर्देशन किया जो अपने समय से आगे की सोच रखती थीं.

फ़िल्में: –

“चेतना” (1970): – यह फ़िल्म वेश्यावृत्ति के मुद्दे पर आधारित थी और इसे उस समय काफी सराहना मिली. रीना रॉय और अंजू महेंद्र ने इस फ़िल्म में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं.

“जरूरत” (1972): – यह फ़िल्म रीना रॉय की डेब्यू फ़िल्म थी और इसमें शारीरिक इच्छाओं और सामाजिक मान्यताओं के बीच के संघर्ष को दिखाया गया था.

“दोराहा” (1971): – इस फ़िल्म ने भी सामाजिक मुद्दों को उठाया और इसमें नायक-नायिका के संबंधों की जटिलताओं को दिखाया गया था.

बी. आर. इशारा ने न केवल फ़िल्मों का निर्देशन किया बल्कि कई फ़िल्मों की पटकथा भी लिखी. उनकी कहानियाँ अक्सर सामाजिक मुद्दों पर आधारित होती थीं और उनके पात्रों में गहराई और यथार्थवाद होता था. इशारा ने कई फ़िल्मों का निर्माण भी किया, जिससे वे अपने सिनेमा में अपने विचारों को पूरी स्वतंत्रता से प्रस्तुत कर सके.

बी. आर. इशारा ने हिंदी सिनेमा में कई नए विचार और दृष्टिकोण प्रस्तुत किए. वे सामाजिक मुद्दों को बहुत ही संवेदनशील और यथार्थवादी ढंग से प्रस्तुत करते थे. उनके पात्र अक्सर समाज के हाशिये पर रहने वाले लोग होते थे और उनकी कहानियाँ सामाजिक मान्यताओं और परंपराओं को चुनौती देती थीं. बी. आर. इशारा को उनके योगदान के लिए कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए. उनकी फ़िल्में समय के साथ क्लासिक मानी जाती हैं और आज भी सिनेमा प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं.

बी. आर. इशारा का सिनेमा आज भी हिंदी फ़िल्म उद्योग में एक प्रेरणा स्रोत बना हुआ है. उनकी फ़िल्में और उनके द्वारा उठाए गए मुद्दे आज भी प्रासंगिक हैं. उनके नवाचारी दृष्टिकोण और साहसी कथानक ने हिंदी सिनेमा को एक नई दिशा दी और उनकी विरासत को हमेशा सम्मान और प्रेरणा के साथ याद किया जाएगा.

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