लीप ईयर
पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है, जिस कारण से दिन-रात होते हैं, उससे ही महीने और फिर साल बनते हैं. सूर्य की परिक्रमा में लगने वाले समय से ही लीप ईयर की गणना की जाती है. ज्ञात है कि, पृथ्वी सूर्य की एक परिक्रमा करने में 365 दिन और करीब 6 घंटे का समय लेती है. आमतौर पर एक वर्ष में 365 दिन होते हैं, लेकिन लीप ईयर में 366 दिन होते हैं. ज्ञात है कि, पृथ्वी के परिक्रमा समय में लगभग 6 घंटे का समय हर वर्ष में शेष बचता है, वह हर चार वर्ष में जुड़कर 01 दिन पूर्ण हो जाता है. इस कारण से हर चौथा साल 366 दिन का हो जाता है, जिसमें फरवरी 28 की जगह 29 दिनों का होता है.366 दिन के वर्ष को ही लीप ईयर कहा जाता है.
बताते चलें कि, इटली के शासक जूलियस सीजर के शासन में जो कैलेंडर प्रयोग होता था उसमें एक वर्ष में 355 दिन होते थे. लेकिन कुछ खामियों के कारण उसमें परिवर्तन किया गया, उसके बाद एक वर्ष में 365 दिन और हर 4 वर्ष पर 1 दिन जोड़कर 366 दिन का एक वर्ष करने का प्रस्ताव आया, जिसे मान लिया गया.
शक युग के अनुसार अधिवर्ष में, चैत्र में 31 दिन होते हैं और इसकी शुरुआत 21 मार्च को होती है. वर्ष की पहली छमाही के सभी महीने 31 दिन के होते हैं, जिसका कारण इस समय सूर्य की धीमी गति है. महीनों के नाम पुराने, हिन्दू चन्द्र-सौर पंचांग से लिए गये हैं इसलिए वर्तनी भिन्न रूपों में मौजूद है, और कौन सी तिथि किस कैलेंडर से संबंधित है इसके बारे में भ्रम बना रहता है. शक युग का पहला वर्ष सामान्य युग के 78 वें वर्ष से शुरू होता है, अधिवर्ष निर्धारित करने के शक वर्ष में 78 जोड़ दें- यदि ग्रेगोरियन कैलेंडर में परिणाम एक अधिवर्ष है, तो शक वर्ष भी एक अधिवर्ष ही होगा.
भारतीय सिद्धांत के अनुसार लगभग 1500 वर्ष पूर्व भारत के ही गणित ज्योतिषाचार्य भास्कराचार्य ने ठीक-ठीक हिसाब लगा कर बताया कि पृथ्वी के सूर्य के चारों ओर एक बार घूमने में 365.258756484 दिन लगते हैं, जिसे एक वर्ष गिना जाता है. आर्यभट ने शून्य के सिद्धांत की स्थापना की जिसने संख्या प्रणाली को अतिरिक्त शक्ति प्रदान की जिसमें उस समय तक केवल 9 अंक थे.
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Leap Year
The Earth revolves around the Sun, due to which there are day and night, hence months and then years are formed. Leap year is calculated from the time taken to revolve around the Sun. It is known that the Earth takes 365 days and about 6 hours to revolve around the Sun. Normally there are 365 days a year, but in leap years there are 366 days. It is known that about 6 hours are left in the Earth’s rotation time every year, which is completed by adding 01 day every four years. For this reason, every fourth year becomes 366 days, in which February has 29 days instead of 28. Only a year of 366 days is called a leap year.
Let us tell you that the calendar used during the rule of Italy’s ruler Julius Caesar had 355 days in a year. But due to some shortcomings, changes were made to it, after that a proposal was made to make a year of 366 days by adding 365 days in a year and 1 day every 4 years, which was accepted.
According to the Saka era, in the leap year, Chaitra has 31 days and starts on 21 March. All the months of the first half of the year have 31 days, the reason for which is the slow movement of the Sun at this time. The names of the months are taken from the old, Hindu lunisolar calendar, so spelling variations exist, and confusion exists about which date belongs to which calendar. The first year of the Saka era begins with the 78th year of the Common Era, add 78 to the Saka year to determine the leap year – if the result is a leap year in the Gregorian calendar, the Saka year will also be a leap year.
According to Indian theory, about 1500 years ago, India’s mathematical astrologer Bhaskaracharya calculated accurately that it takes 365.258756484 days for the Earth to rotate once around the Sun, which is counted as one year. Aryabhata established the principle of zero which provided additional power to the number system which till then had only 9 digits.