कवि मैथिलीशरण गुप्त
मैथिलीशरण गुप्त (1886-1964) हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि थे. उन्हें “दद्दा” के नाम से भी जाना जाता है। वे हिंदी खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि माने जाते हैं. उनके काव्य में भारतीय संस्कृति, परंपरा और राष्ट्रीयता की भावना प्रमुखता से झलकती है.
मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म 3 अगस्त 1886 चिरगाँव (झाँसी, उत्तर प्रदेश) के संभ्रांत वैश्य परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम ‘सेठ रामचरण’ और माता का नाम काशीबाई’ था. गुप्त के पिता रामचरण एक निष्ठावान् प्रसिद्ध राम भक्त थे साथ ही ‘कनकलता’ उप नाम से कविता किया करते थे. मैथिलीशरण गुप्त को कवित्व प्रतिभा और राम भक्ति पैतृक मिली थी. गुप्त बाल्यकाल में ही काव्य रचना करने लगे थी. एक दिन उनके पिता ने गुप्त के लिखे एक छंद को पढ़कर आशीर्वाद दिया कि “तू आगे चलकर हमसे हज़ार गुनी अच्छी कविता करेगा” और यह आशीर्वाद अक्षरशः सत्य हुआ.
मैथिलीशरण गुप्त स्वभाव से ही लोक संग्रही कवि थे साथ ही अपने युग की समस्याओं के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील रहते थे. गुप्त का सम्पर्क महात्मा गांधी, राजेन्द्र प्रसाद, जवाहर लाल नेहरू और विनोबा भावे से होए के बाद वो गांधीवाद के व्यावहारिक पक्ष और सुधारवादी आंदोलनों के समर्थक भी बने. महात्मा गांधी ने गुप्त को मैथिली काव्य–मान ग्रन्थ भेंट करते हुए राष्ट्रकवि का सम्बोधन दिया था. बताते चलें कि, गुप्त की काव्य–कला में निखार आया और उनकी रचनाएँ ‘सरस्वती’ में निरन्तर प्रकाशित होती रहीं. उनका पहला काव्य वर्ष 1909 में जयद्रथ-वध आया .
मैथिलीशरण गुप्त ने 59 वर्षों तक साहित्य साधना की. इस दौरान उन्होंने इस दौरान हिंदी में करीब 74 रचनाएँ प्रदान की, जिनमें दो महाकाव्य, 20 खंड काव्य, 17 गीतिकाव्य, चार नाटक और गीतिनाट्य शामिल हैं.
प्रमुख रचनाएँ: –
साकेत – रामायण पर आधारित एक महाकाव्य है, जिसमें उर्मिला की दृष्टि से रामकथा का वर्णन है.
यशोधरा – यह काव्य महात्मा बुद्ध की पत्नी यशोधरा की पीड़ा को अभिव्यक्त करता है.
जयद्रथ वध – महाभारत की कथा पर आधारित है.
पंचवटी – रामायण के एक अंश पर आधारित काव्य है.
भारत-भारती – इसमें देशभक्ति की भावना का प्रबल स्वरूप देखने को मिलता है.
मैथिलीशरण गुप्त को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए कई सम्मानों से नवाजा गया. वे भारतीय साहित्य और संस्कृति के प्रति अपनी गहरी निष्ठा के लिए सदैव स्मरणीय रहेंगे.
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शायर शकील बदायूंनी
शकील बदायूंनी (1916-1970) भारतीय उर्दू शायरी और हिंदी फिल्मी गीतों के एक प्रसिद्ध शायर थे. उनका असली नाम शकील अहमद था और वे उत्तर प्रदेश के बदायूं शहर से ताल्लुक रखते थे, इसी कारण से उन्हें “शकील बदायूंनी” के नाम से जाना जाता है.
शकील बदायूंनी का जन्म 3 अगस्त 1916 को बदायूं, उत्तर प्रदेश में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अरबी और उर्दू में प्राप्त की और बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की. शकील बदायूंनी ने अपना कैरियर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में गीतकार के रूप में शुरू किया. उनकी पहली फिल्म थी “दर्द” (1947), जिसके गाने बहुत लोकप्रिय हुए. इसके बाद उन्होंने कई सुपरहिट फिल्मों के लिए गाने लिखे.
फिल्में और गीत: –
मुगल-ए-आज़म – “प्यार किया तो डरना क्या”
चौदहवीं का चाँद – “चौदहवीं का चाँद हो, या आफताब हो”
मदर इंडिया – “दुःख भरे दिन बीते रे भइया”
गंगा जमुना – “दोस्त दोस्त ना रहा”
बाजार – “करोगे याद तो हर बात याद आएगी”
शकील बदायूंनी को उनकी उत्कृष्ट रचनाओं के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले. उन्हें फिल्मफेयर अवार्ड्स में सर्वश्रेष्ठ गीतकार का पुरस्कार भी मिला. शकील बदायूंनी की शायरी और फिल्मी गीत आज भी लोकप्रिय हैं और उनकी साहित्यिक धरोहर भारतीय संगीत और शायरी में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है.
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संगीतकार जयदेव
जयदेव (1918-1987) भारतीय फिल्म संगीतकार थे जिन्होंने हिंदी सिनेमा में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनका पूरा नाम जयदेव वर्मा था. वे संगीत की दुनिया में अपनी अद्वितीय रचनाओं के लिए जाने जाते हैं. जयदेव का जन्म 3 अगस्त 1918 को बँसी, नेपाल में हुआ था. उनके पिता भारतीय थे, और परिवार बाद में लुधियाना, पंजाब, भारत में बस गया। जयदेव ने बहुत छोटी उम्र में ही संगीत सीखना शुरू कर दिया था और पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर से संगीत की शिक्षा प्राप्त की.
जयदेव ने अपने कैरियर की शुरुआत ऑल इंडिया रेडियो से की और फिर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा. उन्होंने सबसे पहले संगीतकार अली अकबर खान और सी. रामचंद्र के सहायक के रूप में काम किया.
फिल्में और संगीत: –
हमदर्द (1953) – यह उनकी पहली स्वतंत्र फिल्म थी।
अनुराधा (1960) – “हाय रे वो दिन क्यूँ ना आए”
रेशमा और शेरा (1971) – “एक मीठी सी चुभन”
हमारी याद आएगी (1961) – “कुछ और जमाना कहता है”
मुझे जीने दो (1963) – “रात भी है कुछ भीगी-भीगी”
जयदेव को उनके उत्कृष्ट संगीत निर्देशन के लिए कई पुरस्कार मिले: – राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार – तीन बार विजेता (रेशमा और शेरा, चश्मे बद्दूर, अंकुर), फिल्मफेयर पुरस्कार – कई बार नामांकित.
जयदेव का संगीत भारतीय फिल्म संगीत में एक अद्वितीय स्थान रखता है, और उनकी रचनाएँ आज भी सुनने वालों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं. उनका योगदान भारतीय संगीत की धरोहर में हमेशा अमूल्य रहेगा.
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अभिनेत्री शशिकला
शशिकला (1933-2021) भारतीय सिनेमा की एक प्रतिष्ठित अभिनेत्री थीं, जिन्होंने हिंदी फिल्मों में अपने सशक्त अभिनय के लिए ख्याति प्राप्त की. वे मुख्यतः सहायक अभिनेत्री के रूप में जानी जाती थीं और कई यादगार भूमिकाएँ निभाईं.
शशिकला का पूरा नाम शशिकला जावलकर था. उनका जन्म 4 अगस्त 1933 को सोलापुर, महाराष्ट्र में हुआ था. शशिकला का बचपन कठिनाइयों से भरा था, और वे एक गरीब परिवार से थीं. छोटी उम्र में ही उन्होंने अपने परिवार की आर्थिक मदद के लिए फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया था. शशिकला ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत 1940 के दशक में की थी. उन्होंने विभिन्न प्रकार की भूमिकाओं में काम किया, लेकिन वे मुख्यतः नकारात्मक और चरित्र भूमिकाओं के लिए जानी जाती थीं.
फिल्में और भूमिकाएँ: –
आरती (1962) – एक नकारात्मक भूमिका में शशिकला के अभिनय की काफी सराहना हुई.
गुमराह (1963) – इस फिल्म में उनकी नकारात्मक भूमिका ने उन्हें बहुत प्रशंसा दिलाई.
अनुपमा (1966) – सहायक भूमिका में उनका काम उल्लेखनीय था.
फूल और पत्थर (1966)-
खूबसूरत (1980) – इस फिल्म में उन्होंने एक सख्त, अनुशासनप्रिय महिला की भूमिका निभाई.
बादशाह (1999) – इस फिल्म में भी उन्होंने एक सहायक भूमिका निभाई.
शशिकला को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले: – फिल्मफेयर पुरस्कार – सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का पुरस्कार
पद्म श्री (2007) – भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए
शशिकला का निधन 4 अप्रैल 2021 को हुआ. उनका योगदान भारतीय सिनेमा में अमूल्य है, और वे हमेशा अपने यादगार किरदारों और अभिनय के लिए जानी जाती हैं.
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शास्त्रीय गायक छन्नूलाल मिश्रा
पंडित छन्नूलाल मिश्रा एक प्रमुख भारतीय शास्त्रीय गायक हैं, जिन्हें हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के बनारस घराने की ठुमरी, दादरा, कजरी, चैती और भजन गायन की विशिष्ट शैली के लिए जाना जाता है. उनका संगीत ज्ञान और उनकी गायकी की गहराई उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया में एक अद्वितीय स्थान दिलाते हैं.
छन्नूलाल मिश्रा का जन्म 3 अगस्त 1936 को बलिया, उत्तर प्रदेश में हुआ था. उनका संगीत में प्रारंभिक प्रशिक्षण उनके पिता, पंडित बड़ेश्वर मिश्रा से हुआ, जो स्वयं एक प्रतिष्ठित गायक थे. बाद में, उन्होंने उस्ताद अब्दुल गनी खान और पंडित महादेव मिश्र से भी संगीत की शिक्षा प्राप्त की.
छन्नूलाल मिश्रा ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के विभिन्न शैलियों में महारत हासिल की है, खासकर ठुमरी, दादरा, कजरी, और भजन. उन्होंने पूरे भारत और विदेशों में अनेक संगीत समारोहों में प्रदर्शन किया है और उनकी गायकी को श्रोताओं द्वारा अत्यधिक सराहा गया है.
प्रमुख रचनाएँ और एल्बम: – ठुमरी चंद्रिका, शिव स्तुति, रामचरितमानस, बाजे रे मुरलिया बाजे, कृष्ण माधुरी.
छन्नूलाल मिश्रा को उनके उत्कृष्ट गायन के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं: – पद्म भूषण (2010) – भारत सरकार और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार – संगीत नाटक अकादमी द्वारा.
छन्नूलाल मिश्रा का जीवन भारतीय शास्त्रीय संगीत को समर्पित रहा है, और वे आज भी अपने संगीत से लोगों को मंत्रमुग्ध करते रहते हैं. उनकी गायकी में बनारस की सांस्कृतिक और संगीत परंपरा की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई देती है, जिससे वे एक जीवंत किंवदंती के रूप में जाने जाते हैं.
छन्नूलाल मिश्रा का योगदान भारतीय शास्त्रीय संगीत में अमूल्य है, और उनकी कला और संगीत की धरोहर आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी.
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अभिनेता फैज़ल खान
फैज़ल खान एक भारतीय अभिनेता और निर्देशक हैं, जो मुख्यतः हिंदी फिल्मों में अपने काम के लिए जाने जाते हैं. वे प्रसिद्ध अभिनेता आमिर खान के भाई हैं और फिल्म उद्योग में अपने अलग पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
फैज़ल खान का जन्म 3 सितंबर 1966 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. उनका पूरा नाम फैज़ल हुसैन खान है. वे ताहिर हुसैन और जीनत हुसैन के बेटे हैं. उनके भाई आमिर खान एक स्थापित अभिनेता और फिल्म निर्माता हैं. फैज़ल खान ने अपने कैरियर की शुरुआत 1994 में फिल्म “मदहोश” से की थी, लेकिन उन्हें मुख्यतः 2000 में आई फिल्म “मेला” के लिए जाना जाता है, जिसमें उन्होंने अपने भाई आमिर खान के साथ मुख्य भूमिका निभाई थी.
प्रमुख फिल्में: –
मेला (2000) – इस फिल्म में उन्होंने ‘किशन’ की भूमिका निभाई थी. हालांकि फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं रही, लेकिन फैज़ल के अभिनय की सराहना हुई.
बॉलीवुड (1994) – इसमें उन्होंने एक छोटी भूमिका निभाई थी.
मदहोश (1994) – यह फैज़ल की पहली फिल्म थी, लेकिन इसे अधिक सफलता नहीं मिली.
प्यारा भईया (1996) – इस फिल्म में भी उन्होंने काम किया.
फैज़ल खान ने अभिनय के अलावा निर्देशन में भी हाथ आजमाया है. वर्ष 2021 में उन्होंने फिल्म “फैक्ट्री” का निर्देशन किया, जिसमें उन्होंने अभिनय भी किया. फैज़ल खान का व्यक्तिगत जीवन विवादों और संघर्षों से भरा रहा है. उनके और उनके परिवार के बीच कुछ आपसी मतभेद भी सामने आए, जिसके कारण उन्होंने कुछ समय के लिए फिल्म उद्योग से दूरी बना ली थी.
फैज़ल खान का कैरियर भले ही उनके भाई आमिर खान की तरह अत्यधिक सफल नहीं रहा, लेकिन उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश की है. वे एक प्रतिभाशाली अभिनेता और निर्देशक हैं, जो अपने काम के प्रति समर्पित हैं.
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गायक मनमोहन वारिस
मनमोहन वारिस एक प्रसिद्ध पंजाबी गायक हैं, जो अपने पारंपरिक और आधुनिक पंजाबी संगीत के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने कई हिट गाने दिए हैं और पंजाबी संगीत में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं.
मनमोहन वारिस का जन्म 3 जुलाई 1967 को पंजाब के हुसैनपुर गाँव में हुआ था. उनका असली नाम मनमोहन सिंह हीर है. वे एक संगीत प्रेमी परिवार से ताल्लुक रखते हैं, और उनके दो छोटे भाई कंवर ग्रेवाल और संगतपुरिया भी प्रसिद्ध गायक हैं.
मनमोहन वारिस ने अपने संगीत कैरियर की शुरुआत 1993 में अपने पहले एल्बम “गड्डी चालन दे” से की थी. इसके बाद उन्होंने कई हिट एल्बम और गाने दिए, जो पंजाबी संगीत प्रेमियों के बीच काफी लोकप्रिय हुए.
गाने और एल्बम: –
गड्डी चालन दे – उनका पहला एल्बम जिसने उन्हें पहली बार संगीत प्रेमियों के बीच पहचान दिलाई.
नचिये जोधां दे नाल – यह एल्बम बहुत लोकप्रिय हुआ और मनमोहन वारिस को पंजाबी संगीत में स्थापित किया.
आवाज़ पंजाब दी – इस एल्बम के गाने भी बहुत पसंद किए गए.
मेरा यार वसदा – यह एक और हिट एल्बम रहा.
सस्सी – इस एल्बम के गाने भी बहुत प्रसिद्ध हुए.
मनमोहन वारिस को पंजाबी संगीत में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं. वे अपने संगीत के लिए विभिन्न मंचों पर सम्मानित हो चुके हैं और उनके गाने आज भी श्रोताओं के बीच लोकप्रिय हैं.
मनमोहन वारिस का परिवार भी संगीत में काफी सक्रिय है. उनके भाई कंवर ग्रेवाल और संगतपुरिया भी प्रसिद्ध गायक हैं और वे अपने पारिवारिक संगीत विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. मनमोहन वारिस का संगीत जीवन पारंपरिक और आधुनिक पंजाबी संगीत का एक अद्वितीय संगम है.
मनमोहन वारिस ने अपने संगीत के माध्यम से पंजाबी संस्कृति और परंपरा को जीवित रखा है और वे अपने गीतों के माध्यम से लोगों के दिलों में बसे हैं. उनका योगदान पंजाबी संगीत उद्योग में अमूल्य है.
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मौलवी खुदाबक़्श खान
मौलवी खुदाबक़्श खान (1842-1908) एक पुस्तकालय के संस्थापक थे, जो वर्तमान में खुदाबख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी के नाम से जाना जाता है. यह पुस्तकालय भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे महत्वपूर्ण पुस्तकालयों में से एक है, जिसमें उर्दू, अरबी, फारसी और तुर्की भाषाओं में दुर्लभ पांडुलिपियाँ और किताबें संग्रहित हैं.
मौलवी खुदाबक़्श खान का जन्म 02 अगस्त 1842 को बिहार के पटना में हुआ था. उनके पिता, मौलवी मोहम्मद बक़्श, भी एक विद्वान थे और उनके पास एक समृद्ध पुस्तक संग्रह था. खुदाबक़्श ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता से प्राप्त की और बाद में उन्होंने कानून की पढ़ाई की. मौलवी खुदाबक़्श खान ने 1891 में अपने पिता के पुस्तक संग्रह को सार्वजनिक करने का निर्णय लिया और इस पुस्तकालय की स्थापना की. यह पुस्तकालय 5,000 से अधिक दुर्लभ पांडुलिपियों और पुस्तकों के साथ शुरू हुआ और अब इसमें 210,000 से अधिक पांडुलिपियाँ और पुस्तकें संग्रहित हैं.
विशेष संग्रह: –
मुगल पांडुलिपियाँ – इनमें मुगलों के समय की महत्वपूर्ण दस्तावेज़ और पुस्तकें शामिल हैं.
प्राचीन ग्रंथ – उर्दू, अरबी, फारसी और तुर्की भाषाओं में.
पवित्र कुरान के दुर्लभ संस्करण – विभिन्न कालों के.
फारसी साहित्य – महान फारसी कवियों और लेखकों के महत्वपूर्ण कार्य.
मौलवी खुदाबक़्श खान को उनके योगदान के लिए कई सम्मानों से नवाजा गया. उनके पुस्तकालय को भारतीय उपमहाद्वीप के विद्वानों और शोधकर्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन के रूप में माना जाता है. मौलवी खुदाबक़्श खान का निधन 3 मार्च 1908 को हुआ. उनके निधन के बाद भी उनका पुस्तकालय उनकी धरोहर के रूप में जीवित है और आज भी अध्ययन और शोध के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बना हुआ है.
खुदाबक़्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी मौलवी खुदाबक़्श खान की दृष्टि और विद्वता का प्रमाण है. उनके प्रयासों ने भारतीय और इस्लामी अध्ययन के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया है.
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स्वामी चिन्मयानंद
स्वामी चिन्मयानंद (1916-1993) भारत के एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु और वेदांत के विद्वान थे. उन्होंने विश्वभर में वेदांत के संदेश को फैलाने और आध्यात्मिक ज्ञान को लोगों तक पहुँचाने के लिए चिन्मया मिशन की स्थापना की.
स्वामी चिन्मयानंद का जन्म 8 मई 1916 को केरल के एर्नाकुलम जिले में हुआ था. उनका असली नाम बलकृष्ण मेनन था. उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा केरल में प्राप्त की और बाद में अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. किया. बलकृष्ण मेनन ने पत्रकारिता में भी काम किया और वे “द नेशनल हेराल्ड” अखबार के लिए काम करते थे. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया. बाद में वे आध्यात्मिक ज्ञान की खोज में हिमालय चले गए.
बलकृष्ण मेनन की आध्यात्मिक यात्रा हिमालय में स्वामी शिवानंद के सान्निध्य में शुरू हुई, जहाँ उन्होंने वेदांत के गहरे ज्ञान को प्राप्त किया। बाद में वे स्वामी तपोवन महाराज के शिष्य बने और उनसे वेदांत के गूढ़ रहस्यों को समझा. वर्ष 1953 में स्वामी चिन्मयानंद ने चिन्मया मिशन की स्थापना की. मिशन का उद्देश्य वेदांत के ज्ञान को जन-जन तक पहुँचाना और समाज में आध्यात्मिक चेतना का विकास करना था.
स्वामी चिन्मयानंद ने विश्वभर में हजारों प्रवचन दिए और लोगों को भगवद गीता, उपनिषद और अन्य वेदांत ग्रंथों का ज्ञान कराया. चिन्मया मिशन आज विश्वभर में 300 से अधिक केंद्रों के माध्यम से वेदांत और अध्यात्म का प्रचार-प्रसार कर रहा है. स्वामी चिन्मयानंद ने कई किताबें लिखीं जिनमें “किंचित धारा”, “गीता गंगा”, और “विवेक चूड़ामणि” प्रमुख हैं. उन्होंने कई शिक्षण संस्थानों की स्थापना की जिनमें स्कूल, कॉलेज, और व्यावसायिक संस्थान शामिल हैं, जो बच्चों और युवाओं को उच्च गुणवत्ता की शिक्षा प्रदान करते हैं. स्वामी चिन्मयानंद का निधन 3 अगस्त 1993 को हुआ, लेकिन उनका योगदान और उनकी शिक्षाएँ आज भी विश्वभर में लाखों लोगों को प्रेरित कर रही हैं.
स्वामी चिन्मयानंद का जीवन और उनकी शिक्षाएँ आत्मज्ञान, सेवा, और आध्यात्मिकता के महत्व को समझने में लोगों की मदद करती हैं. उनका मिशन और उनके द्वारा स्थापित संस्थान आज भी उनके विचारों और आदर्शों को जीवित रखे हुए हैं.