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कर्म ही वर्ण ….

ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र कोई जाति नहीं था, कर्म के आधार पर वर्ण व्यवस्था बना था। जब देश गुलाम हुआ तो धीरे धीरे जाति पाति का खेल शुरू होने लगा, बाद में अंग्रेज यही जाति धर्म के आर में फूट डालो राज करने की नीति अपनाया और हमलोग हजारों जाति में विभक्त हो गये, सबसे पहले जातिय जनगणना की शुरुआत देश में अंग्रेज ने शुरु कराया जिसका प्रभाव आज तक देश वासियों को भुगतना पड़ रहा है। भारतीय संविधान बनने के बाद सात हजार जाति और उपजाति में विभक्त हो गये, अब कोई भी कर्म कर सकते है लेकिन जाति आपकी नहीं बदल सकती है, वैदिक काल में ब्राह्मण एक समग्र संस्था था, ब्रह्म जाना यति ब्राह्मण, जो ब्रह्म को जानता है वही ब्राह्मण कहलाता था, क्षत्रिय जाति नही थी क्षत्रिय धर्म था, जो क्षात्र धर्म का निर्वहन करता था, वही क्षत्रिय कहलाता था, वैश्य जो व्यापार और खेती बाड़ी संभालता था, वह वैश्य कहलाता था, शुद्र जिसमें सेवा भाव था, वह शुद्र कहलाता था। चारों वर्णों में कोई भेद भाव और उंच नीच नहीं होता था, धूआ छूत सिर्फ चोर ,दस्यु, और जो कुकर्म रत थे उसी के साथ होता था। अखण्ड भारत खंड-खंड में बट गया, और यही हाल जाति-जाति का खेल होता रहा तो एक बार फिर भारत को विभाजन होने से कोई नहीं  रोक सकता है।

संजय कुमार सिंह, संस्थापक,

ब्रह्म बाबा सेवा एवं शोध संस्थान,

निरोग धाम अलावलपुर, पटना.

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