अभिनेता अनु कपूर
अनु कपूर भारतीय सिनेमा और टेलीविजन उद्योग के एक प्रतिष्ठित अभिनेता हैं, जिन्होंने अपने विविध किरदारों के माध्यम से प्रशंसकों के दिलों में एक विशेष स्थान बनाया है. उनका जन्म 20 फरवरी, 1956 को भोपाल में हुआ था. अनु कपूर का वास्तविक नाम अनिल कपूर है भ्रम ना हो इसिलए उन्होंने अपना नाम अनु कपूर कर दिया. अनु कपूर ने अपने कैरियर की शुरुआत में चाय और चूरन बेचकर अपना गुजारा किया था.
अनु कपूर ने अपनी पहली पत्नी अनुपमा से 1992 में शादी की थी, लेकिन अगले ही साल उनका तलाक हो गया था.1995 में उन्होंने अरुणिता मुखर्जी से शादी की, लेकिन इस विवाह का भी अंत तलाक से हुआ.फिर साल 2008 में अनु ने अपनी पहली पत्नी अनुपमा से फिर से शादी कर ली. उनके चार बच्चे हैं: तीन बेटे कावन, माहिर, इवान और एक बेटी, अर्पिता.
अनु कपूर के कैरियर में उनकी फिल्में और टेलीविजन शो दोनों ही प्रमुख रहे हैं. उनकी प्रमुख फिल्मों में ‘काला पत्थर’, ‘कंधार’, ‘मशाल’, ‘मिस्टर इंडिया’, ‘गुनाहों का फैसला’, ‘तेजाब’, और ‘विक्की डोनर’ जैसी फिल्में शामिल हैं, जिनमें उनके अभिनय की खूब सराहना हुई. उनकी विविध भूमिकाएँ और प्रभावशाली प्रदर्शन ने उन्हें भारतीय सिनेमा में एक विशेष स्थान दिलाया है.
टेलीविजन पर, उन्होंने ‘अंताक्षरी’ जैसे लोकप्रिय शो की मेजबानी की, जो उनके चर्चित चेहरों में से एक हैं. उन्होंने ‘गोल्डन एरा विद अन्नू कपूर’ और ‘सुहाना सफर विद अन्नू कपूर’ जैसे शो की मेजबानी की है, जिनमें वे पुराने दौर की अनसुनी कहानियां और गानों के साथ उस युग के कलाकारों की कहानियां बेहद रोचक ढंग से प्रस्तुत करते हैं.
अनु कपूर की जीवनी, उनके कैरियर, उनकी फिल्मों और टेलीविजन शो के विवरण से उनके कलात्मक योगदान और व्यक्तिगत जीवन के पहलुओं को समझने में मदद मिलती है. उनकी उपलब्धियाँ और संघर्ष की कहानियाँ प्रेरणा देती हैं और उन्हें भारतीय एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में एक सम्मानित व्यक्तित्व के रूप में स्थापित करती हैं.
========== ========= ===========
साहित्यकार रघुवेंद्र तंवर
रघुवेंद्र तंवर, जिनका जन्म 20 फरवरी, 1955 को हुआ था, एक प्रतिष्ठित भारतीय साहित्यकार हैं. उन्होंने इतिहास में एमए की डिग्री प्रथम श्रेणी में प्राप्त की और दो स्वर्ण पदकों के साथ स्नातकोत्तर स्तर पर उत्कृष्टता हासिल की. वे 1977 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में व्याख्याता के रूप में शामिल हुए और 1997 में प्रोफेसर के रूप में चयनित हुए.2015 में वे विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त हुए और प्रोफेसर एमेरिटस के पद से सम्मानित किए गए. तंवर ने डीन, सामाजिक विज्ञान संकाय और डीन अकादमिक मामले के रूप में भी कार्य किया. उन्हें जनवरी 2022 में भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के अध्यक्ष के रूप में नामित किया गया था. उनका मुख्य योगदान भारत के विभाजन, विशेषकर पंजाब के अध्ययन में रहा है. उन्होंने 1947-1953 के महत्वपूर्ण चरण में जम्मू और कश्मीर के इतिहास पर भी महत्वपूर्ण शोध किया है. उनकी नवीनतम कृति भारत के विभाजन की कहानी है, जो भारत सरकार के प्रकाशन विभाग द्वारा अंग्रेजी और हिंदी में प्रकाशित की गई है.
उन्होंने साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में अपने उल्लेखनीय कार्य के लिए पद्मश्री अवार्ड के लिए नामांकित किया गया है. तंवर ने कई शैक्षणिक संस्थानों के साथ सहयोगके साथ काम किया है और वे एक प्रसिद्ध खिलाड़ी भी हैं, जिन्होंने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय और हरियाणा राज्य लॉन टेनिस टीमों की कप्तानी की है.
उनके व्यापक अनुभव और योगदान ने उन्हें साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में एक प्रमुख व्यक्तित्व बनाया है. उनके कार्य ने उन्हें विभिन्न सम्मानों और पदों तक पहुँचाया है, जिसमें उनकी पद्मश्री नामांकन भी शामिल है, जो उनके उत्कृष्ट कार्य को मान्यता देता है.
========== ========= ===========
अभिनेत्री जिया ख़ान
जिया ख़ान, जिनका असली नाम नफीसा खान था, एक प्रतिभाशाली बॉलीवुड अभिनेत्री थीं जिनका जन्म 20 फरवरी, 1988 को हुआ था और उनकी दुखद मृत्यु 3 जून, 2013 को हुई. उन्हें मुख्य रूप से 2008 की फिल्म ‘गजनी’ और 2010 में प्रदर्शित ‘हाउसफुल’ के लिए जाना जाता है.
24 मई, 2013 को उन्होंने अपना अंतिम ट्वीट किया था, जिसमें उन्होंने ट्विटर से विदाई लेने की बात कही थी. उनका जन्म न्यूयॉर्क शहर में हुआ था और उनकी परवरिश लंदन में हुई थी. वे एक प्रशिक्षित ऑपेरा गायक भी थीं और उन्होंने कई नृत्य शैलियों में प्रशिक्षण प्राप्त किया था. उन्होंने ली स्ट्रेसबर्ग थिएटर एंड फिल्म इंस्टीट्यूट, मैनहटन में शिक्षा प्राप्त की थी.
जिया ने फिल्म ‘निशब्द’ में अमिताभ बच्चन के साथ और ‘गजनी’ में आमिर खान के साथ काम किया था. उनकी अंतिम फिल्म ‘हाउसफुल’ थी. उनकी मौत उनके जुहू स्थित घर में फांसी लगा हुआ पाए जाने से हुई थी. उनकी मृत्यु ने बहुत से लोगों को शोक में डाल दिया था.
========== ========= ===========
स्वामी शिवानन्द
रामकृष्ण मिशन के दूसरे संघाध्यक्ष स्वामी शिवानन्द, जिन्हें ‘महापुरुष महाराज’ के नाम से भी जाना जाता है, रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्यों में से एक थे. स्वामी विवेकानन्द के पश्चात्, स्वामी शिवानन्द ने 1922 से 1934 तक रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन के दूसरे अध्यक्ष के रूप में सेवा की. उनका जन्म 1854 में हुआ था, और उन्होंने अपना जीवन आध्यात्मिक खोज और मानव सेवा को समर्पित कर दिया था.
स्वामी शिवानन्द का मानना था कि सभी धर्मों का सार एक ही है और उन्होंने समाज में धार्मिक सहिष्णुता और सद्भावना के प्रसार पर जोर दिया. वे अपने जीवनकाल में आध्यात्मिक ज्ञान के प्रसार में बहुत सक्रिय रहे और उन्होंने भारत और विदेशों में कई आध्यात्मिक शिविरों और व्याख्यानों का आयोजन किया.
स्वामी शिवानन्द ने रामकृष्ण मिशन के विकास और उसके आध्यात्मिक मिशन को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के माध्यम से समाज सेवा के क्षेत्र में अपने प्रयासों को केंद्रित किया. उनके नेतृत्व में, मिशन ने अनेक स्कूलों, कॉलेजों, अस्पतालों, और सेवा केंद्रों की स्थापना की, जिससे लाखों लोगों को लाभ हुआ.
स्वामी शिवानन्द के जीवन और शिक्षाओं को उनके अनुयायियों और रामकृष्ण मठ और मिशन के सदस्यों द्वारा आज भी उच्च सम्मान में रखा जाता है. उनकी आध्यात्मिक विरासत और मानव सेवा की भावना इन संस्थाओं के कार्यों में जीवंत है.
========== ========= ===========
स्वतन्त्रता सेनानी शरत चन्द्र बोस
शरत चन्द्र बोस, जिन्हें सरत चन्द्र बोस के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक थे. वे नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बड़े भाई थे और उन्होंने भारत की आजादी के लिए अपने भाई के साथ मिलकर कई आंदोलनों में भाग लिया. शरत चन्द्र बोस का जन्म 6 सितंबर 1889 को हुआ था और उनका निधन 20 फरवरी 1950 को हुआ.
वकालत की पृष्ठभूमि रखने वाले शरत बोस ने न केवल एक राजनीतिज्ञ के रूप में, बल्कि एक समाज सुधारक के रूप में भी अपनी पहचान बनाई. वे ब्रिटिश भारत की विभाजनकारी नीतियों के खिलाफ थे और उन्होंने भारतीय समाज में एकता और सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए काम किया.
शरत बोस ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कई बार इसकी कार्यकारिणी कमेटी के सदस्य रहे. वे बंगाल प्रांतीय कांग्रेस के भी नेता रहे. उनके नेतृत्व में, कई आजादी के आंदोलनों को एक नई दिशा मिली.
उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए निरंतर संघर्ष किया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विभिन्न प्रदर्शनों और आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया. शरत चन्द्र बोस की विरासत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके अदम्य साहस और समर्पण के रूप में आज भी याद की जाती है.