क्रान्तिकारी राजा महेन्द्र प्रताप
राजा महेन्द्र प्रताप सिंह एक प्रमुख भारतीय क्रांतिकारी, समाज सुधारक, और शिक्षाविद् थे, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनका जन्म 1 दिसंबर 1886 को अलीगढ़ के पास मुरसान में हुआ था. राजा महेन्द्र प्रताप की पहचान एक राजनीतिक क्रांतिकारी के रूप में होती है, जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए विदेशी धरती पर भी संघर्ष किया.
वर्ष 1915 में उन्होंने अफगानिस्तान में भारतीय स्वतंत्रता के लिए एक अस्थायी सरकार की स्थापना की, जिसे वह खुद राष्ट्रपति के रूप में और महाराजा भूपिंदर सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में चुने गए थे. यह प्रयास अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय स्वाधीनता की मांग को एक नई दिशा प्रदान करने के लिए उल्लेखनीय था.
राजा महेन्द्र प्रताप सिंह ने विश्व यात्रा की और कई देशों में भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्थन मांगा. वे अपने विचारों के लिए विश्वभर में जाने जाते थे और उन्होंने विभिन्न देशों के नेताओं से मुलाकात की थी. राजा महेन्द्र प्रताप की शिक्षा के प्रति भी गहरी रुचि थी. उन्होंने वृंदावन में प्रेम महाविद्यालय की स्थापना की, जिसमें छात्रों को विभिन्न धर्मों और समुदायों की शिक्षा दी जाती थी. उन्होंने अपनी संपत्ति और संसाधनों का उपयोग शिक्षा और समाज सेवा के लिए किया.
राजा महेन्द्र प्रताप सिंह का निधन 29 अप्रैल 1979 को हुआ था. उनकी विरासत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक विशेष स्थान रखती है, और वे अपने दूरदर्शी विचारों और समर्पण के लिए आज भी सम्मानित किए जाते हैं.
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मेजर शैतान सिंह
मेजर शैतान सिंह भारतीय सेना के एक वीर और सम्मानित अधिकारी थे, जिन्हें भारत-चीन युद्ध (1962) के दौरान लद्दाख के चुशूल सेक्टर में रेजांग ला की लड़ाई में असाधारण वीरता और साहस दिखाने के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. यह भारत का सर्वोच्च सैन्य सम्मान है.
शैतान सिंह का जन्म 1 दिसम्बर 1924 को जोधपुर, राजस्थान में हुआ था. इनका पूरा नाम शैतान सिंह भाटी था. उनके पिता हेमसिंह जी भाटी भी सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल थे. शैतान सिंह का परिवार सैन्य पृष्ठभूमि से था, और उन्हें बचपन से ही देशभक्ति और साहस की प्रेरणा मिली. मेजर शैतान सिंह भारतीय सेना की 13वीं कुमाऊं रेजिमेंट में अधिकारी थे. उन्होंने कई सैन्य अभियानों में भाग लिया और अपने नेतृत्व कौशल के लिए प्रसिद्ध थे.
रेजांग ला लद्दाख क्षेत्र में 16,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. इस लड़ाई में 13वीं कुमाऊं रेजिमेंट की “सी” कंपनी ने मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में चीनी सेना के हजारों सैनिकों का मुकाबला किया. उनकी कंपनी में मात्र 120 सैनिक थे. अत्यधिक प्रतिकूल परिस्थितियों (कड़ाके की ठंड और सीमित संसाधन) के बावजूद, उन्होंने अद्भुत साहस और बलिदान का प्रदर्शन किया. शैतान सिंह ने अपने जवानों का हौसला बनाए रखा और घायल होने के बावजूद अंतिम समय तक लड़ाई का नेतृत्व किया. इस लड़ाई में उनकी पूरी टुकड़ी ने वीरगति प्राप्त की, लेकिन भारतीय सैनिकों ने चीनी सेना को भारी नुकसान पहुंचाया.
भारत सरकार ने मेजर शैतान सिंह को उनकी असाधारण वीरता और बलिदान के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया. उनका बलिदान भारतीय सेना और राष्ट्र के लिए प्रेरणा का स्रोत है. मेजर शैतान सिंह भारत के उन सपूतों में से एक हैं, जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी.
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समाज सेविका मेधा पाटकर
मेधा पाटकर एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणविद हैं, जिन्होंने गरीब और वंचित समुदायों के अधिकारों की रक्षा और पर्यावरण के संरक्षण के लिए उल्लेखनीय योगदान दिया है. वह नर्मदा बचाओ आंदोलन (NBA) की मुख्य नेता और राष्ट्रीय जन आंदोलन (NAPM) की सह-संस्थापक हैं. उनके काम का मुख्य उद्देश्य विकास परियोजनाओं के कारण विस्थापित लोगों और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों को उजागर करना और उनके अधिकारों के लिए संघर्ष करना है.
मेधा पाटकर का जन्म 1 दिसम्बर 1954 में मुंबई के एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था. उनके पिता वी.एन. पटकर स्वतंत्रता सेनानी थे और उनकी माता इंदु पटकर एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं. मेधा पाटकर ने समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में पढ़ाई की और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS), मुंबई से मास्टर्स की डिग्री हासिल की. पढ़ाई के बाद उन्होंने गरीब और पिछड़े वर्गों के लिए काम करना शुरू किया।
मेधा पाटकर ने वर्ष 1985 में नर्मदा बचाओ आंदोलन (NBA) की शुरुआत की. यह आंदोलन सरदार सरोवर बांध और अन्य बांध परियोजनाओं के कारण विस्थापित होने वाले हजारों लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए था. आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था बांध निर्माण से प्रभावित आदिवासी और ग्रामीण समुदायों को न्याय दिलाना और उनके पुनर्वास की व्यवस्था सुनिश्चित करना. उन्होंने पर्यावरणीय नुकसान, जैव विविधता के संरक्षण, और मानवाधिकारों की रक्षा पर जोर दिया. इस आंदोलन ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया.
मेधा पाटकर ने झुग्गी-झोपड़ी निवासियों, भूमिहीन किसानों, और शहरी गरीबों के अधिकारों के लिए भी आवाज उठाई. वो औद्योगिकीकरण और अनियोजित विकास की वजह से गरीबों पर पड़ने वाले प्रभावों के खिलाफ लड़ाई में सक्रिय रही हैं. उन्होंने राष्ट्रीय जन आंदोलन (NAPM) की सह-स्थापना की, जो विभिन्न सामाजिक मुद्दों के लिए काम करने वाले आंदोलनों का एक संघ है.
मेधा पाटकर को उनके सामाजिक कार्यों के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं, जिनमें शामिल हैं: –
राइट लाइवलीहुड अवॉर्ड (1991),
गोल्डमैन एनवायरनमेंटल प्राइज (1992),
माहात्मा गांधी पुरस्कार,
मांटे क्रिस्टोफेल पुरस्कार,
अमर्त्य सेन पुरस्कार.
हालांकि मेधा पाटकर का कार्य सराहनीय है, लेकिन उन्हें कभी-कभी विकास विरोधी करार दिया गया है. कुछ लोग यह मानते हैं कि उनके आंदोलनों ने विकास परियोजनाओं में देरी की है.मेधा पाटकर की निस्वार्थ सेवा और दृढ़ संकल्प ने सामाजिक न्याय, मानवाधिकार, और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक मिसाल कायम की है. उनका जीवन संघर्ष और प्रेरणा का प्रतीक है.
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अभिनेता राकेश बेदी
राकेश बेदी एक भारतीय अभिनेता हैं, जो हिंदी सिनेमा और टेलीविजन में अपनी शानदार हास्य भूमिकाओं के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने थिएटर, फिल्मों और धारावाहिकों में अपने बहुमुखी अभिनय से दर्शकों का मनोरंजन किया है.
राकेश बेदी का जन्म 1 दिसंबर 1956 को नई दिल्ली में हुआ था. उनके पिता का नाम गोपाल बेदी है,जो कि इंडियन एयरलाइन्स में कार्यरत थे. बेदी ने अपनी शुरुआती पढ़ाई दिल्ली से की है. उन्होंने अभिनय करने का शौक बचपन से था. पढ़ाई खत्म होने के बाद वह थिएटर से जुड़ गए. राकेश बेदी ने अभिनय की शिक्षा प्राप्त करने के लिए भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (FTII), पुणे में प्रशिक्षण लिया. राकेश बेदी को टेलीविजन पर उनकी हास्य भूमिकाओं के लिए विशेष पहचान मिली.
श्रीमान श्रीमती (1994): – “दिलरुबा” के किरदार ने उन्हें हर घर में लोकप्रिय बना दिया.
यह जो है जिंदगी (1984): – यह धारावाहिक उनके शुरुआती टेलीविजन कैरियर का महत्वपूर्ण पड़ाव था.
भाभी जी घर पर हैं: – उन्होंने इस लोकप्रिय शो में भी भूमिका निभाई.
राकेश बेदी ने 150 से अधिक हिंदी फिल्मों में काम किया है.
फिल्में: –
चश्मे बद्दूर (1981): – उनकी कॉमिक टाइमिंग ने दर्शकों को प्रभावित किया.
एक दूजे के लिए (1981): – इस फिल्म में उनकी सहायक भूमिका सराहनीय थी.
दिल है तुम्हारा (2002): – उन्होंने हल्की-फुल्की हास्य भूमिकाएं निभाईं.
राकेश बेदी एक कुशल रंगकर्मी भी हैं. उनके नाटकों में “मेरा वो मतलब नहीं था” काफी प्रसिद्ध है, जिसमें वह अनुपम खेर और नीना गुप्ता के साथ नजर आए. राकेश बेदी की पहचान उनकी शानदार हास्य संवाद अदायगी और सरल लेकिन प्रभावशाली अभिनय शैली से है. उन्होंने फिल्मों और टेलीविजन के साथ-साथ रेडियो और थिएटर में भी काम किया है.
उन्होंने अपने अभिनय कैरियर में कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त किए हैं. राकेश बेदी का योगदान भारतीय मनोरंजन जगत के लिए अमूल्य है, और वे आज भी दर्शकों को हंसाने और प्रेरित करने का काम कर रहे हैं.
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पार्श्व गायक उदित नारायण
उदित नारायण भारतीय सिनेमा के सबसे लोकप्रिय और सफल पार्श्व गायक हैं. उनकी मधुर और भावपूर्ण आवाज़ ने उन्हें लाखों दिलों का चहेता बना दिया. उन्होंने हिंदी के अलावा कई अन्य भाषाओं में भी गाया है, जिनमें नेपाली, बंगाली, कन्नड़, तेलुगु, तमिल और भोजपुरी शामिल हैं.
उदित नारायण का जन्म 1 दिसंबर 1955 को बिहार के सुपौल जिले के बायस गोठ गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम हरे कृष्ण झा और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी है. उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा नेपाल में ली और संगीत में रुचि होने के कारण आगे की पढ़ाई पटना और बाद में मुंबई में की.
उदित नारयण की पहली शादी रंजना नारयण से हुई थी. लेकिन यह शादी कुछ ही दिन चल सकी. इसके बाद उन्होंने अपनी पहली पत्नी को तलाक देकर नेपाली फोक सिंगर दीपा नारयण से विवाह रचा लिया. उनके एक बेटा भी है-आदित्य नारयण जो कि एक हिंदी सिनेमा में पार्श्व गायक के रूप में सक्रिय है.
उदित नारायण ने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1970 के दशक में की और सबसे पहले नेपाल रेडियो में मैथिली और नेपाली गानों का प्रदर्शन किया. हिंदी सिनेमा में उनकी शुरुआत वर्ष 1980 में फिल्म “उन्नीस-बीस” से हुई, लेकिन असली सफलता उन्हें “कयामत से कयामत तक” (1988) के गाने “पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा” से मिली. उदित नारायण ने वर्ष 1980 – 2000 के दशक के बीच कई ब्लॉकबस्टर गाने गाए.
प्रमुख गाने: –
“मेरे हाथों में नौ-नौ चूड़ियां हैं” (चांदनी),
“पहला नशा” (जो जीता वही सिकंदर),
“तुम पास आए” (कुछ कुछ होता है),
“मीत ना मिला रे मन का” (अभिमन्यु),
“दिल तो पागल है” (दिल तो पागल है).
उनके गानों की खासियत उनकी रोमांटिक और भावनात्मक अभिव्यक्ति थी, जो हर गीत में झलकती है.
उदित नारायण ने अपने कैरियर में कई प्रमुख संगीतकारों और गायक-गायिकाओं के साथ काम किया, जिनमें लता मंगेशकर, आशा भोसले, अलका याज्ञनिक, और कुमार सानू शामिल हैं. उदित नारायण को अपने उत्कृष्ट गायन के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त हुए हैं: –
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (4 बार),
फिल्मफेयर पुरस्कार (5 बार),
पद्म श्री (2009),
पद्म भूषण (2016).
उदित नारायण की आवाज़ ने तीन दशकों से भी अधिक समय तक बॉलीवुड पर राज किया है. उनकी गायकी ने भारतीय संगीत को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है, और वह आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों में विशेष स्थान रखते हैं.
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स्वतंत्रता सेनानी सुचेता कृपलानी
सुचेता कृपलानी एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थीं. उनका जन्म 25 जून 1908 को हुआ था. वह भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की प्रमुख आवाज़ों में से एक थीं और महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाए गए कई आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया.
सुचेता कृपलानी का राजनीतिक जीवन भी बहुत महत्वपूर्ण था. स्वतंत्रता के बाद, उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य के रूप में कार्य किया और बाद में वर्ष 1963 – 67 तक उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं. वह भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं.
उनका योगदान सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने स्वतंत्रता के बाद के भारत के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. सुचेता कृपलानी का निधन 1 दिसंबर 1974 को हुआ. उनकी विरासत आज भी भारतीय राजनीति और समाज में प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है.
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स्वतंत्रता सेनानी दादा धर्माधिकारी
दादा धर्माधिकारी, जिनका पूरा नाम शांताराम धर्माधिकारी था, एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, गांधीवादी विचारक और समाज सुधारक थे. उनका जन्म 18 जून 1899 को हुआ था और वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण नेताओं में से एक थे. वे महात्मा गांधी के करीबी सहयोगी थे और उनके विचारों और सिद्धांतों का पालन करते थे.
दादा धर्माधिकारी का जन्म मध्य प्रदेश के बैतूल ज़िले में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में प्राप्त की और बाद में उच्च शिक्षा के लिए नागपुर विश्वविद्यालय गए. वे प्रारंभ से ही सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों में रुचि रखते थे और उन्होंने अपने छात्र जीवन के दौरान ही स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेना शुरू कर दिया था.
दादा धर्माधिकारी ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में विभिन्न आंदोलनों में भाग लिया, जिनमें असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन शामिल हैं. उन्होंने अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों का पालन करते हुए स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, दादा धर्माधिकारी ने गांधीवादी विचारधारा को फैलाने और समाज सुधार के लिए अपना जीवन समर्पित किया. उन्होंने सामाजिक न्याय, समानता, और नैतिकता के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया और विभिन्न संगठनों और आंदोलनों के माध्यम से समाज में जागरूकता फैलाने का काम किया. वे भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वासों के खिलाफ सक्रिय रूप से संघर्ष करते रहे.
दादा धर्माधिकारी ने अपने जीवनकाल में कई किताबें और लेख लिखे, जिनमें उन्होंने गांधीवादी विचारधारा, सामाजिक न्याय, और नैतिकता के मुद्दों पर अपने विचार प्रस्तुत किए. उनके लेखन और विचारों ने कई लोगों को प्रेरित किया और वे आज भी समाज सुधार के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण प्रेरणा स्रोत हैं.
उनका निधन 1 दिसम्बर 1985 को हुआ, लेकिन उनके योगदान और विचारों को आज भी समाज में सम्मानित किया जाता है. दादा धर्माधिकारी का जीवन और कार्य हमें सेवा, समर्पण, और नैतिकता के महत्व को सिखाते हैं.
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स्वतंत्रता सेनानी विजया लक्ष्मी पंडित
विजया लक्ष्मी पंडित एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, और राजनयिक थीं. वे स्वतंत्र भारत की पहली महिला कैबिनेट मंत्री और संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली महिला अध्यक्ष बनीं. वे पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन और इंदिरा गांधी की बुआ थीं. विजया लक्ष्मी पंडित का जन्म 18 अगस्त 1900 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था और उनकी मृत्यु 1 दिसंबर 1990, को देहरादून, उत्तराखंड में हुआ. उनके पिता का नाम मोतीलाल नेहरू था. उनके पति का नाम रणजीत सीताराम पंडित था.
विजया लक्ष्मी पंडित ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लिया और महात्मा गांधी के नेतृत्व में विभिन्न आंदोलनों में हिस्सा लिया. उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलनों में भाग लिया और कई बार जेल भी गईं. उनके पति, रणजीत सीताराम पंडित, भी स्वतंत्रता सेनानी थे और उनके संघर्ष के दौरान उनका निधन हो गया, जिसके बाद विजया लक्ष्मी पंडित ने स्वतंत्रता आंदोलन में और अधिक सक्रिय भूमिका निभाई.
स्वतंत्रता के बाद, विजया लक्ष्मी पंडित भारत की पहली महिला कैबिनेट मंत्री बनीं. उन्होंने 1946 में उत्तर प्रदेश में स्थानीय स्वशासन मंत्री के रूप में कार्य किया. वर्ष 1953 में, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्षता की और ऐसा करने वाली पहली महिला बनीं. इस भूमिका में उन्होंने भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को मजबूती दी. वर्ष 1962 – 64 तक वे महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में भी कार्यरत रहीं.
विजया लक्ष्मी पंडित ने सोवियत संघ, अमेरिका, मैक्सिको, और आयरलैंड में भारत की राजदूत के रूप में कार्य किया. उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत का प्रभावशाली प्रतिनिधित्व किया. वे यूनाइटेड किंगडम में भारतीय उच्चायुक्त भी रहीं, जहाँ उन्होंने ब्रिटेन के साथ भारत के संबंधों को मज़बूत करने में अहम भूमिका निभाई. विजया लक्ष्मी पंडित एक सफल लेखिका भी थीं. उनकी आत्मकथा “द स्कोप ऑफ हैप्पीनेस” (The Scope of Happiness) में उनके जीवन के संघर्ष, राजनीतिक विचार, और अनुभवों का विस्तृत वर्णन है.
विजया लक्ष्मी पंडित का जीवन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, राजनीति, और राजनयिक कार्यों में उल्लेखनीय रहा है. वे एक प्रगतिशील और दृढ़ नारीवादी थीं, जिन्होंने महिलाओं के अधिकारों और समानता के लिए भी संघर्ष किया. उनकी विरासत और योगदान भारत के राजनीतिक और सामाजिक इतिहास में अमिट हैं.