पुस्तकालयाध्यक्ष एस. आर.रंगनाथन
एस. आर. रंगनाथन एक भारतीय पुस्तकालय विज्ञानी थे, जिन्हें भारत में पुस्तकालय विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जाना जाता है. उनका पूरा नाम शियाली रामामृत रंगनाथन था. उन्होंने पुस्तकालय विज्ञान को एक वैज्ञानिक आधार दिया और इसे एक व्यवस्थित अध्ययन के रूप में स्थापित किया.
एस. आर. रंगनाथन का जन्म 9 अगस्त, 1892 को शियाली, मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में हुआ था. उनकी शिक्षा शियाली के हिन्दू हाई स्कूल, मद्रास क्रिश्चयन कॉलेज में (जहाँ उन्होंने 1913 और 1916 में गणित में बी.ए. और एम.ए. की उपाधि प्राप्त की) और टीचर्स कॉलेज, सईदापेट्ट में हुई.
एस. आर. रंगनाथन ने पाँच नियम दिए, जिन्हें पुस्तकालय विज्ञान के पाँच नियम कहा जाता है. ये नियम पुस्तकालय संचालन के सिद्धांतों के रूप में माने जाते हैं: –पुस्तकें उपयोग के लिए होती हैं ,प्रत्येक पाठक के लिए उसकी पुस्तक, पुस्तकालय के समय और स्थान का अधिकतम उपयोग, पुस्तकालय एक बढ़ता हुआ जीव है.
रंगनाथन ने कोलन क्लासिफिकेशन (Colon Classification) नामक एक वर्गीकरण प्रणाली भी विकसित की, जो विशेष रूप से भारत में पुस्तकालयों में व्यापक रूप से प्रयोग की जाती है. यह प्रणाली वर्गीकरण के लिए अधिक वैज्ञानिक और लचीला दृष्टिकोण प्रदान करती है. रंगनाथन का निधन 27 सितंबर 1972 को हुई थी. उन्हें भारतीय पुस्तकालय विज्ञान का जनक माना जाता है, और उनका योगदान आज भी विश्वभर में पुस्तकालय विज्ञान के क्षेत्र में मान्यता प्राप्त है.
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उपन्यासकार शिवपूजन सहाय
शिवपूजन सहाय (1893-1963) हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कथाकार, और निबंधकार थे. वे हिंदी साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले प्रमुख साहित्यकारों में से एक थे. उनका साहित्यिक जीवन मुख्य रूप से भारतीय समाज, संस्कृति और मानवीय मूल्यों के इर्द-गिर्द घूमता है.
शिवपूजन सहाय का जन्म 9 अगस्त 1893 को बिहार के शाहाबाद (वर्तमान भोजपुर) जिले के उनवास नामक गाँव में हुआ था. उनका साहित्यिक जीवन बहुमुखी था, जिसमें उन्होंने कहानी, उपन्यास, निबंध, आलोचना, और संपादन के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य किया.
कृतियां: –
देहाती दुनिया – यह उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है, जिसमें उन्होंने भारतीय गाँवों की सामाजिक और आर्थिक स्थितियों का यथार्थ चित्रण किया है. यह उपन्यास भारतीय ग्रामीण जीवन के यथार्थ को गहराई से प्रस्तुत करता है.
विनय पत्रिका – इस निबंध संग्रह में उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक विषयों पर अपने विचार प्रकट किए हैं.
माता का आँचल – यह उपन्यास भी उनकी महत्वपूर्ण कृतियों में से एक है, जिसमें भारतीय पारिवारिक जीवन और मातृत्व की महत्ता का चित्रण किया गया है.
मेरा जीवन – यह उनकी आत्मकथा है, जिसमें उन्होंने अपने जीवन के संघर्षों और अनुभवों का वर्णन किया है.
शिवपूजन सहाय ने हिंदी साहित्य में पत्रकारिता और संपादन के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. वे कई पत्र-पत्रिकाओं के संपादक रहे, जिनमें ‘माधुरी’ और ‘ग्राम सेवक’ प्रमुख थे.
शिवपूजन सहाय का निधन 21 जनवरी 1963 को पटना में हुआ था. उनकी साहित्यिक कृतियाँ भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं का गहन अध्ययन प्रस्तुत करती हैं और उन्होंने साहित्य को समाज के साथ जोड़ने का कार्य किया. उनकी रचनाएँ आज भी साहित्य प्रेमियों के बीच सम्मान के साथ पढ़ी और सराही जाती हैं.
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अभिनेता महेश बाबू
महेश बाबू एक भारतीय फिल्म अभिनेता, निर्माता हैं, जो मुख्य रूप से तेलुगु सिनेमा में अपने काम के लिए जाने जाते हैं. उनका जन्म 9 अगस्त 1975 को चेन्नई, तमिलनाडु में हुआ था. महेश बाबू का पूरा नाम घट्टामनेनी महेश बाबू है और वे तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री के मशहूर अभिनेता कृष्णा घट्टामनेनी के बेटे हैं.
महेश बाबू ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत एक बाल कलाकार के रूप में की थी, और उन्होंने 1979 में फिल्म “नीडा” से अपने अभिनय की शुरुआत की थी. उन्होंने बाल कलाकार के रूप में कुछ और फिल्मों में काम किया, लेकिन 1999 में उन्होंने बतौर मुख्य अभिनेता फिल्म “राजा कुमारुडु” से अपने कैरियर की शुरुआत की. इस फिल्म में उनके अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ नवोदित अभिनेता का नंदी पुरस्कार मिला. महेश बाबू को तेलुगु सिनेमा में उनकी बेहतरीन अदाकारी और शानदार व्यक्तित्व के लिए जाना जाता है.
फिल्में: –
ओक्काडु (2003) – इस फिल्म ने महेश बाबू को तेलुगु सिनेमा के प्रमुख अभिनेताओं में स्थापित किया.
पोकोरी (2006) – इस फिल्म में उनकी भूमिका को बहुत सराहा गया और यह एक बड़ी हिट साबित हुई.
दूकुडु (2011) – इस फिल्म ने व्यावसायिक रूप से बड़ी सफलता प्राप्त की और महेश बाबू के करियर को और ऊंचाइयों पर पहुंचाया.
भारत अने नेनु (2018) – इस फिल्म में उन्होंने एक मुख्यमंत्री की भूमिका निभाई और इसे दर्शकों से काफी प्रशंसा मिली.
महर्षि (2019) – इस फिल्म में उन्होंने एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति की भूमिका निभाई, जो सफलता और समाज सेवा के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करता है.
महेश बाबू को उनकी अभिनय क्षमता और करिश्माई व्यक्तित्व के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं, जिनमें नंदी पुरस्कार, फिल्मफेयर अवार्ड्स साउथ, और सिनेमा अवार्ड्स शामिल हैं. वे फिल्म निर्माण में भी सक्रिय हैं और उनकी खुद की प्रोडक्शन कंपनी G. Mahesh Babu Entertainment Pvt. Ltd. के बैनर तले कुछ फिल्मों का निर्माण किया है. महेश बाबू की लोकप्रियता और सफलता ने उन्हें तेलुगु सिनेमा के सबसे बड़े सितारों में से एक बना दिया है, और उनकी फिल्में न केवल भारत में, बल्कि दुनिया भर में दर्शकों द्वारा पसंद की जाती हैं.
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अभिनेत्री हंसिका मोटवानी
हंसिका मोटवानी एक भारतीय फिल्म अभिनेत्री हैं, जो मुख्य रूप से तमिल और तेलुगु सिनेमा में अपने काम के लिए जानी जाती हैं. हंसिका ने हिंदी, कन्नड़, और मलयालम फिल्मों में भी काम किया है. उनका जन्म 9 अगस्त 1991 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था.
हंसिका मोटवानी ने अपने कैरियर की शुरुआत एक बाल कलाकार के रूप में की थी. वे पहली बार हिंदी टेलीविज़न शो “शाका लाका बूम बूम” (2001-2004) में नजर आईं, जहाँ उन्होंने ‘करुणा’ की भूमिका निभाई थी. इसके बाद उन्होंने लोकप्रिय शो “देश में निकला होगा चाँद” और “क्योंकि सास भी कभी बहू थी” में भी काम किया. हंसिका ने 2003 में ऋतिक रोशन और प्रीति जिंटा के साथ फिल्म “कोई… मिल गया” में एक बाल कलाकार के रूप में काम किया. इस फिल्म में उनके अभिनय को काफी सराहा गया.
बतौर मुख्य अभिनेत्री हंसिका की पहली फिल्म “देसमुदुरु” (2007) थी, जो एक तेलुगु फिल्म थी. इस फिल्म में उनके अभिनय ने उन्हें दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग में रातोंरात स्टार बना दिया, और इसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ नवोदित अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला.
फ़िल्में: –
कंधासामी (2009) – तमिल फिल्म जिसमें उन्होंने विक्रम के साथ अभिनय किया.
सिंघम (2010) – इस तेलुगु फिल्म में उन्होंने एक प्रमुख भूमिका निभाई.
ओरु कल ओरु कन्नडी (2012) – इस तमिल फिल्म में उनकी भूमिका को दर्शकों से काफी सराहना मिली.
अरनमनई (2014) – एक हॉरर-कॉमेडी फिल्म जिसमें उनके प्रदर्शन को काफी पसंद किया गया.
मनिथन (2016) – इस फिल्म में उन्होंने एक वकील की भूमिका निभाई और इसे भी काफी सराहा गया.
हंसिका को उनके अभिनय के लिए कई पुरस्कार मिले हैं और वे अपनी खूबसूरती और अभिनय की विविधता के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने अपने कैरियर में विभिन्न शैलियों की फिल्मों में काम किया है, जिसमें रोमांस, कॉमेडी, एक्शन, और ड्रामा शामिल हैं. हंसिका मोटवानी ने भारतीय फिल्म उद्योग में अपनी पहचान बनाई है और वे अभी भी सक्रिय रूप से फिल्मों में काम कर रही हैं.
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साहित्यकार रामकिंकर उपाध्याय
रामकिंकर उपाध्याय हिंदी साहित्य के एक प्रमुख साहित्यकार, विद्वान, और प्रवचन कर्ता थे. वे मुख्य रूप से अपने गीता प्रवचन और धार्मिक साहित्य के लिए जाने जाते हैं. उनके साहित्य और प्रवचन में भारतीय संस्कृति, धर्म, और नैतिकता का गहन समावेश होता था.
रामकिंकर उपाध्याय का जन्म 1 नवम्बर, 1924 में मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर में हुआ था. वे बचपन से ही धर्म और साहित्य की ओर आकर्षित थे और अपनी साधना और अध्ययन के माध्यम से उन्होंने धार्मिक ग्रंथों का गहन अध्ययन किया. उनकी सबसे प्रमुख कृति “गीता प्रवचन” है, जो भगवद् गीता के श्लोकों की सरल और सहज व्याख्या प्रस्तुत करती है. इस कृति के माध्यम से रामकिंकर उपाध्याय ने गीता के गूढ़ तत्वों को सामान्य जन के लिए सुलभ और समझने योग्य बनाया. उनके प्रवचन सादगी, शुद्धता, और आध्यात्मिकता से भरे होते थे, और उन्होंने अपने जीवन को धर्म और समाज सेवा के लिए समर्पित किया.
रामकिंकर उपाध्याय ने अनेक धार्मिक और सामाजिक विषयों पर भी लेखन किया. उनकी रचनाओं में वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, और अन्य धार्मिक ग्रंथों की व्याख्या शामिल है. उनके साहित्य और प्रवचन ने लाखों लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने में मदद की. उनके साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया. वे भारतीय साहित्य और संस्कृति के प्रति अपनी गहरी आस्था और समर्पण के लिए हमेशा याद किए जाएंगे. रामकिंकर उपाध्याय का 2003 में निधन हो गया, लेकिन उनके विचार और शिक्षाएँ आज भी साहित्यिक और धार्मिक जगत में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं.