चौपाई :-
चलत मोहि चूड़ामनि दीन्ही। रघुपति हृदयँ लाइ सोइ लीन्ही।।
नाथ जुगल लोचन भरि बारी। बचन कहे कछु जनककुमारी ।।
वाल्व्याससुमनजीमहाराज श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, चलते समय उन्होने मुझे चूड़ामणि उतारकर दी. श्रीरघुनाथजी ने उसे लेकर हृदय से लगा लिया. हनुमानजी ने फिर कहा, हे अनुज समेत गहेहु प्रभु चरना। दीन बंधु प्रनतारति हरना।।
अनुज समेत गहेहु प्रभु चरना। दीन बंधु प्रनतारति हरना।।
मन क्रम बचन चरन अनुरागी। केहि अपराध नाथ हौं त्यागी।।
श्लोक का अर्थ बताते हुए महाराजजी कहते है कि, छोटे भाई समेत प्रभु के चरण पकड़ना और कहना कि आप दीनबंधु है, शरणागत के दुःखो को हरने वाले है और मै मन, वचन और कर्म से आपके चरणो की अनुरागिणी हूँ. फिर स्वामी आप ने मुझे किस अपराध से त्याग दिया?
अवगुन एक मोर मैं माना। बिछुरत प्रान न कीन्ह पयाना।।
नाथ सो नयनन्हि को अपराधा। निसरत प्रान करिहिं हठि बाधा।।
श्लोक का अर्थ बताते हुए महाराजजी कहते है कि, हाँ एक दोष मै अपना अवश्य मानती हूँ कि आपका वियोग होते ही मेरे प्राण नही चले गए, किंतु हे नाथ ! यह तो नेत्रो का अपराध है जो प्राणो के निकलने मे हठपूर्वक बाधा देते है.
बिरह अगिनि तनु तूल समीरा। स्वास जरइ छन माहिं सरीरा।।
नयन स्त्रवहि जलु निज हित लागी। जरैं न पाव देह बिरहागी ।।
श्लोक का अर्थ बताते हुए महाराजजी कहते है कि, विरह अग्नि है, शरीर रूई है और श्र्वास पवन है, इस प्रकार अग्नि और पवन का संयोग होने से यह शरीर क्षणमात्र मे जल सकता है, परन्तु नेत्र अपने हित के लिए प्रभु का स्वरूप देखकर सुखी होने के लिए जल ( आँसू ) बरसाते है, जिससे विरह की आग से भी देह जल नही पाती.
सीता के अति बिपति बिसाला। बिनहिं कहें भलि दीनदयाला।।
श्लोक का अर्थ बताते हुए महाराजजी कहते है कि, सीता जी विपत्ति बहुत बड़ी है. हे दीनदयालु ! वह बिना कही रही अच्छी है कहने से आपको बड़ा क्लेश होगा.
दोहा :-
निमिष निमिष करुनानिधि जाहिं कलप सम बीति।
बेगि चलिय प्रभु आनिअ भुज बल खल दल जीति ।।
श्लोक का अर्थ बताते हुए महाराजजी कहते है कि, हे करूणानिधान ! उनका एक-एक पल कल्प के समान बीतता है. अतः हे प्रभु ! तुरन्त चलिए और अपनी भुजाओ के बल से दुष्टो के दल को जीतकर सीता जी को ले आइए.
वालव्याससुमनजीमहाराज,
महात्मा भवन,
श्रीरामजानकी मंदिर,
राम कोट, अयोध्या.
Mob: – 8709142129.
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…Samundr Ke Is Paar Aana, Sabaka Lautana, Madhuvan Pravesh-3…
Choupai:-
Chalat Mohi Choodaamani Deenhee। Raghupati Hrdayan Lai Soi Leenhee।।
Naath Jugal Lochan Bhari Baaree। Bachan Kahe Kachhu Janakakumaaree ।।
Explaining the meaning of the verse, Valvyassumanji Maharaj says that, while walking, he took off the bangle and gave it to me. Shri Raghunathji took him and hugged him. Hanumanji again said, Anuj samet gahehu prabhu charana. deen bandhu pranataarati harana।।
Anuj Samet Gahehu Prabhu Charana। Deen Bandhu Pranataarati Harana।।
Man Kram Bachan Charan Anuraagee। kehi Aparaadh Naath Haun Tyaagee।।
Explaining the meaning of the verse, Maharaj ji says that holding the feet of the Lord along with the younger brother and saying that you are the friend of the poor, you are going to remove the sorrows of the surrendered and I am the follower of your feet with mind, words, and deeds. Then Swami, for what crime have you abandoned me?
Avagun Ek Mor Main Maana। Bichhurat Praan Na Keenh Payaana।।
Naath So Nayananhi Ko Aparaadha। Nisarat Praan Karihin Hathi Baadha।।
Describing the meaning of the verse, Maharajji says, yes, I definitely consider one fault as mine that I did not die as soon as you were separated, but O Nath! This is the crime of the eyes which stubbornly obstruct the exit of the soul.
Birah Agini Tanu Tul Sameera। Svaas Jari Chhan Maahin Sareera।।
Nayan Stravahi Jalu Nij Hit Laagee। Jarain Na Paav Deh Birahaagee ।।
Describing the meaning of the verse, Maharaj ji says that separation is fire, body is cotton and breath is wind, in this way, due to the combination of fire and wind, this body can burn in just a moment, but the eye is the form of God for its own benefit. They shed water (tears) to be happy seeing it, due to which even the fire of separation does not burn the body.
Seeta Ke Ati Bipati Bisaala। Binahin Kahen Bhali Deenadayaala।।
Explaining the meaning of the verse, Maharaj ji says that Sita ji’s calamity is very big. Oh, merciful! Saying that she is good without saying anything will cause you a lot of trouble.
Doha…
Nimish Nimish Karunaanidhi Jaahin Kalap Sam Beeti।
Begi Chaliy Prabhu Aani bhuj Bal Khal Dal Jeeti ।।
Explaining the meaning of the verse, Maharaj Ji says, O Karunanidhan! His every moment passes like a cycle. That’s why oh Lord! Go immediately and bring Sita ji after winning the group of the wicked with the strength of your arms.
Walvyassumanji Maharaj,
Mahatma Bhawan,
Shriramjanaki Temple,
Ram Kot, Ayodhya.
Mob:- 8709142129