मास्टर तारा सिंह
मास्टर तारा सिंह का जन्म 24 जून 1885 को हरयाल, रावलपिंडी (अब पाकिस्तान में) के पास हुआ था. उनका वास्तविक नाम नानक चंद था, लेकिन स्कूल के समय में उन्होंने सिख धर्म अपना लिया और तारा सिंह नाम ग्रहण किया। मास्टर तारा सिंह ने अपने जीवन को सिख समुदाय के अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दिया.
मास्टर तारा सिंह की प्रारंभिक शिक्षा और प्रशिक्षण ने उनके भविष्य के प्रयासों की नींव रखी और उनमें सिख पहचान और समुदाय की एक मजबूत भावना विकसित की. वे खालसा स्कूल, लायलपुर (अब फैसलाबाद) के प्रधानाचार्य बने और वहां से उन्होंने सिख नेतृत्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
मास्टर तारा सिंह ने गुरुद्वारा सुधार आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसका उद्देश्य भ्रष्ट महंतों के नियंत्रण से सिख पूजा स्थलों को मुक्त करना था. वे शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) के पहले सचिव बने और बाद में इसके अध्यक्ष बने. अनेक गिरफ्तारी और कैद के बावजूद, उनकी प्रतिबद्धता ने आंदोलन को आगे बढ़ाया.
वर्ष 1932 से 1947 तक मास्टर तारा सिंह ने सिख अधिकारों और स्वायत्तता के लिए अपना जीवन समर्पित किया. उनका ‘आजाद पंजाब’ योजना सिखों के लिए अधिक राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों को सुरक्षित करने का प्रयास था. भारत के विभाजन के समय में, उन्होंने सिख समुदाय के अधिकारों के लिए संघर्ष किया.
मास्टर तारा सिंह ने अनेक सिख नेताओं को प्रशिक्षित किया और सिख कल्याण के लिए समर्पित एक पीढ़ी को पोषित किया. उनके नेतृत्व और दृष्टि ने उन्हें सिख इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया. उन्होंने कई लेख और जीवनी लिखी, जिनमें सिख मूल्यों और सिद्धांतों की गहरी समझ है. मास्टर तारा सिंह का निधन 22 नवंबर 1967 को चंडीगढ़ में हुआ था.
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संगीतज्ञ ओंकारनाथ ठाकुर
मास्टर ओंकारनाथ ठाकुर का जन्म 24 जून 1897 को गुजरात के खंबात जिले के जहाज गांव में हुआ था. वह एक प्रमुख भारतीय संगीतज्ञ, संगीत शिक्षक, और हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक थे. उनका परिवार आर्थिक तंगी का सामना कर रहा था, लेकिन उनकी माता की मजबूत इच्छाशक्ति ने उन्हें कठिनाइयों के बावजूद शिक्षा और संगीत की ओर प्रेरित किया.
ओंकारनाथ ठाकुर ने अपने जीवन की शुरुआत विभिन्न छोटी-मोटी नौकरियों से की. बाद में, एक जैन धार्मिक संस्थान में काम करते हुए उन्होंने पढ़ना और लिखना सीखा. उनकी संगीत शिक्षा पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर के संरक्षण में गंधर्व महाविद्यालय, मुंबई में शुरू हुई. पंडित पलुस्कर ने उन्हें ग्वालियर घराने के गायन की बारीकियों से अवगत कराया.
मास्टर ओंकारनाथ ठाकुर ने 1930 से लेकर 1960 तक हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में एक प्रमुख स्थान बनाए रखा. उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय संगीत सम्मेलनों में भाग लिया और अपने संगीत से न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्धि प्राप्त की. उनकी अद्वितीय गायन शैली ने उन्हें अपने समय के अन्य प्रमुख संगीतकारों से अलग स्थान दिलाया.
मास्टर ओंकारनाथ ठाकुर को 1955 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उन्हें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और विश्व भारती विश्वविद्यालय से मानद डॉक्टरेट भी प्राप्त हुई थी. उन्होंने अपने जीवन में कई संगीत शिक्षण संस्थानों की स्थापना की और अनेक शिष्यों को प्रशिक्षित किया, जो बाद में प्रसिद्ध संगीतकार और संगीत विद्वान बने.
मास्टर ओंकारनाथ ठाकुर के जीवन में एक महत्वपूर्ण घटना उनकी पत्नी इंदिरा देवी की असामयिक मृत्यु थी, जिसने उन्हें गहरे सदमे में डाल दिया था. इस घटना के बाद उन्होंने पुनः अपने संगीत कैरियर को संवारने में संकल्प लिया और अपने संगीत में एक गहरी वेदना को शामिल किया. उनकी जीवन यात्रा और योगदान ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया और उनके कार्यों ने आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित किया.
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क्रांतिकारी दामोदर हरी चापेकर
दामोदर हरी चापेकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रांतिकारी थे. उनका जन्म 25 जून 1869 को महाराष्ट्र के चिंचवाड़ में हुआ था. वे चापेकर बंधुओं में सबसे बड़े थे, जिनमें उनके दो छोटे भाई बालकृष्ण और वासुदेव चापेकर भी शामिल थे.
दामोदर चापेकर ने 22 जून 1897 को पुणे के प्लेग कमीशनर वाल्टर चार्ल्स रैंड और उसके साथी लेफ्टिनेंट आयर्स्ट की हत्या की थी. यह घटना ब्रिटिश शासन के खिलाफ प्रतिरोध का एक महत्वपूर्ण अध्याय है. उनके इस कदम से ब्रिटिश सरकार में भय और आक्रोश फैल गया था. वर्ष 1899 में दामोदर चापेकर को उनके भाई बालकृष्ण चापेकर के साथ फांसी दे दी गई थी. उनके साहस और बलिदान ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नई ऊर्जा और दिशा प्रदान की.
दामोदर चापेकर और उनके भाईयों के कार्यों ने कई अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरित किया, और उनका नाम भारतीय इतिहास में सम्मान और गर्व के साथ लिया जाता है.
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मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा
जगन्नाथ मिश्रा भारतीय राजनीतिज्ञ और बिहार राज्य के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके थे. उनका जन्म 24 जून 1937 को बिहार के मधुबनी जिले के बलुआ बाजार गांव में हुआ था. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) के सदस्य थे और बिहार की राजनीति में एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में जाने जाते थे.
मुख्यमंत्री कार्यकाल: –
पहला कार्यकाल: 1975 से 1977 तक
दूसरा कार्यकाल: 1980 से 1983 तक
तीसरा कार्यकाल: 1989 से 1990 तक, साथ ही वे बिहार विधानसभा और भारतीय संसद, दोनों में सदस्य रह चुके हैं.
जगन्नाथ मिश्रा ने बिहार में शिक्षा सुधार के लिए कई कदम उठाए। उनके कार्यकाल के दौरान कई नए स्कूल और कॉलेज स्थापित किए गए. उन्होंने ग्रामीण और शहरी विकास के लिए कई योजनाएँ और परियोजनाएँ शुरू कीं. मिश्रा के कार्यकाल के दौरान कानून व्यवस्था में सुधार के लिए भी कई कदम उठाए गए.
जगन्नाथ मिश्रा का नाम कुछ विवादों में भी जुड़ा रहा. सबसे प्रमुख रूप से, वे चारा घोटाले के आरोपों में शामिल थे. इस मामले में उन्हें कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा और उन्हें सजा भी हुई थी.
जगन्नाथ मिश्रा का निधन 19 अगस्त 2019 को दिल्ली में हुआ. उनकी मृत्यु के बाद, उन्हें बिहार की राजनीति में उनके योगदान के लिए याद किया गया. जगन्नाथ मिश्रा की राजनीति और उनके कार्यकाल ने बिहार की राजनीति और समाज पर गहरा प्रभाव डाला है.
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अभिनेता अतुल अग्निहोत्री
अतुल अग्निहोत्री एक भारतीय अभिनेता, फिल्म निर्माता और निर्देशक हैं, जो हिंदी सिनेमा में अपने काम के लिए जाने जाते हैं. उनका जन्म 24 जून 1970 को दिल्ली में हुआ था. उन्होंने 1990 के दशक में अपनी अभिनय यात्रा शुरू की और बाद में निर्माता और निर्देशक के रूप में भी काम किया.
अतुल अग्निहोत्री का परिवार फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ा है. वे प्रसिद्ध अभिनेत्री अलवीरा खान के पति हैं, जो अभिनेता सलमान खान की बहन हैं. अतुल ने अपने कैरियर की शुरुआत 1983 में फिल्म “पास दरिये के” से की, लेकिन उन्हें पहली सफलता 1993 में फिल्म “सर” से मिली. इस फिल्म में उनके अभिनय को सराहा गया.
प्रमुख फिल्में: –
सर (1993): – इस फिल्म में उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई और उनकी अभिनय प्रतिभा को सराहा गया.
क्रांतिवीर (1994): – इस फिल्म में भी उनका प्रदर्शन उल्लेखनीय रहा.
आत्मा (1997): – इस फिल्म में अतुल ने प्रमुख भूमिका निभाई.
हम तुम्हारे हैं सनम (2002): – इस फिल्म में उन्होंने सहायक भूमिका निभाई, जिसमें शाहरुख खान, माधुरी दीक्षित और सलमान खान मुख्य भूमिकाओं में थे.
निर्माता और निर्देशक: –
दिल ने जिसे अपना कहा (2004): – इस फिल्म के साथ अतुल ने निर्देशन में कदम रखा. इसमें सलमान खान, प्रीति जिंटा और भूमिका चावला मुख्य भूमिकाओं में थे.
हैलो (2008): – अतुल ने इस फिल्म को प्रोड्यूस और डायरेक्ट किया. यह फिल्म चेतन भगत के उपन्यास “वन नाइट @ द कॉल सेंटर” पर आधारित थी.
बॉडीगार्ड (2011): – इस सुपरहिट फिल्म के सह-निर्माता भी अतुल अग्निहोत्री थे, जिसमें सलमान खान और करीना कपूर मुख्य भूमिकाओं में थे.
अतुल अग्निहोत्री की शादी अलवीरा खान से हुई है और उनके दो बच्चे हैं. वे खान परिवार के निकट सदस्य हैं और सलमान खान के परिवार से उनके घनिष्ठ संबंध हैं.
अतुल अग्निहोत्री ने अपने कैरियर में विभिन्न भूमिकाओं में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है, चाहे वह एक अभिनेता के रूप में हो, निर्देशक या निर्माता के रूप में. उन्होंने हिंदी फिल्म उद्योग में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है और उनकी फिल्में दर्शकों के बीच लोकप्रिय रही हैं. अतुल अग्निहोत्री का कैरियर भारतीय सिनेमा में विविधता और योगदान का उदाहरण है, और उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में सफलता प्राप्त की है.
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रानी दुर्गावती
रानी दुर्गावती भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और वीरांगना रानी थीं, जिन्होंने मुग़ल आक्रमणकारियों के खिलाफ अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए बहादुरी से लड़ाई लड़ी. उनका जन्म 5 अक्टूबर 1524 को हुआ था और वे गोंडवाना (वर्तमान में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़) के गोंड राज्य की रानी थीं.
रानी दुर्गावती का जन्म एक राजपूत राजा के घर हुआ था. उनके पिता राजा सालिवाहन चंदेल थे, जो कालिंजर के राजा थे. रानी दुर्गावती ने अपने पिता से युद्ध कला, प्रशासन और राज्य प्रबंधन की शिक्षा ली. उनका विवाह गोंडवाना के राजा दलपत शाह से हुआ था. राजा दलपत शाह की मृत्यु के बाद, रानी दुर्गावती ने अपने पुत्र वीर नारायण के साथ गोंडवाना का शासन संभाला.
रानी दुर्गावती ने गोंडवाना राज्य को एक सशक्त और संगठित राज्य बनाया. उन्होंने कई विकास योजनाओं और कल्याणकारी नीतियों को लागू किया. वर्ष 1564 में, मुग़ल बादशाह अकबर के सेनापति आसफ खान ने गोंडवाना पर आक्रमण किया. रानी दुर्गावती ने मुग़लों के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी. उन्होंने अपनी सेना का नेतृत्व किया और युद्धभूमि में अदम्य साहस का प्रदर्शन किया.24 जून 1564 को, जब रानी दुर्गावती को यह स्पष्ट हो गया कि वे युद्ध में हार रही हैं, उन्होंने आत्मसमर्पण करने के बजाय आत्मबलिदान देना पसंद किया.
रानी दुर्गावती की वीरता और बलिदान ने भारतीय इतिहास में उन्हें एक महान योद्धा और साहसी रानी के रूप में प्रतिष्ठित किया है. उनके योगदान और बलिदान को सम्मानित करने के लिए, मध्य प्रदेश में उनके नाम पर रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है. उनकी याद में 24 जून को मध्य प्रदेश में ‘रानी दुर्गावती बलिदान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है.
रानी दुर्गावती का जीवन और उनके साहसिक कार्य भारतीय इतिहास में प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं. उनकी वीरता और बलिदान की गाथा आज भी भारतीय संस्कृति और इतिहास में गर्व के साथ स्मरण की जाती है.
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साहित्यकार पंडित श्रद्धाराम शर्मा
पंडित श्रद्धाराम शर्मा जिन्हें “पंडित श्रद्धाराम फिल्लौरी” के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रमुख भारतीय साहित्यकार, कवि और समाज सुधारक थे. उनका जन्म 30 सितम्बर 1837 को पंजाब के फिल्लौर नामक स्थान पर हुआ था. उन्होंने भारतीय साहित्य और संस्कृति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.
पंडित श्रद्धाराम फिल्लौरी ने कई प्रसिद्ध भजनों और आरतियों की रचना की. उनका सबसे प्रसिद्ध भजन “ओम जय जगदीश हरे” है, जो आज भी भारतीय घरों और मंदिरों में व्यापक रूप से गाया जाता है. उन्होंने कई उपन्यास और कविताएँ भी लिखीं, जिनमें भारतीय संस्कृति, समाज और धर्म की झलक मिलती है.
पंडित श्रद्धाराम शर्मा ने समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई और समाज सुधार के लिए प्रयास किए. उन्होंने शिक्षा के महत्व को समझा और इसके प्रसार के लिए कार्य किया. महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए भी उन्होंने काम किया और महिलाओं की शिक्षा और उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाई.
उन्होंने भारतीय धर्म और संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए. उनके धार्मिक भजनों और गीतों ने भारतीय समाज में धार्मिक जागरूकता बढ़ाई. उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से धर्म, नैतिकता और आध्यात्मिकता के संदेश फैलाए.
पंडित श्रद्धाराम शर्मा का योगदान भारतीय साहित्य, संस्कृति और समाज सुधार के क्षेत्र में अत्यधिक महत्वपूर्ण है. उनकी रचनाएँ आज भी लोगों को प्रेरणा देती हैं और उनके समाज सुधार के प्रयासों को याद किया जाता है. उनके द्वारा रचित “ओम जय जगदीश हरे” भजन भारतीय धार्मिक संगीत में एक अमर रचना के रूप में स्थापित है. पंडित श्रद्धाराम शर्मा का जीवन और कार्य भारतीय समाज के लिए प्रेरणास्रोत हैं और उनकी विरासत सदैव सम्मान के साथ स्मरण की जाएगी.
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कवि मजरूह सुल्तानपुरी
मजरूह सुल्तानपुरी जिनका असली नाम असरार उल हक़ था, भारतीय सिनेमा के एक प्रमुख गीतकार और शायर थे. उनका जन्म 1 अक्टूबर 1919 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में हुआ था. मजरूह सुल्तानपुरी ने हिंदी फिल्म उद्योग में कई दशकों तक अपनी कविताओं और गीतों के माध्यम से महत्वपूर्ण योगदान दिया.
मजरूह सुल्तानपुरी ने अपने प्रारंभिक शिक्षा उत्तर प्रदेश में प्राप्त की और बाद में उर्दू और फारसी साहित्य में उच्च शिक्षा ली. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत एक हकीम (पारंपरिक चिकित्सक) के रूप में की थी, लेकिन उनकी रुचि हमेशा से ही शायरी और कविता में थी.
मजरूह सुल्तानपुरी ने अपने शायरी कैरियर की शुरुआत मुशायरों (कविता पाठ समारोह) में भाग लेकर की. उनकी शायरी में सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर गहरी पकड़ थी. उन्होंने 1946 में फिल्म “शाहजहाँ” के लिए अपना पहला गीत लिखा.
प्रमुख फिल्में और गीत: –
आशा (1957): – इस फिल्म में मजरूह सुल्तानपुरी के गीत बहुत लोकप्रिय हुए.
अंदाज़ (1949): – इस फिल्म के गीत “तू कहे अगर” बहुत प्रसिद्ध हुआ.
कागज़ के फूल (1959): – इस फिल्म के गीतों में भी मजरूह सुल्तानपुरी का योगदान था.
दोनो (1961): – इस फिल्म के गीत “अच्छा जी मैं हारी चलो मान जाओ ना” बहुत प्रसिद्ध हुआ.
क़यामत से क़यामत तक (1988): – इस फिल्म के गीत “पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा” आज भी युवाओं के बीच लोकप्रिय है.
मजरूह सुल्तानपुरी को उनके उत्कृष्ट गीत लेखन के लिए कई बार फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया. वर्ष 1993 में उन्हें भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया. मजरूह सुल्तानपुरी का जीवन साधारण था और वे अपने काम के प्रति पूरी तरह समर्पित थे. उनकी कविताएँ और गीत भारतीय सिनेमा के इतिहास में हमेशा जीवित रहेंगे. उन्होंने अपने गीतों के माध्यम से भारतीय संगीत को एक नई दिशा दी.
मजरूह सुल्तानपुरी की रचनाएँ आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई हैं और उनके योगदान को भारतीय सिनेमा में हमेशा याद किया जाएगा. उनकी शायरी और गीतों ने न केवल फिल्मी दुनिया में, बल्कि साहित्यिक जगत में भी एक अमिट छाप छोड़ी है.