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व्यक्ति विशेष

भाग - 06.

सावित्रीबाई फुले

सावित्रीबाई फुले, भारतीय समाज में समाजसेविका और महात्मा ज्योतिराव फुले की पत्नी थीं, जिन्होंने 19वीं सदी के मध्य में महाराष्ट्र में जातिवाद और सामाजिक असमानता के खिलाफ समर्थन किया। सावित्रीबाई फुले को “भारतीय महात्मा” कहा जाता है और उन्हें भारतीय समाज में शिक्षा, जातिवाद और महिला समाजसेवा के क्षेत्र में उनके प्रमुख योगदान के लिए याद किया जाता है।

सावित्रीबाई फुले ने अपने पति के साथ मिलकर पुणे में ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की, जो विशेष रूप से दलितों और अल्पसंख्यक समुदायों के हित में काम करता था। उन्होंने महिलाओं को शिक्षित बनाने के लिए शिक्षा प्रदान करने का समर्थन किया और उन्हें समाज में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया।

सावित्रीबाई फुले की उपस्थिति ने भारतीय समाज में सामाजिक बदलाव की प्रक्रिया को प्रेरित किया और उनका योगदान आज भी स्मरणीय है। उनका समर्थन और उनके कार्यों के कारण, भारत सरकार ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में मान्यता प्रदान की है।

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वायलिन वादक एम. एस. गोपालकृष्णन

मास्टर एम.एस. गोपालकृष्णन भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रमुख वायलिन वादकों में से एक थे। उनका जन्म 1911 में तमिलनाडु के चेन्नई शहर में हुआ था और उनका नाम पहले महादेव शर्मा था, लेकिन उन्होंने बाद में अपने गुरु से प्रेरित होकर अपना नाम म.एस. गोपालकृष्णन रख लिया।

उन्होंने अपने संगीत के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया और अपने कार्यक्षेत्र को व्यापक बनाया। वे वायलिन के माहिर थे और उनकी शैली में क्लासिकल और सेमी-क्लासिकल संगीत का मिश्रण था। उन्होंने वायलिन पर अपने उत्कृष्ट नौसास्त्रीय संगीत के प्रदर्शन के लिए कई पुरस्कार जीते।

उन्होंने भारतीय संगीत में नए आयाम स्थापित किए और अपनी शैली में आधुनिकता और परंपरागत संगीत को मिलाकर एक नया संगीतीय अनुभव प्रदान किया। मास्टर एम.एस. गोपालकृष्णन का निधन 2013 में हुआ, लेकिन उनका योगदान भारतीय संगीत के क्षेत्र में अज्ञात रहा है।

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लेखक व नाटककार मोहन राकेश

मोहन राकेश एक प्रमुख हिंदी भाषा के लेखक और नाटककार थे, जिन्होंने अपने योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए हैं। उनका जन्म 8 जनवरी 1925 को महाराष्ट्र के मार्टंड नामक गाँव में हुआ था। मोहन राकेश ने अपनी शिक्षा को नागपुर और मुंबई में पूरा किया और फिर कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स, लंडन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स, और लंदन स्कूल ऑफ़ जर्नलिज्म में भी अध्ययन किया।

मोहन राकेश ने अपनी सर्वप्रथम रचना “आशाध का एक दिन” के साथ हिंदी साहित्य में अपना प्रवेश किया और इसे बहुत चर्चा मिली। इस के बाद, उन्होंने कई प्रमुख नाटक और कहानियाँ लिखीं, जिनमें “अधूरा आधा” और “आधुनिक कहानियाँ” शामिल हैं। उनका लेखन सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर आधारित था और उन्होंने अपने कामों में समाज के विभिन्न पहलुओं को छूने का प्रयास किया।

मोहन राकेश को उनके योगदान के लिए साहित्य में कई पुरस्कारों से नवाजा गया, जिनमें साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्मश्री और साहित्य सम्मान शामिल हैं। उनका निधन 3 जनवरी 1972 को हुआ, लेकिन उनका योगदान हिंदी साहित्य में अजीवन भावनाओं को स्तुति और समर्पण के साथ याद किया जाता है।

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स्वामी श्रद्धानंद

स्वामी श्रद्धानंद, जिनका असली नाम बेनारसीदास था, एक भारतीय संत और योगी थे। उनका जन्म १८५९ में हुआ था और मृत्यु १९३५ में हुई थी। स्वामी श्रद्धानंद ने अपने जीवन में ध्यान, तपस्या, और सेवा के माध्यम से आत्मा के साथ संबंध स्थापित करने का समर्थन किया।

स्वामी श्रद्धानंद का संत महात्मा रामकृष्ण परमहंस के शिष्य था और उनके उपदेशों का पालन करते थे। उन्होंने अपने जीवन को योग, वेदांत, और भक्ति मार्ग पर ध्यान केंद्रित किया और लोगों को आध्यात्मिकता की ओर प्रवृत्त करने के लिए प्रेरित किया।

स्वामी श्रद्धानंद ने विभिन्न भागों में भारतीय समाज की सेवा की और उन्होंने भगवद गीता, उपनिषदों, और अन्य धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया और उनके उपदेशों को लोगों तक पहुंचाने का कार्य किया।

स्वामी श्रद्धानंद का योगदान आध्यात्मिकता और सेवा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण रहा है, और उनकी शिक्षाएँ आज भी लोगों को प्रेरित कर रही हैं।

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अभिनेत्री गुल पनाग

गुल पनाग एक भारतीय फिल्म अभिनेत्री, मॉडल, और सोशल अक्टिविस्ट हैं। उनका जन्म 3 जनवरी 1979 को हुआ था। गुल पनाग ने अपने कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग से की और फिर बॉलीवुड में अभिनय करने लगी।

उनका पहला बॉलीवुड फिल्मों में आना 2003 में हुआ था, जब उन्होंने फिल्म ‘दर्द-ए-दिल’ में अभिनय किया। इसके बाद, उन्होंने कई और फिल्मों में अभिनय किया, जैसे कि ‘जादू की झप्पी’, ‘दृष्टि’, ‘वेलकम बैक’, और ‘मार जावां’। गुल पनाग को उनके अभिनय के लिए सराहा गया है और उन्होंने अपने कैरियर में एक विशेष पहचान बनाई है।

गुल पनाग ने अपने अभिनय के अलावा समाज सेवा में भी अपना योगदान दिया है और उन्हें सोशल इंजीनियरिंग और एक्टिविज्म के क्षेत्र में एक मार्गदर्शक के रूप में जाना जाता है। वह राजनीति में भी रूचि रखती हैं और उन्होंने कई सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर अपने विचार साझा किए हैं।

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अभिनेता संजय खान

संजय खान, जिनका असली नाम संजय बालराम खान है, एक भारतीय फिल्म अभिनेता है। उनका जन्म 25 दिसम्बर 1961 में हुआ था। संजय खान ने बॉलीवुड में अपने व्यापक कैरियर के लिए पहले से ही चर्चा में रहे हैं।

संजय खान ने कई हिट फिल्मों में अभिनय किया है और उनकी प्रमुख फिल्में में ‘हेरा पहरी’, ‘फार्ज’, ‘खलनायक’, ‘ये रास्ते हैं प्यार के’, ‘कृष’, ‘दृष्टि’, ‘मिस्टर इंडिया’, ‘ताल’ और ‘जेवेकी भावना’ शामिल हैं।

उनके अभिनय के लिए उन्हें कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं। संजय खान ने अपने कैरियर के दौरान नायक, खलनायक, और कॉमेडियन के रूप में विभिन्न पात्रों में अपना हुनर दिखाया है। वो अभिनेता आमिर खान के चाचा के रूप में भी जाने जाते हैं।

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रॉकेट वैज्ञानिक सतीश धवन

सतीश धवन एक प्रमुख भारतीय रॉकेट वैज्ञानिक थे जो अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध थे। उनका जन्म 25 सितंबर 1920 को नैनीताल, उत्तराखंड, भारत में हुआ था और मृत्यु 3 जनवरी 2002 को बैंगलोर, कर्नाटक, भारत में हुई थी।

सतीश धवन ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उन्होंने इसरो को विश्वस्तरीय रॉकेट प्रोग्राम में बदलने का कारगर कार्य किया। उन्होंने अपने प्रमुख अध्यक्ष के रूप में 1972 से 1984 तक कार्य किया और इस अवधि में विभिन्न सफल रॉकेट परियोजनाओं का संचालन किया।

उन्होंने विक्रम साराभाई के संगठन में काम करते हुए भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को मजबूती देने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने SLV (Satellite Launch Vehicle) और ASLV (Augmented Satellite Launch Vehicle) जैसी अनेक सफल परियोजनाओं का संचालन किया।

सतीश धवन ने अपने योगदान के लिए कई सारे पुरस्कार प्राप्त किए और उन्हें भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में एक अद्वितीय नेता के रूप में माना जाता है।

 

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