Dharm

निर्जला या पांडव एकादशी…

“ऊँ नमो भगवते वासुदेवायः”

सत्संग की समाप्ति के बाद कुछ भक्तों ने महाराजजी से पूछा कि,महाराज जी ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष में जो एकादशी होती है, उस एकादशी के व्रत की महिमा व विधि के बारे में बताएं. महाराजजी सूना है कि, इस एकादशी के व्रत का पालन कुंती नन्दन भीम ने भी किया था.

वालव्याससुमनजी महाराज कहते है कि, ज्येष्ठ का महीना हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष (साल) का तीसरा महीना होता है. फाल्गुन माह की विदाई के साथ ही ज्येष्ठ या यूँ कहें कि गर्मी का महीना शुरू हो जाता है और इस महीने को गर्मी का महीना भी कहते हैं. महाराजजी कहते है कि, यह महीना बड़ा ही पावन और पवित्र महीना है. ज्येष्ठा नक्षत्र के कारण ही इस महीने को ज्येष्ठ (जेठ) कहा जाता है. इस महीने में धर्म का सम्बन्ध जल से जोड़ा जाता है और इस महीने के देवता भगवान सूर्य और वरुण है इनकी पूजा-अराधना विशेष फलदाई होता है.

महाराजजी कहते हैं कि, एकादशी का अर्थ होता है कि, “ एक ही दशा में रहते हुए अपने आराध्य की पूजा, अर्चना और वन्दना करने वाले व्रत को ही एकादशी कहते हैं”.  इस व्रत में स्वाध्याय की सहज वृत्ति अपनाकर अपना मन ईश्वर की आराधना में लगना और दिन-रात केवल भगवान का ही चितंन करना, इसी को एकादशी का व्रत करना माना जाता है.  स्वर्ण दान, भूमि दान, अन्नदान, गौ दान, कन्यादान आदि करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, एवं ग्रहण के समय स्नान–दान करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, कठिन तपस्या, तीर्थयात्रा एवं अश्वमेघ यज्ञ आदि करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, इन सब सबसे अधिक पुण्य एकादशी व्रत करने से प्राप्त होता है.

पूजन सामाग्री :-

वेदी, कलश, सप्तधान, पंच पल्लव, रोली, गोपी चन्दन, गंगा जल, दूध, दही, गाय के घी का दीपक, सुपाड़ी, शहद, पंचामृत, मोगरे की अगरबत्ती, ऋतू फल, फुल, आंवला, अनार, लौंग, नारियल, नीबूं, नवैध, केला और तुलसी पत्र व मंजरी.

 व्रत विधि:-

सबसे पहले आपको एकादशी के दिन सुबह उठ कर स्नान करना चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए. उसके बाद भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र की स्थापना की जाती है. उसके बाद भगवान विष्णु की पूजा के लिए धूप, दीप, नारियल और पुष्प का प्रयोग करना चाहिए. अंत में भगवान विष्णु के स्वरूप का स्मरण करते हुए ध्यान लगायें, उसके बाद विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करके, कथा पढ़ते हुए  विधिपूर्वक पूजन करें. ध्यान दें…. एकादशी की रात्री को जागरण अवश्य ही करना चाहिए, दुसरे दिन द्वादशी के दिन सुबह ब्राह्मणो को अन्न दान व दक्षिणा देकर इस व्रत को संपन्न करना चाहिए.

विशेष:-

गाय के कच्चे दूध में केसर मिलाकर भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी को अभिषेक करना चाहिए. एकादशी के दिन संध्या (शाम) के समय तुलसी के पौधे के सामने गाय के घी का दीपक लगाकर तुलसी के पौधे को प्रणाम करना चाहिए.

कथा:-

सर्वज्ञ वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया, तो महाबली भीम ने निवेदन किया- पितामह… आपने तो प्रति पक्ष में एक दिन के उपवास की बात की है, मैं तो एक दिन क्या एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह सकता- मेरे पेट में ‘वृक’ नाम की जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है. तो क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित रह जाऊँगा ? पितामह ने भीम की समस्या का निदान करते हुए और उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा- नहीं, कुंतीनंदन, धर्म की यही तो विशेषता है कि, वह सबको धारण ही नहीं करता, सबके योग्य साधन व्रत-नियमों की बड़ी सहज और लचीली व्यवस्था भी उपलब्ध करवाता है. अतः आप ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एक ही एकादशी का व्रत करो और तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा. निःसंदेह तुम इस लोक में सुख, यश और धन की प्राप्ति के साथ-साथ मोक्ष-लाभ की भी प्राप्ति होती है.

इस आश्वासन पर ही भीमसेन ने भी इस एकादशी का विधिवत व्रत करने के लिए सहमत हो गए. इसलिए वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को लोक में पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है. इस दिन जो स्वयं निर्जल रहकर ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को शुद्ध पानी से भरा घड़ा का दान करना चाहिए. एक बार महर्षि व्यास पांडवो के यहाँ पधारे, भीम ने महर्षि व्यास से कहा, भगवान… युधिष्ठर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, माता कुन्ती और द्रौपदी सभी एकादशी का व्रत करते हैं, और मुझसे भी व्रत रख्ने को कहते हैं, परन्तु मैं बिना खाए रह नही सकता हूँ, इसलिए चौबीस एकादशियो पर निरहार रहने का कष्ट साधना से बचाकर मुझे कोई ऐसा व्रत बताईये, जिसे करने में मुझे विशेष असुविधा न हो, और सबका फल भी मुझे मिल जाये. महर्षि व्यास जानते थे कि, भीम के उदर में बृक नामक अग्नि है, इसलिए अधिक मात्रा में भोजन करने पर भी उसकी भूख शान्त नहीं होती है, महर्षि ने भीम से कहा तुम, ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी का व्रत रखा करो. इस व्रत में स्नान आचमन में पानी पीने से दोष नहीं होता है, और इस व्रत से अन्य तेईस एकादशियो के पुण्य का लाभ भी मिलेगा, इसीलिए तुम जीवन पर्यन्त इस व्रत का पालन करो, भीम ने बडे साहस के साथ निर्जला एकादशी व्रत किया, जिसके परिणाम स्वरूप प्रातः होते-होते वह संज्ञाहीन हो गये, तब युधिष्ठिर ने गंगाजल, तुलसी व चरणामृत प्रसाद, देकर उनकी मुर्छा दुर की. इसलिए इस एकादशी को “भीमसेन एकादशी” भी कहते हैं. इस दिन निर्जला व्रत करते हुए शेषशायी रूप में भगवान विष्णु की अराधना का विशेष महत्व होता है. इस दिन “ऊँ नमो भगवते वासुदेवायः” के मन्त्र का जाप करना चाहिए.

एकादशी का फल:-

एकादशी प्राणियों के परम लक्ष्य, भगवद भक्ति, को प्राप्त करने में सहायक होती है. यह दिन प्रभु की पूर्ण श्रद्धा से सेवा करने के लिए अति शुभकारी एवं फलदायक माना गया है. इस दिन व्यक्ति इच्छाओं से मुक्त हो कर यदि शुद्ध मन से भगवान की भक्तिमयी सेवा करता है तो वह अवश्य ही प्रभु की कृपापात्र बनता है.

वाल्वयासुमनजी महाराज,

महात्मा भवन, श्रीरामजानकी मंदिर,

राम कोट, अयोध्या.

मोब: – 8709142129.

=============  ================ ========

Nirjala Ya Pandava Ekadashi.

“Om Namo Bhagavate Vasudevaaya”

After the end of the satsang, some devotees asked Maharaj ji that, Maharaj ji tell about the glory and method of fasting on Ekadashi, which is observed in Shukla Paksha of Jyeshtha month. Maharajji has heard that Kunti Nandan Bhima also observed the fast of this Ekadashi.

Walvyassumanji Maharaj says that the month of Jyestha is the third month of the year according to the Hindu calendar. With the departure of the month of Phalgun, Jyeshtha or to say that the month of summer begins and this month is also called the month of summer. Maharajji says that this month is a very auspicious and holy month. Because of Jyestha Nakshatra, this month is called Jyeshtha (Elder). In this month, the relation of religion is linked with water and the deities of this month are Lord Surya and Varuna, worshiping them is especially fruitful.

Maharajji says that the meaning of Ekadashi is that, “The fast of worshiping, worshiping and worshiping one’s idol while being in the same condition is called Ekadashi”. In this fast, adopting the instinct of self-study, engaging your mind in worshiping God, and thinking only of God day and night, is considered to be fasting on Ekadashi. The virtue that is obtained by donating gold, donating land, donating food, donating cows, donating daughters, etc., the virtue that is obtained by donating a bath at the time of the eclipse, the virtue that is obtained by doing hard penance, pilgrimage, and Ashwamedh Yagya, etc. Yes, most of these virtues are obtained by fasting on Ekadashi.

Worship material: –

Vedi, Kalash, Saptadhan, Panch Pallav, Roli, Gopi Chandan, Ganges water, milk, curd, lamp of cow’s ghee, betel nut, honey, panchamrit, incense sticks of mogre, seasonal fruits, flowers, amla, pomegranate, cloves, coconut, Lemon, illegal, banana and basil leaves and Manjari.

  Fasting method: –

First of all, on the day of Ekadashi, you should wake up early in the morning and take a bath and take a vow of fasting. After that, the idol or picture of Lord Vishnu is established. After that incense, lamps, coconut, and flowers should be used to worship Lord Vishnu. In the end, meditate remembering the form of Lord Vishnu, and after that recite Vishnu Sahastranam and worship it methodically while reciting the story. Pay attention… Jagran must be done on the night of Ekadashi, on the second day of Dwadashi, this fast should be completed by donating food and Dakshina to Brahmins.

Specific:-

Lord Vishnu and Mother Lakshmi should be anointed by mixing saffron in the raw milk of the cow. On the day of Ekadashi, in the evening (evening), the Tulsi plant should be worshiped by lighting a lamp of cow’s ghee in front of the Tulsi plant.

Story:-

The omniscient Vedvyas made the Pandavas resolve to fast on Ekadashi, which gives all four purusharths – Dharma, Artha, Kama, and Moksha, then Mahabali Bhima requested – Grandfather… You have talked about fasting for one day on each side, but I only for one day. Can’t live without food even for a while – To keep the fire named ‘Vrik’ in my stomach calm, I have to eat equal to many people and many times. So, because of that hunger of mine, will I be deprived of a virtuous fast like Ekadashi? Diagnosing Bhima’s problem and boosting his morale, the grandfather said- No, Kuntinandan, this is the specialty of religion that, not only embraces everyone, it also provides a very easy and flexible system of fast rules which are suitable for everyone. Is. Therefore, fast on only one Ekadashi named Nirjala in the Shukla Paksha of Jyeshtha month and you will get the results of all the Ekadashis of the year. Undoubtedly, along with the attainment of happiness, fame, and wealth in this world, you also get the benefit of salvation.

On this assurance only, Bhimsen also agreed to observe fast on this Ekadashi. That’s why this best Nirjala Ekadashi, which gives the virtuous benefits of Ekadashis throughout the year, is also known as Pandava Ekadashi or Bhimseni Ekadashi. On this day one should donate a pitcher full of pure water to a Brahmin or a needy person who remains waterless. Once Maharishi Vyas came to Pandavas place, Bhima said to Maharishi Vyas, Lord… Yudhishthira, Arjuna, Nakula, Sahadeva, Mata Kunti, and Draupadi all fast on Ekadashi, and I am also asked to fast, but I do not eat I can’t stay, so save me from the pain of fasting on twenty-four Ekadashis, tell me such a fast, which I don’t have much inconvenience in doing, and I will get the fruit of all. Maharishi Vyas knew that there is a fire named Brik in Bhima’s stomach, that’s why even after eating a lot of food, his hunger does not calm down, Maharishi said to Bhima, keep a fast on Jyeshtha Shukla Ekadashi. There is no fault in drinking water while taking a bath in this fast, and this fast will also benefit from the virtues of the other twenty-three Ekadashis, so follow this fast for the rest of your life. As a result, he became unconscious in the morning, then Yudhishthir gave Gangajal, Tulsi, and Charanamrit Prasad, and removed his fainting. That’s why this Ekadashi is also called “Bhimsen Ekadashi”. Worshiping Lord Vishnu in Sheshashayi form while observing Nirjala fast on this day has special significance. On this day the mantra of “Om Namo Bhagwate Vasudevayah” should be chanted.

Results of Ekadashi: –

Ekadashi helps in achieving the ultimate goal of the living beings, Bhagavad Bhakti. This day is considered very auspicious and fruitful to serve the Lord with full devotion. On this day, if a person becomes free from desires and does devotional service to God with a pure heart, then he definitely becomes blessed by God.

Walvayasumanji Maharaj,

Mahatma Bhavan, Shri Ramjanaki Temple,

Ram Kot, Ayodhya.

Mob:- 8709142129.

Rate this post
:

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!