Dharm

सुन्दरकाण्ड-11…

…लंका जलाने के बाद हनुमानजी का सीताजी से विदा माँगना …

दोहा :-

पूँछ बुझाइ खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि।

जनकसुता के आगें ठाढ़ भयउ कर जोरि ।।

वाल्व्याससुमनजीमहाराज श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, पूँछ बुझाकर, थकावट दूर करके और फिर छोटा सा रूप धारण कर हनुमानजी माता जानकीजी के सामने हाथ जोड़कर जा खड़े हुए.

चौपाई :-

मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा। जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा ।।

चूड़ामनि उतारि तब दयऊ। हरष समेत पवनसुत लयऊ ।।

श्लोक का अर्थ बताते हुए महाराजजी कहते है कि, हनुमान् जी ने कहा – हे माता ! मुझे कोई चिन्ह्र (पहचान) दीजिए, जैसे श्रीरघुनाथजी ने मुझे दिया था. तब माता सीताजी ने चूड़ामणि उतारकर दी. जिसे हनुमान जी ने उसको हर्षपूर्वक ले लिया.

कहेहु तात अस मोर प्रनामा। सब प्रकार प्रभु पूरनकामा ।।

दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी ।।

श्लोक का अर्थ बताते हुए महाराजजी कहते है कि, जानकी जी ने कहा- हे तात ! मेरा प्रणाम निवेदन करना और इस प्रकार कहना- हे प्रभु ! यद्यपि आप सब प्रकार से पूर्ण काम है (आपको किसी प्रकार की कामना नही है), तथापि दीन-दुःखियो पर दया करने से आपको सुख  मिलता व है, और मै दीन हूँ अतः उस विरद (सुख) को याद करके, हे नाथ ! आप मेरे भारी संकट को दूर कीजिए.

तात सक्रसुत कथा सुनाएहु। बान प्रताप प्रभुहि समुझाएहु ।।

मास दिवस महुँ नाथु न आवा। तौ पुनि मोहि जिअत नहिं पावा ।।

श्लोक का अर्थ बताते हुए महाराजजी कहते है कि, हे तात ! इंद्रपुत्र जयंत की कथा सुनाना और प्रभु को उनके बाण का प्रताप समझाना(स्मरण कराना). यदि महीने भर में नाथ न आए तो फिर मुझे जीवित न पाएँगे.

कहु कपि केहि बिधि राखौं प्राना। तुम्हहू तात कहत अब जाना ।।

तोहि देखि सीतलि भइ छाती। पुनि मो कहुँ सोइ दिनु सो राती ।।

श्लोक का अर्थ बताते हुए महाराजजी कहते है कि, हे हनुमान् ! कहो, मै किस प्रकार प्राण रखूँ ! हे तात ! तुम भी अब जाने को कह रहे हो. तुमको देखकर छाती ठंडी हुई थी. फिर मुझे वही दिन और रात.

जनकसुतहि समुझाइ करि बहु बिधि धीरजु दीन्ह।

चरन कमल सिरु नाइ कपि गवनु राम पहिं कीन्ह ।।

श्लोक का अर्थ बताते हुए महाराजजी कहते है कि, हनुमानजी ने माता जानकी को समझाकर बहुत प्रकार से धीरज दिया और उनके चरणकमलो मे सिर नवाकर श्रीरामचन्द्रजी के पास प्रस्थान किया.

वालव्याससुमनजीमहाराज,

 महात्मा भवन,

श्रीरामजानकी मंदिर,

राम कोट, अयोध्या.

Mob: – 8709142129.

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… After burning Lanka, Hanuman ji bids farewell to Sita ji …

Doha…

Poonchh Bujhai Khoi Shram Dhari Laghu Roop Bahori।

Jaanasuta Ke Aagen Thaadh Bhayau Kar Jori।।

Explaining the meaning of Valvyassumanji Maharaj sloka, it is said that after extinguishing the tail, removing tiredness, and then assuming a small form, Hanuman ji stood with folded hands in front of Mother Janki ji.

Choupai:-

Matu Mohi Deeja Kachhu Chinha। Jaisen Raghu Naayak Mohi Deenha।।

Chudaamani Utaari Tab Dayau। Haras Samet Pavansut Layoo ।।

Explaining the meaning of the verse, Maharaj ji says that, Hanuman ji said – O mother! Give me some sign (identification), as Shrirghunathji had given me. Then Mother Sitaji took off the bangle and gave it to her. Hanuman Ji happily took him.

Kahehu Taat As Mor Pranama। Sab Prakar Prabhu Purankaama ।।

Din Dayaal Biridu Sambhari। Harahu Nath Mam Sankat Bhari ।।

Explaining the meaning of the verse, Maharajji says that, Janaki ji said – O father! Request my salutations and say like this – O Lord! Although You are complete in all respects (You do not have any kind of desire), yet by showing mercy to the poor, You get happiness, and I am poor, so by remembering that Virad (happiness), O Nath! You remove my heavy trouble.

Taat Sakrsut Katha Sunaehu। Baan Pratap Prabhuhi Samujhaehu ।।

Maas Divas Mahun Nathu Na Aava। Tau Puni Mohi Jiat Nahin Pava ।।

Explaining the meaning of the verse, Maharajji says, O Tat! Telling the story of Indraputra Jayant and explaining (remembering) the glory of his arrow to the Lord. If Nath does not come within a month, then you will not find me alive.

Kahu Kapi kehi Bidhi Raakhaun Pran। Tumhahoo Tat Kahat Ab Jana।।

Tohi Dekhi Sitali Bhi Chhati। Puni Mo Kahun Soi Dinu So Rattee।।

Explaining the meaning of the verse, Maharajji says, O Hanuman! Tell me, how can I keep my life? Hey Tat! You are also asking to leave now. My chest was cold after seeing you. Then me the same day and night.

Janakasutahi Samujhai Kari Bahu Bidhi Dhiraju Dinh।

Charan Kamal Siru Nai Kapi Gavanu Ram Pahin Kinh।।

Describing the meaning of the verse, Maharajji says that, Hanumanji gave patience in many ways after explaining to Mata Janaki and bowed his head at her lotus feet and left for Shriramchandraji.

Walvyassumanji Maharaj,

 Mahatma Bhawan,

Shriramjanaki Temple,

Ram Kot, Ayodhya.

Mob:- 8709142129.

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