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व्यक्ति विशेष

भाग – 233.

साहित्यकार अमृतलाल नागर

अमृतलाल नागर हिंदी साहित्य के प्रमुख साहित्यकारों में से एक थे. उनका जन्म 17 अगस्त 1916 को आगरा, उत्तर प्रदेश में हुआ था, और उनका निधन 23 फरवरी 1990 को लखनऊ में हुआ. अमृतलाल नागर को कथा साहित्य, नाटक, रेडियो नाटक, बाल साहित्य और पत्रकारिता में उनके योगदान के लिए जाना जाता है.

उपन्यास: – अमृतलाल नागर ने कई प्रसिद्ध उपन्यास लिखे, जिनमें “बूँद और समुद्र”, “शतरंज के मोहरे”, “मानस का हंस”, “अमृत और विष”, और “नाच्यो बहुत गोपाल” शामिल हैं.

कहानी संग्रह: – उन्होंने “जन्मभूमि” और “सेठ बांकेमल” जैसी प्रसिद्ध कहानियां लिखी हैं.

नाटक: – “एक था बादशाह”, “गड्डा” और “महाकवि कालिदास” जैसे नाटकों के लेखक भी रहे हैं.

बाल साहित्य: – नागर जी ने बच्चों के लिए भी साहित्य लिखा, जिसमें “विचित्र नगर की विचित्र कहानियाँ” विशेष रूप से उल्लेखनीय है.

अमृतलाल नागर की लेखनी में समाज के विभिन्न पहलुओं और मानवीय संवेदनाओं का अद्वितीय चित्रण होता है. उनकी रचनाएं प्राचीन और आधुनिक भारत के सामाजिक जीवन, समस्याओं, और संस्कृति का एक सजीव चित्र प्रस्तुत करती हैं. उनकी भाषा शैली सरल, सहज और जनसाधारण के लिए समझने योग्य होती थी, जिससे उनकी रचनाएं आम पाठकों के बीच बहुत लोकप्रिय हुईं.

अमृतलाल नागर को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें साहित्य अकादमी पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, और हिंदी साहित्य सम्मेलन का सर्वोच्च सम्मान शामिल हैं. अमृतलाल नागर को हिंदी साहित्य के एक सशक्त हस्ताक्षर के रूप में हमेशा याद किया जाएगा.

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अंग्रेज़ी साहित्यकार वी. एस. नायपॉल

वी. एस. नायपॉल एक अंग्रेज़ी साहित्यकार थे, जिनका जन्म 17 अगस्त 1932 को त्रिनिदाद और टोबैगो में हुआ था. भारतीय मूल के नायपॉल ने अपने साहित्यिक कैरियर में उपन्यास, नॉन-फिक्शन, यात्रा वृतांत और आलोचनात्मक निबंध लिखे. उन्हें 2001 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

नायपॉल के सबसे चर्चित उपन्यासों में “A House for Mr. Biswas” (1961), “In a Free State” (1971), “A Bend in the River” (1979), और “The Enigma of Arrival” (1987) शामिल हैं. ये उपन्यास उनके भारतीय प्रवासी जीवन के अनुभवों और औपनिवेशिक प्रभावों को दर्शाते हैं. उनके नॉन-फिक्शन कार्यों में “An Area of Darkness” (1964), “India: A Wounded Civilization” (1977), और “Among the Believers: An Islamic Journey” (1981) शामिल हैं. इन रचनाओं में उन्होंने भारत, इस्लाम, और औपनिवेशिकता के प्रभावों पर अपनी विचारधारा प्रस्तुत की. नायपॉल की आत्मकथा “The Enigma of Arrival” एक महत्वपूर्ण कृति मानी जाती है, जिसमें उन्होंने अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण किया है.

नायपॉल की लेखनी में उपनिवेशवाद, प्रवास, पहचान और समाज की जटिलताओं का गहन विश्लेषण मिलता है. उनका दृष्टिकोण अक्सर आलोचनात्मक और विवादास्पद रहा, खासकर जब उन्होंने भारतीय समाज और इस्लाम के बारे में लिखा. नायपॉल की भाषा शैली सरल, लेकिन प्रभावशाली है, और उन्होंने अपने पात्रों और उनके संघर्षों को गहराई से चित्रित किया.

वी. एस. नायपॉल को 1971 में बुकर प्राइज़ (“In a Free State” के लिए) से सम्मानित किया गया. वर्ष 2001 में नोबेल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया. वर्ष 989 में नाइटहुड की उपाधि भी दी गई थी, जिससे वह सर वी. एस. नायपॉल के नाम से भी जाने जाते हैं  वी. एस. नायपॉल एक विवादास्पद लेकिन सम्मानित साहित्यकार थे, जिन्होंने अपने लेखन के माध्यम से औपनिवेशिक और पोस्ट-औपनिवेशिक समाजों पर गहरा प्रभाव डाला है.

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भारतीय रिज़र्व बैंक के बीसवें गवर्नर बिमल जालान

बिमल जालान भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के बीसवें गवर्नर थे, जिन्होंने 22 नवंबर 1997 से 6 सितंबर 2003 तक इस पद पर कार्य किया। वे भारतीय अर्थव्यवस्था और वित्तीय प्रणाली में सुधार लाने के लिए अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाने जाते हैं. बिमल जालान का जन्म 17 अगस्त 1941 को असम के तेजपुर में हुआ था. उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक किया और इसके बाद कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से एमए की डिग्री प्राप्त की. इसके अलावा, वे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से पीएचडी भी कर चुके हैं.

बिमल जालान का कैरियर भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के साथ शुरू हुआ, जहाँ उन्होंने विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर काम किया। उन्होंने भारत सरकार में वित्त सचिव और योजना आयोग के सदस्य के रूप में भी कार्य किया। उनकी उत्कृष्ट प्रशासनिक क्षमताओं के कारण, उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक का गवर्नर नियुक्त किया गया.

रिज़र्व बैंक में कार्यकाल: –

वित्तीय सुधार: – बिमल जालान के कार्यकाल के दौरान भारतीय बैंकिंग प्रणाली में कई सुधार किए गए. उन्होंने आर्थिक स्थिरता को प्राथमिकता दी और वित्तीय प्रणाली को मजबूत किया।

महंगाई पर नियंत्रण: – जालान ने मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए, जिससे देश में आर्थिक स्थिरता आई.

विदेशी मुद्रा भंडार: – उनके कार्यकाल में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी ऐतिहासिक स्तर पर पहुँचा, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती को दर्शाया.

वित्तीय समावेशन: – उन्होंने बैंकिंग सेवाओं को ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों तक पहुँचाने के लिए भी प्रयास किए.

वर्ष 2004 में, जालान को राज्यसभा के लिए नामांकित किया गया, जहाँ उन्होंने देश की आर्थिक नीति से संबंधित मुद्दों पर चर्चा में सक्रिय रूप से भाग लिया. वे “इंडिया, Politics, and the Economy” और “Emerging India: Economics, Politics and Reforms” जैसी कई किताबों के लेखक भी हैं.

बिमल जालान को उनकी सेवाओं के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. बिमल जालान का कार्यकाल भारतीय अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाने के लिए याद किया जाता है. उन्होंने अपनी विशेषज्ञता और नेतृत्व के माध्यम से रिज़र्व बैंक को एक नई दिशा दी.

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कवयित्री अनामिका

अनामिका समकालीन हिंदी साहित्य की एक प्रमुख कवयित्री, लेखिका, और आलोचक हैं. उनका जन्म 17 अगस्त 1961 को मुजफ्फरपुर, बिहार में हुआ था. अनामिका का साहित्यिक योगदान कविता, उपन्यास, निबंध, और आलोचना के क्षेत्र में महत्वपूर्ण रहा है. उन्होंने महिलाओं की आवाज़, समाज की समस्याओं, और मानवीय संवेदनाओं को अपने लेखन के माध्यम से अभिव्यक्त किया है.

प्रमुख रचनाएँ: –

कविता संग्रह: –  “अनुष्टुप”, “दोहरा अभिशाप”, “बीजाक्षर”, और “खुरदरी हथेलियाँ” शामिल हैं। इन कविताओं में सामाजिक मुद्दों, स्त्री जीवन, और व्यक्तिगत अनुभवों का गहन चित्रण मिलता है.

उपन्यास: – अनामिका ने “अपने अपने युद्ध” और “टोकरी में दिगंत” जैसे उपन्यास भी लिखे हैं, जिनमें भारतीय समाज की जटिलताओं और महिलाओं की स्थिति का वर्णन किया गया है.

निबंध और आलोचना: – उन्होंने साहित्यिक आलोचना में भी अपनी पहचान बनाई है, विशेषकर महिलाओं और दलितों के मुद्दों पर. उनके निबंध और आलोचनात्मक लेखन ने उन्हें एक विचारशील और संवेदनशील साहित्यकार के रूप में स्थापित किया है.

अनामिका की कविताओं में एक गहरी संवेदनशीलता और सामाजिक चेतना का अनुभव होता है. उनकी लेखनी में भारतीय समाज के वंचित और शोषित वर्गों की आवाज़ को प्रमुखता दी गई है. अनामिका की भाषा शैली सरल, लेकिन गहन है, जिससे उनकी रचनाएं आम पाठकों के साथ-साथ आलोचकों के बीच भी सम्मानित हैं.

अनामिका को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें साहित्य अकादमी पुरस्कार, कबीर सम्मान, और भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार शामिल हैं. वर्ष 2020 में, उन्हें उनके कविता संग्रह “टोकरी में दिगंत” के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. अनामिका साहित्यिक और अकादमिक क्षेत्र में भी सक्रिय रही हैं. उन्होंने कई विश्वविद्यालयों में पढ़ाया है और साहित्यिक सम्मेलनों में भी सक्रिय भूमिका निभाई है.

अनामिका की लेखनी भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है, और उनके योगदान ने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है. उनकी कविताएं और लेखन समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश देते हैं, और उनकी संवेदनशीलता और दृष्टिकोण ने उन्हें हिंदी साहित्य की प्रमुख हस्तियों में स्थान दिलाया है.

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अभिनेत्री सुप्रिया पिलगांवकर

सुप्रिया पिलगांवकर एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जो हिंदी और मराठी टेलीविजन और फिल्मों में अपने काम के लिए जानी जाती हैं. उनका जन्म 16 अगस्त 1967 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. सुप्रिया पिलगांवकर ने अपने अभिनय कैरियर में विभिन्न किरदार निभाए हैं और वे विशेष रूप से अपने हास्य और पारिवारिक भूमिकाओं के लिए प्रसिद्ध हैं.

सुप्रिया पिलगांवकर ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत मराठी फिल्मों से की. उन्हें हिंदी टेलीविजन में प्रसिद्धि तब मिली जब उन्होंने 1994 में टीवी शो “तू तू मैं मैं” में अभिनय किया. इस शो में उन्होंने रीनू के किरदार को निभाया, जो सास-बहू के रिश्ते पर आधारित एक हास्य शो था. यह शो बहुत लोकप्रिय हुआ और सुप्रिया को घर-घर में पहचान मिली. उन्होंने शाहरुख खान के साथ 1995 में आई फिल्म “यस बॉस” में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसके अलावा, उन्होंने कई अन्य हिंदी फिल्मों और टीवी धारावाहिकों में भी काम किया, जैसे “ससुराल गेंदा फूल,” “कuchh Rang Pyar Ke Aise Bhi,” और “आई कुठे काय करते?”

सुप्रिया की शादी प्रसिद्ध मराठी और हिंदी अभिनेता सचिन पिलगांवकर से हुई है. दोनों ने कई फिल्मों और टीवी शोज़ में साथ काम किया है. उनकी बेटी, श्रिया पिलगांवकर, भी एक अभिनेत्री हैं, जिन्होंने हिंदी फिल्मों और वेब सीरीज में काम किया है. सुप्रिया पिलगांवकर को उनके अभिनय के लिए कई पुरस्कार मिले हैं. “तू तू मैं मैं” के लिए उन्हें बेस्ट कॉमिक रोल के लिए अवॉर्ड भी मिला. उनके द्वारा निभाए गए पात्र हमेशा वास्तविक और संबंधित होते हैं, जिससे वे दर्शकों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं.

सुप्रिया पिलगांवकर का अभिनय कैरियर लंबे समय से चल रहा है, और वे आज भी टीवी और फिल्मों में सक्रिय हैं. उनके अभिनय कौशल और सरलता के कारण वे भारतीय दर्शकों के दिलों में एक खास जगह बना चुकी हैं.

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अभिनेत्री दिशा वाकानी

दिशा वकानी एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जो खासतौर पर टेलीविजन शो “तारक मेहता का उल्टा चश्मा” में दया बेन की भूमिका निभाने के लिए जानी जाती हैं. उनका जन्म 17 अगस्त 1978 को अहमदाबाद, गुजरात में हुआ था. दिशा वकानी ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत थिएटर से की थी और बाद में टीवी और फिल्मों में भी काम किया.

दिशा वकानी ने अभिनय की शुरुआत गुजराती थिएटर से की, जहाँ उन्होंने कई नाटकों में काम किया. उनके अभिनय का सबसे बड़ा ब्रेक तब आया जब उन्हें 2008 में “तारक मेहता का उल्टा चश्मा” में दया बेन का किरदार निभाने का मौका मिला. यह शो बहुत लोकप्रिय हुआ और दिशा का किरदार घर-घर में पहचान बना गया. दया बेन के रूप में उनका अनोखा संवाद शैली और उनका “गड़बड़” कैचफ्रेज़ बेहद पसंद किया गया.

दिशा ने अपने फिल्मी की शुरुआत वर्ष 1997 में फिल्म कम्सिन द अनटच्ड से की थी. इसके अलावा, दिशा वकानी ने कुछ हिंदी फिल्मों में भी काम किया है, जैसे “देवदास” (2002), “जोधा अकबर” (2008), और “लव स्टोरी 2050” (2008). हालांकि, उनकी पहचान मुख्य रूप से दया बेन के रूप में ही रही है. दिशा वकानी की शादी मयूर पंड्या से हुई है, जो एक चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं. 2017 में, उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया और इसके बाद उन्होंने कुछ समय के लिए एक्टिंग से ब्रेक ले लिया.

दिशा वकानी को उनके “तारक मेहता का उल्टा चश्मा” में दया बेन के किरदार के लिए कई पुरस्कार मिले हैं, जिसमें सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेत्री के लिए कई पुरस्कार शामिल हैं. उनकी इस भूमिका ने उन्हें भारतीय टेलीविजन के सबसे यादगार किरदारों में से एक बना दिया है. दिशा वकानी का नाम टेलीविजन इतिहास में हमेशा दया बेन के रूप में याद किया जाएगा, और उनके अनोखे अभिनय ने उन्हें दर्शकों के दिलों में एक खास जगह दिलाई है.

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अभिनेत्री श्रद्धा आर्या

श्रद्धा आर्या एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी टेलीविजन में अपने काम के लिए जानी जाती हैं. उनका जन्म 17 अगस्त 1987 को नई दिल्ली, भारत में हुआ था. श्रद्धा ने अपने कैरियर की शुरुआत फिल्मों से की थी, लेकिन टेलीविजन पर उन्होंने ज्यादा लोकप्रियता हासिल की.

श्रद्धा आर्या ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत 2004 में तमिल फिल्म “Kalvanin Kadhali” से की थी. इसके बाद उन्होंने तेलुगु और कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया. हिंदी टेलीविजन में उन्होंने 2011 में शो “Main Lakshmi Tere Aangan Ki” से डेब्यू किया, जिसमें उनके अभिनय को सराहा गया. उनकी सबसे प्रसिद्ध भूमिका ज़ी टीवी के धारावाहिक “कुंडली भाग्य” में है, जहाँ वह प्रीता अरोड़ा का किरदार निभा रही हैं. इस शो ने उन्हें घर-घर में लोकप्रिय बना दिया और उन्हें टेलीविजन इंडस्ट्री में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया.

श्रद्धा ने म्यूजिक वीडियो में भी काम किया है और कई रियलिटी शोज़ में भी भाग लिया है. उन्होंने डांस रियलिटी शो “नच बलिए 9” में भी हिस्सा लिया, जहाँ उनकी परफॉर्मेंस की काफी तारीफ हुई. श्रद्धा आर्या ने 2021 में नेवी ऑफिसर राहुल नागल से शादी की. सोशल मीडिया पर भी श्रद्धा काफी सक्रिय हैं और उनकी फैन फॉलोइंग भी बहुत बड़ी है. श्रद्धा आर्या को उनकी अदाकारी के लिए कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें ज़ी रिशते अवॉर्ड्स, इंडियन टेली अवॉर्ड्स, और गोल्ड अवॉर्ड्स शामिल हैं. उनकी प्रीता अरोड़ा की भूमिका के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के कई पुरस्कार मिले हैं.

श्रद्धा आर्या ने अपनी मेहनत और प्रतिभा के दम पर टेलीविजन इंडस्ट्री में एक मजबूत पहचान बनाई है, और वे आज भी अपनी अदाकारी से दर्शकों का दिल जीत रही हैं.

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क्रांतिकारी पुलिन बिहारी दास

पुलिन बिहारी दास भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रांतिकारी थे, जो बंगाल में ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र आंदोलन के लिए जाने जाते हैं. उनका जन्म 24 जनवरी 1877 को बंगाल (अब बांग्लादेश) में हुआ था. वे अनुशीलन समिति नामक क्रांतिकारी संगठन के सक्रिय सदस्य और नेता थे.

पुलिन बिहारी दास ने अपने प्रारंभिक जीवन में ही स्वतंत्रता संग्राम के प्रति गहरी रुचि दिखाई. उन्होंने शिक्षा प्राप्त करने के बाद कलकत्ता (अब कोलकाता) में ब्रिटिश शासन के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू किया. वे प्रभावशाली व्यक्ति थे और युवाओं को संगठित करके ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष करने के लिए प्रेरित करते थे.

पुलिन बिहारी दास ने 1902 में अनुशीलन समिति की स्थापना की, जो एक क्रांतिकारी संगठन था. यह संगठन ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष में शामिल था. पुलिन बिहारी ने बंगाल के विभिन्न हिस्सों में इस संगठन की शाखाएँ स्थापित कीं और युवाओं को प्रशिक्षण दिया. उनका सबसे प्रसिद्ध कार्य 1908 में बरीसाल बम केस (Barisal Conspiracy Case) था, जिसमें उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों को निशाना बनाया। हालांकि इस मामले में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन उन्होंने अपने संघर्ष को जारी रखा. पुलिन बिहारी दास का मानना था कि केवल सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से ही भारत को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता मिल सकती है.

ब्रिटिश सरकार ने पुलिन बिहारी दास को उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए कई बार गिरफ्तार किया और उन्हें जेल में डाल दिया. उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा जेल में बिताया. जेल में भी उन्होंने अपने साथियों को प्रोत्साहित किया और स्वतंत्रता संग्राम की भावना को जीवित रखा.

पुलिन बिहारी दास का निधन 17 अगस्त 1949 को हुआ. वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी के रूप में याद किए जाते हैं, जिन्होंने अपने जीवन को देश की स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दिया. उनकी बहादुरी और देशभक्ति ने कई अन्य युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया.

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बिहार के माउंटेन मैन दशरथ मांझी

दशरथ मांझी, जिन्हें “माउंटेन मैन” के नाम से जाना जाता है, बिहार के एक गरीब मजदूर थे जिन्होंने अपने अद्वितीय साहस और दृढ़ संकल्प से एक पहाड़ को काटकर रास्ता बनाया. उनका जन्म 14 जनवरी 1929 को गया जिले के गहलौर गांव में हुआ था. दशरथ मांझी की कहानी अदम्य इच्छाशक्ति और अडिग संकल्प की मिसाल है.

वर्ष 1960 के दशक की बात है जब दशरथ मांझी की पत्नी, फाल्गुनी देवी, बीमार पड़ गईं. गांव में अस्पताल की सुविधाएं नहीं थीं और निकटतम अस्पताल तक पहुंचने के लिए एक बड़ा पहाड़ पार करना पड़ता था, जो काफी समय लेने वाला और जोखिम भरा था. एक दिन, फाल्गुनी देवी पहाड़ को पार करते समय गिर गईं और गंभीर रूप से घायल हो गईं. समय पर इलाज न मिलने के कारण उनकी मृत्यु हो गई. इस घटना ने दशरथ मांझी को गहरे दुख में डाल दिया और उन्होंने इस समस्या का समाधान करने का निश्चय किया.

दशरथ मांझी ने ठान लिया कि वे पहाड़ को काटकर एक रास्ता बनाएंगे, ताकि उनके गांव के लोगों को अस्पताल जाने के लिए इतना लंबा और खतरनाक रास्ता पार न करना पड़े. उन्होंने बिना किसी आधुनिक उपकरण के केवल एक हथौड़ा और छैनी के सहारे पहाड़ को काटना शुरू किया. उन्होंने अकेले ही 22 वर्षों (1960 से 1982 तक) की कड़ी मेहनत से पहाड़ को काटकर लगभग 110 मीटर लंबा, 9.1 मीटर चौड़ा और 7.6 मीटर गहरा रास्ता बना दिया. इस रास्ते ने गया शहर की दूरी को 55 किलोमीटर से घटाकर 15 किलोमीटर कर दिया.

शुरुआत में, लोग दशरथ मांझी को पागल समझते थे और उनका मजाक उड़ाते थे. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपने संकल्प को जारी रखा. आखिरकार, उनकी मेहनत रंग लाई और उन्होंने उस रास्ते को बना दिया जो आज हजारों लोगों के जीवन को आसान बना रहा है. दशरथ मांझी का यह साहसिक कार्य आज भी प्रेरणा का स्रोत है. उन्हें 2006 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया. हालांकि, दशरथ मांझी का निधन 17 अगस्त 2007 को हुआ, लेकिन उनकी कहानी आज भी जिंदा है और लोगों को प्रेरित करती है.

दशरथ मांझी का जीवन इस बात का उदाहरण है कि एक व्यक्ति के दृढ़ निश्चय से क्या कुछ संभव हो सकता है. उन्होंने यह साबित किया कि अगर आपके इरादे मजबूत हों, तो कोई भी बाधा आपके रास्ते में नहीं आ सकती. उनकी कहानी ने न केवल बिहार बल्कि पूरे देश में प्रेरणा का संचार किया है. उनकी याद में बनी फिल्म “मांझी: द माउंटेन मैन” (2015) ने उनकी कहानी को और अधिक लोगों तक पहुँचाया और उन्हें श्रद्धांजलि दी.

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