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व्यक्ति विशेष

भाग – 217.

स्वतंत्रता सेनानी पुरुषोत्तम दास टंडन

पुरुषोत्तम दास टंडन (1882-1962) एक प्रमुख भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे. उन्हें “राजर्षि” के नाम से भी जाना जाता है. टंडन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेता थे और हिंदी के प्रचार-प्रसार में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही.

पुरुषोत्तम दास टंडन का जन्म 1 अगस्त, 1882 को उत्तर प्रदेश के प्राचीनतम और धार्मिक शहर इलाहाबाद में हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय ‘सिटी एंग्लो वर्नाक्यूलर विद्यालय’ में हुई थी. इसके बाद उन्होंने एल.एल.बी. की डिग्री हासिल की और एम.ए. इतिहास विषय से किया. वर्ष 1906 में वकालत की प्रैक्टिस के लिए पुरुषोत्तम जी ने ‘इलाहाबाद उच्च न्यायालय’ में काम करना शुरू किया.

टंडन ने ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ के साथ वर्ष 1899 से ही काम करना शुरु कर दिया था. क्रांतिकारी कार्यकलापों के कारण उन्हें ‘इलाहाबाद विश्वविद्यालय’ के ‘म्योर सेण्ट्रल कॉलेज’ से निष्कासित भी कर दिया गया था. वर्ष 1930 में महात्मा गाँधी द्वारा चलाये जा रहे ‘सविनय अवज्ञा आन्दोलन’ के सिलसिले में वे बस्ती में गिरफ्तार हुए और उन्हें कारावास का दण्ड मिला.

टंडन ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने के प्रबल समर्थक थे और इसको आगे बढ़ाने और राष्ट्रभाषा का स्थान देने के लिए काफ़ी प्रयास कर रहे थे. आज़ादी के बाद पुरुषोत्तम दास टंडन ने उत्तर प्रदेश की विधान सभा के प्रवक्ता के रूप में तेरह साल तक काम किया. वर्ष 1961 में भारत सरकार द्वारा पुरुषोत्तम दास टंडन को भारत रत्न से सम्मानित किया गया.

पुरुषोत्तम दास टंडन ने अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा राष्ट्र सेवा और हिंदी भाषा के उत्थान के लिए समर्पित किया. उनका जीवन और योगदान आज भी प्रेरणा का स्रोत है.

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कमला नेहरू

कमला नेहरू (1899-1936) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक प्रमुख महिला और जवाहरलाल नेहरू की पत्नी थीं. वह स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल रहीं और उन्होंने भारतीय महिलाओं को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया.

कमला का जन्म 1 अगस्त, 1899 को दिल्ली के एक कश्मीरी ब्राह्मण परिवार में कमला का जन्म 1 अगस्त, 1899 को दिल्ली में हुआ था. उनके पिता का नाम जवाहरमल कौली और माता का नाम राजपति कौली था. उनका विवाह 8 फरवरी 1916 को जवाहरलाल नेहरू से हुआ था. उस समय जवाहरलाल नेहरू एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे और बाद में भारत के पहले प्रधानमंत्री बने.

कमला नेहरू ने  गांधीजी के नेतृत्व में चलाए गए असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह, और अन्य आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया. उन्होंने महिलाओं के संगठनों और रैलियों का आयोजन किया और महिलाओं को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया. ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध करने के कारण कई बार गिरफ्तार भी हुईं.

कमला नेहरू ने गरीबों और जरूरतमंदों की मदद के लिए कई सामाजिक कार्य किए. वो  महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण के लिए प्रयासरत रहीं. कमला नेहरू  लंबे समय से ट्यूबरकुलोसिस से पीड़ित थीं. वे उपचार के लिए स्विट्जरलैंड गईं, लेकिन उनकी स्थिति में सुधार नहीं हो सका. कमला नेहरू का निधन 28 फरवरी 1936 को स्विट्जरलैंड में हुआ था.

कमला नेहरू का जीवन स्वतंत्रता संग्राम और समाज सेवा के प्रति समर्पित रहा. उनकी संघर्षशीलता और समर्पण भारतीय इतिहास में विशेष स्थान रखता है.

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अभिनेता एवं फ़िल्म निर्माता-निर्देशक भगवान दादा

भगवान दादा (1 अगस्त 1913 – 4 फरवरी 2002) भारतीय सिनेमा के एक प्रमुख अभिनेता, फिल्म निर्माता और निर्देशक थे. उन्हें विशेष रूप से अपनी फिल्म “अलबेला” के लिए जाना जाता है, जिसमें उनका नृत्य और अभिनय आज भी याद किया जाता है. भगवान दादा का जन्म  1 अगस्त, 1913 को अमरावती, महाराष्ट्र में हुआ था. उनका पूरा नाम भगवान आभाजी पलव था। उन्होंने बहुत कम उम्र में फिल्मों में काम करना शुरू किया और अपने परिवार की आर्थिक मदद के लिए कई छोटे-मोटे काम किए.

भगवान दादा ने अपने कैरियर की शुरुआत 1930 के दशक में की. उन्होंने कई मारधाड़ वाली फिल्मों में काम किया और धीरे-धीरे अपनी खुद की फिल्में बनाने और निर्देशित करने लगे.  भगवान दादा की सबसे प्रसिद्ध फिल्म “अलबेला” (1951) है, जिसमें उनके साथ गीता बाली ने काम किया था. इस फिल्म के गाने जैसे “शोला जो भड़के”, “बलमा बड़माश”, और “भोली सूरत दिल के खोटे” आज भी लोकप्रिय हैं. भगवान दादा ने कई फिल्मों का निर्देशन और निर्माण किया, जिसमें “लाबेला” (1956), “जहमाला” (1951) और “भक्त पुंडलीक” (1949) शामिल हैं.

भगवान दादा ने अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे. एक समय पर वे बहुत अमीर थे, लेकिन बाद में उनकी फिल्मों की असफलता के कारण उन्हें आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ा. भगवान दादा का निधन 4 फरवरी 2002 को मुंबई में हुआ.

भगवान दादा को भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए हमेशा याद किया जाएगा.

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अभिनेत्री मीना कुमारी

मीना कुमारी (1 अगस्त 1933 – 31 मार्च 1972) भारतीय सिनेमा की एक प्रमुख अभिनेत्री थीं, जिन्हें उनकी संवेदनशील और प्रभावशाली अभिनय क्षमता के लिए जाना जाता है. उनका असली नाम महजबीन बानो था, लेकिन वे मीना कुमारी के नाम से प्रसिद्ध हुईं.

मीना कुमारी का जन्म 1 अगस्त, 1932 को मुंबई, महाराष्ट्र में एक मध्यम वर्गीय मुस्लिम परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम अली बख़्श था और माता इकबाल बेगम (मूल नाम प्रभावती) थीं.  उनका बचपन गरीबी में बीता, और उन्होंने बहुत कम उम्र में फिल्म इंडस्ट्री में काम करना शुरू किया.

मीना कुमारी ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत फिल्म बैजू बावरा से की थी. उन्होंने लगभग 90 फिल्मों में काम किया. उनकी प्रमुख फिल्में “साहिब बीबी और गुलाम”, “पाकीज़ा”, “बैजू बावरा”, “फूल और पत्थर”, और “दिल एक मंदिर” हैं. मीना कुमारी ने अपने कैरियर में कई फिल्मफेयर पुरस्कार जीते. उन्हें उनके अभिनय कौशल और संजीदा भूमिकाओं के लिए “ट्रेजेडी क्वीन” का खिताब मिला.

मीना कुमारी की शादी फिल्म निर्देशक कमाल अमरोही से हुई थी, लेकिन उनका जीवन वैवाहिक संकटों और व्यक्तिगत कठिनाइयों से भरा रहा. मीना कुमारी का 31 मार्च 1972 को लीवर सिरोसिस के कारण निधन हो गया. उनके निधन के बाद भी उनकी फिल्म “पाकीज़ा” ने उन्हें एक अमर अभिनेत्री के रूप में स्थापित कर दिया.

मीना कुमारी को भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक महान अभिनेत्री के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने अपने संजीदा अभिनय और भावुक प्रस्तुतियों से दर्शकों का दिल जीत लिया.

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अभिनेत्री तापसी पन्नू

तापसी पन्नू एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी, तेलुगु, तमिल और मलयालम फिल्मों में काम करती हैं. अपनी बहुमुखी अभिनय प्रतिभा और सशक्त भूमिकाओं के लिए जानी जाने वाली तापसी ने बॉलीवुड में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है.

तापसी पन्नू का जन्म 1 अगस्त 1987 को नई दिल्ली में हुआ था. उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा माता जय कौर पब्लिक स्कूल, अशोक विहार से की और गुरु तेग बहादुर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री प्राप्त की. तापसी ने अपने कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग से की. उन्होंने कई विज्ञापनों में काम किया और 2008 में फेमिना मिस फ्रेश फेस और फेमिना मिस ब्यूटीफुल स्किन का खिताब जीता.

तापसी ने 2010 में तेलुगु फिल्म “झुम्मंडी नादम” से अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत की. इसके बाद उन्होंने तमिल फिल्म “आदुकलम” (2011) में काम किया, जिसे कई पुरस्कार मिले. तापसी ने 2013 में हिंदी फिल्म “चश्मे बद्दूर” से बॉलीवुड में कदम रखा. उन्हें “बेबी” (2015) में उनके छोटे लेकिन प्रभावशाली किरदार के लिए भी सराहा गया.

प्रमुख फिल्में: – “पिंक” (2016), “नाम शबाना” (2017), “जुड़वा 2” (2017), “मुल्क” (2018), “मनमर्जियां” (2018), “बदला” (2019), “सांड की आँख” (2019), और “थप्पड़” (2020) शामिल हैं. तापसी को उनके उत्कृष्ट अभिनय के लिए कई पुरस्कार मिले हैं. उन्हें “पिंक” और “थप्पड़” में उनके प्रदर्शन के लिए विशेष रूप से सराहा गया. “सांड की आँख” के लिए उन्हें फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड फॉर बेस्ट एक्ट्रेस मिला. तापसी पन्नू अपने बेबाक विचारों और सामाजिक मुद्दों पर अपनी स्पष्ट राय के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने कई बार महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक समानता के मुद्दों पर खुलकर बात की है.

तापसी पन्नू को उनकी अभिनय क्षमता, साहसिक भूमिकाओं और सामाजिक मुद्दों पर उनकी स्पष्ट दृष्टि के लिए जाना जाता है. उनकी फिल्मों और व्यक्तित्व ने उन्हें भारतीय सिनेमा में एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली अभिनेत्री के रूप में स्थापित किया है.

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साहित्यकार गोविन्द मिश्र

गोविन्द मिश्र एक प्रमुख भारतीय साहित्यकार हैं, जो अपने उपन्यासों, कहानियों और कविताओं के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है.

गोविन्द मिश्र का जन्म 1 अगस्त 1939 को उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा वहीं प्राप्त की और फिर उच्च शिक्षा के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय चले गए. गोविन्द मिश्र ने अपने साहित्यिक कैरियर की शुरुआत कहानियों और कविताओं से की. उनके लेखन में भारतीय ग्रामीण जीवन, सामाजिक मुद्दों और मानवीय संवेदनाओं का सजीव चित्रण होता है.

उनकी प्रमुख कृतियों में “धूल पौधों पर”, “पाँच आंगनों वाला घर”, “लाल पीली जमीन”, “कोई बात चले”, और “प्रेमकथा का अंत” शामिल हैं. उनके उपन्यासों और कहानियों में भारतीय समाज की वास्तविकताओं का गहरा चित्रण मिलता है. गोविन्द मिश्र को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. उन्हें 2013 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला. इसके अलावा, उन्हें व्यास सम्मान और भारत भारती सम्मान भी प्राप्त हुए.

गोविन्द मिश्र की लेखन शैली में गहराई और संवेदनशीलता होती है. उनकी कहानियों में चरित्रों की जटिलता और उनकी भावनात्मक दुनिया का सजीव वर्णन होता है. उनका लेखन ग्रामीण और शहरी जीवन के बीच की खाई को भी प्रस्तुत करता है. गोविन्द मिश्र को हिंदी साहित्य में उनके अमूल्य योगदान के लिए हमेशा याद किया जाएगा. उनकी रचनाएँ पाठकों को सोचने पर मजबूर करती हैं और समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती.

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तिलिस्मी लेखक बाबु देवकीनन्दन खत्री

तिलिस्मी लेखक के रूप में प्रसिद्ध देवकीनन्दन खत्री (1861-1913) भारतीय हिंदी साहित्य के महत्वपूर्ण लेखक थे. उन्हें तिलिस्मी और रहस्यमयी उपन्यासों के लिए जाना जाता है, जिसमें उनके सबसे प्रसिद्ध उपन्यास “चंद्रकांता” और “चंद्रकांता संतति” शामिल हैं.

देवकीनन्दन खत्री का जन्म 29 जून 1861 को पूसा, बिहार में हुआ था. देवकीनन्दन खत्री जी की प्रारम्भिक शिक्षा उर्दू-फ़ारसी में हुई थी. बाद में उन्होंने हिन्दी, संस्कृत एवं अंग्रेज़ी का भी अध्ययन किया. देवकीनन्दन खत्री का विवाह मुजफ्फरपुर में हुआ था. उन्होंने वाराणसी में एक प्रिंटिंस प्रेस की स्थापना की और 1883 में हिन्दी मासिक पत्र ‘सुदर्शन’ को प्रारम्भ किया. घूमने फिरने के शौकीन खत्री ने चकिया एवं नौगढ़ के बीहड़ जंगलों, पहाड़ियों और प्राचीन ऐतिहासिक इमारतों के खंडहरों की खाक छानते रहते थे.

उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना “चंद्रकांता” है, जो 1888 में प्रकाशित हुई थी. इस उपन्यास ने पाठकों में अद्भुत रोमांच और रहस्य की लहर दौड़ाई. “चंद्रकांता संतति” चंद्रकांता की कहानी को आगे बढ़ाती है और इसमें भी तिलिस्मी और रोमांचक तत्वों की भरमार है. उन्होंने “भूतनाथ” और “काजल की कोठरी” जैसी अन्य रचनाएँ भी लिखीं।

खत्री की भाषा सरल, सजीव और प्रभावी थी, जिसने हिंदी भाषा को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनके उपन्यासों ने हिंदी पढ़ने का प्रचलन बढ़ाया और अनेक पाठकों को भी आकर्षित किया.उनकी रचनाओं ने कई फिल्मों, टीवी धारावाहिकों और नाटकों को प्रेरित किया.चंद्रकांता पर आधारित कई टीवी धारावाहिक आज भी लोकप्रिय हैं. उनकी तिलिस्मी और रहस्यमयी शैली ने भारतीय साहित्य में एक नई धारा को जन्म दिया. देवकीनन्दन खत्री का निधन 1 अगस्त, 1913 को काशी में हुआ था.

देवकीनन्दन खत्री का योगदान हिंदी साहित्य में अमूल्य है और उनकी रचनाएँ आज भी पाठकों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं.

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स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक (23 जुलाई 1856 – 1 अगस्त 1920) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता, समाज सुधारक और शिक्षक थे. उन्हें “लोकमान्य” की उपाधि से सम्मानित किया गया था, जो उनके प्रति जनता के गहरे सम्मान और विश्वास को दर्शाता है. तिलक ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उनका योगदान आज भी महत्वपूर्ण माना जाता है.

बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को ब्रिटिश भारत में वर्तमान महाराष्ट्र स्थित रत्नागिरी जिले के एक गाँव चिखली में हुआ था. उनका पूरा नाम केशव गंगाधर तिलक था. वे एक मराठी ब्राह्मण परिवार से थे और उन्होंने पुणे से अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की. तिलक ने डेक्कन कॉलेज से गणित में स्नातक किया और फिर एलएलबी की डिग्री प्राप्त की. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में की और बाद में पत्रकारिता में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया.

तिलक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक थे. उन्होंने “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा” का नारा दिया, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख आदर्श बन गया. तिलक ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष करने के लिए लोगों को प्रेरित किया और उन्हें संगठित किया. तिलक ने दो प्रमुख समाचार पत्रों, “केसरी” (मराठी) और “मराठा” (अंग्रेजी), की स्थापना की. इन पत्रों के माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश शासन की आलोचना की और भारतीय जनता को स्वतंत्रता संग्राम के प्रति जागरूक किया.

तिलक ने समाज सुधार के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने गणेश उत्सव और शिवाजी उत्सव की शुरुआत की, जिससे भारतीय जनता में एकता और राष्ट्रभक्ति की भावना बढ़ी. उन्होंने भारतीय संस्कृति और परंपराओं को पुनर्जीवित करने के लिए भी कार्य किया. बाल गंगाधर तिलक का निधन 1 अगस्त 1920 को मुंबई में हुआ. उनकी मृत्यु के बाद भी उनके विचार और आदर्श भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित करते रहे.

बाल गंगाधर तिलक को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान नेता के रूप में याद किया जाता है. उनके संघर्ष, आदर्श और नेतृत्व ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी और उनकी प्रेरणा आज भी भारतीय जनता को प्रेरित करती है.

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राजनीतिज्ञ अमर सिंह

अमर सिंह (27 जनवरी 1956 – 1 अगस्त 2020) एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जो समाजवादी पार्टी के प्रमुख नेता और राज्यसभा के सदस्य थे. वे भारतीय राजनीति के प्रमुख चेहरों में से एक थे और उनके संबंध देश के कई प्रमुख राजनीतिक और फिल्मी हस्तियों से थे.

अमर सिंह का जन्म 27 जनवरी 1956 को अलीगढ़, उत्तर प्रदेश में एक राजपूत परिवार में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता में प्राप्त की और बाद में लॉ की डिग्री हासिल की. अमर सिंह ने समाजवादी पार्टी में एक प्रमुख भूमिका निभाई. वे मुलायम सिंह यादव के करीबी सहयोगी रहे और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बने. उनके नेतृत्व में पार्टी ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए और चुनावी रणनीतियाँ बनाई. अमर सिंह कई बार राज्यसभा के सदस्य रहे. वे पहली बार 1996 में राज्यसभा के लिए चुने गए थे.

अमर सिंह के संबंध कई प्रमुख राजनेताओं, उद्योगपतियों और फिल्मी हस्तियों से थे. वे बच्चन परिवार के करीबी माने जाते थे और अमिताभ बच्चन के साथ उनकी दोस्ती ने भी काफी सुर्खियाँ बटोरीं. उन्होंने देश के कई बड़े उद्योगपतियों के साथ भी मजबूत संबंध बनाए, जिससे उनकी राजनीतिक और सामाजिक पहुंच और भी बढ़ गई.

अमर सिंह का राजनीतिक जीवन कई विवादों से भरा रहा. उन पर कई बार भ्रष्टाचार के आरोप लगे और वे कई बार कानूनी पचड़ों में भी फंसे. समाजवादी पार्टी के साथ उनके संबंधों में भी तनाव आया और वे 2010 में पार्टी से निष्कासित कर दिए गए. हालांकि, बाद में उन्होंने पार्टी में वापसी की कोशिश की, लेकिन वे उस स्तर की भूमिका नहीं निभा सके जैसे पहले थे.

अमर सिंह का स्वास्थ्य उनके जीवन के अंतिम वर्षों में कमजोर हो गया था. वे किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे और सिंगापुर में उनका इलाज चल रहा था. उनका निधन 1 अगस्त 2020 को सिंगापुर में हुआ. अमर सिंह भारतीय राजनीति के एक प्रमुख और प्रभावशाली व्यक्तित्व थे. उनके राजनीतिक कैरियर, सामाजिक संबंध और विवादों ने उन्हें एक चर्चित हस्ती बना दिया. उनके योगदान और विवादों की कहानियाँ भारतीय राजनीति में लंबे समय तक याद की जाएंगी.

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