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कृष्णाष्टमी या गोकुलाष्टमी…

वाल व्यास सुमन

“जन्माष्टमी” पर चर्चा करते हुए वाल व्यास सुमन जी महाराज ने कहा कि, हिन्दू कैलेंडर के अनुसार श्रावण महीने की पूर्णिमा के आठवें दिन मनाई जाती है या यूँ कहे  कि रक्षाबंधन के ठीक आठवें दिन मनाई जाती है. भगवान विष्णु ने संसार में धर्म की स्थापना व अधर्म के नाश हेतु अनेकों अवतार लिए थे, उन्हीं अवतारों में से एक अवतार है द्वापर युग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में प्रकट हुए थे. श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी की रात्रि में हुआ था. शास्त्रों के अनुसार, भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था, और इस दिन वृष राशि में चंद्रमा व सिंह राशि में सूर्य था. चूंकि, भगवान श्रीकृष्ण का रोहिणी नक्षत्र में हुआ था, इसलिए जन्माष्टमी के निर्धारण में रोहिणी नक्षत्र का बहुत ज्यादा ध्यान रखते हैं. अत: इस पावन तिथि को प्रत्येक वर्ष भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रुप में संपूर्ण भारत और विदेशों में बहुत ही धूम-धाम व आस्था के साथ मनाया जाता है. भगवान श्रीकृष्ण का संपूर्ण जीवन प्रेरणा स्वरुप रहा है, जो जीवन के अनेकों सूत्रों को बताता है, और यही  अमूल्य सूत्र  जीवन को दिशा और मुक्ति का मार्ग भी दिखलाते हैं. जन्माष्टमी में अष्टमी “दो” प्रकार की होती है, जिसमें प्रथम को जन्माष्टमी और अन्य को जयंती कहा जाता है. स्कन्दपुराण के अनुसार कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत एक अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत होता है, “यदि दिन या रात्रि में कलामात्र भी रोहिणी ना हो” तो विशेषकर चंद्रमा से मिली हुई रात्रि में इस व्रत को करना चाहिए.

कृष्ण पक्ष की जन्माष्टमी में यदि एक कला भी रोहिणी नक्षत्र हो तो, उसको जयंती नाम से ही संबोधित किया जाना चाहिए तथा व्रत का भी पालन करना चाहिए. विष्णु पुराण के अनुसार कृष्ण पक्ष की अष्टमी रोहिणी नक्षत्र से युक्त भाद्रपद माह में हो तो इसे जयंती कहा जाएगा. वशिष्ठ संहिता के अनुसार अष्टमी तथा रोहिणी इन दोनों का योग अहोरात्र में पूर्ण न भी हो तो मुहूर्त मात्र में भी अहोरात्र के योग में व्रत करना चाहिए. स्कन्द पुराण के अनुसार जो व्यक्ति जन्माष्टमी व्रत को करते हैं, उनके पास लक्ष्मी का वास होता है. विष्णु पुराण के अनुसार आधी रात के समय रोहिणी में जब कृष्णाष्टमी हो तो उसमें कृष्ण का अर्चन और पूजन करने से अनेक जन्मों के पापों का नाश होता है. भृगु संहिता अनुसार जन्माष्टमी, रोहिणी और शिवरात्रि ये पूर्वविद्धा ही करनी चाहिए.

कृष्ण जन्माष्टमी को और भी कई नामों से जाना जाता है, जैसे कृष्णाष्टमी, सातम आठम, गोकुलाष्टमी तथा अष्टमी रोहिणी इत्यादि.  शास्त्रों के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण का जन्म आधी रात्री के समय कारागार में हुआ था, जहां कंस ने उनके माता-पिता को बंदी बनाकर एक कारागृह में रखा था. जन्म के तुरंत पश्चात उनके पिता वासुदेव ने उनको एक टोकरी में रखकर अपने मित्र नंद और यशोदा के घर पहुंचाया था. जन्माष्टमी व्रत को अपना कर भक्त समस्त संकटों से मुक्ति पाता है. ब्रह्म पुराण के अनुसार कलियुग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी में अट्ठाईसवें युग में देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण उत्पन्न हुए. श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी की रात्रि को मोह रात्रि भी कहा जाता है, इस रात्रि में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मंत्र जपते हुए जगने से संसार की मोह-माया से मुक्ति प्राप्त होती है. जन्माष्टमी का व्रत करने से  पुण्य की प्राप्ति होती है. श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव सम्पूर्ण विश्व को आनंद-मंगल का संदेश देता है. इस दिन दूध और दूध से बने व्यंजनों का सेवन किया जाता है. भगवान कृष्ण को दूध और मक्खन अति प्रिय था, अत: जन्माष्टमी के दिन खीर और माखन, मिस्री जैसे मीठे व्यंजन बनाए जाते हैं. जन्माष्टमी का व्रत, मध्य रात्रि को श्रीकृष्ण भगवान के जन्म के पश्चात भगवान के प्रसाद को ग्रहण करने के साथ ही पूर्ण होता है.

इस त्यौहार के दौरान भजन कीर्तन गाए जाते हैं व नृत्य एवं रास लीलाओं का आयोजन किया जाता है. इसके साथ ही साथ दही-हांडी का भी आयोजन होते हैं, जिसमें एक मिट्टी के बर्तन में दही, मक्खन इत्यादि रख दिए जाते हैं और मटकी को काफी ऊँचाई पर लटका दिया जाता है जिसे फोड़ना होता है, इसे ही दही हांडी आयोजन कहते हैं. कहा जाता है कि, अगर भक्त पालने में भगवान को झुला दें, तो उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. शास्त्रों में इस व्रत को ‘व्रत राज’ भी  कहा जाता है. इस एक दिन व्रत रखने से कई व्रतों का फल मिल जाता है, इस दिन श्रीकृष्ण की पूजा करने से संतान प्राप्ति, दीर्घायु तथा सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाकर हर मनोकामना पूरी की जा सकती है, खासकर, जिन लोगों का चंद्रमा कमजोर हो, उन्हें श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की विशेष पूजा करनी चाहिए.

वाल व्यास सुमन जी महाराज

महात्मा भवन (अयोध्या).

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