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व्यक्ति विशेष

भाग – 213.

राजनीतिज्ञ रामेश्वर ठाकुर

रामेश्वर ठाकुर एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के सदस्य के रूप में भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनका जन्म 28 जुलाई 1925 को झारखण्ड में गोड्डा ज़िले के ‘ठाकुर गांगटी’ नामक ग्राम में हुआ था और उन्होंने 15 जनवरी 2015 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया.

ठाकुर ने भागलपुर, पटना विश्वविद्यालय में अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की. उसके बाद ‘कोलकाता विश्वविद्यालय’ से एम.ए. की डिग्री ली और एल.एल.बी. भी किया. रामेश्वर ठाकुर ने ‘इंस्टीट्यूट ऑफ़ चार्टर्ड एकाउंटेंट’, नई दिल्ली से एफ़.सी.ए. किया था. ठाकुर ने एक व्याख्याता के रूप में ‘कोलकाता विश्वविद्यालय’ से अपनी सेवाएँ प्रारंभ कीं साथ ही इन्होंने प्रबंध अध्ययन विभाग, दिल्ली में अतिथि प्रोफेसर के रूप में अपने दायित्व का निर्वाहन किया था.

ठाकुर ने सक्रियता से ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’, 1942 में भाग लिया और संथाल परगना में राजमहल पहाड़ियों में लगभग छह महीने के लिए भूमिगत रहे. ठाकुर ने सामाजिक सुधार के कार्यों में भी पूरी सक्रियता से भाग लिया था, विशेष रूप से संथाल परगना में पुनर्निर्माण गतिविधियों के कार्यों में योगदान दिया.

रामेश्वर ठाकुर ने अपने राजनीतिक कैरियर के दौरान कई महत्वपूर्ण पदों पर सेवा की: – उन्होंने केंद्रीय मंत्री के रूप में भी सेवा की और वित्त, वाणिज्य और ग्रामीण विकास जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों में अपनी सेवाएं दीं. ठाकुर ने ओडिशा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों के राज्यपाल के रूप में कार्य किया. उनके राज्यपाल के कार्यकाल में उन्होंने विभिन्न प्रशासनिक और विकासात्मक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया और राज्य की प्रगति में योगदान दिया.

वे राज्य सभा के सदस्य भी रहे और संसद में विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार प्रस्तुत किए. राजनीति के अलावा, रामेश्वर ठाकुर सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय थे. उन्होंने समाज सेवा के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए और गरीब और वंचित वर्गों के उत्थान के लिए कार्य किया. रामेश्वर ठाकुर को उनके सेवा कार्य और योगदान के लिए कई सम्मान और पुरस्कार मिले. उनके योगदान को याद किया जाता है और भारतीय राजनीति में उनके योगदान को सम्मानपूर्वक स्मरण किया जाता है.

उनका जीवन और कार्य कई लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं और उनकी विरासत को भारतीय राजनीति में हमेशा याद किया जाएगा.

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लेखक अनिल जनविजय

अनिल जनविजय एक प्रसिद्ध भारतीय लेखक, कवि, और अनुवादक हैं. उन्होंने हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और उनकी रचनाएं विभिन्न साहित्यिक मंचों पर प्रशंसा प्राप्त कर चुकी हैं. उनका जन्म 28 जुलाई 1957 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिले में हुआ था.

उन्होंने कई कविता संग्रह लिखे हैं, जिनमें उनके भावनात्मक और दार्शनिक दृष्टिकोण का समावेश है. अनिल जनविजय ने विभिन्न कहानियां भी लिखी हैं, जो समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती हैं. उन्होंने कई विदेशी साहित्यिक कृतियों का हिंदी में अनुवाद किया है, जिससे भारतीय पाठकों को विश्व साहित्य से परिचित होने का मौका मिला.

प्रमुख कृतियां: –  “खाली जगहों का मानचित्र,” “नीली घास पर कूदते बच्चे”, “बर्फ़ के फूल”.

अनिल जनविजय को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं, जिनमें साहित्य अकादमी पुरस्कार भी शामिल है. अनिल जनविजय की रचनाओं में एक गहरी संवेदना और मानवता का चित्रण मिलता है. उनकी कविताएं और कहानियां समाज के विभिन्न मुद्दों को संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करती हैं. उनके अनुवाद कार्यों ने भी हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाया है और उन्हें एक महत्वपूर्ण साहित्यकार के रूप में स्थापित किया है.

अनिल जनविजय का साहित्यिक योगदान हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है और उनकी रचनाएं आने वाले समय में भी साहित्य प्रेमियों को प्रेरित करती रहेंगी.

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चित्रकार सुविज्ञ शर्मा

सुविज्ञ शर्मा एक प्रसिद्ध भारतीय चित्रकार और कलाकार हैं, जिन्होंने अपनी अद्वितीय कला शैली और उत्कृष्ट चित्रों के माध्यम से भारतीय कला जगत में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है. उनकी कला कार्यों में भारतीय संस्कृति, परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत समागम देखने को मिलता है.

सुविज्ञ शर्मा का जन्म और शिक्षा राजस्थान में हुई. उन्होंने कला में स्नातक और स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त की. उनके कला में रुचि और उनके चित्रकारी के प्रति समर्पण ने उन्हें इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया.

सुविज्ञ शर्मा की कला शैली विशिष्ट और मौलिक है. उनके चित्रों में रंगों का अद्वितीय उपयोग और विषयों की गहराई देखने को मिलती है. उनकी पेंटिंग्स में भारतीय मिथक, लोककथाओं, और समकालीन जीवन के तत्वों का समावेश होता है.

प्रमुख कृतियां: –

“नटराज”: – इस चित्र में भगवान शिव के नृत्य की महिमा को दर्शाया गया है.

“गंगा अवतरण”: – यह चित्र गंगा नदी के पृथ्वी पर अवतरण की कथा को प्रस्तुत करता है.

“भारतीय ग्रामीण जीवन”: – इस श्रृंखला में भारतीय गांवों के जीवन और उनकी संस्कृति को चित्रित किया गया है

सुविज्ञ शर्मा ने भारत और विदेशों में कई प्रमुख कला प्रदर्शनियों में भाग लिया है. उनकी कला प्रदर्शनी दिल्ली, मुंबई, लंदन, और न्यूयॉर्क जैसे शहरों में आयोजित की गई हैं, जहां उन्हें व्यापक सराहना मिली है.

सुविज्ञ शर्मा को उनके उत्कृष्ट कला कार्यों के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं. इनमें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार शामिल हैं, जो उनके कला में योगदान को मान्यता देते हैं. कला के क्षेत्र में अपने योगदान के अलावा, सुविज्ञ शर्मा समाज सेवा में भी सक्रिय हैं. वे कला शिक्षा और जागरूकता के प्रचार-प्रसार के लिए विभिन्न कार्यक्रमों और कार्यशालाओं का आयोजन करते हैं.

सुविज्ञ शर्मा की कला भारतीय संस्कृति और आधुनिकता के बीच एक पुल का काम करती है, जो दर्शकों को गहरे अर्थ और सुंदरता के साथ जोड़ती है. उनका योगदान भारतीय कला जगत में अमूल्य है और उनकी रचनाएं आने वाले समय में भी प्रेरणा का स्रोत बनी रहेंगी.

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अभिनेत्री आयशा जुल्का

आयशा जुल्का एक लोकप्रिय भारतीय अभिनेत्री हैं, जिन्होंने 1990 के दशक में हिंदी फिल्म उद्योग में अपनी पहचान बनाई. अपनी अदाकारी और सुंदरता के लिए जानी जाने वाली आयशा ने कई सफल फिल्मों में काम किया है और दर्शकों के बीच एक खास जगह बनाई है. उनका जन्म 28 जुलाई 1972 को श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर में हुआ था.

आयशा जुल्का ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत 1983 में फिल्म “कैसे-कैसे लोग” से की, लेकिन उन्हें प्रमुख पहचान 1991 में फिल्म “कुर्बान” से मिली. इसके बाद उन्होंने कई हिट फिल्मों में काम किया और बॉलीवुड में एक स्थापित अभिनेत्री बन गईं.

प्रमुख फिल्में: –

“जो जीता वही सिकंदर” (1992): – इस फिल्म में उन्होंने आमिर खान के साथ मुख्य भूमिका निभाई और फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर बड़ी सफलता हासिल की.

“खिलाड़ी” (1992): – अक्षय कुमार के साथ उनकी इस फिल्म ने भी काफी लोकप्रियता पाई.

“बलमा” (1993): – इस फिल्म में उन्होंने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

“वक्त हमारा है” (1993): इस फिल्म में उन्होंने सुनील शेट्टी के साथ काम किया.

“मशाल” (1984): – इस फिल्म में उन्होंने अनिल कपूर और दिलीप कुमार के साथ काम किया.

आयशा ने हिंदी के अलावा अन्य भाषाओं की फिल्मों में भी काम किया है, जिसमें तेलुगु, कन्नड़ और उड़िया फिल्में शामिल हैं. उन्होंने टेलीविजन पर भी अपनी पहचान बनाई है और कुछ धारावाहिकों में काम किया है. आयशा जुल्का का व्यक्तिगत जीवन सादगीपूर्ण रहा है. उन्होंने 2003 में समीर वाशी से शादी की और उसके बाद फिल्मों में कम ही नजर आईं. वे समाज सेवा और अन्य सामाजिक गतिविधियों में भी सक्रिय हैं.

आयशा जुल्का की अदाकारी और उनके फिल्मी योगदान को हमेशा याद किया जाएगा. उनकी फिल्में और उनका अभिनय आज भी दर्शकों के दिलों में बसा हुआ है.

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अभिनेता धनुष

धनुष का असली नाम वेंकटेश प्रभु कस्तूरी राजा, एक भारतीय अभिनेता, निर्देशक, निर्माता, और गायक हैं, जिन्होंने मुख्यतः तमिल सिनेमा में काम किया है. वे अपनी बहुमुखी प्रतिभा और अद्वितीय अभिनय शैली के लिए प्रसिद्ध हैं. उनका जन्म 28 जुलाई 1983 को चेन्नई, तमिलनाडु में हुआ था.

धनुष ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत 2002 में तमिल फिल्म “थुल्लुवाधो इल्लामई” से की, जिसे उनके पिता कस्तूरी राजा ने निर्देशित किया था. यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल रही और धनुष को अपने अभिनय कौशल के लिए पहचान मिली.

प्रमुख फिल्में: –

“कादल कोंडेन” (2003): – इस फिल्म में उनके प्रदर्शन को व्यापक सराहना मिली.

“पुदुपेट्टई” (2006): – इस फिल्म में उनके अभिनय ने उन्हें एक स्थापित अभिनेता बना दिया.

“पोलाधवन” (2007): – यह फिल्म भी बॉक्स ऑफिस पर सफल रही.

“आडुकलम” (2011): – इस फिल्म के लिए धनुष को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला.

“3” (2012): – इस फिल्म का गीत “व्हाई दिस कोलावेरी डी” अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हुआ.

“रांझणा” (2013): – यह उनकी पहली हिंदी फिल्म थी, जिसमें उन्होंने सोनम कपूर के साथ अभिनय किया.

“VIP” (2014): – यह फिल्म भी बहुत सफल रही और इसका सीक्वल भी बनाया गया.

“असुरन” (2019): – इस फिल्म में उनके प्रदर्शन के लिए उन्हें व्यापक प्रशंसा मिली.

धनुष न केवल एक बेहतरीन अभिनेता हैं, बल्कि एक सफल गायक और निर्माता भी हैं. उनका गीत “व्हाई दिस कोलावेरी डी” एक बड़ा हिट था और इसे कई भाषाओं में अनुवाद किया गया. उन्होंने कई फिल्मों का निर्माण भी किया है और अपनी कंपनी वंडर बार फिल्म्स के तहत काम किया है.

धनुष ने 2004 में रजनीकांत की बेटी ऐश्वर्या से शादी की है और उनके दो बेटे हैं. वे अपने परिवार के साथ चेन्नई में रहते हैं. धनुष ने अपने कैरियर के दौरान कई पुरस्कार जीते हैं, जिसमें तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और कई फिल्मफेयर पुरस्कार शामिल हैं. उनके अभिनय को दर्शकों और समीक्षकों दोनों द्वारा व्यापक रूप से सराहा गया है. उन्होंने हॉलीवुड में भी अपनी पहचान बनाई है और 2022 में रिलीज़ हुई फिल्म “द ग्रे मैन” में काम किया.

धनुष की प्रतिभा और उनकी मेहनत ने उन्हें भारतीय सिनेमा में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है. उनके प्रशंसक और दर्शक उनकी आगामी परियोजनाओं का बेसब्री से इंतजार करते हैं.

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अभिनेत्री हुमा क़ुरैशी

हुमा क़ुरैशी एक भारतीय अभिनेत्री और मॉडल हैं, जिन्होंने हिंदी सिनेमा के साथ-साथ कई अन्य भाषाओं की फिल्मों में भी काम किया है. वह अपनी अदाकारी, खूबसूरती और विविधता भरे किरदारों के लिए जानी जाती हैं. उनका जन्म 28 जुलाई 1986 को नई दिल्ली, भारत में हुआ था.

हुमा क़ुरैशी का जन्म और पालन-पोषण नई दिल्ली में हुआ. उन्होंने गार्गी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में स्नातक की डिग्री प्राप्त की. पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने थिएटर में रुचि ले ली और विभिन्न नाटकों में भाग लिया.

हुमा क़ुरैशी ने अपने कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग और विज्ञापनों से की. उन्होंने कई प्रमुख ब्रांड्स के लिए विज्ञापनों में काम किया. फिल्मों में उनका प्रवेश अनुराग कश्यप द्वारा निर्देशित फिल्म “गैंग्स ऑफ वासेपुर” (2012) से हुआ, जिसमें उनके प्रदर्शन को काफी सराहा गया.

प्रमुख फिल्में: –

“गैंग्स ऑफ वासेपुर” (2012): – इस फिल्म में हुमा ने मोहसिना का किरदार निभाया और उन्हें व्यापक सराहना मिली.

“लव शव तें चिकन खुराना” (2012): – इस कॉमेडी-ड्रामा फिल्म में उनके अभिनय को सराहा गया.

“एक थी डायन” (2013): – इस फिल्म में हुमा ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

“डी-डे” (2013): – इस फिल्म में उनके प्रदर्शन को काफी प्रशंसा मिली.

“जॉली एलएलबी 2” (2017): – इस फिल्म में उन्होंने अक्षय कुमार के साथ मुख्य भूमिका निभाई.

“काला” (2018): – इस फिल्म में उन्होंने सुपरस्टार रजनीकांत के साथ काम किया.

“लैला मजनू” (2018): – इस फिल्म में उनका विशेष अभिनय था.

“लीला” (2019): – यह नेटफ्लिक्स वेब सीरीज में उनकी मुख्य भूमिका थी, जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया.

फिल्मों के अलावा, हुमा क़ुरैशी ने थिएटर और टेलीविजन में भी काम किया है. उन्होंने विभिन्न सामाजिक और महिला अधिकारों से संबंधित अभियानों में भी भाग लिया है. हुमा क़ुरैशी को उनके अभिनय के लिए कई पुरस्कार और नामांकन प्राप्त हुए हैं. उन्होंने अपनी प्रतिभा और मेहनत से भारतीय सिनेमा में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है. हुमा क़ुरैशी का परिवार दिल्ली में रहता है और उनके पिता एक रेस्टोरेंट बिजनेसमैन हैं. उनका एक भाई, साकिब सलीम, भी अभिनेता है.

हुमा क़ुरैशी ने अपने अभिनय कैरियर में विभिन्न प्रकार के किरदार निभाकर अपनी प्रतिभा को साबित किया है. उनके काम की विविधता और गहराई उन्हें एक बहुमुखी अभिनेत्री के रूप में स्थापित करती है. उनकी आने वाली फिल्मों और परियोजनाओं का उनके प्रशंसकों को बेसब्री से इंतजार रहता है.

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अभिनेता जगदीश राज

जगदीश राज एक भारतीय अभिनेता थे, जो बॉलीवुड फिल्मों में अपने पुलिस इंस्पेक्टर के किरदारों के लिए मशहूर थे. उनका जन्म 1928 में हुआ था और उनका असली नाम जगदीश राज खुराना था. वे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में एक ही प्रकार का किरदार सबसे अधिक बार निभाने के लिए भी दर्ज हैं.

जगदीश राज ने 1950 के दशक में फिल्मों में अभिनय करना शुरू किया. उनका कैरियर लंबा और प्रभावशाली रहा, जिसमें उन्होंने कई महत्वपूर्ण फिल्मों में अभिनय किया. जगदीश राज ने लगभग 144 फिल्मों में पुलिस इंस्पेक्टर का किरदार निभाया.

प्रमुख फिल्में: –

“दीवार” (1975): – इस फिल्म में उन्होंने पुलिस इंस्पेक्टर का महत्वपूर्ण किरदार निभाया.

“डॉन” (1978): – इस फिल्म में भी उन्होंने पुलिस अधिकारी का किरदार निभाया.

“सिलसिला” (1981): इस फिल्म में उनके अभिनय को काफी सराहा गया.

“शक्ति” (1982): – इस फिल्म में भी वे पुलिस इंस्पेक्टर के रूप में नजर आए.

“बेमिसाल” (1982): – इस फिल्म में उनके प्रदर्शन को खूब सराहा गया.

“काला पत्थर” (1979): – इस फिल्म में भी उन्होंने पुलिस अधिकारी का किरदार निभाया.

“राजा और रंक” (1968): – इस फिल्म में भी वे पुलिस इंस्पेक्टर के रूप में नजर आए.

जगदीश राज की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उन्होंने एक ही प्रकार का किरदार, पुलिस इंस्पेक्टर, को इतने अलग-अलग फिल्मों में इतने अलग-अलग अंदाज में निभाया कि वे दर्शकों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गए. उनकी पुलिस इंस्पेक्टर की छवि इतनी प्रबल थी कि वे बॉलीवुड में इस किरदार के पर्याय बन गए थे.

जगदीश राज का परिवार मुख्यतः अभिनय के क्षेत्र से ही जुड़ा हुआ था. उनकी बेटी अनिता राज भी बॉलीवुड की जानी-मानी अभिनेत्री हैं. जगदीश राज का निधन 28 जुलाई 2013 को हुआ. उनके योगदान को भारतीय सिनेमा में हमेशा याद किया जाएगा और वे अपने विशिष्ट किरदारों के लिए हमेशा याद किए जाएंगे.

जगदीश राज का नाम बॉलीवुड के इतिहास में हमेशा अंकित रहेगा. उनकी अद्वितीयता और विशेषता के कारण उन्हें हमेशा याद किया जाएगा. उनके किरदारों ने न केवल दर्शकों का मनोरंजन किया, बल्कि भारतीय सिनेमा को भी एक नई पहचान दी.

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लेखिका महाश्वेता देवी

महाश्वेता देवी एक प्रतिष्ठित भारतीय लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता थीं, जो अपनी साहित्यिक कृतियों और समाज सुधार के कार्यों के लिए जानी जाती हैं. उनका जन्म 14 जनवरी 1926 को ढाका, बांग्लादेश (तब पूर्वी बंगाल, ब्रिटिश भारत) में हुआ था और उनका निधन 28 जुलाई 2016 को कोलकाता, भारत में हुआ.

महाश्वेता देवी का जन्म एक साहित्यिक परिवार में हुआ था. उनके पिता मनीष घटक एक प्रसिद्ध कवि और उपन्यासकार थे, और उनकी माँ धर्ममयी देवी भी एक लेखिका थीं. उन्होंने शांति निकेतन के विश्व भारती विश्वविद्यालय से पढ़ाई की और अंग्रेजी साहित्य में मास्टर डिग्री प्राप्त की.

महाश्वेता देवी ने अपने साहित्यिक कैरियर की शुरुआत 1950 के दशक में की. उनकी लेखनी में समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगों की कहानियाँ और उनके संघर्ष प्रमुखता से दिखाई देते हैं. उनकी रचनाओं में दलित, आदिवासी और अन्य वंचित वर्गों की पीड़ा और उनकी संघर्षशीलता का मार्मिक चित्रण मिलता है.

प्रमुख कृतियाँ: –

“हजार चौरासी की माँ”: – यह उपन्यास नक्सलवादी आंदोलन की पृष्ठभूमि पर आधारित है और एक माँ की कहानी है जो अपने बेटे की खोज में है.

“अरण्येर अधिकार”: – इस उपन्यास के लिए उन्हें 1979 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला.

“रुदाली”: – यह कहानी राजस्थान की एक पेशेवर शोक मनाने वाली महिला की है, जिस पर फिल्म भी बनाई गई.

“चोटी मुंडा और उनका तीर”: – इस उपन्यास में आदिवासी जीवन और उनके संघर्ष को बखूबी चित्रित किया गया है.

महाश्वेता देवी केवल लेखिका ही नहीं, बल्कि एक समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता भी थीं. उन्होंने आदिवासी और दलित समुदायों के अधिकारों के लिए जोर-शोर से आवाज उठाई. उन्होंने उनके जीवन में सुधार लाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए और उनकी समस्याओं को उजागर किया.

महाश्वेता देवी को उनके साहित्यिक और सामाजिक योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले:  –  साहित्य अकादमी पुरस्कार (1979), जन्मी पत्रिका पुरस्कार (1986), पद्म श्री (1986), पद्म विभूषण (2006), रेमन मैग्सेसे पुरस्कार (1997) और  ज्ञानपीठ पुरस्कार (1996).

महाश्वेता देवी की रचनाएँ और उनके सामाजिक कार्य आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं. उन्होंने भारतीय साहित्य और समाज सुधार के क्षेत्र में एक अमिट छाप छोड़ी है. उनकी लेखनी ने समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगों की आवाज को प्रबल किया और उनकी समस्याओं को मुख्य-धारा में लाने का काम किया. उनके योगदान को भारतीय साहित्य और समाज में हमेशा याद किया जाएगा.

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