
योग…
योग को संस्कृत: में योगः कहा जाता है. योगः शब्द संस्कृत. के ‘युज’ धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है, जोड़ना। यह व्यक्तिगत चेतना को सार्वभौमिक चेतना के साथ जोड़ने का प्रतीक है. योग का शाब्दिक और दार्शनिक अर्थ संस्कृत शब्द “योग” का अर्थ है “जोड़ना” – अर्थात आत्मा का परमात्मा से मिलन. पतंजलि के अनुसार, “योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः” यानी योग मन की चंचलता को नियंत्रित करने की कला है. वहीं कुछ विद्वानों के अनुसार योग शब्द का यहाँ आशय समाधि से है, योग दर्शन में चित्त शब्द मन, बुद्धि, अहंकार तीनों का रूप है.
योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं है; यह भारत से उत्पन्न एक प्राचीन अभ्यास है जो मन, शरीर और आत्मा को एकजुट करता है. यह 5,000 साल से भी अधिक पुरानी परंपरा है और इसका उद्देश्य आंतरिक शांति, संतुलन और समग्र कल्याण प्राप्त करना है. योग के अभ्यास में आसन (शारीरिक मुद्राएँ), प्राणायाम (श्वास नियंत्रण), ध्यान और नैतिक सिद्धांतों का समावेश होता है.
योग भारत की उस परंपरा का हिस्सा है जहाँ जीवन को केवल भौतिक उपलब्धियों के रूप में नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति के रूप में देखा जाता है. शिव, जिन्हें आदियोगी तथा आदि गुरू माना जाता है. योग का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ा है, जहाँ योग मुद्राओं को दर्शाने वाली मुहरें पाई गई हैं.
महर्षि पतंजलि ने योग को आठ चरणों में विभाजित किया: –
यम: – सामाजिक आचरण (सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह),
नियम: – आत्म अनुशासन (शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वरप्रणिधान),
आसन: – स्थिर और आरामदायक शारीरिक स्थिति,
प्राणायाम: – श्वास-प्रश्वास की नियंत्रण विधि
प्रत्याहार: – इंद्रियों की बाह्य विषयों से वापसी,
धारण: – एकाग्रता,
ध्यान: – ध्यान की निरंतर अवस्था,
समाधि: – पूर्ण आत्म-बोध की स्थिति.
योग के नियमित अभ्यास से शारीरिक और मानसिक लाभ मिलते हैं –
शारीरिक स्वास्थ्य: – लचीलापन, मांसपेशियों की ताकत, रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि
मानसिक स्वास्थ्य: – तनाव और चिंता में कमी, एकाग्रता और स्मृति में सुधार
आध्यात्मिक उन्नति: – आत्म-ज्ञान, आंतरिक शांति और समर्पण की अनुभूति.
योग विभिन्न शैलियों में विकसित हुआ है: –
हठ योग: – यह सबसे आम प्रकार है और इसमें धीमी गति वाले आसन और प्राणायाम शामिल हैं. यह शुरुआती लोगों के लिए उपयुक्त है.
विन्यास योग: – यह प्रवाह-आधारित योग है जहाँ आसन श्वास के साथ सिंक्रनाइज़ होते हैं. यह अधिक गतिशील और ऊर्जावान होता है.
अष्टांग योग: – यह एक विशिष्ट क्रम में किए गए आसनों की एक कठोर और गतिशील श्रृंखला है.
अयंगर योग: – यह संरेखण पर केंद्रित है और प्रॉप्स (जैसे ब्लॉक और पट्टियां) का उपयोग करता है ताकि सही मुद्रा प्राप्त की जा सके.
कुंडलिनी योग: – यह चक्रों और ऊर्जा को जगाने पर केंद्रित है, जिसमें आसन, श्वास, मंत्र और ध्यान शामिल हैं.
रेस्ट्रोरेटिव योग: – यह आराम और तनाव कम करने पर केंद्रित है, जिसमें लंबे समय तक प्रॉप्स के साथ आरामदायक आसन किए जाते हैं.
वर्तमान युग और भागदौड़ भरे भरे जीवन में योग तनाव, चिंता, जीवनशैली संबंधी रोगों और मानसिक अस्थिरता का एक प्रभावी उपचार बन गया है. कोरोना काल में जब पूरी दुनिया अनिश्चितता से घिरी थी, तब योग ने लोगों को मानसिक मजबूती और आंतरिक आश्वासन प्रदान किया. वर्तमान समय में चिकित्सा विज्ञान भी यह स्वीकार कर चुका है कि योग का न्यूरोलॉजिकल, हार्मोनल और मनोवैज्ञानिक प्रभाव चमत्कारी होता है. कई देशों में चिकित्सकीय पद्धति में योग-आधारित थेरेपी को अपनाया जा रहा है.
योग न केवल शरीर को स्वस्थ करता है, बल्कि यह आत्मा को भी जागरूक करता है. यह वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना को पोषित करता है- जहाँ समस्त मानवता एकता की अनुभूति में बंध जाती है. योग हमें सिखाता है कि वास्तविक शक्ति भीतर होती है, और वहीं से परिवर्तन की शुरुआत होती है.