उद्योगपति लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर
लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर (1869-1956) एक प्रसिद्ध भारतीय उद्योगपति थे. वह किर्लोस्कर समूह के संस्थापक थे, जो भारत में सबसे पुरानी और सबसे बड़ी औद्योगिक समूहों में से एक है. किर्लोस्कर का जन्म 20 जून 1869 को महाराष्ट्र में हुआ था. उन्होंने इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त की और आरंभिक दिनों में साइकिल और सिलाई मशीनों की मरम्मत का कार्य किया.
वर्ष 1888 में उन्होंने अपने भाई रामकृष्ण किर्लोस्कर के साथ मिलकर पुणे के पास एक छोटी सी वर्कशॉप शुरू की. वर्ष 1910 में, उन्होंने औद्योगिक नगर किर्लोस्करवाड़ी की स्थापना की, जहां उन्होंने लोहे की मशीनों का निर्माण शुरू किया.
लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर ने भारतीय उद्योग क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया और अपने व्यवसाय को विभिन्न क्षेत्रों में विस्तारित किया, जिसमें कृषि उपकरण, इंजन, और मशीनरी शामिल हैं. उनके नेतृत्व में किर्लोस्कर समूह ने भारत में औद्योगिक क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए. उनके नाम पर कई संस्थान और सड़कें नामांकित हैं. लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर का निधन 26 सितंबर 1956 को हुआ था.
लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर की विरासत आज भी भारतीय उद्योग क्षेत्र में जीवित है, और किर्लोस्कर समूह उनकी दृष्टि को आगे बढ़ाते हुए सफलता की नई ऊंचाइयों को छू रहा है.
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एकांकीकार भुवनेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव
भुवनेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव, जिन्हें केवल “भुवनेश्वर” के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दी साहित्य के महत्वपूर्ण एकांकीकार थे. उन्होंने हिन्दी नाटकों और एकांकी लेखन में महत्वपूर्ण योगदान दिया. भुवनेश्वर का जन्म 1910 में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही प्राप्त की और बाद में उच्च शिक्षा के लिए प्रयागराज (इलाहाबाद) गए.
भुवनेश्वर ने अपने साहित्यिक कैरियर की शुरुआत नाटकों और एकांकी लेखन से की. उनके लेखन में समाज की समस्याओं, मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक यथार्थ का सजीव चित्रण मिलता है. उनके प्रसिद्ध नाटकों और एकांकी में “कारवां गुजर गया”, “लाल पसीना”, “जिंदगी और जोंक”, और “ताश के पत्तों का महल” शामिल हैं.
भुवनेश्वर की लेखन शैली सरल और प्रभावी थी. उन्होंने अपने नाटकों में जीवन की वास्तविकताओं और संघर्षों को बड़ी कुशलता से प्रस्तुत किया. उनके नाटकों में संवाद और चरित्र चित्रण विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं.
भुवनेश्वर ने हिन्दी नाटक और एकांकी साहित्य को एक नई दिशा दी. उनके लेखन ने हिन्दी साहित्य में यथार्थवाद को बढ़ावा दिया और आने वाले लेखकों को प्रेरित किया.
भुवनेश्वर का निधन 1957 में हुआ था, लेकिन उनके साहित्यिक योगदान और प्रभाव आज भी हिन्दी साहित्य में जीवित हैं. भुवनेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव का साहित्यिक योगदान हिन्दी नाटक और एकांकी साहित्य को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और उनके कार्य आज भी साहित्य प्रेमियों के बीच पढ़े और सराहे जाते हैं.
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साहित्यकार विश्वनाथ प्रसाद तिवारी
विश्वनाथ प्रसाद तिवारी भारतीय साहित्य के एक कवि, निबंधकार, आलोचक और संपादक के रूप में प्रसिद्ध हैं. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी का जन्म 20 जून 1940 को उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में हुआ था. उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. और पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की.
तिवारी जी का साहित्यिक कैरियर व्यापक है, जिसमें उन्होंने कविता, निबंध, आलोचना, और संपादन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उन्होंने “सहयात्री” नामक पत्रिका का संपादन भी किया, जो साहित्यिक और सांस्कृतिक विषयों पर केंद्रित थी.
उनके प्रमुख काव्य संग्रहों में “मैं तुम्हारा शब्द”, “आदमी जाति का आदमी”, “आधी सदी का कवि” शामिल हैं. उन्होंने निबंध संग्रह “सर्जन और सृजन”, “आलोचना के अर्थ” आदि भी लिखे हैं. उनकी आलोचनात्मक पुस्तकें भी महत्वपूर्ण हैं, जिनमें “अज्ञेय: व्यक्तित्व और कृतित्व”, “छायावादोत्तर काव्य” शामिल हैं.
विश्वनाथ प्रसाद तिवारी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं. उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, हिंदी अकादमी पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, और व्यास सम्मान जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया है. वे साहित्य अकादमी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं.
तिवारी जी की लेखन शैली में गहनता, संवेदनशीलता और सजीवता है. उनके साहित्यिक कार्यों ने हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया और कई नवलेखकों को प्रेरित किया. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी का साहित्यिक योगदान हिन्दी साहित्य के विभिन्न विधाओं में अमूल्य है, और उनके लेखन से पाठकों को मानवता, समाज और जीवन के गहरे आयामों को समझने में मदद मिलती है.
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साहित्यकार विक्रम सेठ
विक्रम सेठ एक भारतीय लेखक और कवि हैं, जो अपने उपन्यासों, कविताओं और गैर-काल्पनिक लेखन के लिए जाने जाते हैं. उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति “ए सुइटेबल बॉय” है, जिसे व्यापक रूप से सराहा गया है. विक्रम सेठ का जन्म 20 जून 1952 को कलकत्ता (अब कोलकाता), पश्चिम बंगाल, भारत में हुआ था. उन्होंने देहरादून के दून स्कूल से अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और फिर इंग्लैंड के टोनब्रिज स्कूल और ऑक्सफोर्ड
सेठ ने आर्थराइट और इकोनॉमिक्स में डिग्री प्राप्त की और स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में भी अध्ययन किया. उनका साहित्यिक कैरियर विभिन्न विधाओं में फैला हुआ है, जिसमें उपन्यास, कविता, और यात्रा वृतांत शामिल हैं.
प्रमुख रचनाएँ: –
- “ए सुइटेबल बॉय” (1993) विक्रम सेठ का सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है, जो भारतीय समाज और राजनीति की पृष्ठभूमि पर आधारित है. यह उपन्यास 1500 से अधिक पृष्ठों का है और इसे अंग्रेजी साहित्य के सबसे बड़े उपन्यासों में से एक माना जाता है.
- “द गोल्डन गेट” (1986) एक और महत्वपूर्ण कृति है, जो एक उपन्यास है लेकिन शेक्सपियरियन सोननेट शैली में लिखा गया है.
- “अन इक्वल म्यूजिक” (1999) एक संगीत प्रेम कहानी है. उन्होंने कविताओं के संग्रह जैसे “मॉर्निंग सॉन्ग्स” और “द ह्यूमैनल” भी लिखे हैं.
विक्रम सेठ को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर (CBE) और साहित्य अकादमी पुरस्कार शामिल हैं. “ए सुइटेबल बॉय” को कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं.
सेठ की लेखन शैली विस्तृत, वर्णनात्मक और पात्रों की गहराई में जाने वाली है. उनकी रचनाओं में भारतीय संस्कृति, परंपरा, और समाज का सजीव चित्रण मिलता है. उन्होंने पश्चिमी और भारतीय साहित्यिक शैलियों का प्रभावी मिश्रण प्रस्तुत किया है.
विक्रम सेठ की रचनाएं साहित्य प्रेमियों और आलोचकों दोनों के बीच समान रूप से लोकप्रिय हैं. उनका कार्य साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू
द्रौपदी मुर्मू भारत की 15वीं राष्ट्रपति हैं, और वह इस पद को संभालने वाली पहली आदिवासी महिला हैं. उनके जीवन की कहानी संघर्ष, सेवा और समर्पण की मिसाल है.
द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गाँव में हुआ था. वह संथाल जनजाति से संबंधित हैं, जो एक प्रमुख आदिवासी समुदाय है. उन्होंने रमा देवी महिला कॉलेज, भुवनेश्वर से स्नातक की डिग्री प्राप्त की. प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने शिक्षिका के रूप में भी कार्य किया.
द्रौपदी मुर्मू ने 1997 में भाजपा के साथ अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की. वह ओडिशा विधानसभा में विधायक के रूप में चुनी गईं और विभिन्न मंत्रालयों में मंत्री के रूप में सेवा दी. वर्ष 2015 में वह झारखंड की राज्यपाल बनीं, इस पद को संभालने वाली पहली आदिवासी महिला बनी.
25 जुलाई 2022 को द्रौपदी मुर्मू ने भारत की 15वीं राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली. राष्ट्रपति पद पर उनका चयन एक ऐतिहासिक क्षण था, विशेष रूप से आदिवासी समुदायों और महिलाओं के लिए. अपने राजनीतिक कैरियर के दौरान, द्रौपदी मुर्मू ने शिक्षा, स्वास्थ्य, और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने आदिवासी समुदायों के अधिकारों और विकास के लिए निरंतर प्रयास किया. द्रौपदी मुर्मू को उनके उत्कृष्ट सेवा और योगदान के लिए विभिन्न मंचों पर सम्मानित किया गया है.
द्रौपदी मुर्मू का जीवन प्रेरणा का स्रोत है, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहते हैं. उनके नेतृत्व और सेवा ने भारतीय राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ा है और उन्होंने समाज के हर वर्ग के लिए एक मजबूत संदेश दिया है.
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अभिनेत्री नीतू चन्द्रा
नीतू चंद्रा एक भारतीय अभिनेत्री, निर्माता और थिएटर कलाकार हैं. उन्होंने हिंदी, तमिल, तेलुगु और कन्नड़ फिल्मों में काम किया है. नीतू चंद्रा अपने अभिनय कौशल और विविध भूमिकाओं के लिए जानी जाती हैं.
नीतू चंद्रा का जन्म 20 जून 1984 को पटना, बिहार में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पटना के नोट्रेडेम अकादमी से पूरी की और बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की. नीतू चंद्रा ने अपने कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग से की और कई विज्ञापन अभियानों में काम किया. उन्होंने फिल्मों में अपनी शुरुआत 2005 में फिल्म “गरम मसाला” से की, जिसमें उन्होंने सहायक भूमिका निभाई.
प्रमुख फिल्में: – “ट्रैफिक सिग्नल” (2007), “ओए लकी! लकी ओए!” (2008), और “रण” (2010) शामिल हैं. उन्होंने तमिल फिल्म “यावारुम नालम” (2009) में भी प्रमुख भूमिका निभाई, जिसे हिंदी में “13B” के नाम से रिलीज़ किया गया था. उन्होंने तेलुगु और कन्नड़ फिल्मों में भी उन्होंने सफलतापूर्वक काम किया है.
नीतू चंद्रा ने “मैथिली फिल्म्स” नामक प्रोडक्शन कंपनी की स्थापना की और “मिथिला मखान” नामक मैथिली भाषा की फिल्म का निर्माण किया, जिसे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला. उन्होंने थिएटर में भी सक्रिय रूप से भाग लिया और कई नाटकों में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं.
नीतू चंद्रा ताइक्वांडो में ब्लैक बेल्ट धारक हैं और उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई प्रतियोगिताओं में भाग लिया है. वह सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय हैं और महिलाओं के अधिकारों और शिक्षा के मुद्दों पर काम करती हैं.
नीतू चंद्रा को उनके अभिनय और सामाजिक कार्यों के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं. नीतू चंद्रा की बहुमुखी प्रतिभा और उनकी मेहनत ने उन्हें भारतीय फिल्म उद्योग में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है. उनकी सफलता की कहानी युवा कलाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत है.
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अभिनेता राहुल खन्ना
राहुल खन्ना एक भारतीय अभिनेता, मॉडल, और वीडियो जॉकी (वीजे) हैं, जो अपने आकर्षक व्यक्तित्व और बहुमुखी अभिनय प्रतिभा के लिए जाने जाते हैं. वह हिंदी फिल्मों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय परियोजनाओं में भी काम कर चुके हैं.
राहुल खन्ना का जन्म 20 जून 1972 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. उनके पिता, विनोद खन्ना, हिंदी सिनेमा के प्रसिद्ध अभिनेता और राजनीतिज्ञ थे. उनकी मां, गीतांजलि तलेयार खन्ना, एक पूर्व मॉडल थीं. राहुल के भाई, अक्षय खन्ना, भी एक प्रसिद्ध बॉलीवुड अभिनेता हैं.
राहुल खन्ना ने न्यूयॉर्क के ली स्ट्रैसबर्ग थिएटर एंड फिल्म इंस्टीट्यूट और स्कूल ऑफ विजुअल आर्ट्स से अभिनय और फिल्म निर्माण की शिक्षा प्राप्त की. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत एक वीजे के रूप में की, और एमटीवी एशिया के लिए काम किया, जहां उन्होंने अपनी आकर्षक प्रस्तुति शैली से लोकप्रियता हासिल की.
राहुल खन्ना ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत 1999 में दीपा मेहता की फिल्म “1947: अर्थ” से की, जिसमें उनके अभिनय को काफी सराहा गया. इसके बाद उन्होंने “एलओसी कारगिल” (2003), “वेक अप सिड” (2009), और “लव आज कल” (2009) जैसी फिल्मों में काम किया. उन्होंने अमेरिकी टेलीविजन श्रृंखला “द अमेरिकन्स” (2014-2015) में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
फिल्मों और टेलीविजन के अलावा, राहुल खन्ना ने थिएटर में भी काम किया है. वह विभिन्न ब्रांडों के लिए एक सफल मॉडल रहे हैं और कई विज्ञापन अभियानों का हिस्सा बने हैं. राहुल खन्ना अपने शांत और निजी जीवन के लिए जाने जाते हैं. वह सोशल मीडिया पर भी सक्रिय हैं और अपने अनुयायियों के साथ अपने विचार और जीवन के अनुभव साझा करते हैं.
राहुल खन्ना को उनकी फिल्म “1947: अर्थ” के लिए सर्वश्रेष्ठ नवोदित अभिनेता के फिल्मफेयर पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है.
राहुल खन्ना की बहुमुखी प्रतिभा और उनके सजीव प्रदर्शन ने उन्हें भारतीय फिल्म उद्योग और अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक विशिष्ट स्थान दिलाया है. उनका कैरियर और जीवनशैली नई पीढ़ी के कलाकारों के लिए प्रेरणादायक है.
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पक्षी विज्ञानी सलीम अली
सलीम अली जिन्हें “बर्डमैन ऑफ इंडिया” के नाम से भी जाना जाता है. वो भारत के सबसे प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी और प्रकृतिवादी थे. उनका पूरा नाम सलीम मोइजुद्दीन अब्दुल अली था. उन्होंने भारत में पक्षी विज्ञान को एक नई दिशा दी और अनेक पक्षियों की प्रजातियों का अध्ययन किया.
सलीम अली का जन्म 12 नवंबर 1896 को बॉम्बे (अब मुंबई), महाराष्ट्र में हुआ था. वह अपने माता-पिता के सबसे छोटे बच्चे थे. उनके माता-पिता का निधन बचपन में ही हो गया था, जिसके बाद उनका पालन-पोषण उनके चाचा-चाची ने किया.
सलीम अली ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के न्यू हाय स्कूल और बाद में सेंट जेवियर कॉलेज से प्राप्त की. पक्षियों के प्रति उनकी रुचि बचपन में ही जागी जब उन्होंने एक स्पैरो (गौरैया) को देखा और उसके बारे में जानने की कोशिश की. उन्होंने जर्मनी के बर्लिन विश्वविद्यालय में डॉ. एरविन स्ट्रेसमैन के तहत औपचारिक रूप से पक्षी विज्ञान का अध्ययन किया.
सलीम अली ने अपने कैरियर की शुरुआत बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) के साथ की और पूरे भारत में पक्षियों का अध्ययन किया. उन्होंने “द बुक ऑफ इंडियन बर्ड्स” (1941) नामक पुस्तक लिखी, जो भारतीय पक्षियों पर एक महत्वपूर्ण संदर्भ पुस्तक बन गई. सलीम अली ने भारतीय पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों का विस्तृत अध्ययन किया और उनकी संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने कई वन्यजीव अभ्यारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों की स्थापना में मदद की, जिनमें भरतपुर बर्ड सैंक्चुअरी (अब केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान) और साइलेंट वैली नेशनल पार्क शामिल हैं.
सलीम अली को उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले, जिनमें पद्म भूषण (1958) और पद्म विभूषण (1976) शामिल हैं. उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से भी नवाजा गया और वे विभिन्न वैज्ञानिक संगठनों के सदस्य रहे.
सलीम अली की पत्नी, तीला अली, भी उनके शोध कार्यों में सक्रिय भागीदार थीं. उनका विवाह 1918 में हुआ था. सलीम अली का निधन 20 जून 1987 को हुआ. उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी विरासत भारतीय पक्षी विज्ञान में जीवित है.
सलीम अली का जीवन और कार्य भारतीय वन्यजीव और पक्षी विज्ञान के क्षेत्र में मील का पत्थर है. उन्होंने अपने समर्पण और अध्ययन से भारतीय वन्यजीव संरक्षण में अपार योगदान दिया है और वे आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे.