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व्यक्ति विशेष

भाग – 226.

चौथे राष्ट्रपति वी. वी. गिरी

वी. वी. गिरी (वराहगिरी वेंकट गिरी) भारत के चौथे राष्ट्रपति थे. उनका कार्यकाल 24 अगस्त 1969 से 24 अगस्त 1974 तक चला. वे एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, राजनेता और भारतीय श्रमिक आंदोलन के प्रमुख नेता थे. उन्होंने श्रमिकों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और भारत के श्रमिक आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

वी. वी. गिरी का जन्म 10 अगस्त 1894 को आंध्र प्रदेश के बेरहमपुर में हुआ था. वे एक साधारण परिवार से थे, लेकिन उन्होंने अपने दृढ़ संकल्प और मेहनत से उच्च शिक्षा प्राप्त की. उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में भी पढ़ाई की. राष्ट्रपति बनने से पहले, वे भारत के उपराष्ट्रपति (1967-1969) भी रहे. इसके अलावा, उन्होंने विभिन्न महत्वपूर्ण सरकारी पदों पर भी कार्य किया, जैसे कि श्रम मंत्री, केरल और उत्तर प्रदेश के राज्यपाल.

वी. वी. गिरी ने 1969 में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रपति चुनाव लड़ा और कांग्रेस पार्टी के विभाजन के बावजूद इंदिरा गांधी के समर्थन से चुनाव जीता. उनके कार्यकाल के दौरान, भारत में कई महत्वपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन हुए. उनकी मृत्यु 24 जून 1980 को चेन्नई में हुई. वी. वी. गिरी को उनके योगदान के लिए भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न, से सम्मानित किया गया था.

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अभिनेता प्रेम अदीब

प्रेम अदीब भारतीय सिनेमा के एक लोकप्रिय अभिनेता थे, जिन्हें 1940 – 50 के दशक में धार्मिक और पौराणिक फिल्मों में उनके अभिनय के लिए जाना जाता है. वे विशेष रूप से रामायण पर आधारित फिल्मों में भगवान राम की भूमिका निभाने के लिए प्रसिद्ध थे. प्रेम अदीब का जन्म 10 अगस्त 1917 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में हुआ था. उनका असली नाम प्रेम नारायण था. उन्होंने अपनी पढ़ाई बनारस से पूरी की और बाद में फिल्मों में अपनी किस्मत आजमाने मुंबई चले गए.

प्रेम अदीब ने 1936 में फिल्म “राजा भोज” से अपने कैरियर की शुरुआत की, लेकिन उन्हें असली पहचान 1943 में आई फिल्म “रामराज्य” से मिली. इस फिल्म में उन्होंने भगवान राम की भूमिका निभाई, जिसे दर्शकों ने बहुत सराहा. इसके बाद उन्होंने कई पौराणिक फिल्मों में भगवान राम के रूप में अभिनय किया, जिनमें “रामबाण” (1948), “रामायण” (1942), और “सीता स्वयंवर” (1947) जैसी फिल्में शामिल हैं.

प्रेम अदीब को उनके समय का एक प्रमुख अभिनेता माना जाता था, खासकर धार्मिक और पौराणिक फिल्मों में. उनके द्वारा निभाई गई भगवान राम की भूमिका ने उन्हें एक विशेष स्थान दिलाया, और वे भारतीय दर्शकों के बीच बहुत लोकप्रिय हुए. उनकी सादगी और स्वाभाविक अभिनय ने उन्हें इन भूमिकाओं में प्रतिष्ठित किया. प्रेम अदीब का निधन 25 दिसंबर 1959 को हुआ. उन्होंने अपने अभिनय से भारतीय सिनेमा में एक अमिट छाप छोड़ी और उन्हें आज भी याद किया जाता है, खासकर धार्मिक फिल्मों में उनके योगदान के लिए.

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राजनीतिज्ञ राजनाथ सिंह

राजनाथ सिंह एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ हैं, जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता और वर्तमान में भारत के रक्षा मंत्री हैं. वे भारतीय राजनीति में लंबे समय से सक्रिय हैं और कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं. राजनाथ सिंह का जन्म 10 जुलाई 1951 को उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के भाभोरा गाँव में हुआ था. वे एक किसान परिवार से आते हैं. उनकी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में हुई, और उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से भौतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर (M.Sc.) की डिग्री प्राप्त की.

राजनाथ सिंह ने बहुत कम उम्र में ही राजनीति में प्रवेश किया. वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सदस्य बने और जनसंघ से जुड़े. वर्ष 1977 में, वे पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए. वे विभिन्न पदों पर रहे, जिनमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री (2000-2002), और केंद्र सरकार में कृषि मंत्री (2003-2004) शामिल हैं.

राजनाथ सिंह भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष के रूप में दो बार सेवा दे चुके हैं – पहले 2005 – 09 तक, और फिर 2013 – 14 तक. उन्होंने भाजपा को मजबूत करने और इसे देश की प्रमुख राजनीतिक पार्टी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. वर्ष  2019 में नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में, राजनाथ सिंह को भारत का रक्षा मंत्री नियुक्त किया गया. इस पद पर रहते हुए, उन्होंने भारतीय रक्षा नीतियों को मजबूत करने और सैन्य सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए.

राजनाथ सिंह अपने ईमानदार और कठोर छवि के लिए जाने जाते हैं. उनका राजनीतिक जीवन निष्कलंक माना जाता है, और वे भारतीय राजनीति में एक सम्मानित नेता हैं. उन्होंने अपने लंबे राजनीतिक कैरियर के दौरान विभिन्न महत्वपूर्ण नीतिगत फैसले लिए हैं, जिनसे देश को लाभ हुआ है. राजनाथ सिंह आज भी भारतीय राजनीति में एक प्रभावशाली व्यक्ति बने हुए हैं और भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं में से एक हैं.

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दस्यु सुंदरी फूलन देवी

फूलन देवी, जिन्हें “दस्यु सुंदरी” के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय इतिहास की एक विवादास्पद लेकिन अत्यधिक प्रभावशाली महिला थीं. वे एक बागी, डाकू, और बाद में एक राजनीतिज्ञ बनीं. उनके जीवन की कहानी असाधारण संघर्ष, प्रतिशोध और बदलाव की कहानी है. फूलन देवी का जन्म 10 अगस्त 1963 को उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के एक गरीब मल्लाह परिवार में हुआ था. उन्होंने बचपन में ही जातिगत उत्पीड़न और गरीबी का सामना किया. कम उम्र में ही उनकी शादी एक वृद्ध व्यक्ति से कर दी गई, जिससे उनका जीवन और कठिन हो गया.

अपने पति से दुर्व्यवहार और समाज में उच्च जातियों के हाथों अपमानित होने के बाद, फूलन देवी ने 1970 के दशक के अंत में डाकुओं के एक समूह में शामिल होने का निर्णय लिया. डाकुओं के इस गिरोह में उन्होंने कई चुनौतियों का सामना किया और अंततः खुद एक डाकू सरदार बन गईं. उनका नाम विशेष रूप से 1981 के बेहमई हत्याकांड से जुड़ा है, जहां उन्होंने अपने साथ हुए अन्याय का प्रतिशोध लेने के लिए उच्च जाति के 22 लोगों की हत्या की थी. यह घटना उन्हें “दस्यु सुंदरी” के रूप में प्रसिद्ध करने वाली महत्वपूर्ण घटना थी.

वर्ष 1983 में, फूलन देवी ने उत्तर प्रदेश सरकार के समक्ष आत्मसमर्पण किया. उन्हें कई सालों तक जेल में रहना पड़ा, लेकिन 1994 में, तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया. जेल से रिहा होने के बाद, फूलन देवी ने राजनीति में कदम रखा. वे समाजवादी पार्टी के टिकट पर 1996 में मिर्जापुर से लोकसभा के लिए चुनी गईं. उन्होंने समाज के वंचित और पिछड़े वर्गों के अधिकारों के लिए काम किया. उनके राजनीतिक जीवन में भी उनकी कड़ी और सशक्त छवि बनी रही.

फूलन देवी का जीवन 25 जुलाई 2001 को दुखद रूप से समाप्त हो गया, जब दिल्ली में उनके आवास के बाहर उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई. उनकी हत्या के पीछे बदला लेने की भावना मानी जाती है. फूलन देवी की कहानी को उनकी आत्मकथा और कुछ फिल्मों के माध्यम से भी प्रस्तुत किया गया है, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध फिल्म है “बैंडिट क्वीन” (1994), जिसका निर्देशन शेखर कपूर ने किया था. उनकी जिंदगी में बदलाव की अद्वितीय कहानी ने उन्हें भारतीय समाज में एक प्रतीक बना दिया है.

फूलन देवी की कहानी न केवल उनके व्यक्तिगत संघर्ष की है, बल्कि यह भारतीय समाज की जटिलताओं, जातिगत विभाजन, और सामाजिक न्याय की जटिलताओं का भी प्रतीक है.

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संगीतकार नंदिनी श्रीकर

नंदिनी श्रीकर एक भारतीय गायिका, संगीतकार और गीतकार हैं, जो बॉलीवुड में अपनी गायकी और संगीत में उत्कृष्ट योगदान के लिए जानी जाती हैं. उनकी आवाज़ को उनकी विविधता, गहराई और इमोशनल अभिव्यक्ति के लिए सराहा जाता है. नंदिनी श्रीकर का जन्म मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ. उन्होंने संगीत की शिक्षा बचपन से ही ली और विभिन्न संगीत शैलियों में खुद को प्रशिक्षित किया, जिनमें शास्त्रीय संगीत, सूफी संगीत, और पॉप शामिल हैं. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा और संगीत प्रशिक्षण मुंबई में ही प्राप्त किया.

नंदिनी श्रीकर ने अपने कैरियर की शुरुआत विभिन्न विज्ञापनों और जिंगल्स के लिए गाना गाकर की. धीरे-धीरे, वे बॉलीवुड में भी सक्रिय हो गईं. उनका पहला बड़ा ब्रेक तब मिला जब उन्होंने विशाल-शेखर के संगीत निर्देशन में बनी फिल्म “तुम बिन” (2001) में गाना गाया.

नंदिनी श्रीकर को व्यापक पहचान 2011 में मिली, जब उन्होंने फिल्म “डेली बेली” का हिट गाना “भाग डीके बोस” गाया. इस गाने ने उन्हें रातों-रात मशहूर कर दिया. इसके अलावा, उन्होंने “रावण” (2010) फिल्म के लिए “जीने का” गाना गाया, जिसे भी बहुत सराहा गया. नंदिनी श्रीकर ने न केवल प्लेबैक सिंगिंग में बल्कि संगीत रचना और गीत लेखन में भी अपनी प्रतिभा दिखाई है. उन्होंने कई फिल्मों और इंडिपेंडेंट एल्बमों के लिए संगीत रचना की है. उनका संगीत विविध शैलियों में आधारित है, और वे शास्त्रीय संगीत से लेकर मॉडर्न इलेक्ट्रॉनिक संगीत तक हर विधा में काम कर चुकी हैं.

नंदिनी की आवाज़ में एक अनूठी मिठास और ऊर्जा है, जो उन्हें अन्य गायकों से अलग करती है. उनके गानों में उनकी शास्त्रीय संगीत की पृष्ठभूमि की झलक मिलती है, जो उनके गायन को और भी सशक्त बनाती है. नंदिनी श्रीकर ने भारतीय संगीत उद्योग में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. वे फिल्म इंडस्ट्री के साथ-साथ इंडिपेंडेंट संगीत में भी सक्रिय हैं और विभिन्न प्रकार के संगीत प्रोजेक्ट्स में काम कर रही हैं. नंदिनी श्रीकर का संगीत प्रेमियों के बीच विशेष स्थान है, और वे अपनी कला के माध्यम से संगीत की दुनिया में लगातार योगदान दे रही हैं.

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राजनीतिज्ञ हेमन्त सोरेन

हेमंत सोरेन एक भारतीय राजनीतिज्ञ हैं और वर्तमान में झारखंड राज्य के मुख्यमंत्री हैं. वे झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के प्रमुख नेता हैं और झारखंड के राजनीतिक परिदृश्य में एक प्रमुख व्यक्ति हैं.

हेमंत सोरेन का जन्म 10 अगस्त 1975 को हुआ. वे झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक और झारखंड राज्य के लिए आंदोलन करने वाले प्रसिद्ध नेता शिबू सोरेन के पुत्र हैं. शिबू सोरेन झारखंड राज्य के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं, और उनके पिता का राजनीतिक संघर्ष हेमंत के जीवन और कैरियर पर गहरा प्रभाव डालता है. हेमंत सोरेन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा रांची से प्राप्त की और फिर आगे की पढ़ाई के लिए बिहार के पटना चले गए. हालांकि, उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और राजनीति में सक्रिय हो गए.

हेमंत सोरेन ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत अपने पिता के पद चिन्हों पर चलते हुए की. वर्ष 2009 में, वे झारखंड विधान सभा के सदस्य के रूप में चुने गए और झारखंड मुक्ति मोर्चा के महत्वपूर्ण नेता बने. हेमंत सोरेन 2013 – 14 तक पहली बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने. बाद में, वर्ष 2019 के विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी झामुमो ने कांग्रेस और अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को हराकर एक बार फिर मुख्यमंत्री पद संभाला.

मुख्यमंत्री के रूप में, हेमंत सोरेन ने सामाजिक न्याय, आदिवासी अधिकारों, और राज्य के विकास पर जोर दिया. उनके कार्यकाल के दौरान, उन्होंने आदिवासी समुदाय के कल्याण, भूमि अधिकारों, और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े मुद्दों पर कई महत्वपूर्ण फैसले लिए. हेमंत सोरेन का राजनीतिक कैरियर कुछ विवादों से भी जुड़ा रहा है, जिसमें उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप और अन्य कानूनी मामले शामिल हैं. हालांकि, वे हमेशा अपने कार्यों का बचाव करते रहे हैं और अपने समर्थकों के बीच लोकप्रिय नेता बने हुए हैं.

हेमंत सोरेन का विवाह कल्पना सोरेन से हुआ है, और उनके दो बच्चे हैं. उनका जीवन सरल और जमीन से जुड़ा हुआ माना जाता है, और वे झारखंड के जनसमूह के बीच एक सशक्त नेता के रूप में पहचाने जाते हैं. हेमंत सोरेन का नेतृत्व झारखंड में महत्वपूर्ण है, खासकर आदिवासी और वंचित समुदायों के लिए. उन्होंने झारखंड राज्य की राजनीति में एक स्थायी छाप छोड़ी है और वे राज्य के विकास और कल्याण के लिए लगातार काम कर रहे हैं.

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पार्श्व गायिका शेफाली अलवेरेस

शेफाली अल्वारेस एक भारतीय पार्श्व गायिका हैं, जो बॉलीवुड में अपने अनोखे और एनर्जेटिक गानों के लिए जानी जाती हैं. वे विशेष रूप से अपने हिप-हॉप, पॉप और डांस नंबर्स के लिए मशहूर हैं. उनकी आवाज में आधुनिकता और ताजगी की झलक है, जिसने उन्हें भारतीय संगीत उद्योग में एक अलग पहचान दिलाई है.

शेफाली अल्वारेस का जन्म मुंबई में हुआ. वे एक संगीत-प्रेमी परिवार से आती हैं; उनके पिता जो अल्वारेस एक प्रसिद्ध जैज संगीतकार थे. इस संगीत पूर्ण माहौल ने शेफाली के कैरियर को बहुत प्रभावित किया और उन्होंने छोटी उम्र से ही संगीत में रुचि लेनी शुरू कर दी. शेफाली ने अपने कैरियर की शुरुआत नाइट क्लब्स और लाइव म्यूजिक गिग्स में गाकर की. उनकी पॉप और जैज में गहरी रुचि थी, जो उनके गाने की शैली में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है. उन्होंने बॉलीवुड में प्लेबैक सिंगिंग की शुरुआत फिल्म “शंघाई” (2012) के गाने “भारत माता की जय” से की, जो बहुत लोकप्रिय हुआ.

शेफाली अल्वारेस को सबसे बड़ी सफलता 2014 में मिली, जब उन्होंने फिल्म “हंसी तो फंसी” का हिट गाना “ड्रामा क्वीन” गाया. इस गाने ने उन्हें रातों-रात मशहूर कर दिया और वे बॉलीवुड में एक प्रमुख आवाज बन गईं. इसके अलावा, उन्होंने कई लोकप्रिय गाने गाए हैं, जैसे “सुभा होने ना दे” (देसी बॉयज़, 2011), और “पार्टी ऑन माइंड” (रेस 2, 2013), जिन्हें दर्शकों ने बहुत पसंद किया.

शेफाली की गायकी में पश्चिमी संगीत की झलक मिलती है, और उनकी आवाज में एक विशिष्ट आधुनिकता है जो युवाओं के बीच खास तौर पर लोकप्रिय है. उनकी शैली में ऊर्जा, लयबद्धता, और एक सजीवता है, जिसने उन्हें पार्टी और डांस नंबर्स की एक बेहतरीन गायिका बना दिया है. शेफाली ने विभिन्न भाषाओं में भी गाने गाए हैं, और उनका संगीत कैरियर केवल हिंदी फिल्मों तक सीमित नहीं है. वे विभिन्न म्यूजिक शैलियों के साथ प्रयोग करने के लिए जानी जाती हैं, जिसमें जैज, पॉप, और इलेक्ट्रॉनिक डांस म्यूजिक शामिल हैं.

शेफाली अल्वारेस का कैरियर आज भी सफलता की ओर अग्रसर है, और वे अपने अनोखे और उत्साहपूर्ण गानों से संगीत प्रेमियों के दिलों में जगह बनाए हुए हैं. उनकी आवाज में वह दमखम है जो किसी भी गाने को यादगार बना सकती है.

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झण्डा गीत के रचयिता श्यामलाल गुप्त “पार्षद”

श्यामलाल गुप्त “पार्षद” एक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और कवि थे, जिन्होंने प्रसिद्ध झण्डा गीत “विजयी विश्व तिरंगा प्यारा” की रचना की. यह गीत भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बहुत लोकप्रिय हुआ और आज भी इसे बड़े सम्मान के साथ गाया जाता है.

श्यामलाल गुप्त का जन्म 16 सितंबर 1896 को उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के नरवाल गाँव में हुआ था. वे एक साधारण परिवार से थे और उनकी शिक्षा भी साधारण थी। बचपन से ही उन्हें साहित्य और कविता में रुचि थी. श्यामलाल गुप्त “पार्षद” भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लेते थे. वे महात्मा गांधी के अनुयायी थे और उनके नेतृत्व में देश को आज़ाद कराने के लिए कई आंदोलनों में भाग लिया. उन्होंने अपनी कविताओं और लेखनी के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम में लोगों को प्रेरित किया. वर्ष 1924 में, जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में एक प्रेरणादायक झण्डा गीत की आवश्यकता महसूस हुई, तब श्यामलाल गुप्त “पार्षद” ने “विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा” गीत की रचना की. यह गीत जल्द ही स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीयों के बीच प्रेरणा का स्रोत बन गया और राष्ट्रवाद का प्रतीक बन गया.

झण्डा गीत स्वतंत्रता सेनानियों के लिए साहस और संघर्ष का प्रतीक बन गया. यह गीत स्वतंत्रता आंदोलन के समय राष्ट्रीय एकता और देशभक्ति का संदेश देता था. आज भी, यह गीत भारत के राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है और स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस जैसे महत्वपूर्ण अवसरों पर गाया जाता है. श्यामलाल गुप्त “पार्षद” को उनके योगदान के लिए भारतीय सरकार और विभिन्न संगठनों द्वारा सम्मानित किया गया. उनकी रचनाएँ और विशेष रूप से उनका झण्डा गीत आज भी भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. श्यामलाल गुप्त “पार्षद” का निधन 10 अगस्त 1977 को हुआ. उनकी लेखनी और उनके योगदान को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और साहित्य में हमेशा याद किया जाएगा.

श्यामलाल गुप्त “पार्षद” का जीवन एक प्रेरणा है, जो बताता है कि साहित्य और लेखनी के माध्यम से भी एक व्यक्ति स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है. उनका झण्डा गीत आज भी देशभक्ति की भावना को प्रकट करता है और भारतीयों के दिलों में विशेष स्थान रखता है.

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