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जयप्रकाश नारायण …

जिस समय ये 9 वर्ष के थे, उसी समय वे पटना आ गये और सातवीं कक्षा में अपना नामांकन कराया. अपने स्कूली दिनों के दौरान ही उन्होंने सरस्वती, प्रभा और प्रताप जैसी पत्रिकाओं को पढ़ना शुरू कर दिया. इसी समय उन्होंने भारत भारती जैसी पुस्तक पढ़ ली. उन्होंने मैथिलीशरण गुप्त और भारतेंदु हरिश्चंद्र जैसे बड़े लेखकों की रचनाओं को पढ़ना शुरू किया, जिसमे कई राजपूत वीरों के वीर गाथाओं का वर्णन हुआ करता था.उन्होंने इसी समय  का अध्ययन किया. इससे इनकी बौद्धिक क्षमता में बहुत अधिक विकास हुआ और इन्होने ‘द प्रेजेंट स्टेट ऑफ़ हिन्ची इन बिहार’ शीर्षक से एक निबंध लिखा. इस निबंध को एक निबंध प्रतियोगिता में ‘बेस्ट एसे अवार्ड’ प्राप्त हुआ था. स्कूली दिनों में इनका बहुत अच्छा विकास हुआ और वर्ष 1918 में उन्होंने अपना स्कूली प्रशिक्षण समाप्त किया और इन्हें ‘स्टेट पब्लिक मैट्रिकुलेशन एग्जामिनेशन’ का सर्टिफिकेट प्राप्त हुआ.अक्टूबर 1920 में इनका विवाह ब्रज किशोर प्रसाद की पुत्री प्रभावती देवी से हुआ. उनके विवाह के समय इनकी आयु 18 वर्ष की और प्रभावती देवी की आयु 14 वर्ष की थी. यह आयु इस समय विवाह के लिए आम मानी जाती थी. विवाह के बाद चूँकि ये पटना में कार्यकर थे, अतः पत्नी के साथ उनका रहना संभव नहीं था. इस समय महात्मा गाँधी के न्योते पर इनकी पत्नी ने महात्मा गाँधी के आश्रम में सेवारत हो गयीं. इसी समय महात्मा गांधी ब्रिटिश सरकार द्वारा जारी किये रोलट एक्ट के ख़िलाफ़ असहयोग आन्दोलन कर रहे थे. इस आन्दोलन में मौलाना आज़ाद के भाषण सुनने वालों में ये भी शामिल हुए. इस भाषण में मौलाना आज़ाद ने लोगों से अंग्रेजी हुकूमत की शिक्षा को त्यागने की बात कही थी. मौलाना के तर्कों से जयप्रकाश नारायण बहुत प्रभावित हुए और पटना लौट कर परीक्षा के 20 दिन पहले ही इन्होने कॉलेज छोड़ दिया. इसके बाद इन्होने डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा स्थापित कॉलेज बिहार विद्यापीठ में अपना नामांकन कराया और डॉ अनुग्रह नारायण सिन्हा के पहले विद्यार्थियों में एक हुए.ये शिक्षा प्राप्त करने के लिए बहुत अधिक उत्साहित रहते थे. इन्होने विद्यापीठ में अपने कोर्स को पूरा करने के बाद संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त करने की योजना बनायी. इसके उपरान्त महज 20 वर्षों की उम्रवास्था में ही उन्होंने जानूस नाम के अमेरिका जाने वाली एक कार्गो शीप से अमेरिका के लिए रवाना हो गये. इस समय प्रभावती देवी साबरमती में ही महात्मा गाँधी के आश्रम में थीं. जयप्रकाश 8 अक्टूबर 1922 को कैलिफ़ोर्निया पहुँच गये. इसके उपरान्त जनवरी 1923 में इन्हें बर्कले में दाखिला प्राप्त हुआ. इस समय इन्हें कहीं से भी किसी तरह की आर्थिक सहायता प्राप्त नहीं थी, अतः इस समय अपनी शिक्षा की फीस भरने के लिये इन्होने कभी किसी मिल फैक्ट्री में तो कभी होटलों में बर्तन धोने का काम, कभी गैरेज में गाड़ी बनाने का कार्य किया. इसके बाद भी इनकी शिक्षा में कठिनाईयां आयीं. बर्कली की फीस दुगुनी कर दी गयी और इन्हें यह विश्व विद्यालय छोड़ कर ‘यूनिवर्सिटी ऑफ़ लोया’ में अपना दाखिला करना पड़ा. इन्हें इसके बाद भी कई विभिन्न विश्वविद्यालयों में समय समय पर अपना दाखिला पैसे की कमी की वजह से कराना पड़ा. इन्होने अपनी शिक्षा के दौरान सोशियोलॉजी की पढाई की, जो कि इनका सबसे पसंदीदा विषय था. इस अध्ययन के समय इन्हे प्रोफेसर एडवर्ड रोस से काफ़ी सहायता प्राप्त हुई.विस्कॉन्सिन में पढाई करते समय इन्हें कार्ल माक्स के ‘Das Kapital’ पढने का मौक़ा मिला. इसी समय रूस क्रान्ति की सफलताओं की खबर से सन 1917 में ये मार्क्सवाद से बहुत अधिक प्रभावित हुए. इसके बाद इन्होने भारतीय कम्युनिस्टो से भी मार्क्सवाद पर विवेचना की. अपने अध्ययन के समय जब इन्होने अपना सोशियोलॉजी पेपर ‘सोशल वेरिएशन’ लिखा, तो वह इस विषय पर वर्ष का सबसे अच्छा पेपर साबित हुआ.भारतीय राजनीति में इनका बहुत बड़ा योगदान रहा है. ये वर्ष 1929 में अपनी उच्च शिक्षा समाप्त कर अमेरिका से भारत आये. इनकी विचारधारा पूरी तरह से मार्क्सवादी हो चुकी थी. भारत आकर ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सम्मिलित हो गये. इस समय कांग्रेस में महात्मा गाँधी इनके गुरु बने और ये लगातार राजनैतिक गुण सीखते रहे. पटना के कदमकुआँ में ये अपने ख़ास दोस्त गंगा शरण सिंह के साथ एक ही घर में रहे. इन दोनो में बहुत अधिक दोस्ती थी. वर्ष 1932 के दौरान ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ सविनय अवज्ञा आन्दोलन के समय ब्रिटिश पुलिस ने इन्हें जेल में डाल दिया. ब्रिटिश हुकूमत ने इन्हें नासिक जेल में रखा जहाँ पर इनकी मुलाक़ात राम मनोहर लोहिया, मीनू मस्तानी, अच्युत पटवर्धन, अशोक मेहता, बसवोन सिन्हा, युसूफ देसाई, सी के नारायणस्वामी तथा अन्य राष्ट्रीय स्तर के नेताओं से हुई. इन सबसे मिलने से कांग्रेस में वामपंथी दल का निर्माण हुआ, जिसे कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी कहा गया. इस पार्टी के अध्यक्ष आचार्य नरेन्द्र देव और महासचिव जयप्रकाश नारायण हुए.वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय जब इन नेताओं को पुनः गिरफ्तार किया गया तो हजारीबाग जेल में रखा गया था. इस समय ये अपने अन्य क्रांतिकारी साथियों जैसे योगेन्द्र शुक्ला, सूरज नारायण सिंह, गुलाब छंद गुप्ता, रामनंदन मिश्र, शालिग्राम सिंह आदि के साथ मिलकर जेल के अन्दर ही आज़ादी के आन्दोलनों की योजनायें बनाने लगे. भारत छोडो आन्दोलन के समय उन्होंने आदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था जिससे उन्हें लोगो में प्रसिद्धि प्राप्त होने लगी. भारत के स्वतंत्र हो जाने के बाद इन्हें ‘आल इंडिया रेलवेमेन फेडरेशन’ का अध्यक्ष बनाया गया. ये दल भारत का सबसे बड़ा श्रमिक दल है. इस पद पर ये वर्ष 1947 से 1953 तक कार्यरत रहे.वर्ष 1960 के समय उन्होंने भारत की राजनैतिक स्थिति को देखते हुए पुनः राजनीति में आने का निर्णय किया. वर्ष 1974 में देश में स्थिति बहुत अधिक खराब हो गयी थी. लोगों को रोज़गार नहीं प्राप्त हो रहा था, आवश्यकता की वस्तुएं नहीं प्राप्त हो पा रही थीं सरकार पूरी तरह से निरस्त हो चूकी थी. ऐसे समय में देश को एक नयी क्रान्ति की आवश्यकता थी. जयप्रकाश नारायण ने इसी समय गुजरात में होने वाले नवनिर्माण आन्दोलन की बागडोर संभाली. 72 वर्ष की उम्रवास्था में इन्होने 8 अप्रैल 1974 पटना में मौन जुलूस का आग़ाज़ किया. इस जुलूस में सरकार ने लाठियां बरसाई थी. इसके बाद 5 जून को इन्होने पटना के गाँधी मैदान में एक बहुत बड़ी सभा का आयोजन किया. इस सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि यह एक क्रान्ति है, हम लोग यहाँ केवल तात्कालिक विधानसभा के विलय देखने के लिए उपस्थित नहीं हुए हैं, बल्कि यह हमारे रास्ते का पहला पड़ाव है.भारत की आज़ादी के 27 वर्षों के बाद भी देश की जनता महंगाई, भुखमरी, भ्रष्टाचार आदि से ग्रसित और परेशान है. देश में कहीं भी न्याय नहीं हो रहा है. इस समय देश को सम्पूर्ण क्रान्ति की आवश्यकता है. वर्ष 1974 में इन्होने बिहार के छात्रो के साथ मिलकर छात्र आन्दोलन की शुरुआत की. यह आन्दोलन लगातार बढ़ता गया और छात्रों के अलावा आम लोग भी इससे जुड़ने लगे. यही आन्दोलन कालांतर में बिहार आन्दोलन कहलाया. इन महत्वपूर्ण आन्दोलन को जयप्रकाश नारायण ने ‘शांतिपूर्ण सम्पूर्ण क्रान्ति’ का नाम दिया.आपातकाल के समय इंदिरा गाँधी को इलाहाबाद कोर्ट ने एल्क्टोरल कानून के तोड़ने के अंतर्गत दोषी माना. इस पर इन्होने इंदिरा गाँधी तथा अन्य कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से इस्तीफे की मांग की. इन्होने मिलिट्री और पुलिस को सरकार के अनैतिक और असंवैधानिक निर्णयों को न मानने की अपील की. 25 जून 1975 के दिन इंदिरा गाँधी ने भारत में आपातकाल की घोषणा की. इस समय देश भर में नारायण की सम्पूर्ण क्रान्ति के आयोजन चल रहे थे. इसी दिन इन्हें और इस आन्दोलन से जुड़े मुख्य लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. उन्होंने इसके उपरान्त सरकार के विरोध में रामलीला मैदान में 1,00,000 लोगों को संबोधित करते हुए राष्ट्रकवि दिनकर की कविता ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ की कई आवृत्तियाँ की. इसके बाद इन्हें सरकार द्वारा पुनः गिरफ्तार कर लिया गया और चंडीगढ़ में रखा गया. इस समय बिहार में बाढ़ आई हुई थी. इन्होने सरकार से 1 माह के पैरोल की मांग की ताकि बाढ़ का जायजा ले सकें, किन्तु ऐसा हो न सका. इस बीच उनकी तबीयत बिगड़ने लगी. 24 अक्टूबर को अचानक इनकी तबीयत खराब हो गयी. इसके बाद 12 नवम्बर को इन्हें रिहा किया गया, जहाँ से उन्हें डायग्नोसिस के लिए जसलोक अस्पताल में ले जाया गया. यहाँ पर पता चला कि इन्हे किडनी सम्बंधित परेशानी हो गयी है और बाक़ी के जीवन में इन्हें हमेशा डायग्नोसिस का सहारा लेना पड़ेगा.  इसके उपरान्त उनितेस किंगडम में सुरूर होडा ने ‘फ्री जेपी’ कैम्पेन जारी किया. इस कैम्पेन का नेतृत्व नोबल पुरस्कार प्राप्त नोएल बेकर ने किया, जिसका उद्देश्य जयप्रकाश नारायण को जेल से रिहा कराना था. इंदिरा गाँधी ने लगभग 2 वर्ष के बाद 18 जनवरी 1977 को देश से इमरजेंसी हटा दी और चुनाव की घोषणा की गयी. इस चुनाव के समय इनके नेतृत्व में जनता पार्टी का गठन किया और चुनाव में विजय भी प्राप्त किया. देश में पहली बार ऐसा होने वाला था कि केंद्र में एक ग़ैरकांग्रेसी सरकार आई. ध्यान देने वाली बात ये है कि इस समय देश भर के युवा वर्ग भी राजनीति की तरफ जागृत हुए और कई युवाओं ने स्वयं को जयप्रकाश के इस आन्दोलन से जोड़ा.इनकी मृत्यु 8 अक्टूबर 1979 में इनके जन्मदिन के ठीक तीन दिन पहले हुई. इनकी मृत्यु का मुख्य कारण डायबिटीज और ह्रदय सम्बंधित विकार थे. इस समय इनकी आयु 77 वर्ष की थी.लोकनायक जयप्रकाश नारायण का व्यक्तित्व किसी तरह के पुरस्कार की मोहताज नहीं हैं. किन्तु इन्होने देश सेवा में अपना समस्त जीवन दे दिया है. इन्हें विश्व स्तर पर पुरस्कार प्राप्त हुए, यहाँ पर इन्हें प्राप्त पुरस्कार का विवरण दिया जा रहा है.वर्ष 1999 में भारत सरकार की तरफ से इन्हें भारत रत्न अवार्ड से नवाज़ा गया.इन्हें एफ़आईई फाउंडेशन की तरफ से राष्ट्रभूषण अवार्ड से सम्मानित किया गया.इनकी प्रतिभा भारत के लोगों के पहले ही विदेशियों ने पहचान लिया था. इस वजह से लोक सेवा करने के कारण इन्हें वर्ष 1965 में रामोन मैगसेसे अवार्ड से सम्मानित किया गयातः भारत का स्वतंत्रता आन्दोलन हो या राजनैतिक आन्दोलन जयप्रकाश नारायण ने देश सेवा में हमेशा अपना योगदान दिया. इस कारण इन्हें कई यातनाएं सहनी पड़ी, किन्तु उन्होंने हार नहीं मानी. आज भी कई राजनेता इनके नाम का प्रयोग अपने भाषणों में करते हैं. भारतीय राजनीति को सदैव ही ऐसे क्रांतिकारी व्यक्तित्व वाले लोगों की आवश्यकता रही है. देश का युवा वर्ग आज भी इनसे प्रेरणा लेकर भारतीय राजनीति में अपनी भूमिका दर्ज कराने की कोशिश की।

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At the time when he was 9 years old, at the same time he came to Patna and enrolled himself in the seventh grade. During his school days, he started reading magazines like Saraswati, Prabha, and Pratap. At the same time, he read a book like Bharat Bharti. He started reading the works of great writers like Maithilisharan Gupta and Bharatendu Harishchandra, which used to describe the heroic stories of many Rajput heroes. He studied at this time. Due to this, there was a lot of development in his intellectual capacity and he wrote an essay titled ‘The Present State of Hinchy in Bihar’. This essay received the ‘Best Essay Award’ in an essay competition. He developed very well during his school days and in the year 1918, he finished his school training and received the certificate of ‘State Public Matriculation Examination’. In October 1920, he was married to Braj Kishore Prasad’s daughter Prabhavati Devi. At the time of their marriage, he was 18 years old and Prabhavati Devi was 14 years old. This age was considered common for marriage at this time. After marriage, since he was working in Patna, it was not possible for him to live with his wife. At this time, at the invitation of Mahatma Gandhi, his wife served in Mahatma Gandhi’s ashram. At the same time, Mahatma Gandhi was doing a non-cooperation movement against the Rowlatt Act issued by the British government. He also joined those who listened to the speech of Maulana Azad in this movement. In this speech, Maulana Azad asked the people to renounce the education of British rule. Jayaprakash Narayan was very impressed by Maulana’s arguments and returned to Patna and left the college 20 days before the examination. After this, he enrolled himself in Bihar Vidyapeeth, a college established by Dr. Rajendra Prasad, and became one of the first students of Dr. Anugrah Narayan Sinha. He was very enthusiastic about getting an education. After completing his course in the Vidyapith, he planned to pursue his higher education in the United States of America. After this, at the age of just 20 years, he left for America on a cargo ship named Janus going to America. At this time Prabhavati Devi was in Mahatma Gandhi’s ashram in Sabarmati itself. Jayaprakash reached California on 8 October 1922. After this, in January 1923, he got admission to Berkeley. At this time, he did not get any kind of financial help from anywhere, so at this time, in order to pay the fees of his education, he sometimes worked in a mill factory, sometimes in hotels as a dishwasher, and sometimes in a garage as a car maker. Even after this, there were difficulties in his education. Berkeley’s fees were doubled and he had to leave this university and enroll himself in ‘The University of Loya’. Even after this, he had to get admission from time to time to many different universities due to a lack of money. He studied sociology during his education, which was his favorite subject. At the time of this study, he received a lot of help from Professor Edward Ross. While studying in Wisconsin, he got the opportunity to read Karl Marx’s ‘Das Kapital’. At the same time, in 1917, he was greatly influenced by Marxism due to the news of the successes of the Russian Revolution. After this, he also discussed Marxism with the Indian Communists. During his studies, when he wrote his sociology paper ‘Social Variation’, it proved to be the best paper of the year on this subject. He has made a huge contribution to Indian politics. He came to India from America in the year 1929 after completing his higher education. His ideology had become completely Marxist. After coming to India, he joined the Indian National Congress. At this time, Mahatma Gandhi became his mentor in Congress and he continued to learn political qualities. He lived in the same house with his special friend Ganga Sharan Singh in Kadamkuan, Patna. There was a lot of friendship between these two. During the civil disobedience movement against the British government during the year 1932, the British police put him in jail. The British government kept him in Nashik Jail where he met Ram Manohar Lohia, Meenu Mastani, Achyut Patwardhan, Ashok Mehta, Baswon Sinha, Yusuf Desai, CK Narayanswamy, and other national-level leaders. By meeting all these, a leftist party was formed in the Congress, which was called the Congress Socialist Party. The president of this party was Acharya Narendra Dev and the general secretary was Jaiprakash Narayan. During the Quit India Movement of 1942, when these leaders were re-arrested, they were kept in Hazaribagh Jail. At this time, along with his other revolutionary friends like Yogendra Shukla, Suraj Narayan Singh, Gulab Chand Gupta, Ramnandan Mishra, Shaligram Singh, etc., he started making plans for the freedom movement inside the jail. At the time of the Quit India movement, he had actively participated in the movement, due to which he started getting fame among the people. After India became independent, he was made the president of ‘The All India Railwaymen’s Federation’. This party is the largest labor party in India. He worked in this post from the year 1947 to 1953. In the year 1960, looking at the political situation in India, he decided to enter politics again. In the year 1974, the situation in the country had worsened a lot. People were not getting employment, essential items were not available, and the government had completely failed. At such a time, the country needed a new revolution. Jayaprakash Narayan took over the reins of the Navnirman movement in Gujarat at the same time. At the age of 72, he started a silent procession on 8 April 1974 in Patna. In this procession, the government lathi-charged. After this, on 5th June, he organized a huge meeting at Gandhi Maidan in Patna. Addressing this meeting, he had said that this is a revolution, we are not present here only to see the merger of the immediate assembly, but this is the first stop on our way. Even after 27 years of India’s independence, the country The public is suffering and troubled by inflation, starvation, corruption, etc. Justice is not being done anywhere in the country. At this time the country needs a complete revolution. In the year 1974, he started the student movement along with the students of Bihar. This movement continued to grow and apart from the students, common people also started joining it. This movement later came to be known as the Bihar movement. Jayaprakash Narayan named this important movement ‘Peaceful Complete Revolution’. At the time of the Emergency, Indira Gandhi was held guilty by the Allahabad Court for breaking the Electoral Law. On this, he demanded the resignation of Indira Gandhi and the Chief Ministers of other Congress-ruled states. He appealed to the military and police not to accept the unethical and unconstitutional decisions of the government. On 25 June 1975, Indira Gandhi declared an emergency in India. At this time, preparations for Narayan’s complete revolution were going on across the country. On the same day, he and the main people associated with this movement were arrested. After this, while addressing 1,00,000 people in Ramlila Maidan in protest against the government, he recited Rashtrakavi Dinkar’s poem ‘Singhasan Khali Karo ki Janata Aati Hai’ several times. After this, he was again arrested by the government and kept in Chandigarh. At this time there was a flood in Bihar. He demanded a one-month parole from the government so that he could take stock of the flood, but this could not happen. Meanwhile, his health started deteriorating. On October 24, suddenly his health deteriorated. After this, he was released on November 12, from where he was taken to Jaslok Hospital for diagnosis. Here they came to know that he has kidney related problem and for the rest of his life, he will always have to take the help of diagnosis. After this, Surur Hoda released the ‘Free JP’ campaign in the United Kingdom. This campaign was led by Nobel laureate Noel-Baker, whose aim was to get Jayaprakash Narayan released from jail. Indira Gandhi removed the Emergency from the country on 18 January 1977 after almost 2 years and elections were announced. At the time of this election, the Janata Party was formed under his leadership and also won the election. It was going to happen for the first time in the country that a non-Congress government came to the center. It is worth noting that at this time the youths across the country also woke up to politics and many youths associated themselves with this movement of Jayaprakash. He died on 8 October 1979, just three days before his birthday. The main reason for his death was diabetes and heart-related disorders. At this time his age was 77 years. The personality of Loknayak Jayaprakash Narayan is not dependent on any kind of award. But he has given his whole life in the service of the country. He received awards at the world level, here are the details of the awards he received. In the year 1999, he was awarded the Bharat Ratna Award by the Government of India. He was awarded the Rashtra Bhushan Award by the FIE Foundation. The talent of the people of India was already recognized by foreigners. For this reason, he was awarded the Ramon Magsaysay Award in the year 1965 for doing public service: Be it India’s freedom movement or political movement, Jayaprakash Narayan always contributed to the service of the country. Because of this, he had to endure many tortures, but he did not give up. Even today many politicians use his name in their speeches. Indian politics has always needed people with such revolutionary personalities. Even today the youth of the country tried to register their role in Indian politics by taking inspiration from them.

Prabhakar Kumar.

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