
विद्वान राजेन्द्रलाल मित्रा
राजेन्द्रलाल मित्रा भारतीय पुरातत्वविद्, इतिहासकार और लेखक थे. उन्हें बंगाल के पुरातत्व और सांस्कृतिक इतिहास पर उनके व्यापक शोध और लेखन के लिए जाना जाता है. मित्रा बंगाली ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे और उन्होंने अपनी शिक्षा कोलकाता में पूरी की. वे एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल के पहले भारतीय अध्यक्ष थे और उन्होंने इस संस्था के लिए कई महत्वपूर्ण योगदान दिए.
राजेन्द्रलाल मित्रा का जन्म 16 फ़रवरी 1822 को कोलकाता में हुआ था और इनका निधन 27 जुलाई, 1891 को हुआ. राजेन्द्रलाल मित्रा का काम भारतीय पुरातत्व, इतिहास, साहित्य और धर्म पर केंद्रित था. उन्होंने संस्कृत, पालि और प्राकृत जैसी प्राचीन भारतीय भाषाओं पर भी काम किया. उनके द्वारा की गई खोजों और शोध कार्यों ने भारतीय पुरातत्व और इतिहास के अध्ययन में नई दिशा प्रदान की.
मित्रा की कुछ प्रमुख कृतियों में ‘The Antiquities of Orissa’, ‘Buddha Gaya’, और ‘Notices of Sanskrit Manuscripts’ शामिल हैं. उन्होंने भारतीय पुरातत्व के क्षेत्र में अपने अनुसंधान और लेखन के माध्यम से भारतीय संस्कृति और इतिहास की बेहतर समझ विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
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लेखक विश्वनाथ त्रिपाठी
विश्वनाथ त्रिपाठी एक प्रमुख हिंदी लेखक, आलोचक और शिक्षाविद् हैं, जिन्होंने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उनका जन्म 16 फरवरी 1931 को उत्तर प्रदेश के एक गाँव में हुआ था. विश्वनाथ त्रिपाठी को उनके गहन शोध, सूक्ष्म विश्लेषण और साहित्यिक आलोचना के लिए जाना जाता है. उन्होंने हिंदी साहित्य में विविध विधाओं पर काम किया है, जिसमें आत्मकथा, आलोचना, निबंध और संस्मरण शामिल हैं.
विश्वनाथ त्रिपाठी की कुछ प्रमुख कृतियाँ हैं ‘नंगातलाई का गाँव’, जो उनकी आत्मकथा है, और ‘व्योमकेश दरवेश’, जो व्योमकेश शास्त्री की जीवनी है. ‘व्योमकेश दरवेश’ के लिए उन्हें 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनकी लेखन शैली में गहराई, संवेदनशीलता और सूक्ष्म विश्लेषण की विशेषताएं होती हैं, जो पाठकों को गहराई से छूती हैं.
त्रिपाठी ने हिंदी साहित्य के इतिहास और उसके विकास पर भी महत्वपूर्ण काम किया है. उनके शोध और आलोचनात्मक कार्यों ने हिंदी साहित्य की समृद्धि में योगदान दिया है. उनका काम हिंदी साहित्य के छात्रों, शोधकर्ताओं और साहित्य प्रेमियों के लिए महत्वपूर्ण संदर्भ सामग्री के रूप में देखा जाता है.
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अभिनेता आई.एस. जौहर
आई.एस. जौहर, जिनका पूरा नाम इंदर सेन जौहर था, एक प्रसिद्ध भारतीय अभिनेता, निर्देशक, निर्माता, और लेखक थे. उनका जन्म 16 फरवरी 1920 को तालगंगा, पंजाब, ब्रिटिश भारत में हुआ था और उनका निधन 10 मार्च 1984 को हुआ था. जौहर अपने विनोदी और विचारोत्तेजक किरदारों के लिए प्रसिद्ध थे, जिन्होंने भारतीय सिनेमा में व्यंग्य और हास्य को एक नई पहचान दी.
उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1950 के दशक में की थी और अपनी अद्वितीय शैली और प्रतिभा के साथ जल्द ही एक मान्यता प्राप्त कलाकार बन गए. आई.एस. जौहर ने विभिन्न प्रकार की फिल्मों में काम किया, जिसमें वे अक्सर ऐसे किरदार निभाते थे जो अपनी बुद्धिमत्ता और हाजिरजवाबी के लिए प्रसिद्ध थे. उन्होंने कई फिल्मों में लेखन और निर्देशन का कार्य भी किया, जिससे उनकी बहुमुखी प्रतिभा का पता चलता है.
प्रमुख फिल्मों: – अफ़साना, तीन देवियाँ,छोटी बहू,दो आँखें, प्रेम शस्त्र, प्रियतमा और प्रेमी गंगाराम आदि. इन फिल्मों में उनका अभिनय और निर्देशन दोनों ही सराहा गया.
आई.एस. जौहर ने अंतरराष्ट्रीय सिनेमा में भी अपनी छाप छोड़ी. उन्होंने कुछ अंतरराष्ट्रीय फिल्मों में भी काम किया, जिसमें उनके अभिनय की सराहना की गई. उनकी विशिष्ट आवाज और अभिनय शैली ने उन्हें एक अनूठी पहचान दी.
आई.एस. जौहर की कॉमेडी और सामाजिक व्यंग्य के प्रति उनकी समझ ने उन्हें अपने समय के सबसे प्रभावशाली और यादगार कलाकारों में से एक बना दिया। उनकी विरासत आज भी भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के रूप में जीवित है.
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गुलाम मोहम्मद शेख़
गुलाम मोहम्मद शेख़ एक प्रतिष्ठित भारतीय चित्रकार, कवि, और कला समालोचक हैं, जिनका जन्म 16 फरवरी 1937 को हुआ था. वे विशेष रूप से अपनी पेंटिंग्स, विचारशील लेखन और कला के प्रति गहरी समझ के लिए जाने जाते हैं. शेख़ ने बड़ौदा स्कूल ऑफ आर्ट्स से अपनी शिक्षा प्राप्त की और बाद में वहां शिक्षक के रूप में काम किया. उनका काम आधुनिक और समकालीन कला दोनों में योगदान देता है, जिसमें वे विभिन्न माध्यमों और शैलियों का प्रयोग करते हैं.
शेख़ की कलाकृतियाँ अक्सर इतिहास, साहित्य, और व्यक्तिगत स्मृतियों से प्रेरित होती हैं, और उन्होंने भारतीय कला परिदृश्य में अपनी अनूठी पहचान बनाई है. उनकी कला में आमतौर पर गहरे सांस्कृतिक संदर्भ और व्यक्तिगत अनुभवों का मिश्रण होता है, जो उन्हें दर्शकों के साथ गहराई से जोड़ता है.
गुलाम मोहम्मद शेख़ ने कला समीक्षा और समालोचना में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उनके लेखन में कला के प्रति उनकी सूक्ष्म समझ और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण का परिचय मिलता है. वे भारतीय कला और संस्कृति के विकास में आधुनिकता और पारंपरिकता के संबंधों की पड़ताल करते हैं.
उनकी कलात्मक और साहित्यिक प्रतिभा ने उन्हें नेशनल और इंटरनेशनल स्तर पर सम्मान और पुरस्कार दिलाए हैं. उनके काम को व्यापक रूप से प्रदर्शनियों, कला संग्रहालयों और गैलरीज में प्रदर्शित किया गया है, जो उनके विविध और समृद्ध योगदान को दर्शाता है.
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अभिनेत्री शोमा आनंद
शोमा आनंद भारतीय फिल्म और टेलीविजन अभिनेत्री हैं, जिन्होंने वर्ष 1980- 90 के दशक में अपनी पहचान बनाई. उन्होंने विभिन्न प्रकार की भूमिकाएँ निभाईं, जिनमें कॉमेडी, ड्रामा और नकारात्मक भूमिकाएँ शामिल हैं.
शोमा आनंद का जन्म 16 फरवरी 1958 को मुंबई में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा मुंबई में ही पूरी की. उन्होंने वर्ष 1976 में फिल्म “बारूद” से अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत की, जिसमें उनके साथ ऋषि कपूर थे. उनकी कुछ लोकप्रिय फिल्मों में “कूली” (1983), “जागीर” (1984), “घर एक मंदिर” (1988), “स्वर्ग से सुंदर” (1986), “बड़े घर की बेटी” (1989), “जैसे करनी वैसी भरनी” (1989) और “हम” (1991) शामिल हैं.
उन्होंने कई टेलीविजन धारावाहिकों में भी काम किया, जिनमें “हम पांच” (1995-1999) सबसे लोकप्रिय है. इसमें उन्होंने बीना माथुर की भूमिका निभाई थी, जो एक मध्यमवर्गीय परिवार की मां होती है. शोमा आनंद ने वर्ष 1997 में फिल्म निर्माता और निर्देशक तारिक शाह से शादी की. उनके एक बेटी है, सारा शाह. वर्ष 2021 में उनके पति का निधन हो गया था. शोमा आनंद को उनकी अभिनय प्रतिभा के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. जिनमे –
वर्ष 1987: – बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन अवार्ड्स – सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री (स्वर्ग से सुंदर).
वर्ष 1996: – स्टार स्क्रीन अवार्ड्स – सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेत्री (हम पांच).
वर्ष 2010 में, शोमा आनंद ने फिल्मों में काम करना बंद कर दिया. उन्होंने कहा कि वह एक्शन फिल्मों और रोमांटिक गानों वाले जॉनर से रिलेट नहीं कर पा रही हैं. उनके इस फैसले की काफी आलोचना हुई थी. शोमा आनंद एक प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं, जिन्होंने अपने कैरियर में कई यादगार भूमिकाएँ निभाईं. उन्होंने अपने अभिनय के माध्यम से दर्शकों के दिलों में एक खास जगह बनाई है.
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क्रिकेटर वसीम जाफ़र
वसीम जाफ़र एक पूर्व भारतीय क्रिकेटर हैं, जिन्हें भारतीय घरेलू क्रिकेट में उनके उल्लेखनीय योगदान और लंबे समय तक उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए जाना जाता है. जाफ़र का जन्म 16 फरवरी 1978 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. वे मुख्य रूप से दाएं हाथ के सलामी बल्लेबाज और दाएं हाथ के ऑफ-ब्रेक गेंदबाज हैं और उन्होंने भारतीय टेस्ट टीम के लिए भी खेला.
वसीम जाफ़र के क्रिकेट कैरियर की शुरुआत वर्ष 2000 में हुई थी जब उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ अपना टेस्ट डेब्यू किया था. अपने कैरियर में, जाफ़र ने कई यादगार पारियां खेलीं और खासकर घरेलू क्रिकेट में उनका दबदबा रहा. वे रणजी ट्रॉफी में सबसे अधिक रन बनाने वाले खिलाड़ी हैं और उन्होंने मुंबई और विदर्भ जैसी टीमों के लिए खेलते हुए अनेक मैच जिताऊ पारियां खेलीं.
जाफ़र की तकनीक और धैर्य को उनके खेल की सबसे बड़ी ताकत माना जाता था. उन्होंने अपने टेस्ट कैरियर में दो दोहरे शतक भी जड़े, जिसमें से एक वेस्ट इंडीज के खिलाफ 2006 में आया था. जाफ़र ने अपने टेस्ट कैरियर में 31 मैच खेले और 1944 रन बनाए, जिसमें 5 शतक और 11 अर्धशतक शामिल हैं.
क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद, वसीम जाफ़र क्रिकेट कोचिंग और मेंटरशिप में सक्रिय हो गए. उन्होंने विभिन्न टीमों के साथ कोचिंग की भूमिका निभाई है और युवा प्रतिभाओं को निखारने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. जाफ़र की समझ और क्रिकेट के प्रति उनकी गहराई को भारतीय क्रिकेट में बहुत सराहा जाता है.
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अभिनेत्री निधि सुब्बैया
निधि सुब्बैया एक भारतीय फिल्म अभिनेत्री और मॉडल हैं, जिन्होंने मुख्य रूप से कन्नड़ और हिंदी फिल्मों में काम किया है. निधि सुब्बैया का जन्म 16 फरवरी 1985 को कर्नाटक के कोडागु जिले में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा मैसूर के एसजेसीई से पूरी की. निधि ने अपने कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग से की, जिसके बाद उन्होंने कई विज्ञापनों में काम किया.
उन्होंने वर्ष 2009 में फिल्म “अभिमानि” से अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत की. उनकी कुछ लोकप्रिय फिल्मों में “पंचरंगी” (2010), “कृष्णा नी लेट अगी बारो” (2010), “वीर बहू” (2011), “अन्ना बॉन्ड” (2012), “ओएमजी – ओह माय गॉड!” (2012), “अजब गजब लव” (2012), “डायरेक्ट इश्क” (2016), “लव शगुन” (2016) और “5जी” (2017) शामिल हैं.
निधि सुब्बैया को उनकी अभिनय प्रतिभा के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. जिनमे –
वर्ष 2010: – फिल्मफेयर अवार्ड्स में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री – कन्नड़ के लिए नामांकन (पंचरंगी).
वर्ष 2011: – SIIMA स्पेशल अप्रीसिएशन अवार्ड-कन्नड़ (कृष्णा नी लेट अगी बारो),
वर्ष 2012: – SIIMA अवार्ड्स में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री – कन्नड़ (अन्ना बॉन्ड).
निधि सुब्बैया ने 2017 में बिजनेसमैन निश्चल चेंगप्पा से शादी की. निधि सुब्बैया एक प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं, जिन्होंने अपने कैरियर में कई यादगार भूमिकाएँ निभाईं. उन्होंने अपने अभिनय के माध्यम से दर्शकों के दिलों में एक खास जगह बनाई है.
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दादा साहब फाल्के
दादा साहब फाल्के, जिनका पूरा नाम धुंडिराज गोविंद फाल्के है, भारतीय सिनेमा के पितामह माने जाते हैं. उन्होंने 1913 में “राजा हरिश्चंद्र” नामक फिल्म बनाई, जो भारतीय सिनेमा की पहली पूर्ण लंबाई वाली मूक फिल्म थी. इस फिल्म की सफलता ने भारत में फिल्म निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया.
दादा साहब फाल्के का जन्म 30 अप्रैल 1870 को नासिक के निकट ‘त्र्यंबकेश्वर’ में हुआ था. उनके पिता संस्कृत के प्रकाण्ड पंडित और मुम्बई के ‘एलफिंस्टन कॉलेज’ के अध्यापक थे. अत: इनकी शिक्षा मुम्बई में ही हुई. वहाँ उन्होंने ‘हाई स्कूल’ के बाद ‘जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट’ में कला की शिक्षा ग्रहण की.
दादा साहब फाल्के ने 3 मई 1913 को बंबई के ‘कोरोनेशन थिएटर’ में ‘राजा हरिश्चंद्र’ नामक अपनी पहली मूक फ़िल्म दर्शकों को दिखाई थी. फाल्के ने अपने जीवनकाल में लगभग 95 फिल्में और 26 लघु फिल्में बनाईं. उनका काम न केवल तकनीकी नवाचारों के लिए जाना जाता है, बल्कि उन्होंने भारतीय संस्कृति, पुराणों, इतिहास और मिथकों को भी अपनी फिल्मों के माध्यम से चित्रित किया.
दादा साहब फाल्के की विरासत को सम्मानित करने के लिए, भारत सरकार ने वर्ष 1969 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार की स्थापना की, जो भारतीय सिनेमा में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाता है. यह पुरस्कार भारतीय सिनेमा का सबसे प्रतिष्ठित सम्मान माना जाता है. दादा साहब फाल्के का निधन 16 फ़रवरी, 1944 को नासिक में हुआ था.
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वैज्ञानिक मेघनाथ साहा
मेघनाथ साहा एक प्रमुख भारतीय वैज्ञानिक थे जिनका जन्म 6 अक्टूबर 1893 को हुआ था और उनका निधन 16 फरवरी 1956 को हुआ. उन्होंने खगोल भौतिकी और थर्मोडायनामिक्स के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया. साहा सबसे अधिक अपने “साहा आयनीकरण समीकरण” के लिए जाने जाते हैं, जिसे उन्होंने वर्ष 1920 में प्रस्तुत किया था. यह समीकरण तारों के वायुमंडल में विभिन्न तत्वों के आयनीकरण की व्याख्या करता है, जिससे खगोलविदों को तारों के तापमान और उनकी रासायनिक संरचना का अध्ययन करने में मदद मिली.
साहा का समीकरण खगोल भौतिकी में एक क्रांतिकारी खोज थी, जिसने विज्ञान के इस क्षेत्र में अनुसंधान की नई दिशाएं खोलीं. उन्होंने अपने कैरियर में भारतीय विज्ञान और शिक्षा के प्रसार के लिए भी काफी काम किया. उन्होंने कई वैज्ञानिक संस्थानों की स्थापना में मदद की और भारत में विज्ञान शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए काम किया.
मेघनाथ साहा को उनके असाधारण योगदान के लिए विभिन्न सम्मानों और पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था. उनका काम आज भी खगोल भौतिकी और थर्मोडायनामिक्स के क्षेत्र में अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा का स्रोत है.
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संगीतकार बप्पी लाहिड़ी
बप्पी लाहिड़ी भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के एक संगीतकार, गायक और निर्माता थे. उन्होंने वर्ष 1970-80 के दशक में बॉलीवुड में “डिस्को किंग” के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की. उनका असली नाम आलोकेश लाहिड़ी था. बप्पी दा का संगीत बॉलीवुड में डिस्को शैली को लोकप्रिय बनाने के लिए जाना जाता है, और उन्होंने कई हिट गाने दिए जो आज भी लोगों के दिलों में बसे हैं.
बप्पी लाहिड़ी का जन्म 27 नवंबर 1952 को पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में हुआ था. वे एक संगीतमय परिवार से आते थे. उनके पिता अपरेश लाहिड़ी एक शास्त्रीय गायक थे और उनकी मां बंसरी लाहिड़ी संगीतकार और गायक थीं.
बप्पी दा ने 19 साल की उम्र में हिंदी फिल्म “नन्हा शिकारी” (1973) से अपना कैरियर शुरू किया. उन्होंने डिस्को शैली को भारतीय फिल्मों में स्थापित किया. उनकी पहली बड़ी सफलता फिल्म ‘ज़ख्मी’ (1975) के संगीत से मिली. वर्ष 1980 – 90 के दशक में उन्होंने कई सुपरहिट गाने दिए, जैसे: –
‘डिस्को डांसर’ (1982) से “आई एम ए डिस्को डांसर”
‘शराबी’ (1984) से “लाहू मुंह लग गया”
‘नमक हलाल’ (1982) से “पग घुंघरू बांध मीरा नाची थी”
‘डांस डांस’ (1987) से “ज़ुबां पे लगा है”
बप्पी लाहिड़ी अपने संगीत के साथ-साथ अपनी अनोखी स्टाइल के लिए भी प्रसिद्ध थे. उन्हें सोने के गहनों का बहुत शौक था, और यह उनकी पहचान का हिस्सा बन गया. उन्होंने हिंदी के अलावा बंगाली, तमिल, तेलुगु और कन्नड़ फिल्मों में भी संगीत दिया. बप्पी दा ने 500 से अधिक फिल्मों के लिए संगीत दिया और हजारों गाने रिकॉर्ड किए. 63वें ग्रैमी अवार्ड्स में उनका गाना “जिमी जिमी आजा आजा” ग्लोबल स्तर पर ट्रेंड में रहा.
उन्होंने वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव में भी हिस्सा लिया, जहां उन्होंने बीजेपी के टिकट पर लड़ाई लड़ी. बप्पी लाहिड़ी का निधन 15 फरवरी 2022 को मुंबई में हुआ. वे ओएसए (ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया) से पीड़ित थे.उनके निधन से भारतीय संगीत जगत को गहरा आघात पहुंचा. बप्पी लाहिड़ी भारतीय संगीत जगत में हमेशा “डिस्को किंग” के रूप में याद किए जाएंगे.