News

व्यक्ति विशेष

भाग - 40.

कवि प्रदीप

कवि प्रदीप का पूरा नाम रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी  था। वे एक प्रमुख हिंदी कवि और समीक्षक थे, जिन्होंने हिंदी साहित्य को अपने लेखन से बहुत योगदान दिया। प्रदीप जी का जन्म  6 फ़रवरी, 1915 में मध्य प्रदेश में उज्जैन के बड़नगर नामक क़स्बे में हुआ था.

कवि प्रदीप ने अपनी कविताओं में भारतीय समाज, संस्कृति, और भाषा के महत्व को प्रमोट किया और उनका योगदान हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण माना जाता है। उनकी प्रमुख कविताओं में से कुछ प्रमुख हैं: – ऐ मेरे वतन के लोगो, आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ, दे दी हमें आज़ादी, हम लाये हैं तूफ़ान से, मैं तो आरती उतारूँ, पिंजरे के पंछी रे, तेरे द्वार खड़ा भगवान, दूर हटो ऐ दुनिया वालों आदि.

कवि प्रदीप ने अपने लेखन से साहित्यिक साक्षरता को बढ़ावा दिया और उनका योगदान भारतीय साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण है.

==========  =========  ===========

पार्श्वगायक भूपिंदर सिंह

भूपिंदर सिंह एक पार्श्वगायक और संगीतकार हैं और उनकी पत्नी मिताली सिंह भी एक गायिका हैं. भूपेन्द्र सिंह बहुत अच्छा गिटार भी बजाते थे. भूपिंदर सिंह और उनकी पत्नी मिताली सिंह संगीत के क्षेत्र में विशेष रूप से गज़ल-गायिकी में पर्याप्त ख्याति अर्जित की.

भूपिंदर सिंह का जन्म 6 फरवरी 1940 को ब्रिटिश राज के दौरान पंजाब प्रान्त की पटियाला रियासत में हुआ था. एक समय था कि भूपिंदर संगीत को बिल्कुल भी पसन्द नहीं करते थे. धीरे-धीरे भूपिन्दर में गज़ल गायन के प्रति रुचि जागृत हुई और वह अच्छी गज़लें गाने लगा और उनकी कई प्रस्तुतियाँ  आकाशवाणी पर हुई थी.

भूपिंदर सिंह ने 1968 में फिल्म हकीकत में एक गजल  ‘होके मजबूर मुझे उसने बुलाया होगा’ गाया जो काफी हिट हुई थी.1980 के दशक में भूपेन्द्र सिंह ने बाँगलादेश की एक हिन्दू गायिका मिताली सिंह से शादी की. मिताली-भूपेन्द्र सिंह के नाम से युगल गायिकी में कई गजलें जाए जो काफी हिट रही.

कुछ प्रमुख गाने: –

दिल ढूँढता है, दो दिवाने इस शहर में, नाम गुम जायेगा, करोगे याद तो, किसी नज़र को तेरा इन्तज़ार आज भी है, दरो-दीवार पे हसरत से नज़र करते हैं और खुश रहो अहले-वतन हम तो सफर करते हैं, आदि.

मिताली-भूपेन्द्र सिंह के गानों  में उनकी आवाज की गहराई और भावनाओं का सार्थक अनुभव किया जाता है.

==========  =========  ===========

क्रिकेट खिलाड़ी एस. श्रीसंत

एस. श्रीसंत एक पूर्व भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी हैं। उनका पूरा नाम शंकर श्रीसंत है, और वे 6 फरवरी 1983 को कोठामंगलम, केरल में पैदा हुए थे. उनका पूरा नाम शान्ताकुमारन श्रीसंत है.

श्रीसंत क्रिकेट के माध्यम से अपनी कैरियर की शुरुआत करते समय भारतीय दाहिने हाथ के तेज़-मध्यम गेंदबाज है. श्रीसंत ने भारतीय क्रिकेट की तीन विभागों में खेला – टेस्ट क्रिकेट, वनडे इंटरनेशनल, और टी20 इंटरनेशनल, लेकिन उनका प्रमुख योगदान वनडे और टी20 क्रिकेट में रहा. उन्होंने भारतीय टीम के साथ कई महत्वपूर्ण खिलाड़ियों के साथ खेला और महत्वपूर्ण मोमेंट्स में भाग लिया।

हालांकि, उनकी क्रिकेट कैरियर में विवादों और संयमित रूप से उनके व्यवहार के कारण कुछ समय के लिए बाहर जाना पड़ा, लेकिन फिर भी वे एक महत्वपूर्ण भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी रहे हैं.

==========  =========  ===========

उपेन्द्रनाथ ब्रह्मचारी

उपेन्द्रनाथ ब्रह्मचारी एक प्रमुख भारतीय वैज्ञानिक और चिकित्सक थे, जिन्होंने विशेष रूप से कालाजार की दवा बनाकर लाखों की जिंदगी बचाई. फिर भी उन्हें नोबेल पुरस्कार नहीं मिल सका.

उपेन्द्रनाथ ब्रह्मचारी का जन्म 19 दिसम्बर, 1873 को बिहार के मुंगेर जिले के जमालपुर कस्बे में हुआ था. उपेन्द्रनाथ ब्रह्मचारी ने 1899 में राज्य चिकित्सा सेवा में प्रवेश किया और ढाका मेडीकल कॉलेज में औषधि के शिक्षक के रूप में चार वर्षों तक काम किया. सेवानिवृति के बाद उपेन्द्रनाथ ब्रह्मचारी अवैतनिक प्रोफेसर के रूप में  कोलकाता विश्वविद्यालय के विज्ञान महाविद्यालय में जैवर सायन विभाग में सेवा देते रहे. कई प्रयासों और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उपेन्द्रनाथ ब्रह्मचारी ने कालाजार को नियंत्रित करने वाली दवा तैयार किया और उसका नाम ‘यूरिया स्टीबामीन’ नाम दिया.

भारत की तरफ से सबसे पहले 1929 में दो  भारतीयों का नाम नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया था जिनमें एक नाम उपेन्द्रनाथ ब्रह्मचारी का भी था. उसके बाद 1942 में दोबारा नोबेल पुरस्कार के लिए नामित हुआ लेकिन, दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने के कारण उस साल नोबेल पुरस्कार किसी को नहीं दिया गया.

उपेन्द्रनाथ ब्रह्मचारी पेशे से डॉक्टर थे और वे अनुसंधान द्वारा उपचार को सहज व पूर्ण प्रभावी बनाने में विश्वास करते थे. उनका निधन 6 फरवरी 1946 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था.

==========  =========  ===========

वैज्ञानिक डॉ. आत्माराम

डॉ. आत्माराम एक प्रमुख भारतीय वैज्ञानिक थे जिन्होंने चश्मे के काँच के निर्माण में सराहनीय योगदान दिया था. डॉ. आत्माराम की स्मृति में ‘केन्द्रीय हिन्दी संस्थान’ द्वारा ‘आत्माराम पुरस्कार’ दिया जाता है.

डॉ. आत्माराम का जन्म 12 अक्टूबर 1908 को उत्तर प्रदेश राज्य के बिजनौर ज़िले में पीलाना नामक स्थान पर हुआ था. विज्ञान की शिक्षा प्राप्त करने के बाद आत्माराम ने कांच और सेरोमिक्स पर शोध आरंभ किया. बताते चलें कि, ऑप्टिकल कांच अत्यंत शुद्ध कांच होता है और उसका उपयोग सूक्ष्मदर्शी और विविध प्रकार के सैन्य उपकरण बनाने में किया जाता है. ज्ञात है कि भारत में यह कांच जर्मनी से आयात होता था.

डॉ. आत्माराम ने बड़ी लगन के साथ शोध करके भारत में ही ऐसा कांच बनाने की विधि विकसित कर ली.1967 में देश की प्रमुख वैज्ञानिक संस्था ‘वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद’ का महानिदेशक डॉ. आत्माराम को बनाया गया था.

डॉ. आत्माराम को 1959 में पद्म श्री और शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित किया गया. देश के महान् वैज्ञानिकआत्माराम का निधन 6 फ़रवरी, 1983 को हुआ था.

==========  =========  ===========

मोतीलाल नेहरू

मोतीलाल नेहरू भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण नेता और भारतीय गणराज्य के नींव स्थापकों में से एक थे. वह 6 मई 1861 को आगरा में पैदा हुए थे और 6 फरवरी 1931 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में निधन हुआ था.

मोतीलाल नेहरू ने अपनी पढ़ाई-लिखाई की ओर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया और बीए पास नहीं कर पाये थे. उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट की वकालत की परीक्षा दी. जिसमें उन्हें स्वर्ण पदक मिला था. मोतीलाल नेहरू ने अपने बड़े भाई नंदलाल नेहरू के सहायक बनकर वकालत के पेशे में सफलता प्राप्त की.

मोतीलाल नेहरू का सियासी कैरियर भी महत्वपूर्ण था. वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे और वे महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के साथ जुड़े, मोतीलाल नेहरू ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय अनेक महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाई और उन्होंने कई बार ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलनों में भाग लिया.

मोतीलाल नेहरू के परिवार में ही जवाहरलाल नेहरू भी थे, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने. वे अपने बेटे के साथ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे महत्वपूर्ण परिप्रेक्ष्य में भूमिका निभाई और भारतीय गणराज्य की स्थापना के लिए काम किया.

मोतीलाल नेहरू का योगदान स्वतंत्रता संग्राम और भारतीय गणराज्य के निर्माण में महत्वपूर्ण था, और वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण नेता के रूप में याद किए जाते हैं.

==========  =========  ===========

पार्श्वगायिका लता मंगेशकर

पार्श्वगायिका लता मंगेशकर एक प्रमुख गायिका हैं. वे भारतीय संगीत के कई प्रमुख गीतकारों और संगीतकारों के साथ काम कर चुकी हैं. लता दीदी की जादुई आवाज़ के भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ पूरी दुनिया में दीवाने हैं. उन्हें कई उपनामों से जाना जाता है जैसे – स्वर-साम्राज्ञी, राष्ट्र की आवाज, सहराब्दी की आवाज, भारत कोकिला.

लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर 1929 को हुआ था, और उनका प्रमुख गायन क्षेत्र हिंदी फिल्म संगीत था. वे भारतीय सिनेमा के सोने के युग की अद्भुत गायिका थीं और उन्होंने लाखों लोगों को अपनी गायन की आवाज़ से मोहित किया. लता मंगेशकर ने बॉलीवुड में हजारों गीतों को गाया है, और उन्होंने अनगिनत पुरस्कार भी जीते हैं, जिसमें भारत सरकार द्वारा दिए गए भारतीय सिनेमा के उत्कृष्ट गायकी पुरस्कार भी शामिल हैं.

प्रमुख गाने: –

दिल मेरा तोड़ा हाय मुझे कहीं का न छोड़ा तेरे प्यार नेआयेगा आनेवाला, सुनो सजना पपीहे ने, न जाने तुम कहाँ थे, महबूब मेरे महबूब मेरे, हमने देखी है इन आँखों की, वो शाम कुछ अजीब थी, आया सावन झूमके और तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं आदि.

 राष्ट्र कवि प्रदीप जी ने ये शब्द ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आँख में भर लो पानी, जो शहीद हुए है उनकी, जरा याद करो कुर्बानीइन शब्दों को लता जी ने अपनी आवाज दी थी जिससे यह गाना सदा सदा के लिए अमर हो गया. लता मंगेशकर का निधन 6 फरवरी 2022 को मुम्बई में हुआ था. 

भारत की ‘नाइटिंगेल’ के नाम से दुनियाभर में मशहूर लता मंगेशकर ने करीब पांच दशक तक हिंदी सिनेमा में फीमेल प्ले बैक सिंगिंग में एक छत्र राज किया.

Rate this post
:

Related Articles

Check Also
Close
Back to top button