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व्यक्ति विशेष

भाग – 172.

स्वतंत्रता सेनानी ज्योति प्रसाद अग्रवाल

ज्योति प्रसाद अग्रवाल एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और असमिया साहित्यकार थे. उनका जन्म 17 जून 1903 को असम के गोलाघाट जिले के तामुलीपाथर गांव में हुआ था. उन्होंने असम के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अपने साहित्यिक योगदान के लिए भी प्रसिद्ध हुए.

ज्योति प्रसाद अग्रवाल एक उत्कृष्ट कवि, नाटककार, फिल्म निर्माता और संगीतकार थे. उन्होंने असमिया सिनेमा के क्षेत्र में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया और असमिया फिल्म “जॉयमती” (1935) का निर्देशन किया, जो असम की पहली फीचर फिल्म मानी जाती है.

उनके प्रमुख कार्यों में “शोनित कुंवर” और “कैरेंग” जैसे नाटक और “रूपकुंवर” नामक गीत संग्रह शामिल हैं. ज्योति प्रसाद अग्रवाल का योगदान न केवल साहित्य और सिनेमा में है, बल्कि असमिया संस्कृति और समाज के विकास में भी महत्वपूर्ण है. उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गांधी के सिद्धांतों का पालन किया और असमिया भाषा और संस्कृति के संरक्षण और प्रचार में अपने जीवन को समर्पित किया.

ज्योति प्रसाद अग्रवाल का निधन 17 जनवरी 1951 को हुआ, लेकिन उनका योगदान आज भी असम के लोगों द्वारा श्रद्धा के साथ याद किया जाता है.

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टेनिस खिलाड़ी लिएंडर पेस

लिएंडर पेस एक भारतीय टेनिस खिलाड़ी हैं, जिन्हें विश्व के सर्वश्रेष्ठ डबल्स और मिक्स्ड डबल्स खिलाड़ियों में से एक माना जाता है. उनका जन्म 17 जून 1973 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था. लिएंडर पेस ने अपने कैरियर में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की हैं और भारतीय टेनिस के इतिहास में उनका नाम प्रमुखता से जुड़ा हुआ है.

 प्रमुख उपलब्धियाँ: –

ओलंपिक पदक: लिएंडर पेस ने 1996 के अटलांटा ओलंपिक में भारत के लिए कांस्य पदक जीता था, जो एकल प्रतियोगिता में था.

ग्रैंड स्लैम खिताब: – उन्होंने अपने कैरियर में 18 ग्रैंड स्लैम खिताब जीते हैं, जिनमें 8 पुरुष डबल्स और 10 मिक्स्ड डबल्स खिताब शामिल हैं.

डबल्स में सफलता: – लिएंडर पेस ने कई प्रतिष्ठित डबल्स खिताब जीते हैं और विभिन्न साझेदारों के साथ खेलते हुए अपनी कुशलता और तकनीक का प्रदर्शन किया है.

डेविस कप: – पेस ने भारतीय डेविस कप टीम का प्रतिनिधित्व करते हुए कई यादगार मुकाबलों में हिस्सा लिया है और उनकी टीम को महत्वपूर्ण जीत दिलाई है.

पद्म श्री और पद्म भूषण: – उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन और भारतीय टेनिस में योगदान के लिए उन्हें 2001 में पद्म श्री और 2014 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया.

लिएंडर पेस की खेल शैली, उनकी त्वरित प्रतिक्रियाएं और कोर्ट पर उनकी रणनीतिक समझ ने उन्हें एक महान खिलाड़ी बनाया है. उनके लंबे और सफल कैरियर ने उन्हें भारतीय खेल जगत में एक विशेष स्थान दिलाया है, और वे आज भी नई पीढ़ी के खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं.

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अभिनेत्री सोना महापात्रा

सोना महापात्रा एक भारतीय गायिका, संगीतकार और अभिनेत्री हैं. उनका जन्म 17 जून 1976 को कटक, ओडिशा में हुआ था. सोना महापात्रा अपनी सशक्त आवाज और बोल्ड परफॉर्मेंस के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने बॉलीवुड के कई हिट गानों में अपनी आवाज दी है और संगीत जगत में अपनी विशेष पहचान बनाई है.

 सोना महापात्रा ने कई बॉलीवुड फिल्मों में हिट गाने गाए हैं. उनके कुछ प्रसिद्ध गाने हैं “अम्बर्सरिया” (फिल्म: फुकरे), “जिया लागे ना” (फिल्म: तलाश), और “बेधड़क” (फिल्म: क्या दिल्ली क्या लाहौर).  सोना ने अपने सोलो एलबम भी जारी किए हैं, जिनमें उनका संगीत और आवाज का विविधता दिखाई देती है. उनका एलबम “सोनारि डायरीज” काफी लोकप्रिय हुआ था.

सोना महापात्रा अपनी लाइव परफॉर्मेंस के लिए भी जानी जाती हैं. उन्होंने भारत और विदेशों में कई कंसर्ट्स में परफॉर्म किया है और दर्शकों का दिल जीता है. सोना महापात्रा सामाजिक मुद्दों पर भी सक्रिय रहती हैं. वे महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक समानता के पक्ष में खुलकर बोलती हैं और अपने संगीत के माध्यम से भी इन मुद्दों पर जागरूकता फैलाती हैं. सोना ने टेलीविजन शोज और वेब सीरीज में भी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है. वे “सत्यमेव जयते” शो में नजर आई थीं, जहां उन्होंने सामाजिक मुद्दों पर गाने गाए थे.

सोना महापात्रा की कला और उनकी आवाज का जादू संगीत प्रेमियों के दिलों में बसता है. उनकी बोल्ड और स्पष्ट विचारधारा ने उन्हें एक अलग पहचान दी है और वे न केवल एक सफल गायिका बल्कि एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व के रूप में भी मानी जाती हैं.

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अभिनेत्री लिसा हेडन

लीसा हेडन एक भारतीय मॉडल, फैशन डिजाइनर और अभिनेत्री हैं. उनका पूरा नाम एलिज़ाबेथ मैरी हेडन है, और उनका जन्म 17 जून 1986 को चेन्नई, तमिलनाडु में हुआ था. लीसा हेडन भारतीय सिनेमा में अपने अभिनय और ग्लैमर के लिए जानी जाती हैं.

लीसा हेडन ने अपने कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग से की थी. उन्होंने विभिन्न प्रसिद्ध फैशन ब्रांड्स और डिजाइनरों के लिए रैंप वॉक किया और कई प्रमुख फैशन मैगजीन के कवर पर भी दिखाई दीं.

लीसा ने 2010 में फिल्म “आयशा” से बॉलीवुड में डेब्यू किया. इस फिल्म में उनके अभिनय को सराहा गया और उन्होंने अपने लिए एक विशेष पहचान बनाई. लीसा हेडन ने कई हिट फिल्मों में काम किया है, जिनमें “क्वीन” (2014), “हाउसफुल 3” (2016), “द शौकीन्स” (2014), और “ऐ दिल है मुश्किल” (2016) शामिल हैं. खासतौर पर फिल्म “क्वीन” में उनके किरदार “विजयलक्ष्मी” को काफी सराहना मिली.

लीसा हेडन ने टीवी शो “इंडिया’ज नेक्स्ट टॉप मॉडल” में बतौर जज भी काम किया है, जिससे उन्होंने अपने फैशन और मॉडलिंग अनुभव को साझा किया. लीसा हेडन ने फैशन डिजाइनिंग में भी अपनी रुचि दिखाई है और कुछ फैशन प्रोजेक्ट्स पर काम किया है.

लीसा हेडन ने 2016 में डिनो लालवानी से शादी की, और वे अब तीन बच्चों की मां हैं. लीसा हेडन की खूबसूरती, अभिनय कौशल और फैशन सेंस ने उन्हें भारतीय फिल्म और फैशन उद्योग में एक प्रमुख हस्ती बना दिया है. उनके विभिन्न योगदानों और उनकी बहुमुखी प्रतिभा के कारण वे एक सफल और प्रेरणादायक अभिनेत्री के रूप में मानी जाती हैं.

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मुमताज़ महल

मुमताज़ महल, जिनका वास्तविक नाम अर्जुमंद बानू बेगम था, मुगल सम्राट शाहजहाँ की पत्नी थीं. उनका जन्म 27 अप्रैल 1593 को हुआ था और उनकी मृत्यु 17 जून 1631 को हुई थी. मुमताज़ महल भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व हैं, मुख्यतः ताजमहल के कारण, जो शाहजहाँ ने उनकी याद में बनवाया था.

मुमताज़ महल और शाहजहाँ की शादी 1612 में हुई थी. वह शाहजहाँ की तीसरी पत्नी थीं, लेकिन उन्हें शाहजहाँ की पसंदीदा पत्नी माना जाता था. उनके साथ उनके 14 बच्चे हुए थे, जिनमें से सात बेटे और सात बेटियां थीं.

मुमताज़ महल का निधन 1631 में बुरहानपुर, मध्य प्रदेश में एक बच्चे के जन्म के दौरान हुआ था. उनकी मृत्यु ने शाहजहाँ को गहरा दुख पहुंचाया और उन्हें अपनी प्यारी पत्नी की याद में एक स्मारक बनवाने की प्रेरणा दी.

 मुमताज़ महल की याद में शाहजहाँ ने आगरा में ताजमहल का निर्माण करवाया, जिसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में जाना जाता है. ताजमहल का निर्माण 1632 में शुरू हुआ और 1653 में पूरा हुआ. यह स्मारक प्रेम का प्रतीक माना जाता है और विश्व के सबसे खूबसूरत और प्रसिद्ध इमारतों में से एक है.

मुमताज़ महल को एक दयालु और उदार महिला के रूप में जाना जाता था. वह अपने पति के शासनकाल के दौरान भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं और कई सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेती थीं.

मुमताज़ महल का नाम इतिहास में हमेशा जीवित रहेगा, विशेष रूप से ताजमहल के कारण, जो न केवल एक स्थापत्य का अद्वितीय उदाहरण है, बल्कि एक अमर प्रेम कथा का प्रतीक भी है. उनकी जीवन कथा और ताजमहल का निर्माण भारतीय इतिहास और संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है.

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राजमाता जीजाबाई

राजमाता जीजाबाई, जिन्हें जिजाबाई या जिजामाता के नाम से भी जाना जाता है, मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज की मां थीं. उनका जन्म 12 जनवरी 1598 को हुआ था और उनका निधन 17 जून 1674 को हुआ था. जीजाबाई का योगदान मराठा साम्राज्य की स्थापना में अत्यंत महत्वपूर्ण था, और उन्हें एक प्रेरणादायक और शक्तिशाली महिला के रूप में सम्मानित किया जाता है.

जीजाबाई का जन्म एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था. उनके पिता लखुजी जाधव एक शक्तिशाली सरदार थे. जीजाबाई का विवाह शाहजी भोंसले से हुआ था, जो एक प्रमुख मराठा सरदार थे.

जीजाबाई ने अपने पुत्र शिवाजी को उच्च मूल्यों, नैतिकता, और साहस के साथ पाला. उन्होंने शिवाजी को राजनीति, युद्ध-कला और धर्म के प्रति जागरूक किया. जीजाबाई ने शिवाजी को स्वराज्य की स्थापना के लिए प्रेरित किया और उन्हें एक महान योद्धा और नेता के रूप में विकसित किया.

जीजाबाई एक दृढ़ निश्चयी और साहसी महिला थीं. उन्होंने कई कठिन परिस्थितियों में भी अपने परिवार और मराठा साम्राज्य को संगठित और प्रेरित रखा. उनके नेतृत्व में, शिवाजी ने कई महत्वपूर्ण किले जीते और मराठा साम्राज्य की नींव रखी.

जीजाबाई ने समाज में महिलाओं की स्थिति को सुधारने और उन्हें सशक्त बनाने के लिए कई कदम उठाए. उन्होंने अपने जीवन में संघर्षों का सामना करते हुए महिलाओं के अधिकारों और सम्मान की रक्षा की.

जीजाबाई धार्मिक थीं और उन्होंने धार्मिक और नैतिक मूल्यों को अपने जीवन में सर्वोच्च स्थान दिया. वे न्यायप्रिय थीं और उन्होंने समाज में न्याय और समानता की स्थापना के लिए प्रयास किए.

राजमाता जीजाबाई का जीवन संघर्ष, साहस और प्रेरणा की एक महान कथा है. उनका योगदान न केवल मराठा साम्राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण था, बल्कि उनके द्वारा स्थापित मूल्य और आदर्श आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं. जीजाबाई का नाम भारतीय इतिहास में एक महान मां और एक महान नेता के रूप में सदैव स्मरणीय रहेगा.

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साहित्यकार गोपबंधु दास

गोपबंधु दास (1877-1928) एक प्रमुख ओडिया साहित्यकार, समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकार थे. उन्हें “उत्कलमणि” (उड़ीसा का रत्न) के रूप में भी जाना जाता है. उन्होंने अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक योगदान दिए, जिससे ओडिशा के लोगों को प्रेरणा मिली.

गोपबंधु दास का जन्म 9 अक्टूबर 1877 को ओडिशा के पुरी जिले के सुयाँ गाँव में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में पूरी की और फिर उच्च शिक्षा के लिए कोलकाता गए. उन्होंने कई कविताएँ, लेख और निबंध लिखे जो समाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर आधारित थे. उनकी रचनाएँ ओडिया साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं और आज भी पढ़ी और सराही जाती हैं. उनकी प्रमुख कृतियों में “करमागति” और “बंधु संघर्ष” शामिल हैं.

गोपबंधु दास ने समाज सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए. उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए. उन्होंने “सत्यवादी विद्यालय” की स्थापना की, जो एक मॉडल स्कूल था और जिसका उद्देश्य समाज के सभी वर्गों को समान शिक्षा प्रदान करना था.

गोपबंधु दास भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से शामिल थे. उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाए जा रहे आंदोलनों में भाग लिया. उन्होंने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ कई आंदोलनों का नेतृत्व किया और जेल भी गए.

गोपबंधु दास ने “समाज” नामक एक समाचार पत्र शुरू किया, जो समाज और राजनीति के मुद्दों पर निर्भीक और निष्पक्ष रिपोर्टिंग करता था. उन्होंने पत्रकारिता को समाज सुधार और स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण साधन माना.

गोपबंधु दास का व्यक्तिगत जीवन सादगी और सेवा की मिसाल था. उन्होंने अपना जीवन समाज और देश की सेवा में समर्पित कर दिया. उनका निधन 17 जून 1928 को हुआ, लेकिन उनका योगदान और विचार आज भी लोगों को प्रेरणा देते हैं.

गोपबंधु दास की साहित्यिक, सामाजिक और राजनीतिक सेवाओं ने उन्हें एक महान व्यक्तित्व बनाया. उनका जीवन संघर्ष, साहस और समाज सेवा की एक प्रेरणादायक गाथा है, जो आने वाली पीढ़ियों को मार्गदर्शन और प्रेरणा देती रहेगी.

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अभिनेता मोतीलाल

मोतीलाल राजवंशी (1910-1965) एक प्रसिद्ध भारतीय अभिनेता थे, जिन्होंने हिंदी सिनेमा में अपने शानदार अभिनय के लिए ख्याति प्राप्त की. उन्हें भारतीय फिल्म उद्योग में यथार्थवादी अभिनय शैली के प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है. अपने कैरियर में, उन्होंने कई यादगार भूमिकाएँ निभाईं और अपने अभिनय कौशल से दर्शकों का दिल जीत लिया.

मोतीलाल का जन्म 4 दिसंबर 1910 को शिमला, भारत में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई में प्राप्त की और यहीं से उन्होंने अभिनय में अपनी रुचि विकसित की. मोतीलाल ने 1934 में फिल्म “शहर का जादू” से अपने फिल्म कैरियर की शुरुआत की. उनका पहला प्रमुख हिट “साड़ी” (1941) था, जिसमें उनके अभिनय की खूब प्रशंसा हुई.

मोतीलाल ने अपने कैरियर में कई महत्वपूर्ण फिल्मों में काम किया, जिनमें “डॉक्टर कोटनीस की अमर कहानी” (1946), “देवदास” (1955), “परख” (1960), और “छोटी छोटी बातें” (1965) शामिल हैं.

उन्होंने अपनी फिल्मों में यथार्थवादी और सहज अभिनय शैली को अपनाया, जिसने उन्हें अपने समय के अन्य अभिनेताओं से अलग बनाया. मोतीलाल को अपने उत्कृष्ट अभिनय के लिए कई पुरस्कार मिले. उन्हें फिल्म “परख” में उनके प्रदर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला. उनकी अंतिम फिल्म “छोटी छोटी बातें” के लिए उन्हें मरणोपरांत सर्वश्रेष्ठ कहानी का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला.

मोतीलाल का जीवन सादगी और विनम्रता का प्रतीक था. वे न केवल एक महान अभिनेता थे, बल्कि एक अच्छे इंसान भी थे. उनके निधन के बाद, उनकी स्मृति में कई सम्मानों की स्थापना की गई और उनके योगदान को भारतीय सिनेमा में हमेशा याद किया जाता है. मोतीलाल का निधन 17 जून 1965 को हुआ। उनके निधन से भारतीय फिल्म उद्योग ने एक महान अभिनेता को खो दिया, लेकिन उनकी फिल्में और उनका अभिनय आज भी दर्शकों को प्रेरित करते हैं.

मोतीलाल की अभिनय शैली और उनके योगदान ने उन्हें हिंदी सिनेमा के इतिहास में एक विशिष्ट स्थान दिलाया है. उनकी फिल्में और उनके द्वारा निभाए गए किरदार आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं और वे भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व बने हुए हैं.

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