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ज्ञानेंद्र को पहचानो…

वेद ज्ञान उत्तम कूल पाया फिर भी रावण असूर कहलाया…

त्रेता में जाति पाती तो नहीं था, भगवान राम यदि जाति पाती करते तो जटायु गिद्ध का श्राद्ध कर्म करते, वही अपने पिता दशरथ का श्राद्ध नहीं किये, शवरी का जुठा बैर खाना, हनुमान जी को पंचायतन परिवार का सदस्य बनाना, हनुमान जी को भी मुकुट देना यह साबित करता है कि रामराज्य में कहीं उंच नीच, अधम उधम का कोई भेदभाव नही था, “ढोल ग्वार शुद्र पशु, नारी सकल ताड़ना के अधिकारी”, ये पांचो ज्ञान इन्द्रियों के लिए कहा गया है, ढोल कान को कहा गया है, बुराई सुनने में आनंदित होता है, आंख को ग्वार कहा गया है, बिना निमंत्रण के दौर जाता है, शुद्र जीभ को कहा गया है स्वाद के पीछे लपालप करते रहता है, गंध और स्पर्श ये सब को विवेक रुपी डंडा से ताड़ना (कंट्रोल) करना चाहिए, रामचरित् मानस या मनुस्मृति पर लोग सवाल उठाते रहते है, अध्यात्म के नर्सरी पास नही किये और विश्वविद्यालय स्तर का प्रश्न कहा से समझ जायेंगे, लार्ड मैकाले के शिक्षा नीति से पढ़कर भारतीय संस्कृति और सभ्यता समझना, आप के वश की बात नही है. शिक्षा मंत्री जी, शिक्षा और विधा में आसमान और जमीन का अन्तर है, सहज रुप में मनुवाद के वाद ही समाजवाद, साम्यवाद, अधिनायकवाद, मार्क्स वाद, जितने भी वाद है उनका पर्दुभाव हुआ, वर्ण व्यवस्था पर भी लोग सवाल रोज खड़ा करते रहते है,  चारो वर्णों में किसी भी प्रकार का भेद भाव नही था, यदि भेदभाव रहता तो अज्ञात पिता दोर्णाचार्य, कर्ण, दासी पुत्र विदूर, सत्यकाम और जवाल मछोद्रि से वेद व्यास, क्षत्रिय विश्वामित्र सभी अपने अपने कर्म से ब्रहणत्व और क्षत्रित्व को धारण किये वहीं, छुआ छूत था जो चोर थे दस्यु थे, कुकर्म रत थे इनसे आज भी लोग घृणा करते है…..

संजय कुमार सिंह, संस्थापक,

ब्रह्म बाबा सेवा एवं शोध संस्थान निरोगधाम,

 अलावलपुर पटना.

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