… Mother Sita-Trijata Dialogue…
Doha :-
Jahan Tahan Gaeen Sakal Tab Seeta Kar Man Soch।
Maas Divas Beeten Mohi Maarihi Nisichar Poch ।।
Describing the meaning of Valvyassumanji Maharaj shloka, he says that, after this, the demons went everywhere and mother Sita started thinking in her mind that after one month, the vile demon Ravana would kill her.
Chaupaee: –
Trijata San Bolee Kar joree । Maatu Bipati Sangini Tain Moree।।
Tajaun Deh Karu Begi Upaee । Dusahu Birahu Ab Nahin Sahi Jaee ।।
Describing the meaning of the verse, Maharajji says that, Sitaji folded hands and said to Trijata – Oh mother! You are my companion of trouble. O mother quickly does such a solution so that I can leave my body. This separation has become unbearable, now it cannot be tolerated.
Aani Kaath rachu Chita Banaee । Maatu Anal [uni Dehi Lagaee।।
Saty Karahi Mam Preeti Sayaanee । Sunai Ko Shravan Sool Sam Baanee।।
Explaining the meaning of the verse, Maharajji says that bring wood and decorate it by making a funeral pyre. Hey mother! Then set it on fire. Hey, wise one! You make my love true. Who would listen to Ravana’s words that hurt like colic?
Sunat Bachan Pad Gahi Samujhaesi। Prabhu Prataap Bal Sujasu Sunaesi।।
Nisi Na Anal Mil Sunu Sukumaaree। As Kahi So Nij Bhavan Sidhaaree।।
Explaining the meaning of the verse, Maharajji says that after listening to the words of Sita ji, Trijata held her feet and explained to her that she narrated to Pratap, Bal, and Suyash of the Lord. Trijata said – O Sukumari! Listen, there will be no fire at night. Saying this she went to her house.
Kah Seeta Bidhi bha Pratikoola। Milahi Na Paavak Mitihi Na Soola।।
Dekhiat Pragat Gagan Angaara। Avani Na Aavat Eku Taara ।।
Maharajji explains the meaning of the verse and says that Mother Sitaji started saying in her heart – what should I do? When the creator himself became the opposite. Neither fire will be found, nor pain will be removed. Embers are visible in the sky, and not a single star appears on the earth.
Paavakamay Sasi Stravat Na Aagee। Maanahun Mohi Jaankar Ghabara Gye।।
Sunahi Binay Mam Bitap Asoka। Saty Naam Karu harun Mam Soka ।।
Maharajji explains the meaning of the verse and says that the moon is fiery, but it also does not shower fire considering me as a loser. O Ashoka tree, listen to my request. Take away my sorrow and make your name Ashoka true.
Nootan Kisalay Guda ke Samana। Dehi Agini Jani Karahi Nidaana।।
Dekhi Param Birahaakul Sita। So Chhan Kapihi Kalap Sam Bitaa ।।
Explaining the meaning of the verse, Maharajji says that your new tender leaves are like fire. Give fire, don’t end the disease of separation. Hanuman ji spent that moment like a Kalpa after seeing Mother Sitaji very distraught from separation.
Valvayasumanji Maharaj,
Mahatma Bhavan, Shri Ramjanaki Temple,
Ram Kot, Ayodhya.
Mob: – 8709142129.
========== =============== ============
सुन्दरकाण्ड-06…
…माता सीता-त्रिजटा संवाद…
दोहा :-
जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच।
मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच ।।
वाल्व्याससुमनजीमहाराज श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, इसके बाद राक्षसियाँ जहाँ-तहाँ चली गई और माता सीताजी मन ही मन में सोचने लगी कि एक महीना बीत जाने पर नीच राक्षस रावण मुझे मारेगा.
चौपाई :-
त्रिजटा सन बोली कर जोरी। मातु बिपति संगिनि तैं मोरी।।
तजौं देह करु बेगि उपाई। दुसहु बिरहु अब नहिं सहि जाई ।।
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, सीताजी हाथ जोड़कर त्रिजटा से बोली- हे माता ! तू मेरी विपत्ति की संगिनी है. हे माता जल्दी कोई ऐसा उपाय कर जिससे मै शरीर छोड़ सकूँ. ये विरह असह्णीय हो चला है, अब यह सहा नही जाता है.
आनि काठ रचु चिता बनाई। मातु अनल पुनि देहि लगाई।।
सत्य करहि मम प्रीति सयानी। सुनै को श्रवन सूल सम बानी।।
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, काठ लाकर चिता बनाकर सजा दे. हे माता ! फिर उसमे आग लगा दे. हे सयानी ! तू मेरी प्रीति को सत्य कर दे. रावण की शूल के समान दुःख देने वाली वाणी कानो से कौन सुने ?
सुनत बचन पद गहि समुझाएसि। प्रभु प्रताप बल सुजसु सुनाएसि।।
निसि न अनल मिल सुनु सुकुमारी। अस कहि सो निज भवन सिधारी।।
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, सीता जी के वचन सुनकर त्रिजटा ने चरण पकड़कर उन्हे समझाते हुए कहा कि प्रभु के प्रताप, बल और सुयश को सुनाया. त्रिजटा ने कहा – हे सुकुमारी ! सुनो रात्रि के समय आग नही मिलेगी. ऐसा कहकर वह अपने घर चली गई.
कह सीता बिधि भा प्रतिकूला। मिलहि न पावक मिटिहि न सूला।।
देखिअत प्रगट गगन अंगारा। अवनि न आवत एकउ तारा ।।
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, माता सीताजी मन ही मन में कहने लगी – क्या करूँ ! जब विधाता ही विपरीत हो गया. न आग मिलेगी, न पीड़ा मिटेगी. आकाश मे अंगारे दिखाई दे रहे है, और पृथ्वी पर एक भी तारा नहीं आता.
पावकमय ससि स्त्रवत न आगी। मानहुँ मोहि जानि हतभागी।।
सुनहि बिनय मम बिटप असोका। सत्य नाम करु हरु मम सोका ।।
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, चन्द्रमा अग्निमय है, किन्तु वह भी मानो मुझे हतभागिनी जानकर आग नहीं बरसाता. हे अशोक वृक्षा मेरी विनती सुन. मेरा शोक हर ले और अपना अशोक नाम सत्य कर दे.
नूतन किसलय अनल समाना। देहि अगिनि जनि करहि निदाना।।
देखि परम बिरहाकुल सीता। सो छन कपिहि कलप सम बीता ।।
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, तेरे नए-नए कोमल पत्ते अग्नि के समान है. अग्नि दे, विरह रोग का अंत मत कर. माता सीताजी को विरह से परम व्याकुल देखकर वह क्षण हनुमान् जी को कल्प के समान बीता.
वाल्वयासुमनजी महाराज,
महात्मा भवन, श्रीरामजानकी टेम्पल,
राम कोट, अयोध्या.
मोब: – 8709142129.