धुलेंडी…
होली भारत का अत्यंत प्राचीन पर्व है जो होली, होलिका या होलाकानाम के नाम से जाना जाता है. इसके अन्य नाम हैं धुलेंडी, धुरड्डी, धुरखेल और धूलिवंदन. वसंत की ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने के कारण इसे वसंतोत्सव या काम-महोत्सव के नाम से जाना जाता है. रंगों का त्यौहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिनों तक मनाया जाता है. यह पर्व फाल्गुन महीने की पूर्णिमा से शुरू होकर चैत्र महीने के पहले दिन मनाया जाता है. भारतीय ज्योतिष के अनुसार चैत्र शुदी प्रतिपदा के दिन से नववर्ष का भी आरंभ माना जाता है. बताते चलें कि, चैत्र के महीने के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि (प्रतिपद या प्रतिपदा) को सृष्टि का आरंभ हुआ था. हिन्दुओं का नववर्ष भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को शरू होता है. ज्योतिष के अनुसार, इसी दिन से ग्रह और नक्षत्र में भी परिवर्तन होता है.
रंगों का त्यौहार होली जो वसंत पंचमी से ही शुरू हो जाती है. वसंत पंचमी के दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है. इसी दिन से चैता, फाग या धमार का गाना आरंभ हो जाता है. चैता के गीतों में ‘रामा’ का शब्द हर पंगती में लगाते हैं जैसे:- “चढ़त चइत चित लागे ना रामा, बाबा के भवनवा, बीर बमनवा सगुन बिचारो,कब होइ हैं पिया से मिलनवा हो रामा,चढ़ल चइत चित लागे ना रामा”. इसके अलावा ठुमरी दादरा और कजरी भी गाया जाता है. वसंत चूँकि राग-रंग का संदेशवाहक भी माना जाता है. राग अर्थात संगीत और रंग तो इसके प्रमुख अंग हैं ही पर इनको उत्कर्ष तक पहुँचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है. खेतों में सरसों खिल जाते हैं साथ ही साथ बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है. खेतों में गेंहूँ की बालियाँ इठलाने लगती हैं. पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं. बच्चे हों या बूढ़े या युवा लोक लाज व संकोच को छोड़कर ढोलक- झाँझ और मंजीरे की धुन पर नाचने गाने लगते हैं.
पौराणिक ग्रंथो जैसे नारद पुराण और भविष्य पुराण में ‘होली’ पर्व का उल्लेख मिलता है. मुस्लिम पर्यटक अलबरूनी ने अपने ऐतिहासिक यात्रा संस्मरण में होलिकोत्सव का वर्णन किया है. बताते चलें कि, मुग़ल काल में अकबर का जोधाबाई के साथ तथा जहांगीर का नूरजहाँ के साथ होली खेलने का वर्णन मिलता है. ऐतिहासिक किताबों में जहाँगीर भी होली खेलते थे वहीं शाहजहाँ के समय में होली खेलने का अंदाज ही बदल गया था. ऐतिहासिक किताबों के अनुसार शाहजहाँ के समय में होली को ‘ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी’ कहा जाता था. मध्ययुगीन हिन्दी साहित्य के अनुसार, कृष्ण की लीलाओं में भी होली का विस्तृत वर्णन मिलता है.
होली पर्व से जुडी कई कहानियाँ हैं जिनमें, प्रमुख रूप से होलिका और प्रह्लाद की कहानी है. प्राचीन काल में हिरण्यकशिपू नामक बलशाली असुर था. वह अपने बल के अभिमान में अपने आप को ईश्वर मानने लगा था. उसने अपने राज्य में ईश्वर या यूँ कहें कि, ‘भगवान्’ के नाम लेने पर पाबंदी लगा दी थी. हिरण्यकशिपू का बेटा प्रह्लाद था जो भगवान् का बड़ा भक्त था. लाख समझाने के बाद भी वो भगवान् का नाम लेता और दूसरों को भी प्रेरित करता था. हिरण्यकशिपू ने अपने बेटे को कई प्रकार के कठोर दंड दिए लेकिन, प्रह्लाद हर क्षण भगवान् के नाम का जप करता था और वो भगवान् की भक्ति करना नहीं छोड़ा. हिरण्यकशिपू की एक बहन थी जिसका नाम होलिका था जिसे भगवान् से वरदान प्रपात था कि वो आग में भस्म नहीं हो सकती. हिरण्यकशिपू ने अपनी बहन होलिका को कहा कि, वो प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे. आग में बैठने पर होलिका तो जल गई और भगवान् भक्त प्रह्लाद बच गया. भगवान् भक्त प्रह्लाद की याद में होली जलाई जाती है. वहीं दूसरी तरफ भगवान् श्रीकृष्ण ने इसी दिन पूतना राक्षसी का वध किया था. पौराणिक ग्रंथो के अनुसार, कामदेव के पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ मानते हैं.
होली के पर्व की परम्पराएं भी प्राचीन है जो समय के साथ बदलता रहा है. वैदिक काल में इस पर्व को नवात्रैष्टि यज्ञ कहा जाता था. वैदिक काल में खेत के अधपके अन्न को यज्ञ में दान करके प्रसाद लेने का रिवाज था. प्राचीन काल में विवाहित महिलाएं अपने द्वार पर परिवार की सुख समृद्धि के लिए पूर्णिमा की पूजा करती थी. भारत में होली का पर्व अलग-अलग प्रदेशों में कई रूपों में मनाया जाता है. ज्ञात है कि, मथुरा और वृंदावन में होली का पर्व 15 दिनों तक मनाया जाता है. जबकि, बरसाने की ‘लठमार होली’ काफी प्रसिद्ध है. अन्य राज्यों जैसे- हरियाणा में धुलंडी, बंगाल की दोल जात्रा, महारष्ट्र की रंग पंचमी जबकि, गोवा के शिमगो में जुलुस व सांस्कृतिक कार्यक्रम किए जाते है. छतीसगढ़ की होली में लोक गीत गाए जाते है वहीं बिहार का फगुआ जमकर मौज मस्ती करने का पर्व माना जाता है.
होली का वर्णन प्राचीन काल के संस्कृत साहित्य में भी मिलता है. कालिदास रचित ऋतुसंहार में भी ‘वसंतोत्सव’ का जिक्र मिलता है. चंद बरदाई द्वारा रचित पहले महाकाव्य पृथ्वीराज रासों में भी होली का वर्णन है. विद्यापति से लेकर सूरदास, रहीम, जायसी, मीराबाई, कबीर, बिहारी, केशव और घनानंद आदि अनेक कवियों का प्रमुख विषय रहा है. मुस्लिम संप्रदाय का पालन करने वाले कवियों ने भी होली पर सुंदर रचनाएँ लिखी हैं जो आज भी आम-आवाम में लोकप्रिय है. भारतीय फ़िल्मों में भी होली के दृश्यों और गीतों को सुंदरता के साथ चित्रित किया गया है. भारतीय शास्त्रीय संगीत में भी होली का विशेष महत्व दिया गया है. कथक नृत्य के साथ होली, धमार और ठुमरी पर प्रस्तुत की जाने वाली अनेक सुंदर बंदिशें है जैसे- “चलो गुंइयां आज खेलें होरी कन्हैया घर”, “खेलत हरी संग सकल, रंग भरी होरी सखी”, “ होली खेलें रघुवीरा अवध में”, “आज रंग है री मन रंग है, अपने महबूब के घर रंग है री”. वहीं फ़िल्मी गीतों में “रंग बरसे भीगे चुनर वाली, रंग बरसे”, “आया होली का त्योहार, उड़े रंगों की बौछार”.
========== ========= ===========
Dhulendi…
Holi is a very ancient festival of India which is known as Holi, Holika or Holakanam. Its other names are Dhulendi, Dhuraddy, Dhurkhel and Dhulivandan. Because it is celebrated with great enthusiasm during the spring season, it is known as Vasanthotsav or Kama-Mahotsav. This festival, called the festival of colours, is traditionally celebrated for two days. This festival is celebrated starting from the full moon day of Phalgun month and on the first day of Chaitra month. According to Indian astrology, the New Year is also considered to begin from the day of Chaitra Shudi Pratipada. Let us tell you that the creation started on the first date (Pratipada or Pratipada) of Shukla Paksha of the month of Chaitra. The Hindu New Year also starts on Chaitra Shukla Pratipada. According to astrology, from this day the planets and constellations also change.
Holi, the festival of colors, starts from Vasant Panchami. Gulal is blown for the first time on the day of Vasant Panchami. The singing of Chaita, Phaag or Dhamar starts from this day. In the songs of Chaita, the word ‘Rama’ is used in every line like: – “Chadhat chait chit lage na Rama, Baba ke bhavanva, bir bamanva sagun bicharo, kab hoi hain piya se milanva ho Rama, chadhal chait chit lage na Rama.” . Apart from this, Thumri Dadra and Kajri are also sung. Since spring is also considered the messenger of melody and color. Raga i.e. music and color are its main parts, but the nature which takes them to heights is also at its peak at this time with colorful youth. Mustard blossoms in the fields and at the same time there is an attractive display of flowers in the gardens. Ears of wheat start showing off in the fields. Trees, plants, animals, birds and humans all become filled with joy. Be it children, old people or young people, people leave aside shyness and hesitation and start dancing and singing to the tune of dholak, cymbals and manjira.
The festival of ‘Holi’ is mentioned in mythological texts like Narada Purana and Bhavishya Purana. Muslim tourist Alberuni has described Holikotsav in his historical travel memoirs. Let us tell you that during the Mughal period, there is a description of Akbar playing Holi with Jodha Bai and Jahangir playing Holi with Noor Jahan. In historical books, Jahangir also used to play Holi, whereas during the time of Shahjahan, the style of playing Holi had changed. According to historical books, during the time of Shahjahan, Holi was called ‘Eid-e-Gulabi or Aab-e-Pashi’. According to medieval Hindi literature, detailed description of Holi is also found in the Leelas of Krishna.
There are many stories related to Holi festival, prominent among which is the story of Holika and Prahlad. In ancient times there was a powerful demon named Hiranyakshipu. He was proud of his strength and started considering himself as God. He had banned taking the name of God or should we say, ‘God’ in his kingdom. Hiranyakashipu’s son was Prahlad who was a great devotee of God. Even after a lot of persuasion, he used to take the name of God and inspire others also. Hiranyakashipu gave many harsh punishments to his son, but Prahlad used to chant the name of God every moment and he did not stop worshiping God. Hiranyakashipu had a sister named Holika who was blessed by God that she could not be destroyed in fire. Hiranyakashipu told his sister Holika to sit in the fire with Prahlad in her lap. Holika got burnt while sitting in the fire and Prahlad, a devotee of God, was saved. Holi is lit in the memory of Lord devotee Prahlad. On the other hand, Lord Shri Krishna had killed the demon Putana on this day. According to mythological texts, it is also believed to be associated with the rebirth of Kamadeva.
The traditions of Holi festival are also ancient which have been changing with time. In the Vedic period, this festival was called Navatrashti Yagya. In the Vedic period, there was a custom of taking Prasad by donating half-cooked food from the field in Yagya. In ancient times, married women used to worship the full moon at their doorstep for the happiness and prosperity of the family. In India, the festival of Holi is celebrated in many forms in different states. It is known that the festival of Holi is celebrated for 15 days in Mathura and Vrindavan. Whereas, ‘Lathmar Holi’ of Barsana is quite famous. In other states like Dhulandi in Haryana, Dol Jatra in Bengal, Rang Panchami in Maharashtra, processions and cultural programs are organized in Shimgo in Goa. While folk songs are sung in Holi of Chhattisgarh, Fagua of Bihar is considered a festival of great fun.
Description of Holi is also found in ancient Sanskrit literature. There is also mention of ‘Vasantotsav’ in Ritusanhar written by Kalidas. Holi is also described in the first epic Prithviraj Rasas written by Chand Bardai. It has been the main subject of many poets from Vidyapati to Surdas, Rahim, Jayasi, Mirabai, Kabir, Bihari, Keshav and Ghananand etc. Poets following the Muslim sect have also written beautiful compositions on Holi, which are popular among the common people even today. Holi scenes and songs have also been beautifully depicted in Indian films. Holi has also been given special importance in Indian classical music. Along with Kathak dance, there are many beautiful bands presented on Holi, Dhamar and Thumri like – “Let’s play Holi today, Hori Kanhaiya Ghar”, “Khelat Hari Sang Sakal, Rang Bhari Hori Sakhi”, “Play Holi Raghuveera Awadh Mein”, “Today my mind is full of colors, my beloved’s house is full of colors”. The film songs included “Rang Barse Bheege Chunar Wali, Rang Barse”, “Aaya Holi Ka Utsav, Ude Rangdon Ki Bauchaar”.