साहित्यकार गिरिधर शर्मा नवरत्न
गिरिधर शर्मा नवरत्न एक साहित्कार थे जो द्विवेदी युग के ऐसे स्वनामधन्य व्यक्तित्व था. गिरिधर शर्मा नवरत्न का जन्म 6 जून 1881 को झालरापाटन, राजस्थान में हुआ था और इनका निधन 1 जुलाई 1961 हुआ.
गिरिधर शर्मा की मुलाक़ात महात्मा गाँधी से हुई जिसके बाद महात्मा गाँधी ने गिरिधर शर्मा को राष्ट्रभाषा हिन्दी का दीक्षा मंत्र दिया जिसके फलस्वरूप लखनऊ के कांग्रेस अधिवेशन में देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी घोषित कर दी गयी.
गिरिधर शर्मा ने राष्ट्रभाषा हिन्दी को बढ़ावा देने हेतु कई हिन्दी साहित्य सभा की स्थापना भी की. उनकी कई रचनाएँ प्रकाशित जिनमे प्रमुख हैं: – नवरत्न नीति:, ‘गिरिधर सप्तशती’,’प्रेम पयोधि, योगी, अभेद रस:, माय वाक्सुधा सौरमण्डलम्, जापान विजय आदि.
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शायर शौक़ बहराइची
शौक़ बहराइची भारतीय उपमहाद्वीप के प्रसिद्ध उर्दू शायर थे. उनका असली नाम रियासत हुसैन रिज़वी था. शौक़ बहराइची का जन्म 6 जून 1884 को अयोध्या के सैयदवाड़ा मोहल्ले में एक साधारण मुस्लिम शिया परिवार में हुआ था और उनका निधन 13 जनवरी 1964 को हुआ. वे अपनी ग़ज़लों और शायरी के लिए जाने जाते हैं, जिसमें प्यार, मोहब्बत और सामाजिक मुद्दों को प्रमुखता से उभारा जाता है. शौक़ बहराइची ने उर्दू अदब में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया और उनके लेखन ने कई पीढ़ियों को प्रभावित किया है.
शौक़ बहराइची की ग़ज़लें बहुत मशहूर हैं. उनके शेर दिल को छू जाने वाले होते हैं और उर्दू साहित्य में उनकी एक खास जगह है. उनकी नज़्में भी बहुत लोकप्रिय हैं, जिनमें उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त किए हैं. शौक़ बहराइची ने मसनवी भी लिखी हैं, जिनमें प्रेम कहानियों को प्रस्तुत किया गया है.
शौक़ बहराइची की शायरी में एक खास प्रकार की मिठास और दर्द का मिश्रण होता है, जो उनके पाठकों को गहराई से प्रभावित करता है. उनकी भाषा सरल और सहज है, लेकिन उसमें भावनाओं की गहराई बहुत अधिक होती है. उनके योगदान के कारण उर्दू साहित्य में उनका नाम हमेशा याद रखा जाएगा.
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अभिनेता सुनील दत्त
सुनील दत्त भारतीय सिनेमा के एक प्रसिद्ध अभिनेता, निर्माता, निर्देशक और राजनीतिज्ञ थे. उनका असली नाम बलराज दत्त था. सुनील दत्त का जन्म 6 जून, 1929 को पंजाब (पाकिस्तान) के झेलम ज़िले के खुर्दी गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत रेडियो से की थी और बाद में फिल्मों में कदम रखा.
सुनील दत्त ने 1955 में फिल्म “रेलवे प्लेटफॉर्म” से अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत की. लेकिन उन्हें असली पहचान मिली 1957 में आई फिल्म “मदर इंडिया” से मिली, जिसमें उन्होंने बिरजू का किरदार निभाया. इस फिल्म में उनकी सह-कलाकार नरगिस थीं, जिनसे उन्होंने बाद में शादी की.
प्रमुख फिल्में: – मदर इंडिया (1957), साधना (1958), गुमराह (1963), वक्त (1965), मेरा साया (1966) व रेशमा और शेरा (1971).
निर्माता और निर्देशक: – यादें (1964) व रेशमा और शेरा (1971).
सुनील दत्त ने 1984 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी से जुड़कर राजनीति में कदम रखा और 1984 में पहली बार मुंबई उत्तर-पश्चिम से लोकसभा के सदस्य बने. उन्होंने कई बार चुनाव जीता और केंद्रीय मंत्री भी बने. सुनील दत्त और नरगिस की शादी 1958 में हुई और उनके तीन बच्चे हुए: संजय दत्त, नम्रता दत्त, और प्रिया दत्त। उनके बेटे संजय दत्त भी एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं.
सुनील दत्त को उनके फिल्मी और सामाजिक योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले, जिनमें पद्म श्री (1968) शामिल है. सुनील दत्त का निधन 25 मई 2005 को मुंबई में हुआ. उनकी विरासत आज भी भारतीय सिनेमा और राजनीति में जीवित है.
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फ़िल्म निर्माता डी. रामानायडू
डी. रामानायडू (डग्गुबती रामानायडू) भारतीय सिनेमा के प्रमुख फ़िल्म निर्माता थे, जिनका जन्म 6 जून 1936 को आंध्र प्रदेश में हुआ था और निधन 18 फरवरी 2015 को हुआ. उन्होंने विभिन्न भारतीय भाषाओं में फिल्मों का निर्माण किया और उनकी गिनती भारतीय सिनेमा के सबसे सफल और सम्मानित निर्माताओं में होती है. उन्हें “मूवी मोगल” के नाम से भी जाना जाता था.
डी. रामानायडू ने अपने कैरियर की शुरुआत 1963 में की और अपने जीवनकाल में 150 से अधिक फिल्मों का निर्माण किया. उन्होंने हिंदी, तेलुगू, तमिल, मलयालम, कन्नड़, बंगाली, मराठी, ओडिया, पंजाबी और अन्य भाषाओं में फिल्में बनाईं.
प्रमुख फिल्मों: – रामुडु भीमुडु (1964, तेलुगू), प्रेम नगर (1971, तेलुगू), सत्यनारायण कथा (1987, हिंदी), असली नकली (1962, हिंदी) और मुकद्दर का फैसला (1987, हिंदी).
डी. रामानायडू को 2009 में भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया. वर्ष 2012 में पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया. डी. रामानायडू एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने सबसे ज्यादा भाषाओं में फिल्म निर्माण के लिए गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में स्थान मिला.
डी. रामानायडू के परिवार में भी कई प्रमुख फिल्मी हस्तियाँ शामिल हैं. उनके बेटे वेंकटेश और सुरेश बाबू फिल्म उद्योग में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. उनके पोते राणा दग्गुबाती भी एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं. डी. रामानायडू का योगदान भारतीय सिनेमा में अमूल्य है. उन्होंने न केवल बहुभाषी फिल्मों का निर्माण किया, बल्कि नई प्रतिभाओं को भी अवसर दिया. उनकी फिल्में मनोरंजन के साथ-साथ सामाजिक संदेश भी देती हैं.
डी. रामानायडू का निधन 18 फरवरी 2015 को हुआ, लेकिन उनकी फिल्में और उनके योगदान को आज भी याद किया जाता है और भारतीय सिनेमा के इतिहास में उनका नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है.
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गीतकार राजेन्द्र कृष्ण
राजेन्द्र कृष्ण भारतीय सिनेमा के एक प्रमुख गीतकार और पटकथा लेखक थे. उनका जन्म 6 जून 1919 को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में हुआ था, जो उस समय ब्रिटिश भारत का हिस्सा था. उन्होंने हिंदी फिल्मों के लिए अनेक प्रसिद्ध और हिट गीत लिखे, जिनका भारतीय सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान रहा है.
राजेन्द्र कृष्ण ने अपने कैरियर की शुरुआत 1940 के दशक में की और उन्होंने लगभग तीन दशकों तक हिंदी सिनेमा के लिए गीत लिखे. उन्होंने न केवल गीत लिखे बल्कि कई फिल्मों की पटकथा और संवाद भी लिखे. उनके गाने सरल, भावनात्मक और लोकप्रिय थे, जो आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं.
राजेन्द्र कृष्ण ने कई सुपरहिट गाने लिखे हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं: – “ऐ मेरे वतन के लोगों” , “चुप चुप खड़े हो ज़रूर कोई बात है”, “मेरा दिल यह पुकारे आजा” , “दो सितारों का ज़मीं पर है मिलन आज की रात” और “वो भूली दास्तां”.
राजेन्द्र कृष्ण ने कई प्रसिद्ध फिल्मों के लिए गीत लिखे, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं: – आन (1952), नया दौर (1957), प्यासा (1957), धूल का फूल (1959), साधना (1958) और वक़्त (1965)
राजेन्द्र कृष्ण को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले, जिनमें फिल्मफेयर पुरस्कार भी शामिल हैं. उनके गीतों की लोकप्रियता और उनके लेखन की गहराई ने उन्हें हिंदी सिनेमा के सबसे महान गीतकारों में से एक बना दिया. राजेन्द्र कृष्ण का जीवन सरल और सादा था. उन्होंने अपनी लेखनी से लोगों के दिलों में एक खास जगह बनाई और उनके गीतों ने कई पीढ़ियों को प्रभावित किया. उनका निधन 23 सितम्बर 1987 को हुआ, लेकिन उनके गाने और लेखन आज भी जीवित हैं और भारतीय सिनेमा के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं.
राजेन्द्र कृष्ण का योगदान न केवल मनोरंजन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि उनके गीतों ने सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश को भी समृद्ध किया है. उनके गीतों की मधुरता और भावनात्मक गहराई आज भी श्रोताओं को भाव-विभोर कर देती है.
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राजनीतिज्ञ रघुवंश प्रसाद सिंह
रघुवंश प्रसाद सिंह भारतीय राजनीति के एक प्रमुख नेता थे. वे बिहार राज्य से थे और भारतीय राजनीति में उनके योगदान के लिए उन्हें विशेष रूप से जाना जाता है. उन्होंने कई दशकों तक राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई और विभिन्न उच्च पदों पर आसीन रहे.
रघुवंश प्रसाद सिंह का जन्म 6 जून 1946 को बिहार के वैशाली जिले में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बिहार में प्राप्त की और आगे चलकर उच्च शिक्षा के लिए पटना विश्वविद्यालय से गणित में मास्टर डिग्री प्राप्त की. उन्होंने पीएच.डी. की डिग्री भी प्राप्त की थी.
रघुवंश प्रसाद सिंह का राजनीतिक कैरियर बहुत लंबा और सफल रहा. वे भारतीय राजनीति के कुछ प्रमुख दलों से जुड़े रहे, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय जनता दल (RJD) था. रघुवंश प्रसाद सिंह ने कई बार बिहार के वैशाली निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा चुनाव जीता. वे 1977, 1989, 1991, 1996, 1998, 1999, 2004, और 2009 में लोकसभा के सदस्य चुने गए. उन्होंने मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री के रूप में कार्य किया. उनके कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण ग्रामीण विकास योजनाएं शुरू की गईं, जिनमें मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) शामिल है.
रघुवंश प्रसाद सिंह राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के प्रमुख नेता थे और पार्टी के संगठन को मजबूत करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही. हालांकि, 2020 में उन्होंने RJD से इस्तीफा दे दिया था. रघुवंश प्रसाद सिंह को ग्रामीण विकास और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में उनके कार्यों के लिए जाना जाता है. उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के सुधार के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए.
रघुवंश प्रसाद सिंह का निधन 13 सितम्बर 2020 को नई दिल्ली के एम्स अस्पताल में हुआ. उनके निधन से भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण अध्याय का अंत हो गया. रघुवंश प्रसाद सिंह का जीवन और कार्य भारतीय राजनीति में एक प्रेरणादायक कहानी है. उनकी निष्ठा, ईमानदारी और जनता के प्रति उनकी सेवा भावना ने उन्हें एक आदर्श नेता के रूप में स्थापित किया. उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा और उनकी नीतियों और विचारों से आने वाली पीढ़ियां प्रेरित होती रहेंगी.
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उपन्यासकार वेद प्रकाश शर्मा
वेद प्रकाश शर्मा भारतीय हिंदी साहित्य के एक प्रमुख उपन्यासकार थे. वे अपने रोमांचक और थ्रिलर उपन्यासों के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने हिंदी पल्प फिक्शन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया और उनके उपन्यासों ने उन्हें व्यापक लोकप्रियता दिलाई.
वेद प्रकाश शर्मा का जन्म 10 जून 1955 को उत्तर प्रदेश के मेरठ में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मेरठ से ही प्राप्त की और आगे चलकर हिंदी साहित्य में रुचि विकसित की. वेद प्रकाश शर्मा ने अपने लेखन कैरियर की शुरुआत 1970 के दशक में की. उन्होंने पहले कुछ समय तक लेखन को शौक के रूप में लिया, लेकिन जल्द ही उनकी कहानियों और उपन्यासों की लोकप्रियता बढ़ने लगी. उन्होंने अपने जीवनकाल में 150 से अधिक उपन्यास लिखे.
“वर्दी वाला गुंडा”: यह उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है, जिसने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि दिलाई. “काला सुरमा”, “दहशत”, “जिंदा या मुर्दा” और “बेरहम”. वेद प्रकाश शर्मा की लेखन शैली सरल, सजीव और पठनीय थी. उनके उपन्यासों में रहस्य, रोमांच और भावनात्मक तत्वों का एक अद्भुत मिश्रण होता था. उनकी कहानियों में चरित्रों की गहराई और घटनाओं का ताना-बाना पाठकों को बांधे रखता था.
वेद प्रकाश शर्मा के कई उपन्यासों को फिल्म और टेलीविजन धारावाहिकों में भी रूपांतरित किया गया. उनके उपन्यास “वर्दी वाला गुंडा” पर आधारित फिल्म भी बनी. वेद प्रकाश शर्मा को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले. उनकी किताबों की बिक्री ने उन्हें हिंदी साहित्य में एक प्रतिष्ठित स्थान दिलाया.
वेद प्रकाश शर्मा ने एक साधारण जीवन जीया और अपनी लेखनी के माध्यम से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया. उन्होंने अपनी रचनाओं में समाज की समस्याओं, भ्रष्टाचार और अन्य मुद्दों को उठाया और उनके समाधान के लिए सुझाव भी दिए. वेद प्रकाश शर्मा का निधन 17 फरवरी 2017 को मेरठ में हुआ. उनके निधन से हिंदी साहित्य ने एक महान लेखक को खो दिया, लेकिन उनकी रचनाएँ आज भी पाठकों के बीच जीवित हैं और उन्हें प्रेरणा देती हैं.
वेद प्रकाश शर्मा ने हिंदी पल्प फिक्शन को एक नई दिशा दी और इसे एक व्यापक पाठक वर्ग के बीच लोकप्रिय बनाया. उनके उपन्यासों की सरल भाषा और सजीव वर्णन शैली ने उन्हें एक जनप्रिय लेखक बना दिया. उनके कार्यों ने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया और उनकी विरासत आने वाले लेखकों को प्रेरित करती रहेगी.
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जरनैल सिंह भिंडरांवाले
जरनैल सिंह भिंडरांवाले भारतीय सिख धार्मिक नेता थे, जो 1980 के दशक में पंजाब के सिखों के बीच प्रमुखता से उभरे. वह दमदमी टकसाल नामक सिख धार्मिक संस्था के मुखिया थे और उन्होंने अपने उपदेशों के माध्यम से सिख धर्म के शुद्धिकरण और पुनर्जागरण की वकालत की. उनका नाम भारतीय इतिहास में विशेष रूप से 1984 के ऑपरेशन ब्लू स्टार से जुड़ा है.
जरनैल सिंह भिंडरांवाले का जन्म 12 फ़रवरी 1947 को पंजाब के रोड़े गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम जोगिंदर सिंह था और वे एक धार्मिक परिवार से थे. उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में प्राप्त की और बाद में दमदमी टकसाल में शामिल होकर धार्मिक शिक्षा प्राप्त की. भिंडरांवाले ने सिख धर्म की पारंपरिक मान्यताओं और प्रथाओं का प्रचार किया. वर्ष 1977 में, वे दमदमी टकसाल के मुखिया बने. उन्होंने सिख समुदाय के बीच नशे, भ्रष्टाचार और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई.
उनका दृष्टिकोण तेजी से राजनीतिक रूप ले लिया और उन्होंने पंजाब में सिखों के अधिकारों और स्वायत्तता की वकालत की. वर्ष 1980 के दशक की शुरुआत में, वे अकाली दल और अन्य सिख संगठनों के साथ मिलकर पंजाब में सिखों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने लगे.
वर्ष 1984 में भारतीय सरकार ने अमृतसर के हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) में छिपे हुए आतंकवादियों को निकालने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार नामक सैन्य अभियान चलाया। भिंडरांवाले और उनके अनुयायी स्वर्ण मंदिर परिसर में स्थित थे. इस अभियान के दौरान, भारतीय सेना और भिंडरांवाले के समर्थकों के बीच हिंसक संघर्ष हुआ, जिसमें भिंडरांवाले की मौत हो गई. भिंडरांवाले की मृत्यु के बाद भी उनके अनुयायियों के बीच उनकी छवि एक शहीद और धार्मिक नेता के रूप में बनी रही. उनके विचार और आंदोलन ने पंजाब की राजनीति और समाज पर गहरा प्रभाव डाला।
उनकी विरासत विवादास्पद रही है; कुछ लोग उन्हें सिख धर्म के महान रक्षक के रूप में देखते हैं, जबकि अन्य उन्हें हिंसा और आतंकवाद के प्रतीक के रूप में देखते हैं. ऑपरेशन ब्लू स्टार और इसके परिणामस्वरूप हुए घटनाओं ने भारतीय समाज और राजनीति पर दीर्घकालिक प्रभाव डाला है.
जरनैल सिंह भिंडरांवाले का जीवन और उनकी गतिविधियाँ भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद अध्याय हैं. उनका योगदान और उनकी भूमिका सिख समुदाय और भारतीय राजनीति में लंबे समय तक याद की जाएगी.