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समय के साथ बढ़ती दूरी…

समय के साथ बढ़ती दूरी एक ऐसा विषय है जो आधुनिक जीवनशैली, तकनीकी प्रगति, और सामाजिक परिवर्तन से जुड़ा हुआ है. इस दूरी का अर्थ केवल भौतिक दूरी नहीं है, बल्कि भावनात्मक, मानसिक, और सामाजिक दूरी भी है जो रिश्तों, परिवारों, और समुदायों में महसूस की जा रही है. आधुनिक समय में व्यस्त जीवनशैली, डिजिटल कनेक्टिविटी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के चलते यह दूरी बढ़ रही है.

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में संयुक्त परिवारों का स्थान न्यूक्लियर परिवारों ने ले लिया है. रोजगार के अवसरों के चलते लोग अलग-अलग शहरों में बस रहे हैं, जिससे परिवार में एकता और निकटता कम हो रही है. पारिवारिक सदस्य काम में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि वे एक-दूसरे के साथ समय नहीं बिता पाते, जिससे पारिवारिक रिश्तों में भावनात्मक दूरी आ जाती है. वहीं , त्योहारों और विशेष अवसरों पर भी डिजिटल माध्यमों से ही संपर्क किया जाता है, जो भले ही सुविधा देता है, लेकिन भावनात्मक जुड़ाव में कमी महसूस होती है.

सोशल मीडिया और ऑनलाइन कनेक्टिविटी ने लोगों को दूर से जुड़े रहने का अवसर दिया है, लेकिन इसके कारण लोग पास के लोगों से कटते जा रहे हैं. ऑनलाइन माध्यमों पर ज्यादा समय बिताने के कारण रिश्तों में सतहीपन बढ़ता जा रहा है और गहराई कम होती जा रही है. आजकल रिश्तों में स्वतंत्रता और व्यक्तिगत प्राथमिकताओं को ज्यादा महत्व दिया जा रहा है, जिससे कई बार आपसी समझ और सहयोग में कमी महसूस होती है. इससे रिश्तों में स्थिरता और निकटता घटती जा रही है.

आज की पीढ़ी और उसके माता-पिता के बीच सोच और जीवनशैली में बड़ा अंतर है. बच्चे नई तकनीक, विचारधारा और स्वतंत्रता को अपनाते हैं, जबकि माता-पिता पुराने मूल्यों को संजोए रखना चाहते हैं. इससे दोनों के बीच विचारों में टकराव और भावनात्मक दूरी बढ़ रही है.माता-पिता अपने करियर और जिम्मेदारियों में इतने व्यस्त रहते हैं कि बच्चों के साथ पर्याप्त समय नहीं बिता पाते। इसी कारण बच्चे अकेलापन महसूस करते हैं और अपने विचार, भावनाएँ माता-पिता से साझा नहीं कर पाते।

अब दोस्तों के साथ मिलने-जुलने और बातचीत करने की जगह ऑनलाइन चैट्स और वीडियो कॉल्स ने ले ली है. इस डिजिटल माध्यम के कारण सामाजिक जुड़ाव की कमी हो रही है, और रिश्तों में वह अपनापन नहीं रहता जो पहले होता था. सामाजिक आयोजन, सामूहिक मिलन और पड़ोसियों के साथ बातचीत का समय अब लोगों के पास नहीं होता, जिससे समाज में लोग अलग-थलग और अजनबी जैसे महसूस करने लगे हैं.

आधुनिक जीवनशैली में लोग अधिक प्रतिस्पर्धा और दबाव का सामना कर रहे हैं. व्यस्तता, तनाव, और अकेलेपन के कारण लोग अपने आस-पास के लोगों से मानसिक और भावनात्मक रूप से दूर होते जा रहे हैं. मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारण लोग अपने दुख, चिंताओं, और भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाते, जिससे उनके आस-पास के लोग उनसे भावनात्मक रूप से कटने लगते हैं.

बढ़ती दूरी का मुख्य कारण है आधुनिक जीवनशैली, तकनीकी प्रगति, और व्यक्तिगत प्राथमिकताओं में बदलाव। लोग अपने कैरियर, व्यक्तित्व निर्माण, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता में इतना व्यस्त हो गए हैं कि वे अपने आस-पास के लोगों को समय नहीं दे पाते. इस दूरी को कम करने के लिए सबसे पहला कदम है परिवार, दोस्तों, और प्रियजनों के साथ समय बिताना और उनकी भावनाओं को समझना. डिजिटल माध्यमों का इस्तेमाल सीमित करना और वास्तविक जीवन में सामाजिक मेल-जोल को बढ़ावा देना आवश्यक है.

परिवार और रिश्तों में बातचीत को बढ़ावा दें. खुलकर अपने विचार और भावनाओं को साझा करें, जिससे आपसी समझ और जुड़ाव बना रहे. अपनों के साथ समय बिताने को प्राथमिकता दें, चाहे वह भोजन के समय हो, छुट्टियों में हो, या फिर सप्ताहांत पर. यह समय रिश्तों में निकटता और आत्मीयता को बढ़ाता है. अपनों के प्रति संवेदनशील बनें और उनके विचारों और इच्छाओं को समझें। इससे रिश्तों में सामंजस्य बढ़ेगा और भावनात्मक दूरी कम होगी.

सामाजिक आयोजनों में शामिल होकर समाज के अन्य लोगों के साथ जुड़ने का प्रयास करें. सामूहिक गतिविधियों में भाग लेकर सामाजिक दूरी को कम किया जा सकता है. डिजिटल डिटॉक्स: समय-समय पर डिजिटल माध्यमों से दूर रहें और अपने परिवार और दोस्तों के साथ वास्तविक दुनिया में समय बिताएँ.

समय के साथ बढ़ती दूरी समाज के हर क्षेत्र में महसूस की जा रही है, लेकिन इसके समाधान भी हमारे पास हैं. भावनात्मक जुड़ाव, आपसी समझ, और अपने प्रियजनों के साथ समय बिताने के माध्यम से हम इस दूरी को कम कर सकते हैं. व्यक्तिगत और सामाजिक संतुलन बनाए रखने के लिए जरूरी है कि हम आधुनिक जीवनशैली को अपनाते हुए भी अपनी जड़ों से जुड़े रहें.

खो रहा है अपनापन, बढ़ रहीं है दिखावा,

बढ़ने अब लगा है दिखाबे की इन बुरी आदतों से,

हर रिश्ता अब बिखरने लगा है….

इस दूरसंचार की दुनियां में,

इंटरनेट, गूगल एवं मोबाइलों से,

हो रहें हैं अपने ही अपनों से दूर,

दिलों में फासला अब गहराने लगा है.

 

डॉ. (प्रो.) अमरेंद्र कुमार और अंजनी भास्कर.

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