समाज सुधारक रामकृष्ण गोपाल भंडारकर
रामकृष्ण गोपाल भंडारकर (1837-1925) भारत के एक प्रमुख समाज सुधारक, इतिहासकार, और संस्कृत विद्वान थे. उन्हें भारतीय समाज सुधार आंदोलन में उनके योगदान के लिए जाना जाता है. वे अपने समय के सबसे प्रमुख विद्वानों में से एक थे और उनका काम भारतीय समाज के पुनर्जागरण में महत्वपूर्ण था.
रामकृष्ण गोपाल भंडारकर का जन्म 6 जुलाई, 1837 ई. को महाराष्ट्र के रत्नागिरी ज़िले के मालवण नामक स्थान में एक साधारण परिवार में हुआ था और उनकी मृत्यु 24 अगस्त 1925 को हुआ. रत्नागिरी में अपनी प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद, रामकृष्ण ने 1853 में बॉम्बे के एलफिंस्टन इंस्टीट्यूट में दाखिला लिया.
भंडारकर संस्कृत, प्राकृत, और अन्य प्राचीन भारतीय भाषाओं के विद्वान थे. उन्होंने प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति पर व्यापक शोध किया. उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय (अब मुंबई विश्वविद्यालय) में भी अध्यापन किया और अपनी विद्वता से कई छात्रों को प्रेरित किया.
भंडारकर समाज सुधार आंदोलन के एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे. उन्होंने ब्राह्मण समाज की कठोर सामाजिक और धार्मिक प्रथाओं के खिलाफ आवाज उठाई और सुधारों की वकालत की. उन्होंने विधवा पुनर्विवाह, महिला शिक्षा, और जाति व्यवस्था के उन्मूलन जैसे मुद्दों पर जोर दिया.
भंडारकर एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बॉम्बे के एक प्रमुख सदस्य थे और उन्होंने इसके विभिन्न शोध कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाई. उनके नेतृत्व में इस सोसाइटी ने भारतीय इतिहास और संस्कृति के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
उन्होंने भारतीय पुरातत्व और प्राचीन इतिहास के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कार्य किया. उनके शोध कार्यों ने भारतीय पुरातत्वविदों और इतिहासकारों को प्राचीन भारत के अध्ययन में नई दिशा दी.
पुणे में स्थित भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट उनकी स्मृति में स्थापित किया गया था. यह संस्थान भारतीय विद्या और संस्कृत के अध्ययन और शोध के लिए प्रसिद्ध है.
रामकृष्ण गोपाल भंडारकर का जीवन और उनके कार्य भारतीय समाज और शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. उनके सुधारवादी दृष्टिकोण और विद्वता ने भारतीय समाज को आधुनिकता की दिशा में अग्रसर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
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राजनीतिज्ञ श्यामा प्रसाद मुखर्जी
श्यामा प्रसाद मुखर्जी (1901-1953) एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद् और भारतीय जनसंघ के संस्थापक थे, जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का पूर्ववर्ती संगठन है. उनका जन्म 6 जुलाई 1901 को कोलकाता (तब का कलकत्ता) में हुआ था. वह बंगाल के एक प्रतिष्ठित परिवार से थे और उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी एक प्रसिद्ध न्यायविद् और शिक्षाविद् थे.
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की. यह संगठन बाद में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के रूप में विकसित हुआ. जनसंघ का उद्देश्य भारतीय राष्ट्रीयता और सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देना था.
मुखर्जी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत कांग्रेस पार्टी से की थी, लेकिन बाद में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर हिन्दू महासभा में शामिल हो गए. वे 1947 – 50 तक भारत के पहले उद्योग और आपूर्ति मंत्री रहे.
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कश्मीर के पूर्ण विलय के लिए संघर्ष किया. उन्होंने ‘एक देश, एक विधान, एक प्रधान’ का नारा दिया और जम्मू और कश्मीर के लिए विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 का कड़ा विरोध किया. कश्मीर में बिना अनुमति प्रवेश करने के बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया और 1953 में जेल में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई.
मुखर्जी ने शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के सबसे युवा कुलपति बने और शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए कई पहलें कीं. उन्होंने हिन्दू महासभा के माध्यम से हिन्दू समाज की समस्याओं को उठाया और उनके समाधान के लिए काम किया.
श्यामा प्रसाद मुखर्जी का योगदान भारतीय राजनीति और समाज में अद्वितीय है. उनके विचार और संघर्ष भारतीय जनता पार्टी की नीतियों और कार्यक्रमों में आज भी झलकते हैं. उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है और उनके योगदान को स्मरण किया जाता है. उनकी स्मृति में कई संस्थानों और स्थानों का नामकरण किया गया है, जो उनके योगदान की महत्ता को दर्शाता है.
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समाज सुधारक लक्ष्मीबाई केलकर
लक्ष्मीबाई केलकर जिन्हें अक्सर “मौसीजी” के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय समाज सुधारक और महिला संगठनकर्ता थीं. उन्होंने महिलाओं के अधिकारों और सशक्तिकरण के लिए जीवन भर काम किया और राष्ट्रीय स्वयं सेविका समिति (Rashtra Sevika Samiti) की स्थापना की, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के महिला विंग के रूप में कार्य करती है.
वर्ष 1936 में लक्ष्मीबाई केलकर ने राष्ट्रीय स्वयं सेविका समिति की स्थापना की. यह संगठन महिलाओं को संगठित करने और उन्हें राष्ट्रीय और सामाजिक सेवा के कार्यों में संलग्न करने के उद्देश्य से बनाया गया था.
लक्ष्मीबाई केलकर ने भारतीय महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने और समाज में अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया. उनके नेतृत्व में, राष्ट्रीय स्वयं सेविका समिति ने महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक स्थिति में सुधार के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए. उन्होंने महिलाओं को भारतीय संस्कृति और परंपराओं के प्रति जागरूक किया और उन्हें देशभक्ति के विचारों से प्रेरित किया. उन्होंने महिलाओं को राष्ट्रीयता के विचार से जोड़कर समाज में उनकी भूमिका को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया.
लक्ष्मीबाई केलकर ने महिलाओं की शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने महिलाओं के लिए विभिन्न शिक्षा और स्वास्थ्य कार्यक्रमों का आयोजन किया, जिससे महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ.
लक्ष्मीबाई केलकर का योगदान भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है. उनकी पहल और संगठन ने महिलाओं को सशक्त बनाने और उन्हें समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया. आज भी राष्ट्रीय स्वयं सेविका समिति महिलाओं के सशक्तिकरण और समाज सेवा के कार्यों में सक्रिय रूप से शामिल है, जो लक्ष्मीबाई केलकर के दृष्टिकोण और विचारों को आगे बढ़ा रही है.
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शायर अनवर जलालपुरी
अनवर जलालपुरी (1947-2018) भारतीय उर्दू साहित्य के एक प्रमुख शायर, लेखक, और अनुवादक थे. उनका जन्म 6 जुलाई सन 1947 को उत्तर प्रदेश के जलालपुर में हुआ था. वे अपने उत्कृष्ट काव्य और अनुवाद कार्य के लिए प्रसिद्ध थे, विशेषकर “गीता” के उर्दू अनुवाद के लिए जाने जाते हैं.
अनवर जलालपुरी एक अद्वितीय शायर थे, जिनकी रचनाएँ प्रेम, दर्शन, और मानवता के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती थीं. उनकी शायरी में जीवन के विभिन्न रंग और अनुभव स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं.
अनवर जलालपुरी ने महाभारत और भगवद गीता का उर्दू में अनुवाद किया. उनका अनुवाद “उर्दू शायरी में गीता” विशेष रूप से प्रसिद्ध है, जिसमें उन्होंने भगवद गीता के श्लोकों का उर्दू शायरी में अनुवाद किया. यह कार्य उर्दू और हिंदी भाषी समुदायों के बीच सांस्कृतिक पुल बनाने का काम करता है. अनवर जलालपुरी ने अपनी रचनाओं और भाषणों के माध्यम से सामाजिक एकता और सांस्कृतिक संवाद को बढ़ावा दिया. वे धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिक सौहार्द के प्रबल समर्थक थे.
अनवर जलालपुरी शिक्षण पेशे से भी जुड़े रहे और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय तथा अन्य शैक्षणिक संस्थानों में साहित्यिक गतिविधियों का हिस्सा बने रहे. उन्होंने कई साहित्यिक सम्मेलनों और कवि सम्मेलनों में भाग लिया और अपने विचार साझा किए.
अनवर जलालपुरी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले. उनकी रचनाएँ और अनुवाद कार्य साहित्यिक जगत में उच्च मान्यता प्राप्त हैं और उन्होंने उर्दू साहित्य को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
अनवर जलालपुरी का योगदान भारतीय साहित्य और समाज में अत्यंत महत्वपूर्ण है. उनकी रचनाएँ और अनुवाद कार्य आज भी पाठकों और साहित्य प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं. उनकी कृतियाँ और विचार भारतीय साहित्य और सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे.
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अभिनेत्री गौरी शिंदे
गौरी शिंदे भारतीय फिल्म उद्योग की एक प्रमुख फिल्म निर्माता और निर्देशक हैं, हालांकि उन्हें अक्सर अभिनेत्री के रूप में नहीं पहचाना जाता है. उन्होंने हिंदी सिनेमा में अपनी अनूठी दृष्टि और संवेदनशीलता के लिए ख्याति प्राप्त की है.
गौरी शिंदे की सबसे प्रसिद्ध फिल्म “इंग्लिश विंग्लिश” (2012) है, जिसमें श्रीदेवी ने मुख्य भूमिका निभाई थी. यह फिल्म एक गृहिणी की कहानी है जो अंग्रेजी सीखने का प्रयास करती है. इस फिल्म ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा प्राप्त की और बॉक्स ऑफिस पर भी सफल रही.
गौरी शिंदे ने “डियर ज़िंदगी” का भी निर्देशन किया, जिसमें आलिया भट्ट और शाहरुख खान मुख्य भूमिकाओं में थे. यह फिल्म मानसिक स्वास्थ्य और आत्म-खोज के मुद्दों को संवेदनशील तरीके से प्रस्तुत करती है. इस फिल्म को भी दर्शकों और समीक्षकों से अच्छी प्रतिक्रिया मिली. गौरी शिंदे ने फिल्म निर्माण में प्रवेश करने से पहले विज्ञापन फिल्मों का निर्देशन किया और इस क्षेत्र में भी उन्होंने बड़ी सफलता हासिल की.
गौरी शिंदे का जन्म 6 जुलाई 1974 को पुणे (महाराष्ट्र) में हुआ और उनका पालन-पोषण भी पुणे, महाराष्ट्र में हुआ था. उन्होंने सिम्बायोसिस इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की. उन्होंने विज्ञापन उद्योग में अपने कैरियर की शुरुआत की और बाद में फिल्म निर्माण की ओर बढ़ीं. गौरी शिंदे ने प्रसिद्ध फिल्म निर्माता आर बाल्की से शादी की है.
गौरी शिंदे को उनके निर्देशन के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं. “इंग्लिश विंग्लिश” और “डियर ज़िंदगी” ने विभिन्न फिल्म समारोहों में पुरस्कार जीते और उन्हें हिंदी सिनेमा में एक महत्वपूर्ण निर्देशक के रूप में स्थापित किया.
गौरी शिंदे की फिल्मों ने सामाजिक और व्यक्तिगत मुद्दों को संवेदनशीलता और समझदारी के साथ प्रस्तुत किया है. उन्होंने महिला पात्रों की जटिलताओं और उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को गहराई से चित्रित किया है.
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अभिनेत्री पूजा गुप्ता
पूजा गुप्ता एक भारतीय अभिनेत्री और मॉडल हैं, जिन्होंने बॉलीवुड फिल्मों और विभिन्न फैशन अभियानों में काम किया है. उन्होंने अपनी सुंदरता और अभिनय कौशल के लिए प्रशंसा प्राप्त की है. पूजा गुप्ता ने 2007 में मिस इंडिया यूनिवर्स का खिताब जीता और उसी साल मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व किया.
पूजा गुप्ता ने अपने मॉडलिंग करियर की शुरुआत मिस इंडिया यूनिवर्स 2007 का खिताब जीतने के बाद की. उन्होंने कई प्रमुख फैशन शो और विज्ञापन अभियानों में हिस्सा लिया, जिससे उन्होंने फैशन उद्योग में एक प्रमुख स्थान बनाया.
पूजा गुप्ता ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत 2011 में फिल्म “फालतू” से की. इस फिल्म में उनकी भूमिका को सराहा गया और इससे उन्हें फिल्म उद्योग में एक पहचान मिली। इसके बाद उन्होंने कई अन्य फिल्मों में भी काम किया, जैसे: – “गो गोवा गॉन” (2013), “शॉर्ट्स” (2013), “मिकी वायरस” (2013).
फिल्मों के अलावा, पूजा गुप्ता ने विभिन्न टेलीविजन और रियलिटी शो में भी हिस्सा लिया, जिससे उनकी लोकप्रियता में और इजाफा हुआ.
पूजा गुप्ता का जन्म 30 जनवरी 1987 को नई दिल्ली, भारत में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा दिल्ली में पूरी की और बाद में मॉडलिंग और अभिनय में कैरियर बनाने का फैसला किया.
पूजा गुप्ता का मॉडलिंग और फिल्म उद्योग में योगदान महत्वपूर्ण है. उन्होंने अपनी सुंदरता, प्रतिभा और मेहनत से एक अलग पहचान बनाई है. पूजा गुप्ता युवा लड़कियों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं, जो मनोरंजन और फैशन उद्योग में करियर बनाना चाहती हैं. उनकी यात्रा यह दिखाती है कि कैसे समर्पण और दृढ़ संकल्प से सफलता प्राप्त की जा सकती है.
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अभिनेत्री श्वेता त्रिपाठी
श्वेता त्रिपाठी एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जिन्होंने फिल्म, टेलीविजन, और वेब सीरीज में अपने अभिनय से विशेष पहचान बनाई है. वह अपने गहरे और संजीदा अभिनय के लिए जानी जाती हैं और कई प्रतिष्ठित परियोजनाओं का हिस्सा रही हैं.
श्वेता त्रिपाठी ने फिल्म “मसान” (2015) में शालू गुप्ता का किरदार निभाया, जो एक युवा लड़की है. यह फिल्म कान फिल्म महोत्सव में प्रदर्शित की गई और श्वेता के अभिनय को बहुत सराहा गया.
फिल्म “हरामखोर” (2017) में उन्होंने एक स्कूल की छात्रा संध्या का किरदार निभाया, जो एक शिक्षक के साथ जटिल संबंधों में उलझी हुई है. उनके इस प्रदर्शन की भी बहुत प्रशंसा हुई.
“मिर्जापुर” (2018-2020): – इस लोकप्रिय वेब सीरीज में श्वेता ने गोलू गुप्ता का किरदार निभाया, जो एक महत्वपूर्ण और दमदार भूमिका है. इस सीरीज में उनके प्रदर्शन ने उन्हें और अधिक पहचान दिलाई.
“लाखों में एक” (2017): – इस वेब सीरीज में उन्होंने डॉ. शांति का किरदार निभाया और अपने अभिनय कौशल का परिचय दिया.
“क्योंकि जीना इसी का नाम है”: – श्वेता त्रिपाठी ने इस शो में अपने कैरियर की शुरुआत की और अपने सहज और प्रभावी अभिनय से दर्शकों का दिल जीता. श्वेता त्रिपाठी ने थिएटर में भी काम किया है, जहां उन्होंने अपने अभिनय कौशल को और निखारा.
श्वेता त्रिपाठी का जन्म 6 जुलाई 1985 को नई दिल्ली में हुआ था. उनके पिता भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी हैं और उनकी मां एक शिक्षिका हैं. श्वेता ने अपने प्रारंभिक जीवन का अधिकांश हिस्सा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और मुंबई में बिताया. उन्होंने दिल्ली के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (NIFT) से स्नातक की डिग्री प्राप्त की.
श्वेता त्रिपाठी ने 2018 में रैपर और अभिनेता चैतन्य शर्मा (रैपर स्लोचीता) से शादी की. श्वेता को उनके अभिनय के लिए कई पुरस्कार और नामांकन मिले हैं. उनके प्रदर्शन को समीक्षकों और दर्शकों दोनों ने सराहा है.
श्वेता त्रिपाठी का योगदान भारतीय सिनेमा और वेब सीरीज में महत्वपूर्ण है. उनकी मेहनत, समर्पण, और बहुमुखी प्रतिभा ने उन्हें दर्शकों के बीच लोकप्रिय बना दिया है. श्वेता त्रिपाठी की यात्रा यह दिखाती है कि कैसे दृढ़ संकल्प और प्रतिभा के माध्यम से मनोरंजन उद्योग में सफलता प्राप्त की जा सकती है. उनकी सफलता की कहानी युवा अभिनेत्रियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है.
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राजपूत सरदार मान सिंह
राजपूत सरदार मान सिंह जिन्हें आमतौर पर राजा मान सिंह के नाम से जाना जाता है, 16वीं शताब्दी के एक प्रमुख राजपूत सरदार और कच्छवाहा राजपूत वंश के सदस्य थे. उनका जन्म 1550 में हुआ था और वे आमेर (आधुनिक जयपुर) के राजा थे। मान सिंह का योगदान भारतीय इतिहास में विशेष रूप से मुगल काल के दौरान महत्वपूर्ण है.
मान सिंह मुगल सम्राट अकबर के सबसे महत्वपूर्ण सेनापतियों और भरोसेमंद सहयोगियों में से एक थे. अकबर ने उन्हें राजा का खिताब दिया और वे अकबर के “नवरत्नों” (नौ रत्नों) में से एक थे. उन्होंने मुगलों के लिए कई महत्वपूर्ण युद्ध लड़े और साम्राज्य के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इनमें राणा प्रताप के खिलाफ हल्दीघाटी का प्रसिद्ध युद्ध (1576) भी शामिल है, जहां उन्होंने मुगल सेना का नेतृत्व किया था.
मान सिंह की कूटनीतिक क्षमताओं ने उन्हें अकबर और बाद में जहांगीर के शासनकाल में उच्च सम्मान दिलाया. उन्होंने मुगलों के अधीनस्थ अन्य राजपूत राजाओं के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने में मदद की. उनकी सेवाओं के बदले में, अकबर ने उन्हें बंगाल, बिहार, और उड़ीसा के गवर्नर के रूप में नियुक्त किया. उन्होंने इन क्षेत्रों में मुगल प्रशासन को मजबूत किया और स्थिरता बनाए रखी.
मान सिंह ने कई महत्वपूर्ण निर्माण कार्य करवाए. जयपुर में आमेर किला (जिसे आमेर पैलेस भी कहा जाता है) का निर्माण उन्हीं के शासनकाल में हुआ था. यह किला राजपूत स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है और आज एक प्रमुख पर्यटन स्थल है. उन्होंने अन्य कई किलों और महलों का भी निर्माण करवाया, जिनमें बनारस में मान मंदिर घाट भी शामिल है.
मान सिंह ने धार्मिक सहिष्णुता को प्रोत्साहित किया और विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच सद्भावना को बढ़ावा दिया. उन्होंने अपने राज्य में कई हिंदू मंदिरों का निर्माण और संरक्षण किया.
राजा मान सिंह का योगदान भारतीय इतिहास में विशेष रूप से मुगल-राजपूत संबंधों में महत्वपूर्ण माना जाता है. उनकी सैन्य और राजनीतिक सेवाएं, साथ ही उनके निर्माण कार्य, आज भी उनके महान योगदान का प्रमाण हैं. वे एक महान योद्धा, कुशल प्रशासक, और कूटनीतिज्ञ थे, जिन्होंने अपने राज्य और मुगल साम्राज्य दोनों के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनकी विरासत आज भी राजस्थान और भारतीय इतिहास में सम्मान के साथ याद की जाती है.
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राजनीतिज्ञ जगजीवन राम
जगजीवन राम (5 अप्रैल 1908 – 6 जुलाई 1986) भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक थे. उन्हें बाबूजी के नाम से भी जाना जाता है. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेता थे और आज़ादी के बाद भारतीय राजनीति में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे.
जगजीवन राम ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई. वे दलित समुदाय के प्रमुख नेता थे और उनके अधिकारों के लिए संघर्षरत रहे. उन्होंने 1935 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होकर स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. आजादी के बाद, जगजीवन राम ने कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों में कार्य किया. वे 1946 में अंतरिम सरकार में शामिल हुए और कृषि मंत्री बने.
वर्ष 1952 – 84 तक उन्होंने लगातार भारतीय संसद के सदस्य के रूप में कार्य किया और विभिन्न मंत्रालयों में महत्वपूर्ण पदों पर रहे. उन्होंने रक्षा मंत्री, श्रम मंत्री, संचार मंत्री, और रेल मंत्री सहित कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया. वर्ष 1977 में वे जनता पार्टी की सरकार में उप प्रधानमंत्री बने.
जगजीवन राम ने दलित समुदाय के अधिकारों और सशक्तिकरण के लिए अपना जीवन समर्पित किया. उन्होंने भारतीय संविधान में दलितों के लिए आरक्षण और अन्य अधिकारों के लिए जोर दिया. उन्होंने अखिल भारतीय दलित वर्ग संघ की स्थापना की, जो बाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का दलित विंग बना.
वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान, जगजीवन राम रक्षा मंत्री थे. उनके नेतृत्व में भारतीय सेना ने ऐतिहासिक विजय प्राप्त की और बांग्लादेश का निर्माण हुआ. जगजीवन राम ने समाज सुधारक के रूप में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने दलितों की शिक्षा, सामाजिक स्थिति और रोजगार के अवसरों में सुधार के लिए कार्य किया.
जगजीवन राम को उनके योगदान के लिए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया. दिल्ली में उनके नाम पर कई स्मारक और संस्थान हैं, जो उनके योगदान को सम्मानित करते हैं. जगजीवन राम का जीवन और कार्य आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं. उनके द्वारा दलित समुदाय के अधिकारों और सशक्तिकरण के लिए किए गए प्रयासों को हमेशा याद रखा जाएगा.
जगजीवन राम का जीवन संघर्ष, समर्पण, और सेवा का उत्कृष्ट उदाहरण है. उन्होंने भारतीय समाज में समानता, न्याय और सामाजिक सुधार के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनकी विरासत आज भी भारतीय राजनीति और समाज में जीवंत है.
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निर्माता-निर्देशक चेतन आनंद
चेतन आनंद (1915-1997) भारतीय सिनेमा के एक प्रमुख निर्माता, निर्देशक और पटकथा लेखक थे. वे भारतीय सिनेमा में नई दिशा और दृष्टिकोण लाने वाले फिल्म निर्माताओं में से एक माने जाते हैं. चेतन आनंद ने कई महत्वपूर्ण और यादगार फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया, जो भारतीय सिनेमा में मील का पत्थर साबित हुईं.
चेतन आनंद का जन्म 3 जनवरी 1915 को लाहौर (अब पाकिस्तान में) में हुआ था. उन्होंने लाहौर और देहरादून में अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और फिर लंदन के “लीनिंग टन कॉलेज” से उच्च शिक्षा प्राप्त की.
चेतन आनंद ने अपने कैरियर की शुरुआत एक अभिनेता और निर्देशक के रूप में की. उनकी पहली फिल्म “नीचा नगर” (1946) थी, जो भारतीय सिनेमा की पहली फिल्म थी जिसे कान्स फिल्म फेस्टिवल में “ग्रां प्री” (बेस्ट फिल्म) पुरस्कार मिला।
प्रमुख फिल्में: –
“नीचा नगर” (1946): – इस फिल्म ने अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की और चेतन आनंद को एक उत्कृष्ट निर्देशक के रूप में स्थापित किया।
“हक़ीक़त” (1964): – यह फिल्म भारतीय सेना के 1962 के भारत-चीन युद्ध पर आधारित थी और इसे भारतीय सिनेमा की सबसे बेहतरीन युद्ध फिल्मों में से एक माना जाता है.
“हीर रांझा” (1970): – यह फिल्म पंजाबी लोककथा पर आधारित थी और इसकी पूरी स्क्रिप्ट पद्य में लिखी गई थी. इस फिल्म में राज कुमार और प्रिया राजवंश ने मुख्य भूमिका निभाई थी.
“हंसते ज़ख्म” (1973): – इस फिल्म ने भी काफी प्रशंसा पाई.
चेतन आनंद ने अपने भाइयों देव आनंद और विजय आनंद के साथ मिलकर “नवकेतन फिल्म्स” की स्थापना की. इस प्रोडक्शन हाउस ने भारतीय सिनेमा को कई यादगार फिल्में दीं.
चेतन आनंद की फिल्मों को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। “नीचा नगर” ने कान्स फिल्म फेस्टिवल में ग्रां प्री पुरस्कार जीता. “हक़ीक़त” और अन्य फिल्मों ने भी कई पुरस्कार जीते. सिनेमा के अलावा, चेतन आनंद का झुकाव साहित्य और रंगमंच की ओर भी था. उन्होंने कई नाटकों का निर्देशन किया और साहित्यिक रचनाओं का फिल्मी रूपांतरण किया.
चेतन आनंद का विवाह उमा आनंद से हुआ था, जो खुद एक लेखिका और पत्रकार थीं. उनके बेटे, केतन आनंद और विवेक आनंद ने भी फिल्म उद्योग में काम किया है.
चेतन आनंद का योगदान भारतीय सिनेमा में अमूल्य है. उन्होंने फिल्मों के माध्यम से सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को संवेदनशीलता और गहराई के साथ प्रस्तुत किया. उनकी फिल्मों ने न केवल मनोरंजन किया बल्कि दर्शकों को सोचने पर मजबूर भी किया. उनकी कला और दृष्टिकोण आज भी नए फिल्म निर्माताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं.
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उद्योगपति धीरूभाई अंबानी
धीरजलाल हीराचंद अंबानी, जिन्हें धीरूभाई अंबानी के नाम से जाना जाता है, भारत के एक प्रमुख उद्योगपति और रिलायंस इंडस्ट्रीज के संस्थापक थे. उनका जन्म 28 दिसंबर 1932 को जूनागढ़, गुजरात में हुआ था. उन्होंने भारतीय उद्योग जगत में अपनी मेहनत, दूरदर्शिता और उत्कृष्ट व्यापारिक रणनीतियों के लिए ख्याति प्राप्त की.
धीरूभाई अंबानी का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत यमन के अदन शहर में एक पेट्रोल पंप अटेंडेंट के रूप में की थी. वहां काम करते हुए उन्होंने व्यापार और वित्त की बारीकियों को सीखा. अदन में कुछ समय बिताने के बाद, धीरूभाई अंबानी भारत लौट आए और व्यापार में अपनी किस्मत आजमाने का निर्णय लिया.
वर्ष 1966 में धीरूभाई अंबानी ने रिलायंस कमर्शियल कॉरपोरेशन की स्थापना की, जो बाद में रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) बनी. शुरुआत में उन्होंने पॉलिएस्टर के धागों का व्यापार किया और धीरे-धीरे व्यापार का विस्तार किया.
रिलायंस इंडस्ट्रीज ने पेट्रोकेमिकल्स, रिफाइनिंग, तेल और गैस, टेलीकॉम, और रिटेल जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अपने व्यापार का विस्तार किया. आज, यह कंपनी भारत की सबसे बड़ी और सबसे सफल कंपनियों में से एक है.
धीरूभाई अंबानी ने व्यापार में कई नवाचार किए. उन्होंने इक्विटी बाजार का उपयोग करके धन जुटाने की रणनीति अपनाई और आम जनता को कंपनी में निवेश करने के लिए प्रेरित किया. इससे न केवल रिलायंस का विस्तार हुआ, बल्कि भारतीय पूंजी बाजार को भी मजबूती मिली. उन्होंने उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखला में भी सुधार किए, जिससे लागत कम हुई और उत्पाद की गुणवत्ता बढ़ी.
धीरूभाई अंबानी ने सामाजिक क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास के क्षेत्रों में कई पहलें शुरू कीं.
धीरूभाई अंबानी को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले. वर्ष 2016 में, उन्हें मरणोपरांत पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया, जो भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है. 6 जुलाई 2002 को धीरूभाई अंबानी का निधन हो गया. उनके पुत्र, मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी, ने उनके व्यापार को आगे बढ़ाया. मुकेश अंबानी के नेतृत्व में रिलायंस इंडस्ट्रीज ने और भी ऊंचाइयों को छुआ और विभिन्न क्षेत्रों में अपने व्यापार का विस्तार किया.
धीरूभाई अंबानी का योगदान भारतीय उद्योग जगत में अद्वितीय है. उन्होंने न केवल एक विशाल व्यापारिक साम्राज्य खड़ा किया, बल्कि भारतीय उद्योग और पूंजी बाजार को नई दिशा दी. उनकी दृष्टि, मेहनत और नवाचार की भावना ने उन्हें भारतीय उद्योग के पथप्रदर्शक के रूप में स्थापित किया. उनके सिद्धांत और कार्य आज भी उद्यमियों और व्यापारियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं.