Dharm

सुन्दरकाण्ड-16-2.

विभीषण का भगवान् श्रीरामजी की शरण के लिए प्रस्थान और शरण प्राप्ति-02.

दोहा: –

सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि।

ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि ।।

श्लोक का अर्थ बताते हुए महाराजजी कहते है कि, श्रीरामचंद्रजी जो मनुष्य अपने अहित का अनुमान करके शरण में आए हुए का त्याग कर रहे है, वे क्षुद्र है, पापमय है, उन्हे देखने में भी हानि है या यूँ कहें कि पाप लगता है.

चौपाई: –  

कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू। आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू।।

सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं ।।

श्लोक का अर्थ बताते हुए महाराजजी कहते है कि, जिसे करोड़ो ब्राह्मणो की हत्या लगी हो, शरण में  आने पर मै उसे भी नही त्यागता. जीव ज्यों ही मेरे सम्मुख होता है, त्यों ही उसको करोड़ो जन्मो के पाप नष्ट हो जाते है.

पापवंत कर सहज सुभाऊ। भजनु मोर तेहि भाव न काऊ।।

जौं पै दुष्टहदय सोइ होई। मोरें सनमुख आव कि सोई ।।

श्लोक का अर्थ बताते हुए महाराजजी कहते है कि, पापी का यह सहज स्वभाव होता है कि मेरा भजन उसे कभी नही सुहाता. यदि वह रावण का भाई निश्चय ही दुष्ट हृदय का होता तो क्या वह मेरे सम्मुख आ सकता था?

निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा।।

भेद लेन पठवा दससीसा। तबहुँ न कछु भय हानि कपीसा  ।।

श्लोक का अर्थ बताते हुए महाराजजी कहते है कि, जो मनुष्य निर्मल मन का होता है, वही मुझे पाता है. मुझे कपट और छल-छिद्र नही सुहाते. यदि उसे रावण ने भेद लेने को भेजा है, तब भी हे सुग्रीव. अपने को कुछ भी भय या हानि नही है.

जग महुँ सखा निसाचर जेते। लछिमनु हनइ निमिष महुँ तेते।।

जौं सभीत आवा सरनाई। रखिहउँ ताहि प्रान की नाई ।।

श्लोक का अर्थ बताते हुए महाराजजी कहते है कि, क्योकि हे सखे ! जगत में जितने भी राक्षस है, लक्ष्मण क्षणभर में उन सबको मार सकते है और यदि वह भयभीत होकर मेरी शरण आया है तो मैं तो उसे प्राणो की तरह रखूँगा.

वालव्यास सुमनजी महाराज

महात्मा भवन,श्रीरामजानकी मंदिर

राम कोट, अयोध्या. 8709142129.

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Vibheeshan Ka Bhagavan ShriRama ji ki Sharan ke liye Prasthan Aur Sharan Prapti-01.

Doha: –

Saranaagat Kahun Je TajahinNij Anahit Sikhi

Te Nar Pavan Papamay Tinhahi Bilokat Hani।।

Explaining the meaning of the verse, Maharajji says that Shri Ramchandraji, the person who is abandoning the one who has come to seek refuge by anticipating his own harm, is petty, sinful, there is harm in even looking at him or in other words, it feels like a sin.

Choupai: –

Koti Bipr badh LaaghahinJaahooAayen Saran Tajaun NahinTaahoo।।

Sanamukh Hoi Jeev Mohi JabhahinJanm Koti Agh Naashin Tabahin।।

Explaining the meaning of the verse, Maharajji says that I do not abandon even the one who is accused of killing crores of Brahmins when he comes to me for refuge. As soon as a living being comes in front of me, his sins of millions of births are destroyed.

Paapavant Kar Sahaj SubhaooBhajanu Mor Tehi Bhaav Na Kaoo।।

Jaun Pai Dushtahaday Soi HoiMoren Sanamukh Aav Ki Soee ।।

Explaining the meaning of the verse, Maharajji says that it is the natural nature of a sinner that my bhajan never suits him. If Ravana’s brother was evil at heart, could he have come before me?

Nirmal Man Jan So Mohi PaavaMohi Kapat Chhal Chhidr Na Bhaava।।

Bhed Len Pathava DasaseesaTabahun Na Kachhu Bhay Haani Kapeesa ।।

Explaining the meaning of the verse, Maharajji says that only the person who has a pure mind finds me. I don’t like fraud and deceit. Even if Ravana has sent him to spy, still O Sugriva. There is no fear or harm to oneself.

Jag Mahun Sakha Nisaachar JeteLachhimanu Hani Nimish Mahun Tete।।

Jaun Sabheet Aava SaranaeeRakhihun Taahi Praan Kee Naee ।।

Explaining the meaning of the verse, Maharajji says that, O friend! Lakshman can kill all the demons in the world in a moment and if he comes to me in fear then I will protect him as if I were alive.

Valvyas Sumanji Maharaj,

Mahatma Bhavan,

Shri Ram-Janaki Temple,

Ram Kot, Ayodhya. 8709142129.

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