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व्यक्ति विशेष

भाग – 318.

स्वतंत्रता सेनानी सुरेन्द्रनाथ बनर्जी

सुरेन्द्रनाथ बनर्जी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शुरुआती नेताओं में से एक थे और उन्हें “भारतीय राष्ट्रवाद के जनक” के रूप में भी जाना जाता है. उनका जन्म 10 नवंबर 1848 को बंगाल में हुआ था. उन्होंने भारतीयों में राष्ट्रवाद की भावना जागृत करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद, भारतीय सिविल सेवा (ICS) की परीक्षा पास की. हालांकि, नस्लीय भेदभाव के कारण उन्हें नौकरी से हटा दिया गया. इसके बाद उन्होंने भारतीयों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने का निर्णय लिया और राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय हो गए.

उन्होंने वर्ष 1876 में भारतीय राष्ट्रीय संघ की स्थापना की, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गठन से पहले भारत का एक प्रमुख संगठन था.। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने वर्ष 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना में भी भूमिका निभाई. वह “बंगाल विभाजन” का कड़ा विरोध करने वालों में से एक थे और इस विरोध ने स्वदेशी आंदोलन को जन्म दिया.

सुरेन्द्रनाथ बनर्जी एक प्रभावशाली लेखक और वक्ता थे. उन्होंने अपनी पत्रिका “द बंगाली” के माध्यम से भारतीयों को संगठित किया और अंग्रेजी शासन के खिलाफ जन-जागरण फैलाया. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाता है.

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राजनीतिज्ञ डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा

डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा एक भारतीय राजनीतिज्ञ, स्वतंत्रता सेनानी,और संविधान विशेषज्ञ थे. उन्हें भारत की संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष के रूप में जाना जाता है. उनका 10 नवंबर 1848 को बंगाल में हुआ था. सच्चिदानंद सिन्हा की प्रारंभिक शिक्षा पटना में हुई और बाद में वे इंग्लैंड जाकर कानून की पढ़ाई करने लगे. लौटने के बाद, उन्होंने वकालत के साथ-साथ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय योगदान दिया. वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में से एक थे और विभिन्न सामाजिक सुधार आंदोलनों से भी जुड़े रहे.

डॉ. सिन्हा भारतीय संविधान सभा के सदस्य बने और उनकी वरिष्ठता को ध्यान में रखते हुए उन्हें संविधान सभा के उद्घाटन सत्र के दौरान अस्थायी अध्यक्ष चुना गया. इसके बाद डॉ. राजेंद्र प्रसाद को स्थायी अध्यक्ष नियुक्त किया गया, लेकिन संविधान निर्माण की प्रक्रिया में सच्चिदानन्द सिन्हा का योगदान सराहनीय रहा.

डॉ. सिन्हा  का निधन 6 मार्च 1950 को हुआ था. उनकी स्मृति में पटना में सिन्हा लाइब्रेरी स्थापित किया गया था. राजनीति के साथ-साथ उन्होंने शिक्षा और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में भी योगदान दिया. उन्होंने पटना विश्वविद्यालय की स्थापना में भी अहम भूमिका निभाई. सच्चिदानन्द सिन्हा का जीवन प्रेरणादायक रहा और उनका योगदान भारतीय इतिहास में हमेशा स्मरणीय रहेगा.

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अभिनेता अशुतोश राणा

अशुतोष राणा भारतीय सिनेमा के एक प्रमुख अभिनेता हैं, जो हिंदी, मराठी, कन्नड़, और तेलुगु फिल्मों में अपने सशक्त अभिनय के लिए जाने जाते हैं. उनका पूरा नाम अशुतोष रामनारायण नेक्क है, और उनका जन्म 10 नवंबर 1967 को मध्य प्रदेश के गाडरवाड़ा में हुआ था. उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से अपनी अभिनय की शिक्षा पूरी की.

अशुतोष राणा को मुख्यतः खलनायक भूमिकाओं में शानदार अभिनय के लिए पहचाने जाते है. उन्होंने फिल्मों में अपने दमदार प्रदर्शन से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया, खासकर दुश्मन (1998) में उनके खलनायक के किरदार को सराहा गया, जिसमें उन्होंने एक मनोरोगी का किरदार निभाया था. इसके अलावा, वे संघर्ष, राज, ज़ख्म, और गुलाम जैसी फिल्मों में भी यादगार भूमिकाओं के लिए जाने जाते हैं.

फिल्मों के अलावा, वे टेलीविजन पर भी सक्रिय रहे हैं और साहित्य में भी उनकी रुचि है. वे हिंदी साहित्य के अच्छे जानकार हैं और कई कविताएँ और लेख लिख चुके हैं. उनकी पत्नी अभिनेत्री रेणुका शहाणे हैं, जो खुद भी एक प्रसिद्ध कलाकार हैं.

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अभिनेता चेतन्या अदीब

चेतन्या अदीब भारतीय अभिनेता, आवाज़ कलाकार, और पटकथा लेखक हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी टेलीविजन और सिनेमा में अपने कार्य के लिए जाने जाते हैं. चेतन्या का जन्म 10 नवंबर 1971 को राजस्थान में हुआ था.  चेतन्या ने अपने कैरियर की शुरुआत थिएटर से की. उन्होंने विभिन्न धारावाहिकों और फिल्मों में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं.

चेतन्या अदीब को विशेष पहचान बालिका वधू में निभाए गए उनके किरदार भारत सिंह के लिए मिली, जो काफी लोकप्रिय हुआ. इसके अलावा उन्होंने जोधा अकबर, फुलवा, और सिया के राम जैसे धारावाहिकों में भी अभिनय किया है.

चेतन्या अदीब एक प्रतिष्ठित आवाज कलाकार भी हैं और उन्होंने कई वृत्तचित्रों, विज्ञापनों, और फिल्मों में आवाज दी है. उनके आवाज में भारतीय संस्कृति और पारंपरिक लहजे की झलक देखने को मिलती है, जिससे उनके काम को अलग पहचान मिली है.

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स्वतंत्रता सेनानी कनाईलाल दत्त

कनाईलाल दत्त भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक वीर स्वतंत्रता सेनानी थे, जो अंग्रेजों के खिलाफ अपने साहसिक कार्यों के लिए जाने जाते हैं. उनका जन्म 30 अगस्त 1888 को बंगाल के हुगली जिले में हुआ था. वे क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन समिति के सक्रिय सदस्य थे, जो भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का समर्थन करती थी.

कनाईलाल दत्त को विशेष रूप से पुलिन बिहारी दास के मार्गदर्शन में क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल किया गया. उन्होंने अपने साथी क्रांतिकारी सत्येन बोस के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ कई साहसिक अभियानों को अंजाम दिया. उन्हें वर्ष 1908 में नारायणगढ़ जेल में एक ब्रिटिश अधिकारी की हत्या करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया.

कनाईलाल दत्त का जीवन बलिदान और देशभक्ति का प्रतीक है. उन्हें 10 नवंबर 1908 को केवल 20 वर्ष की आयु में फांसी की सजा दी गई. उनका बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक प्रेरणादायक उदाहरण है, जिसने अन्य युवाओं को भी स्वतंत्रता के लिए समर्पित होने की प्रेरणा दी.

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