चुनाव और भाषणों का जहरीला कुआं…
विपक्ष ने कहा— नालायक पक्ष के कुएं से बिल्कुल वैसी ही आवाज गूंजी,
(तुम भी) नालायक विपक्ष ने कहा तुम गलत हो,
कुएं से आवाज गूंजी तुम (भी) गलत हो विपक्ष ने कहा नाकारा,
गूंज फिर फिर आई वैसे ही भ्रष्टाचारी, शातिर, धोखेबाज, लोभी,
यहां तक कि हत्यारा और बलात्कारी भी सभी शब्दों की ऐसी ही प्रति-गूंज आई,
कुआं कोई काम का नहीं इसका पानी, अब कोई पीता नहीं बस यह कभी पक्ष
कभी विपक्ष की प्रतिध्वनि का कारक बनता है !
प्रजातंत्र के देश में सत्ता एक जहरीली गैस वाला कुआं बन गया है,
जिसमें हर गलत बोलों, हर गलत कर्मों की प्रतिध्वनि ही बस आती है,
पानी कोई पीता नहीं— पी नहीं सकता— पीना नहीं चाहता–
जो भी खरा हिम्मत से इसमें उतरता है, वह आज तक सिर्फ एक मसखरा ही होकर
नजर आया है… और होश खोकर बेहोश ही नजर आया है ! ऐसा है
प्रजातंत्र के देश में प्रतिध्वनि-विकास का यह अद्भुत जहरीला कुआं !
पक्ष और विपक्ष दोनों को इसके भीतर का छिपा तिलिस्म खूब-खूब भाता है !
प्रभाकर कुमार.