
सुन्दरकाण्ड-01…
दोहा – 1
हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।।
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि, हनुमान् जी ने हाथ से छूकर प्रणाम करते हुये कहा-भाई ! श्रीरामचन्द्रजी का काम जब तक पूरा नहीं होता है तबतक विश्राम करने का समय कहाँ है भाई?
चौपाई:-
जात पवनसुत देवन्ह देखा। जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा।।
सुरसा नाम अहिन्ह कै माता। पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता ।।
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि, जब हनुमानजी माता सीता की खोज में समुद्र को पार करने के दौरान सर्पों की माता सुरसा ने रास्ता रोककर कहा कि हे पवनसुत देवताओं ने आपकी विशेष बल-बुद्धि को जानने के लिए मुझे भेजा है. उसने आकर हनुमान् जी से यह बात कही.
आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा। सुनत बचन कह पवनकुमारा।।
राम काजु करि फिरि मैं आवौं। सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं ।।
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि, सुरसा ने कहा कि, आज देवताओ ने मुझे भोजन दिया है. यह वचन सुनकर पवनकुमार हनुमान् जी ने कहा – श्रीरामजी का कार्य करके मै लौट आऊँ और सीताजी की खबर प्रभु को सुना दूँ.
तब तव बदन पैठिहउँ आई। सत्य कहउँ मोहि जान दे माई।।
कबनेहुँ जतन देइ नहिं जाना। ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना ।।
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि, हे माता ! मै सत्य कहता हूँ, अभी मुझे जाने दे और प्रभु श्रीरामचन्द्रजी का काम पूरा कर के आता हूँ तब खा लेना. जब पवन कुमार को किसी भी उपाय से उसने जाने नही दिया , तब हनुमान् जी ने कहा तो फिर मुझे खा न ले.
जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा। कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा।।
सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ। तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ।।
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि, उसने योजनभर ( चार कोस मे ) मुँह फैलाया. तब हनुमानजी ने अपने शरीर को उससे दूना बढ़ा लिया. तब उसने सोलह योजन का मुख किया और हनुमानजी तुरन्त ही बत्तीस योजन के हो गए.
जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा। तासु दून कपि रूप देखावा।।
सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा। अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा।।
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि, जैसे-जैसे सुरसा मुख का विस्तार बढ़ाती थी, हनुमान् जी उसका दूना रूप दिखलाते थे. उसने सौ योजन ( चार सो कोस ) का मुख किया. तब हनुमान् जी ने बहुत ही छोटा रूप धारण कर लिया.
बदन पइठि पुनि बाहेर आवा। मागा बिदा ताहि सिरु नावा।।
मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा। बुधि बल मरमु तोर मै पावा।।
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि, तब हनुमानजी ने सुरसा के मुख में घुसकर तुरन्त बाहर निकल आए और उसे सिर नवाकर विदा माँगने लगे. सुरसा ने कहा कि मैने तुम्हारे बुद्धि-बल का भेद पा लिया है जिसके लिए देवताओ ने मुझे भेजा था.
वालव्याससुमनजीमहाराज,
महात्मा भवन,श्रीरामजानकी मंदिर,
राम कोट, अयोध्या.
मो० : – 8709142129.