लेखक राधा कृष्ण चौधरी
राधा कृष्ण चौधरी भारतीय इतिहासकार, लेखक और शिक्षाविद थे, जिनका काम मुख्य रूप से बिहार के इतिहास और संस्कृति पर केंद्रित था. उन्होंने बिहार के प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास पर गहराई से अध्ययन किया और इस विषय पर कई पुस्तकें और शोध पत्र लिखे. उनके शोध कार्य ने बिहार के इतिहास के अध्ययन में नए आयाम जोड़े और उसे और अधिक समझने में मदद की.
चौधरी की पुस्तकें अक्सर उनके विस्तृत अनुसंधान और बिहार के सामाजिक-आर्थिक ढांचे, इतिहास, परंपराओं, और उसके लोगों की सांस्कृतिक पहचान के गहराई से विश्लेषण के लिए जानी जाती हैं. उनका काम बिहार के इतिहास और उसकी सांस्कृतिक विरासत को समझने के इच्छुक विद्यार्थियों, शोधकर्ताओं, और इतिहास प्रेमियों के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन है.
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साहित्यकार राधावल्लभ त्रिपाठी
राधावल्लभ त्रिपाठी एक प्रसिद्ध भारतीय साहित्यकार, शिक्षाविद् और संस्कृत विद्वान हैं। उनका जन्म 15 फ़रवरी 1949 को राजगढ़, मध्य प्रदेश में हुआ था. त्रिपाठी जी का विशेष योगदान संस्कृत साहित्य के क्षेत्र में रहा है, जहां उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकें और लेख लिखे हैं. उन्होंने संस्कृत नाटक, काव्य, आलोचना और शिक्षा पद्धति पर व्यापक कार्य किया है.
राधावल्लभ त्रिपाठी ने भारतीय संस्कृति और साहित्य के प्रति अपनी गहन समझ और योगदान के लिए अनेक सम्मान और पुरस्कार प्राप्त किए हैं. वे राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान (अब राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय), दिल्ली के पूर्व वाइस चांसलर भी रह चुके हैं. उनका कार्य संस्कृत साहित्य के प्रचार-प्रसार और इसकी शिक्षा को आधुनिक पद्धतियों से जोड़ने की दिशा में महत्वपूर्ण रहा है.
त्रिपाठी जी की साहित्यिक कृतियां और उनके द्वारा संपादित कार्य संस्कृत साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में एक मूल्यवान संसाधन के रूप में माने जाते हैं. उनके काम में संस्कृत साहित्य को आधुनिक संदर्भ में पुनः प्रस्तुत करने का प्रयास स्पष्ट दिखाई देता है, जिससे यह प्राचीन भाषा आज के समय में भी प्रासंगिक बनी रहे.
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अभिनेता रणधीर कपूर
रणधीर कपूर भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध अभिनेता, निर्माता, और निर्देशक हैं, जो हिंदी फिल्म जगत के प्रतिष्ठित कपूर परिवार से संबंधित हैं. उनका जन्म 15 फरवरी 1947 को मुंबई में हुआ था. वह लेजेंडरी अभिनेता और फिल्म निर्माता राज कपूर के पुत्र हैं और शोमैन राज कपूर, शम्मी कपूर, और शशि कपूर के भतीजे हैं.
रणधीर कपूर ने 1971 में फिल्म “कल आज और कल” से अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने अपने पिता राज कपूर और दादा पृथ्वीराज कपूर के साथ अभिनय किया. इस फिल्म का निर्देशन भी उन्होंने ही किया था, जो उन्हें एक प्रतिभाशाली निर्देशक के रूप में भी प्रतिष्ठित करता है. उन्होंने “जीत”, “रामपुर का लक्ष्मण”, और “हाथ की सफाई” जैसी कई हिट फिल्मों में काम किया.
रणधीर कपूर ने निर्माता और निर्देशक के रूप में भी कई सफल फिल्मों का निर्माण किया. उनके कैरियर में एक निर्देशक के रूप में उल्लेखनीय योगदान दिया गया है, खासकर फिल्म “धर्म करम” और “हिना” के लिए, जिसे उनके पिता राज कपूर ने शुरू किया था लेकिन उनके निधन के बाद रणधीर ने पूरा किया.
रणधीर कपूर ने अपने योगदान के लिए हिंदी सिनेमा में विशेष स्थान बनाया है और कपूर खानदान की पारंपरिक विरासत को आगे बढ़ाया है. उनकी बेटियाँ, करिश्मा कपूर और करीना कपूर खान, भी हिंदी फिल्म उद्योग में प्रसिद्ध अभिनेत्रियाँ हैं.
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शायर मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब, जिनका पूरा नाम मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग खान था, 19वीं सदी के महान उर्दू और फारसी के शायर थे. उनका जन्म 27 दिसंबर 1797 को आगरा में हुआ था और उनका निधन 15 फरवरी 1869 को दिल्ली में हुआ. ग़ालिब को उनकी गहराई से भरी हुई शायरी और जीवन के प्रति उनकी अनूठी दृष्टिकोण के लिए जाना जाता है. उनकी रचनाएँ आज भी उर्दू साहित्य में सबसे अधिक पढ़ी और सराही जाने वाली कृतियों में से एक हैं.
ग़ालिब की शायरी में जीवन, प्रेम, उदासी, और दर्शन के विभिन्न पहलुओं का बहुत सूक्ष्मता और गहराई से चित्रण किया गया है. उन्होंने घजल की विधा में अपने अनूठे योगदान के लिए विशेष प्रसिद्धि प्राप्त की. ग़ालिब की शायरी में जीवन की विडम्बनाओं और मानवीय भावनाओं को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया गया है.
उनके काम में एक अद्वितीय शैली और गहराई है, जो उन्हें उनके समकालीनों से अलग करती है. ग़ालिब की शायरी ने न केवल उर्दू शायरी की परंपरा को आकार दिया, बल्कि फारसी शायरी पर भी अपना एक महत्वपूर्ण प्रभाव छोड़ा. उनकी रचनाओं में उनके व्यक्तिगत जीवन के अनुभवों, दार्शनिक विचारों, और सामाजिक-राजनीतिक संदर्भों की झलक मिलती है.
ग़ालिब का योगदान उर्दू साहित्य में इतना महत्वपूर्ण है कि उन्हें आज भी उर्दू शायरी के सबसे महान शायरों में से एक माना जाता है. उनकी रचनाएँ आज भी विभिन्न मंचों पर पढ़ी और सुनाई जाती हैं, और उनकी शायरी के अनुवाद दुनिया भर की कई भाषाओं में किए गए हैं.
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कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान
सुभद्रा कुमारी चौहान एक प्रसिद्ध भारतीय कवयित्री और स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिनका जन्म 16 अगस्त, 1904 को निहालपुर, इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज, उत्तर प्रदेश) में हुआ था. उनकी कविताएँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की भावनाओं से ओत-प्रोत थीं, और उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना को जगाने का कार्य किया. सुभद्रा कुमारी चौहान की सबसे प्रसिद्ध कविता “झाँसी की रानी” है, जिसमें उन्होंने वीरता और देशभक्ति की भावना को अमर कर दिया है.
“कूद पड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी” इस पंक्ति के साथ, उन्होंने झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की वीरता और उनके संघर्ष को चित्रित किया. उनकी अन्य कविताओं में भी देशप्रेम, समाजिक चेतना, और नारी शक्ति की थीम्स प्रमुख रूप से उभरती हैं.
सुभद्रा कुमारी चौहान ने न केवल कविता लिखी, बल्कि वे सक्रिय रूप से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया. वह नागपुर में सीवीडी (Central Volunteer Board) की सचिव थीं और उन्होंने अनेक बार जेल यात्रा भी की. उनका निधन 15 फरवरी, 1948 को एक सड़क दुर्घटना में हुआ था.
सुभद्रा कुमारी चौहान का साहित्यिक और राष्ट्रीय योगदान भारतीय साहित्य और इतिहास में एक अमूल्य निधि है. उनकी कविताएँ आज भी भारतीय स्कूलों में पढ़ाई जाती हैं और उनकी वीरता और साहित्यिक प्रतिभा को विस्तृत रूप से सराहा जाता है.
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मूर्तिकार मृणालिनी मुखर्जी
मृणालिनी मुखर्जी एक भारतीय मूर्तिकार थीं, जिन्होंने अपने अद्वितीय और अभिनव मूर्तिकला शैली के लिए प्रसिद्धि प्राप्त की थी. उनका जन्म 1949 में हुआ था और उनका निधन 15 फ़रवरी 2015 को नई दिल्ली में हुआ था. मृणालिनी मुखर्जी के कार्यों में विशेषतः फाइबर के साथ प्रयोगात्मक काम शामिल हैं. उन्होंने विभिन्न प्रकार के माध्यमों का उपयोग किया, लेकिन उनकी सबसे प्रसिद्ध कृतियाँ बुने हुए जूट और बांस के फाइबर से बनी थीं.
मृणालिनी की कला में प्राकृतिक रूपों और आकृतियों की गहन अभिव्यक्ति देखने को मिलती है, जिसमें पौधों, फूलों, और जानवरों के रूपांकनों के माध्यम से एक अद्वितीय सौंदर्यशास्त्र प्रस्तुत किया गया है. उनकी मूर्तियाँ अक्सर जीवन और प्रकृति के साथ उनकी गहरी सहानुभूति और संवाद को दर्शाती हैं.
मृणालिनी मुखर्जी ने अपनी शिक्षा बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय से प्राप्त की, जहाँ उन्होंने कला में डिग्री हासिल की. उन्होंने न केवल भारत में, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी कई प्रदर्शनियों में अपने काम को प्रदर्शित किया. उनकी कलाकृतियाँ विभिन्न संग्रहालयों और निजी संग्रहों में संरक्षित हैं. मृणालिनी मुखर्जी के काम ने उन्हें कला और मूर्तिकला के क्षेत्र में एक अद्वितीय स्थान दिलाया है.
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पार्श्वगायिका संध्या मुखर्जी
संध्या मुखर्जी भारतीय संगीत जगत में एक प्रसिद्ध पार्श्वगायिका थीं, जिन्होंने अपनी मधुर आवाज और गायन कला के माध्यम से लाखों दिलों को छुआ. उन्होंने अपने कैरियर में कई हिट गीत गाए और विशेष रूप से बंगाली सिनेमा में उनका योगदान महत्वपूर्ण रहा है. संध्या मुखर्जी का जन्म 1931 में हुआ था और उन्होंने अपने संगीत कैरियर की शुरुआत 1950 के दशक में की थी. उनके गाने न सिर्फ भारत में, बल्कि विदेशों में भी काफी लोकप्रिय हुए.
संध्या मुखर्जी ने क्लासिकल संगीत की शिक्षा प्राप्त की थी और उन्होंने अपने गायन में इसका समावेश किया. उनकी आवाज में एक विशेष प्रकार की मिठास और गहराई थी, जो श्रोताओं को उनके गीतों से जोड़ती थी. उन्होंने विभिन्न प्रकार के गानों को गाया, जिसमें रोमांटिक गीत, भक्ति संगीत, और लोकगीत शामिल हैं.
उनके कुछ प्रमुख गानों में “एई पथ जोड़ी ना सेश हाय”, “आगेर मोटोन घोरे एलेम”, और “अमाय प्रोश्नो कोरे” जैसे गीत शामिल हैं. इन गीतों ने उन्हें बंगाली संगीत के क्षेत्र में एक विशेष स्थान दिलाया. संध्या मुखर्जी का निधन 15 फरवरी 2022 को हुआ, लेकिन उनके गाने और उनकी आवाज आज भी उनके प्रशंसकों के दिलों में जीवित हैं.
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अभिनेत्री मनोरमा
मनोरमा एक प्रमुख भारतीय अभिनेत्री थीं, जिन्होंने अपनी अद्भुत अभिनय कला के लिए प्रसिद्धता प्राप्त की थी. वह भारतीय सिनेमा के एक प्रमुख नाम मानी जाती थीं, और उनके अभिनय कौशल को सराहा जाता था. मनोरमा के अभिनय में व्यापक विविधता और मजबूती थी, और उन्होंने विभिन्न भूमिकाओं में अपनी अद्वितीय योगदान दिया.
मनोरमा ने अपने कैरियर के दौरान बहुत सारी फिल्मों में काम किया, जिसमें कई चर्चित फिल्में शामिल हैं. उनके अभिनय की अद्वितीयता और संवेदनशीलता ने उन्हें दर्शकों के दिलों में बनाए रखा. वह एक समर्थ अभिनेत्री थीं जो विभिन्न जीवनी, नाटक, और सामाजिक संदेशों को अपने अभिनय के माध्यम से प्रस्तुत करने में सक्षम थीं.
फिल्में : –
फैशनेबल वाइफ, परिनीता, झनक झनक पायल बाजे, शारदा, भाभी, पंचायत, रूप की रानी चोरों का राजा, हाफ टिकट, दिल ही तो है, राजकुमार, नींद हमारी ख़्वाब तुम्हारे, दो कलियाँ, मस्ताना, कारवाँ, मेहबूब की मेहन्दी, सीता और गीता, बनारसी बाबू, अदालत, दो मुसाफ़िर, लावारिस, मैं आवारा हूँ और वाटर आदि.
मनोरमा का अद्भुत अभिनय कौशल और उनका समर्थ संवाद व्यावहारिकता के साथ उन्हें भारतीय सिनेमा की एक अग्रणी अभिनेत्री बना दिया.