बाँग्ला साहित्यकार बंकिम चंद्र चटोपाध्याय
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय जिनका जन्म 27 जून 1838 को हुआ था और निधन 8 अप्रैल 1894 को हुआ, बंगाली साहित्य के एक प्रमुख स्तम्भ माने जाते हैं. उन्हें आधुनिक बंगाली साहित्य का जनक भी कहा जाता है. उनकी रचनाएँ न केवल साहित्यिक उत्कृष्टता के लिए प्रसिद्ध हैं, बल्कि उन्होंने भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव भी छोड़ा है.
बंकिम चंद्र की सबसे प्रसिद्ध रचना “आनन्दमठ” है, जिसमें “वन्दे मातरम्” गीत शामिल है. यह गीत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण प्रतीक बन गया. “आनन्दमठ” 18वीं सदी के संन्यासी विद्रोह पर आधारित है और इसने ब्रिटिश राज के खिलाफ भारतीय नागरिकों के राष्ट्रवादी भावना को प्रज्वलित किया.
उनकी अन्य महत्वपूर्ण रचनाओं में “दुर्गेशनंदिनी”, “कपालकुंडला”, और “रजमोहन’s वाइफ” शामिल हैं. उनके उपन्यासों में ऐतिहासिक और सामाजिक विषयों का संग्रह है जो उस समय के भारतीय समाज की जटिलताओं और विविधताओं को दर्शाते हैं.
बंकिम चंद्र ने न केवल उपन्यास लिखे, बल्कि उन्होंने कविता, निबंध और विचारपरक लेख भी लिखे. उन्होंने “बंगदर्शन” नामक एक महत्वपूर्ण पत्रिका का संपादन भी किया, जिसमें उस समय के विचारशील लेख, उपन्यास, और कविताएँ प्रकाशित होती थीं.
बंकिम चंद्र का साहित्य उनकी गहरी देशभक्ति, सामाजिक जागरूकता और मानवीय मूल्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है. उनका काम आज भी प्रासंगिक है और नई पीढ़ी के लेखकों और पाठकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है.
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बाल गन्धर्व
बाल गन्धर्व, जिनका वास्तविक नाम नारायण श्रीपाद राजहंस था, भारतीय मराठी रंगमंच के एक प्रसिद्ध अभिनेता और गायक थे. उनका जन्म 26 जून 1888 को पुणे, महाराष्ट्र में हुआ था और उनका निधन 15 जुलाई 1967 को हुआ. बाल गन्धर्व का नाम मराठी नाट्य संगीत और रंगमंच में विशेष स्थान रखता है.
बाल गन्धर्व अपने समय के सबसे प्रसिद्ध गायक-अभिनेता थे और मराठी संगीत नाटक (संगीत नाटक) के लिए उन्होंने अनेकों महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनकी गायकी और अभिनय ने मराठी रंगमंच को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया.
बाल गन्धर्व उस समय के प्रसिद्ध पुरुष कलाकारों में से एक थे, जिन्होंने महिला पात्रों का भी अभिनय किया. यह उस समय की परंपरा थी कि महिला पात्रों की भूमिका पुरुष कलाकार निभाते थे. उनके द्वारा निभाए गए महिला पात्रों को बहुत सराहा गया. बाल गन्धर्व ने कई प्रसिद्ध नाटकों में काम किया.
नाटक: – संगीत शारदा, संगीत मानापमान, संगीत सौभद्र, संगीत एकच प्याला एवं संगीत मदालसा.
बाल गन्धर्व को उनके मधुर और भावपूर्ण गायन के लिए जाना जाता था. उनकी गायकी में जोश और जज्बा था, जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देता था. बाल गन्धर्व को उनकी अद्वितीय कला और योगदान के लिए कई सम्मान और पुरस्कार मिले. उन्हें ‘गन्धर्व’ की उपाधि से नवाजा गया, जो उनके नाम का हिस्सा बन गई.
बाल गन्धर्व का योगदान मराठी रंगमंच और संगीत में अद्वितीय है. उन्होंने अपने अभिनय और गायकी से भारतीय रंगमंच को समृद्ध किया और उनकी कला आज भी याद की जाती है.
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गायिका और नर्तकी गौहर जान
गौहर जान (1873-1930) भारतीय शास्त्रीय संगीत की पहली रिकॉर्डेड गायिका और नर्तकी थीं. उनका असली नाम एंजेलिना था, लेकिन वे गौहर जान के नाम से प्रसिद्ध हुईं. वे भारत की पहली गायिका थीं जिन्होंने 1902 में ग्रामोफोन रिकॉर्ड पर अपनी आवाज रिकॉर्ड की.
गौहर जान का जन्म 26 जून 1873 को आजमगढ़, उत्तर प्रदेश में हुआ था. उनका परिवार आर्मेनियाई था और उनकी माता विक्टोरिया हेमिंग्सन, जो बाद में मलका जान के नाम से प्रसिद्ध हुईं, खुद भी एक नर्तकी और गायिका थीं. गौहर जान ने संगीत और नृत्य की शिक्षा अपनी माँ से प्राप्त की और बाद में कई प्रसिद्ध उस्तादों से भी संगीत सीखा.
गौहर जान ने 1902 में कोलकाता में ग्रामोफोन कंपनी के साथ अपना पहला रिकॉर्डिंग किया. यह रिकॉर्डिंग भारतीय संगीत इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी. उन्होंने ठुमरी, दादरा, कजरी, चैती, और भजन जैसी विभिन्न शैलियों में अपनी कला का प्रदर्शन किया. गौहर जान ने पूरे भारत में प्रदर्शन किया और कई महत्वपूर्ण दरबारों में अपनी कला का प्रदर्शन किया.
गौहर जान भारत की पहली रिकॉर्डेड गायिका थीं, जिन्होंने ग्रामोफोन पर अपनी आवाज रिकॉर्ड की. उनका प्रसिद्ध उद्घोषणा, “माय नेम इज़ गौहर जान,” उनके हर रिकॉर्ड के अंत में होता था. उनकी ख्याति इतनी अधिक थी कि उन्हें “कोलकाता की तारा” कहा जाता था. गौहर जान का गायन और नृत्य दोनों ही उच्च कोटि के थे. उन्होंने अपने समय के प्रमुख संगीतकारों और कलाकारों के साथ काम किया और अपनी शैली को एक नए मुकाम पर पहुंचाया.
गौहर जान का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था, लेकिन उन्होंने अपनी कला के माध्यम से अपनी पहचान बनाई. उनका निधन 17 जनवरी 1930 को मैसूर में हुआ था. गौहर जान की कला और उनका योगदान भारतीय शास्त्रीय संगीत के इतिहास में अमूल्य है. उन्होंने भारतीय संगीत को एक नया आयाम दिया और अपनी अनूठी प्रतिभा के माध्यम से अनेकों कलाकारों को प्रेरित किया.
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राजनीतिज्ञ एस. मल्लिकार्जुनैय्या
एस. मल्लिकार्जुनैय्या (सिद्धानंजप्पा मल्लिकार्जुनैय्या) (1931-2014) एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सदस्य के रूप में कर्नाटक के तुमकुर निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. उनका जन्म 26 जून 1931 को तुमकुर, कर्नाटक में हुआ था और उनका निधन 13 मार्च 2014 को हुआ.
मल्लिकार्जुनैय्या ने तीन बार (1991, 1998, 2004) तुमकुर से लोकसभा सदस्य के रूप में सेवा की. उन्होंने 1977, 1980, 1996, और 1999 में भी चुनाव लड़ा, लेकिन वे चुनाव नहीं जीत सके.
वर्ष 1991 – 96 तक, उन्होंने 10वीं लोकसभा के उपाध्यक्ष के रूप में सेवा की, जो एक महत्वपूर्ण भूमिका थी. वर्ष 1971 से 1991 तक, उन्होंने कर्नाटक विधान परिषद में तुमकुर का प्रतिनिधित्व किया और 1985 – 90 तक इसके उपाध्यक्ष भी रहे.
मल्लिकार्जुनैय्या का जन्म और निधन दोनों ही तुमकुर में हुए. उनकी पत्नी का नाम जयदेवम्मा था और उनके एक पुत्र और दो पुत्रियाँ थीं.
मल्लिकार्जुनैय्या का योगदान भारतीय राजनीति में विशेष रूप से कर्नाटक की राजनीति में महत्वपूर्ण रहा है. उन्होंने अपने लंबे राजनीतिक कैरियर के दौरान कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया और भारतीय जनता पार्टी को मजबूत करने में मदद की.
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वैज्ञानिक गोवर्धन मेहता
गोवर्धन मेहता एक भारतीय वैज्ञानिक हैं, जिनका योगदान रसायन विज्ञान और शिक्षण में अत्यंत महत्वपूर्ण है. उनका जन्म 26 जून 1943 को गुजरात में हुआ था. उन्होंने रसायन विज्ञान में अपनी शिक्षा पूरी की और कई प्रमुख वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थानों में कार्य किया है.
गोवर्धन मेहता ने अपनी पीएचडी की डिग्री पैनjab विश्वविद्यालय से प्राप्त की. गोवर्धन मेहता ने कई प्रतिष्ठित संस्थानों में अध्यापन और शोध कार्य किया है, जिनमें इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc), बैंगलोर शामिल है. उनका मुख्य शोध क्षेत्र ऑर्गेनिक केमिस्ट्री है, विशेष रूप से कार्बोकेटायन्स और कार्बीनियंस का अध्ययन.
गोवर्धन मेहता ने कई शोध पत्र प्रकाशित किए हैं और उनके कार्य को व्यापक रूप से सराहा गया है. उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार और पद्म श्री शामिल हैं.
गोवर्धन मेहता ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc), बैंगलोर में निदेशक के रूप में भी कार्य किया है. उन्होंने कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक समितियों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है.
भारत सरकार द्वारा 2001 में गोवर्धन मेहता को पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया. वे रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री (यूके) के फेलो और अन्य कई प्रतिष्ठित वैज्ञानिक संस्थाओं के सदस्य हैं.
गोवर्धन मेहता का योगदान विज्ञान के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण है. उन्होंने न केवल रसायन विज्ञान में अनुसंधान को आगे बढ़ाया है, बल्कि युवा वैज्ञानिकों के लिए एक प्रेरणा स्रोत भी बने हैं. उनकी शिक्षा और अनुसंधान के प्रति समर्पण ने उन्हें भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय में एक सम्मानित स्थान दिलाया है.
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मुनि तरुण सागर
मुनि तरुण सागर (1967-2018) एक प्रसिद्ध भारतीय दिगंबर जैन संत थे, जिन्होंने अपने स्पष्ट और निर्भीक प्रवचनों के लिए ख्याति प्राप्त की. उनका जन्म 26 जून 1967 को मध्य प्रदेश के दमोह जिले के गुहजी गाँव में हुआ था. उनका असली नाम पवन कुमार जैन था.20 साल की उम्र में उन्होंने जैन मुनि दीक्षा ग्रहण की और मुनि तरुण सागर के नाम से जाने जाने लगे.
मुनि तरुण सागर अपने “कड़वे प्रवचन” के लिए प्रसिद्ध थे, जिनमें वे समाज के विभिन्न मुद्दों पर बेबाकी से बात करते थे. उनके प्रवचनों का मुख्य उद्देश्य समाज में व्याप्त बुराइयों को उजागर करना और लोगों को नैतिकता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना था. उन्होंने कई पुस्तकों की रचना की, जिनमें उनके प्रवचनों का संकलन होता था. उनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तक “कड़वे प्रवचन” है, जो समाज के विभिन्न पहलुओं पर उनके विचारों को प्रस्तुत करती है.
मुनि तरुण सागर ने अपने प्रवचनों में सामाजिक मुद्दों जैसे भ्रष्टाचार, अनैतिकता, धार्मिक असहिष्णुता, और पर्यावरण संरक्षण पर जोर दिया. उनके विचारों ने समाज के विभिन्न वर्गों में व्यापक चर्चा और विमर्श को प्रेरित किया. मुनि तरुण सागर ने कई बार राजनीति और धर्म के बीच संतुलन पर अपने विचार प्रस्तुत किए. उन्होंने कई राजनेताओं और सार्वजनिक व्यक्तियों से मुलाकात की और अपने विचार साझा किए.
मुनि तरुण सागर ने दिगंबर जैन परंपरा का पालन किया और नग्नता के सिद्धांत का पालन करते हुए तपस्या की. उनका जीवन सरलता और तपस्या का प्रतीक था. उन्होंने विभिन्न सार्वजनिक मंचों पर अपने प्रवचन दिए और उनके विचारों को व्यापक रूप से सराहा गया.
मुनि तरुण सागर का निधन 1 सितंबर 2018 को हुआ. उनका जीवन और उनके द्वारा दिए गए प्रवचन आज भी समाज में नैतिकता और धर्म के प्रति जागरूकता फैलाने का कार्य कर रहे हैं.
मुनि तरुण सागर का जीवन और उनका योगदान न केवल जैन समुदाय के लिए बल्कि सम्पूर्ण भारतीय समाज के लिए प्रेरणास्पद है. उनके विचार और शिक्षाएं आज भी लोगों को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं.
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अभिनेत्री सोना नायर
सोना नायर एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जो मुख्य रूप से मलयालम फिल्मों और टेलीविजन धारावाहिकों में अपने काम के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत मलयालम सिनेमा से की और धीरे-धीरे अन्य दक्षिण भारतीय भाषाओं में भी अपनी पहचान बनाई.
सोना नायर ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत 1996 में मलयालम फिल्म ‘थेरेप्पू’ से की थी. उन्होंने मलयालम टेलीविजन धारावाहिकों में भी महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाई हैं, जैसे ‘अनियाथिप्रावु’, ‘आग्निसाक्षी’, और ‘मनसापुतरी’.
फिल्में: सोना नायर ने कई महत्वपूर्ण मलयालम फिल्मों में अभिनय किया है, जिनमें ‘परवाहम’ (2003), ‘चिंता विश्वास वंशम’ (2008), और ‘कडुपोखना’ (2012) शामिल हैं. उन्होंने तमिल और तेलुगु फिल्मों में भी काम किया है, जिससे उन्होंने एक बहुभाषी अभिनेत्री के रूप में अपनी पहचान बनाई. अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए सोना नायर को कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें केरल राज्य फिल्म पुरस्कार और एशियानेट टेलीविजन अवार्ड्स शामिल हैं.
सोना नायर का जन्म और पालन-पोषण केरल में हुआ है. उन्होंने अपनी शिक्षा भी वहीं पूरी की. सोना नायर की अभिनय प्रतिभा और विविधता ने उन्हें मलयालम सिनेमा और टेलीविजन के प्रमुख अभिनेत्रियों में से एक बना दिया है. उनकी मेहनत और समर्पण ने उन्हें एक स्थायी स्थान दिलाया है.
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अभिनेता अर्जुन कपूर
अर्जुन कपूर एक भारतीय अभिनेता हैं जो मुख्य रूप से हिंदी सिनेमा में काम करते हैं. उनका जन्म 26 जून 1985 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. वे प्रसिद्ध फिल्म निर्माता बोनी कपूर और मोना शौरी कपूर के पुत्र हैं. अर्जुन कपूर ने अपनी फिल्मी कैरियर की शुरुआत 2012 में की थी और तब से उन्होंने कई सफल फिल्मों में अभिनय किया है.
अर्जुन कपूर का संबंध बॉलीवुड के एक प्रतिष्ठित परिवार से है. उनके पिता, बोनी कपूर, एक प्रसिद्ध फिल्म निर्माता हैं, और उनके चाचा अनिल कपूर और संजय कपूर भी फिल्म उद्योग के प्रमुख अभिनेता हैं. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के आर्य विद्या मंदिर स्कूल से पूरी की. बाद में उन्होंने बॉम्बे स्कॉटिश स्कूल, महिम से पढ़ाई की, लेकिन उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी. अर्जुन कपूर ने 2012 में फिल्म ‘इशकजादे’ से अपने कैरियर की शुरुआत की, जिसमें उनकी भूमिका की काफी प्रशंसा हुई.
प्रमुख फिल्में: –
‘गुंडे’ (2014): – रणवीर सिंह के साथ इस फिल्म में उनके प्रदर्शन को सराहा गया.
‘2 स्टेट्स’ (2014): – चेतन भगत के उपन्यास पर आधारित इस फिल्म में अर्जुन ने प्रमुख भूमिका निभाई.
‘की एंड का’ (2016): – करीना कपूर के साथ इस फिल्म में उनके अभिनय की तारीफ हुई.
‘मुबारकां’ (2017): – इस कॉमेडी फिल्म में उन्होंने दोहरी भूमिका निभाई.
अर्जुन कपूर ने टेलीविजन शो ‘खतरों के खिलाड़ी’ के सातवें सीजन की मेजबानी भी की है. उन्होंने कई सामाजिक कार्यों में भी हिस्सा लिया है और विभिन्न चैरिटी कार्यक्रमों में सहयोग किया है.
अर्जुन कपूर का कैरियर व्यक्तिगत और पेशेवर दोनों मोर्चों पर चुनौतीपूर्ण रहा है. उनकी माँ मोना शौरी कपूर का 2012 में निधन हो गया, जो उनके लिए एक बड़ा झटका था. इसके बावजूद, अर्जुन ने अपनी मेहनत और लगन से बॉलीवुड में अपनी पहचान बनाई है.
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फ़िल्म निर्माता यश जौहर
यश जौहर (1929-2004) भारतीय फिल्म उद्योग के एक निर्माता थे, जो धर्मा प्रोडक्शंस के संस्थापक थे. उनका योगदान भारतीय सिनेमा में अत्यंत महत्वपूर्ण है और उन्होंने कई सफल और प्रतिष्ठित फिल्मों का निर्माण किया है.
यश जौहर का जन्म 6 सितंबर 1929 को लाहौर, ब्रिटिश इंडिया (अब पाकिस्तान) में हुआ था. फिल्म निर्माण में आने से पहले, यश जौहर ने एक फोटोग्राफर के रूप में अपना कैरियर शुरू किया था और बाद में मुंबई आकर फिल्म उद्योग में काम करना शुरू किया. वर्ष 1976 में, यश जौहर ने धर्मा प्रोडक्शंस की स्थापना की. इस प्रोडक्शन हाउस ने भारतीय सिनेमा में कई महत्वपूर्ण और सफल फिल्में दी हैं.
प्रमुख फिल्में: –
‘दोस्ताना’ (1980): – यह धर्मा प्रोडक्शंस की पहली फिल्म थी, जिसमें अमिताभ बच्चन और शत्रुघ्न सिन्हा ने मुख्य भूमिकाएँ निभाई.
‘अग्निपथ’ (1990): – अमिताभ बच्चन अभिनीत इस फिल्म को आज भी एक क्लासिक माना जाता है.
‘कुछ कुछ होता है’ (1998): – करण जौहर द्वारा निर्देशित इस फिल्म ने भारतीय सिनेमा में नया मील का पत्थर स्थापित किया और कई पुरस्कार जीते.
‘कभी खुशी कभी गम’ (2001): – यह फिल्म भी करण जौहर द्वारा निर्देशित थी और इसे बहुत बड़ी सफलता मिली.
यश जौहर के पुत्र करण जौहर एक प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक, निर्माता और टेलीविजन व्यक्तित्व हैं. करण ने अपने पिता की विरासत को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाया है. यश जौहर का निधन 26 जून 2004 को कैंसर के कारण हुआ था.
यश जौहर ने अपने जीवनकाल में भारतीय सिनेमा को समृद्ध किया और उनकी बनाई हुई फिल्में आज भी दर्शकों के बीच लोकप्रिय हैं. उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा और धर्मा प्रोडक्शंस के माध्यम से उनकी विरासत जीवित है.