बेवाक……
9 दिसंबर 1945 को पटना के कदम कुआं स्थित सिन्हा परिवार के घर जन्मे शत्रुघ्न प्रसाद सिन्हा अपने चार भाइयों में सबसे छोटे हैं, इसलिए पोस्ट में संलग्न उनके बचपन की तस्वीर (Family Picture B/W) में भी आप आसानी से समझ सकते हैं कि चारों बच्चों में से शत्रुघ्न कौन से हैं। शत्रुघ्न सिन्हा के पिता भुवनेश्वरी प्रसाद सिन्हा बिहार की राजधानी पटना में बतौर डॉक्टर और मेडिकल ऑफिसर कार्यरत थे। उस दौर में नाम मात्र लोग ही थे जो अपनी पढ़ाई के लिए विदेश जाते थे और भुवनेश्वरी प्रसाद सिन्हा उन्हीं में से एक थे। उन्होंने अपनी बी.एस.सी और एम.एस.सी की पढ़ाई अमेरिका से पूरी की थी। शत्रु जी अपनी माँ श्यामा देवी जी के ज़्यादा क़रीब थे और लाड़ले भी थे।
बिहार से ताल्लुक रखने वाले शत्रु जी के परिवार का वाराणसी, उत्तर प्रदेश से भी बड़ा गहरा नाता रहा है। हालांकि आस्था और विश्वास से जुड़े इस नाते के बारे में जानकर कुछ लोगों को हैरानी भी हो सकती है और कुछ को अंधविश्वास भी लग सकता है क्योंकि शत्रु जी का मानना है कि उनका और उनके भाइयों को जो जीवन मिला है वह वाराणसी के राम नाम बैंक की देन है। दरअसल वाराणसी में ‘राम रमापति’ नामक एक ऐसा बैंक है जहाँ मन्नत मांगने के लिए अकाउंट ओपन करवाया जाता है। इस बेहद अनोखे और चमत्कारी बैंक की स्थापना साल 1926 में दास छन्नू लाल जी द्वारा की गई थी। वहीं के एक बैंक कर्मी विकास मल्होत्रा ने कूछ सालों पहले मीडिया को दिये एक साक्षात्कार में बताया था कि शत्रुघ्न सिन्हा के पिता और माँ ने भी उनके बैंक से राम नाम का लोन लिया था और उसी लोन के आशीर्वाद से उन्हें चार बेटे हुए।
इस बैंक से जुड़ी एक मान्यता है कि यहाँ कोई भी जोड़ा यहाँ सिर्फ 4 बार ही बच्चे की अर्जी लगा सकता है। चौथे बच्चे के बाद अर्जी स्वीकार नहीं होती। शत्रुघ्न के पिता के केस में यह मान्यता सच भी साबित हुई थी क्योंकि चौथे बच्चे, यानी शत्रुघ्न के बाद उनकी माँ पांचवीं बार प्रेग्नेंट तो हुई, लेकिन उनका वह बच्चा मृत पैदा हुआ। इस घटना का ज़िक्र साल 2016 में पब्लिश हुई ‘भारती एस प्रधान’ द्वारा लिखी शत्रुघ्न सिन्हा की बायोग्राफी ‘Anything But Khamosh’ में भी है। क़िताब के मुताबिक शत्रुघ्न सिन्हा के माता-पिता भी अपने बच्चों को इसी बैंक की कृपा मानते थे। फिलहाल शत्रुघ्न सिन्हा के माता -पिता का निधन हो चुका है।रामनाम की कृपा से सिन्हा परिवार में 3 बच्चों के बाद जन्मे शत्रुघ्न बड़े होकर एक एक्टर और फिर पॉलिटिशियन बन जायेंगे ये किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था क्योंकि उनके तीनों बड़े भाइयों में से कोई साइंटिस्ट तो कोई डॉक्टर थे।
ऐसे में पिता चाहते थे कि उनका छोटा बेटा भी अपने तीनों बड़े भाइयों की तरह या तो डॉक्टर बने या साइंटिस्ट। इधर शत्रुघ्न सिन्हा की इच्छा बचपन से ही फ़िल्मों में काम करने की थी इसलिए उन्होंने अपनी पढ़ाई पटना साइंस कॉलेज से पूरी कर अपने दिल की बात सुनी और फ़िल्म एण्ड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ पुणे में प्रवेश ले लिया। हालांकि शत्रुघ्न सिन्हा ने अपने पिता को बिना बताए ही पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट से फॉर्म मंगवाया था जिस पर साइन करने से उनके पिताजी ने साफ़ साफ़ मना कर दिया था। ऐसे में उनके बड़े भाई लखन जी ने गार्जियन के तौर पर उस फॉर्म पे साइन किया था साथ ही रुपयों से भी मदद की थी।
पुणे से ट्रेनिंग पूरी कर लेने के बाद शत्रु जी ने फ़िल्मों में काम ढूंढ़ना शुरू किया और थोड़े संघर्ष के बाद उन्हें चांस मिल ही गया। शत्रुघ्न सिन्हा की डेब्यू फिल्म साल 1969 में रिलीज़ “साजन’ मानी जाती है, हालांकि उन्हें सबसे पहला मौक़ा सदाबहार देवानंद ने अपनी फ़िल्म प्रेम पुजारी में दिया था लेकिन यह फिल्म देर से रिलीज़ हुई। इसी दौरान एक्ट्रेस मुमताज़ की सिफारिश से उन्हें फ़िल्म ‘खिलौना’ मिली। साल 1970 में रिलीज़ हुई इस फिल्म में अपने निगेटिव किरदार को शत्रु जी ने इतनी खूबसूरती से निभाया कि बतौर विलेन वे हर फ़िल्म मेकर की पहली पसंद बन गए। उसके बाद रही सही कसर वर्ष 1971 में रिलीज़ गुलजार की फिल्म ‘मेरे अपने’ में उनके द्वारा निभाये किरदार ‘छेनू’ ने कर दी। शत्रुघ्न आए तो थे हीरो बनने, लेकिन इंडस्ट्री ने उन्हें विलेन बना दिया, फिर भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपनी कोशिश ज़ारी रखी। बतौर विलेन कुछ और फ़िल्मों के बाद साल 1976 में आयी फिल्म ‘कालीचरण’ से शत्रुघ्न रातों रात विलेन से हीरो बन गये और इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। चार-पाँच दशकों में हिंदी सहित दूसरी भाषाओं में लगभग 200 से ज़्यादा फिल्में कर चुके।
शत्रुघ्न सिन्हा साल 1991 में राजनीति से भी जुड़े और आज भी उस फील्ड में सक्रिय हैं। शत्रु जी का विवाह साल 1980 में पूनम चंडीरमानी जी से हुआ था। पूनम उनके साथ पूणे फिल्म इंस्टीट्यूट में साथ ही पढ़ती थीं हालांकि उनकी पहली मुलाक़ात सफ़र के दौरान एक ट्रेन में हुई थी। साल 1968 में उन्होंने मुंबई में आयोजित ब्यूटी कॉन्टेस्ट ‘मिस यंग इंडिया’ का टाइटिल जीतकर एक फिल्म का कॉन्ट्रेक्ट प्राप्त किया और कोमल के नाम से एक्टिंग भी शुरू कर दी। पूनम जी की पहली रिलीज़ फिल्म जिगरी दोस्त (1969) थी। शत्रुघ्न सिन्हा की दूसरी सफल फिल्म ‘सबक’ (1973) में उनकी नायिका पूनम ही थीं। बताया जाता है कि एक बार किसी सफ़र के दौरान शत्रुघ्न ने पूनम को चलती हुई ट्रेन में फिल्म ‘पाकीजा’ के डायलॉग ‘अपने पांव जमीन पर मत रखिएगा..’ को कागज़ पर लिखकर प्रपोज किया था जिसे उन्होंने स्वीकार भी कर लिया।
शादी के बाद पूनम फिल्मों से दूर होकर पूरी तरह अपने पारिवारिक जीवन में व्यस्त हो गयीं।अपनी शादी को लेकर शत्रु जी अक्सर अपने इंटरव्यूज़ में एक बेहद दिलचस्प किस्सा बताया करते हैं, वो बताते हैं कि जब उन्होंने अपनी शादी के लिए प्रपोजल भेजा था तो उनकी सासू मां ने उनको यह कहते हुए नकार दिया था कि, “यह इतना कालिया है कि इन दोनों को खड़ा करके कलर फोटोग्राफ भी खीचोगे तो ब्लैक एंड व्हाइट इफेक्ट ही आएगा।” हालांकि इसके बाद शत्रु जी के भाई राम सिन्हा और डायरेक्टर एन एन सिप्पी की सिफारिश के बाद पूनम के माता-पिता पूनम की शादी शत्रुघ्न सिन्हा से करने के लिए तैयार हो गए।शत्रु जी के जुड़वा बेटे हैं, लव सिन्हा व कुश सिन्हा और बेटी सोनाक्षी सिन्हा को तो आप सभी जानते ही हैं। शत्रुघ्न सिन्हा जी के लव ने एक्टिंग फील्ड में किस्मत आजमाने के बाद पिता की तरह ही पॉलिटिक्स का रुख़ कर लिया है तो दूसरे बेटे कुश बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर फ़िल्मों से जुड़े हुए हैं।
शत्रुघ्न सिन्हा के तीनों बड़े भाइयों में से सबसे बड़े राम सिन्हा अभी अमेरिका में हैं और पेशे से साइंटिस्ट हैं। दूसरे भाई डॉक्टर लखन सिन्हा भी एक साइंटिस्ट हैं और 18 वर्षों तक अमेरिका में रहने के बाद वापस भारत आकर फ़िल्म निर्माण से जुड़ गए। बतौर प्रोड्यूसर वे ‘राही’ ‘माँटी माँगे ख़ून’ और ‘बिल्लू बादशाह’ जैसी दर्जन भर फिल्में भी बना चुके हैं। तीसरे भाई भरत सिन्हा पेशे से डॉक्टर हैं औैर लंदन में रहते हैं। शत्रुघ्न सिन्हा के परिवार का अमेरिका की उपराष्ट्रपति रहीं भारतवंशी कमला हैरिस के साथ एक विशेष जुड़ाव है। दरअसल शत्रु जी की भतीजी यानी उनके भाई लखन सिन्हा जी की बेटी प्रीता सिन्हा अपनी युवा टीम के साथ कमला हैरिस के प्रचार में यूएसए के राष्ट्रपति चुनाव में करीब से जुड़ीं थीं जिसमें उन्हें शानदार जीत भी हासिल हुई थी।
प्रभाकर कुमार.