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श्रीकृष्ण का महीना “भादों”

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, साल के छठे महीने को भाद्रपद या भादों महीना कहा जाता है, जो श्रावण महीने के बाद और आश्विन महीने से पहले आता है. भादों महीना वर्षा ऋतु के अंत का संकेत देता है और इस समय मानसून का प्रभाव अपने अंतिम चरण में होता है. चूंकि सावन भगवान भोलेनाथ का महीना है, इसलिए भादों भगवान कृष्ण का महीना माना जाता है. इस महीने में लगभग सभी लोग श्री कृष्ण के जन्म को जन्माष्टमी के त्योहार के रूप में मनाते हैं. इस साल भादों महीना 20 अगस्त से 18 सितंबर तक रहेगा.

भादों भगवान कृष्ण के प्रकटोत्सव का महीना भी है, इस दिन भगवान विष्णु के 8वें अवतार के रूप में श्री कृष्ण का जन्म भादों महीने के कृष्ण पक्ष में रोहिणी नक्षत्र में हर्षण योग वृषभ लग्न में हुआ था. श्री कृष्ण की पूजा को समर्पित भादों महीना विशेष फलदायी बताया गया है. “भाद” का अर्थ है कल्याण देने वाला और कृष्ण पक्ष का संबंध स्वयं श्री कृष्ण से है. भादों का महीना भी सावन की तरह पवित्र माना जाता है, इस महीने में कुछ खास त्यौहार आते हैं जिनका अपना महत्व होता है.

कजली या कजरी तीज:- भाद्रपद कृष्ण तृतीया को कजली तीज के नाम से भी जाना जाता है. यह 21 अगस्त को शाम 5:06 बजे शुरू होगी। यह 22 अगस्त को दोपहर 1:46 बजे समाप्त होगी. कजरी तीज का व्रत 22 अगस्त गुरुवार को रखा जाएगा.

कजली या कजरी तीज व्रत हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है. इस दौरान महिलाएं व्रत रखती हैं और भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करती हैं. इस दिन महिलाएं “कजरी” नामक पारंपरिक गीत गाती हैं. ये गीत बारिश, प्यार और विरह की भावनाओं का वर्णन करते हैं. कजरी तीज का महत्व इस बात में भी निहित है कि यह पति की लंबी उम्र और खुशहाल जीवन की प्रार्थना करने का दिन है.

जन्माष्टमी:- भाद्रपद माह में आने वाला अगला त्यौहार कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी के नाम से मनाया जाता है. व्रत के इस त्यौहार का उत्तर भारत में विशेष महत्व है. जन्माष्टमी का त्यौहार पूरे भारत में 26 अगस्त, सोमवार को बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है. दिन में व्रत रखकर श्रद्धालु रात में मध्यरात्रि तक विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं और इस दिन के लिए मंदिरों की सजावट हफ्तों पहले से ही शुरू हो जाती है. मथुरा में इस अवसर पर विशेष आयोजन किए जाते हैं, मध्यरात्रि में कृष्ण का जन्म होता है और गोविंद की पूजा के बाद प्रसाद वितरित किया जाता है और उसके बाद श्रद्धालु अपना व्रत खोलते हैं.

अजा एकादशी:- भाद्रपद माह में आने वाला अगला त्यौहार कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी मनाई जाती है। इस वर्ष यह त्यौहार 29 अगस्त (रविवार) को मनाया जाएगा। पद्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत नियमानुसार करता है, उसके लिए मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं और उसे सांसारिक लाभ के साथ-साथ मृत्यु के बाद परलोक में भी आनंद की प्राप्ति होती है.

गणेश चतुर्थी:- भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी कहते हैं. इस दिन भगवान श्री गणेश की पूजा, व्रत और आराधना का शुभ कार्य किया जाता है. पूरे दिन व्रत रखने के बाद श्री गणेश को लड्डू का भोग लगाया जाता है. प्राचीन काल में इस दिन लड्डूओं की वर्षा की जाती थी, जिसे लोग प्रसाद के रूप में लूटकर खाते थे. इस दिन गणेश मंदिरों में विशेष धूम रहती है, गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए, इस दिन व्रत रखने वाले उपासकों को विशेष रूप से इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए, अन्यथा व्रत का पुण्य प्राप्त नहीं होता है. इस वर्ष गणेश चतुर्थी का पर्व 07 सितंबर (शनिवार) को मनाया जाएगा.

देवझूलनी या पद्मा या परिवर्तनी एकादशी:- देवझूलनी एकादशी भाद्रपद, शुक्ल पक्ष, एकादशी तिथि, उत्तराषाढ नक्षत्र में मनाई जाती है. देवझूलनी एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा, व्रत और प्रार्थना का विधान है. देवझूलनी एकादशी को पद्मा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की पत्थर की मूर्ति या चित्र को पालकी में रखकर जलाशय में स्नान करना शुभ माना जाता है. इस पर्व में नगरवासी पालकी के पीछे विष्णु गीत गाते हुए चलते हैं और इस पर्व में भाग लेने वाले सभी लोग इस दिन व्रत रखते हैं. इस वर्ष पद्मा एकादशी का पर्व 14 सितंबर, शनिवार को देवझूलनी एकादशी के दिन मनाया जाएगा.

अनंत चतुर्दशी:- भाद्रपद माह में आने वाले पर्वों की श्रृंखला में अगला पर्व अनंत चतुर्दशी के नाम से प्रसिद्ध है. यह 17 सितंबर, मंगलवार को मनाया जाएगा. यह व्रत पर्व इस वर्ष भाद्रपद चतुर्दशी तिथि, शुक्ल पक्ष और पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में मनाया जाएगा. इस पर्व में दिन में एक बार भोजन किया जाता है और यह पर्व भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप पर आधारित है. इस दिन “ॐ अनंताय नमः” का जाप करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं.

विश्वकर्मा पूजा: – भाद्रपद माह में आने वाले पर्वों की श्रृंखला में अगला पर्व विश्वकर्मा पूजा के नाम से प्रसिद्ध है. यह 17 सितंबर, मंगलवार को मनाया जाएगा.

पौराणिक धर्म ग्रन्थों के अनुसार ब्रह्मा जी के पुत्र धर्म के सातवे संतान जिनका नाम वास्तु था और वो शिल्पकार थे. वास्तु के पुत्र का नाम विश्वकर्मा था जो पिता की भांति शिल्पकार थे. ऋग्वेद में विश्वकर्मा सूक्त नाम से 11ऋचाएं लिखी गई हैं यही, सूक्त यजुर्वेद में 17 सूक्त मन्त्र 16 से 31 तक करीब 16 मन्त्र आया है. स्कन्द पुराण में एक श्लोक मिलता है जो उपर लिखा है. इस श्लोक का अर्थ है कि, महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र की बहन भुवना जो ब्रह्मविद्या की जानकार थी. जो अष्टम वसु महर्षि प्रभास की पत्नी बनी और उससे सम्पूर्ण शिल्प विद्या के ज्ञाता प्रजापति विश्वकर्मा का जन्म हुआ.

बिहार के औरंगबाद स्थित देव सूर्य मंदिर व देवघर स्थित वैद्यनाथ मंदिर का भी निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने किया था. भारतीय संस्कृति के अंतर्गत भी शिल्प संकायो, कारखानों, उद्योगों में भगवान विश्वकर्मा की पूजा- अराधना 17 सितम्बर को हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं.

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